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हम ऐसा ही करेगें

रमेश कटारिया

प्रकाशक : आशा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6200
आईएसबीएन :00000

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हर महीने के पहले सप्ताह में रामबेटी का मनीआर्डर आता था। शहर में उसका बेटा मदन नौकरी करता था। हर महीने माँ को खर्चे के लिये पांच सौ रुपये भेजता था।

Hum Aisa Hi Karegen A Hindi Book by Ramesh Katariya

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

शर्म


हर महीने के पहले सप्ताह में रामबेटी का मनीआर्डर आता था। शहर में उसका बेटा मदन नौकरी करता था। हर महीने माँ को खर्चे के लिये पांच सौ रुपये भेजता था। डाकिया जब मनीआर्डर लेकर आता तो उसका पड़ोसी राजू मनीआर्डर फार्म पर रामबेटी का अंगूठा कराने अन्दर जाता और कहता ‘‘चाची! मदन ने तीन सौ रुपये भेजे हैं।’’

रामबेटी पढ़ी-लिखी तो थी नहीं, सो राजू के कहने पर अंगूठा कर देती। और तीन सौ रुपये ले लेती। उससे ही उसका महिने भर का खर्च चलता था।

अब की बार शहर से उसकी नातिन पूनम गांव आई हुई थी। तभी डाकिया मनीआर्डर लेकर आ गया। हर बार की तरह राजू जो इसी ताक में रहता था, रामबेटी से फार्म पर अंगूठा लगवाने आया।
पूनम ने कहा-‘‘दिखाना तो।’’

जब पूनम ने फार्म देखा तो उसके होश उड़ गये। राजू ने 500 रुपये की प्राप्ति पर अंगूठा लगवाकर नानी को तीन सौ रुपये ही दिये थे। तो उसने शोर मचा दिया कि ‘‘ये राजू मेरी नानी को हर महीने दो सौ रुपये की चपत लगा रहा है। सिर्फ इसलिए कि नानी पढ़ी-लिखी नहीं है।

लेकिन मैं तो पढ़ी-लिखी हूँ। सीधी तरह से अब जितने भी रुपयों की बेईमानी तुमने की है, चुपचाप वापस कर दो। नहीं तो मैं पुलिस बुलाऊँगी’’ शोर सुनकर काफी लोग इकट्ठा हो गये थे। और उसने डाकिये को भी डांटा-‘‘आज के बाद जब भी नानी को या किसी को भी गांव में मनीआर्डर दोगे, तो उसे मनीआर्डर की रकम बताकर और अपने सामने अंगूठा लगवाओगे।’’
पूनम ने उपस्थित लोगों को समझाते हुये कहा- ‘‘अपनी लड़कियों को स्कूल में इतनी शिक्षा तो दिलवा ही सकते हो कि वह राजू जैसे लोगों से धोखा न खायें।’’


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