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इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
मैं अभी उड़ीसा में गया था।
वहां कोई २० राजा या छोटे-मोटे राजस्थान थे। उन राजाओं को मैंने बुलाया।
मैंने उनको समझाया कि छोटी-छोटी जो हुकूमतें हैं, छोटे-छोटे राजस्थान हैं,
उनका आप क्या करेंगे? एक छोटे-से कुएँ के एक छोटे-से मेढक बनकर आप क्या
करेंगे? आप समझते हैं, कि आप राजा हैं। किसी राजकुटुम्ब में मेरा जन्म
नहीं हुआ था। लेकिन आज सारे हिन्दुस्तान की हुक्मत में मेरा हिस्सा है। आप
क्यों ऐसा काम नहीं करते? आज आप एक छोटे-से खड्डे में पड़े हो। आप महासागर
में आओ और हमारे साथ काम करो। आपको बहुत मौका मिलेगा। दुनिया भर में हमारे
एम्बेसेडर (राजदूत) जाते हैं। वहाँ जाओ, वहाँ जाने के लिए तैयारी करो। अब
तो अंग्रेज चला गया। आपको उसकी सुरक्षा प्राप्त थी। अब तो आपको अपने देश
के लोगों का साथ देना पड़ेगा। आज लोग भागे-भागे राजमहल पर जाते हैं और आपको
अपनी रक्षा के लिए पुलिस रखनी पड़ती है। भई, कोई ऐसा भी राजा होता है,
जिसकी रक्षा करने के लिए पुलिस रखनी पड़े? वह तो बहुत बड़ी मुसीबत है। इस
तरह राज करने में क्या मजा है?
मैंने यह सब कहा तो वे समझ गए।
उन्होंने मान लिया कि आप जैसा कहेंगे, हम वैसा ही करेंगे। मैंने कहा कि
हुकूमत हमको दे दो। तो उन्होंने हुकूमत दे दी। तो ठीक है। अब वे आराम से
बैठे हैं, अब उनको अच्छी तरह से नींद आती है। सारा बोझ अब मेरे पर पड़ा है।
उड़ीसावाले खुश हो गए हैं कि हमारा एक प्रान्त करने की कोशिश बहुत सदियों
से थी, वह पूरी हो गई। और मैंने २४ घंटे में यह सब काम किया। लोग नहीं
जानते हैं कि हमने २४ घंटों में कितना काम किया। वहाँ से हवा में उड़कर
नागपुर चला गया। वहां कोई १८ राजा थे, जिन्हें 'सैल्यूट स्टेट' (सलामी
रियासतें) कहते हैं। उन सबको मैंने बुलाया। उनमें जब कभी कोई जाता था, तो
तोप छोड़कर उसकी सलामी होती थी। मैंने भी कहा सलाम। सब ने बहुत मुहब्बत से
मुझ से बातें कीं। वे भी समझ गए कि यह जो कहते हैं, वही ठीक है। दूसरा
रास्ता ही नहीं है। तब मैंने कहा कि दस्तखत दे दो। उन सब ने दस्तखत कर
दिए।
अब जिस तरह से मैं काम कर रहा
हूँ, इसी तरह से हमारे सब मन्त्री काम कर रहे हैं। हमारे प्राइम मिनिस्टर
पर जो भारी बोझ है, उनके हिसाब से मेरा बोझ कुछ भी नहीं है। मैंने तो कहा
था कि इन चार-छः महीनों में ही हमारे प्राइम मिनिस्टर की उम्र दस साल बढ़
गई है। मैं जब उनका चेहरा देखता हूँ तो मुझे दर्द होता है कि कितना बड़ा
भार उनके सिर पर है। हमारे प्राइम मिनिस्टर ने भी कहा कि तीन साल का ट्रूस
करो। वह तो खुद भी सोशलिस्ट के साथ ज्यादा सहानुभुति रखते हैं। मेरे बारे
में कुछ तो कहते हैं कि धनिकों का एजेंट हूँ, कोई कहता है मैं
राजा-महाराजाओं का एजेंट हूँ। बहुत-सी बातें लोग कहते हैं। लेकिन मेरी
चमड़ी बहुत कठिन हो गई है, उस पर असर नहीं होता है। हाँ, अगर दिल पर असर
करनेवाली कोई बात हो, तो उसका असर होता है। बाकी चमड़ी पर कोई असर नहीं
होता।
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- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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