नेहरू बाल पुस्तकालय >> दुष्ट कौआ दुष्ट कौआसंजीव ठाकुर
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प्रस्तुत है संजीव ठाकुर की रचना दुष्ट कौआ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दुष्ट कौआ
गांव से दूर पीपल का एक विशाल पेड़ था। उस पर बहुत से पक्षी रहते थे। वहां
एक दुष्ट कौआ भी रहता था जो दूसरे पक्षियों के अंडों को खा जाता था। सभी
पक्षी उससे परेशान थे, लेकिन कोई कुछ कर नहीं पाता था।
एक बार एक चिड़िया ने अंडे दिए। कौआ उन्हें खाने पहुँच गया। चिड़िया बहुत गिड़गिड़ाई। कौआ नहीं माना। तब चिड़िया बोली-‘‘ठीक है, खाना ही है तो खा लो, लेकिन पहले जाकर अपनी चोंच तो गंगा नदी में धो आओ। दिन भर गंदी चीजें खाते रहते हो।’’
कौए ने चिडि़या की बात मान ली। वह चोंच धोने नदी के किनारे गया। गंगा के पानी में वह चोंच डालने ही वाला था कि गंगा नदी बोली-‘‘कौए ! तुम मेरे जल में गंदी चोंच मत डालो। यदि तुम्हें पानी चाहिए तो जाओ, कुम्हार से मिट्टी का बर्तन मांग लाओ, उसी से पानी ले लेना।’’
कौआ कुम्हार के पास गया। बोला-‘‘कुम्हार, कुम्हार ! मुझे मिट्टी का बर्तन दो। उसमें गंगा का पानी लूंगा, पानी से चोंच धोऊंगा, फिर चिड़िया के अंडे खाऊंगा।’’
कुम्हार बोला-‘‘मेरे पास बना हुआ बर्तन नहीं है। तुम जाकर मिट्टी ले आओ, मैं बर्तन बना दूंगा।’’
एक बार एक चिड़िया ने अंडे दिए। कौआ उन्हें खाने पहुँच गया। चिड़िया बहुत गिड़गिड़ाई। कौआ नहीं माना। तब चिड़िया बोली-‘‘ठीक है, खाना ही है तो खा लो, लेकिन पहले जाकर अपनी चोंच तो गंगा नदी में धो आओ। दिन भर गंदी चीजें खाते रहते हो।’’
कौए ने चिडि़या की बात मान ली। वह चोंच धोने नदी के किनारे गया। गंगा के पानी में वह चोंच डालने ही वाला था कि गंगा नदी बोली-‘‘कौए ! तुम मेरे जल में गंदी चोंच मत डालो। यदि तुम्हें पानी चाहिए तो जाओ, कुम्हार से मिट्टी का बर्तन मांग लाओ, उसी से पानी ले लेना।’’
कौआ कुम्हार के पास गया। बोला-‘‘कुम्हार, कुम्हार ! मुझे मिट्टी का बर्तन दो। उसमें गंगा का पानी लूंगा, पानी से चोंच धोऊंगा, फिर चिड़िया के अंडे खाऊंगा।’’
कुम्हार बोला-‘‘मेरे पास बना हुआ बर्तन नहीं है। तुम जाकर मिट्टी ले आओ, मैं बर्तन बना दूंगा।’’
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