लड़ाई के दिनों में हमारे
कम्यूनिस्ट भाई कहते थे कि ''ज्यादा पैदा करो और स्ट्राइक न करो! ''आज
कहते हैं कि ''बैठ जाओ और कम पैदा करो!'' क्योंकि आज कोई पकड़नेवाला नहीं
है; क्योंकि आज कोई लाठी नहीं चलाता। वह लड़ाई पीपुल्स वार (जनता का युद्ध)
हो गई थी। अब क्या हुआ 'पीपुल्स' का? भूखे रहो, खाओ नहीं, पैदा मत करो और
बस मौज करो! ऐसा ही हुआ तो देश क्या होगा? क्योंकि इस चीज में आर्मी नहीं
बन सकती। फौज अच्छी बनानी हो, तो हमें कितनी चीजें चाहिएँ? एक तो
आर्म्स-एम्यूनिशन (हथियार-बारूद) चाहिए। उसके लिए फैक्टरी चाहिए। वह
फैक्टरी रात-दिन चलनी चाहिए। वह २४ घंटा चले। फौज के लिए राइफलें चाहिएँ।
भर्ती करूँ, तो कहों से करूँ? बन्दूक देनी हो तो कहाँ से लाऊँ? मैं जाऊँ
सोशलिस्ट के पास कि दो भाई? इस तरह काम नहीं बनेगा। यदि हमारी फैक्टरी
हैं, तो कितनी हैं, कहाँ हैं, उनमें कितने काम करनेवाले हैं और उस फैक्टरी
में से हम कितनी पैदावार कर सकते हैं, कितनी पैदावार बढ़ा सकते हैं, यह सब
हिसाब हमारे पास है, उनके पास तो है नहीं। वह तो जानता भी नहीं है कि यह
सब क्या है? सिर्फ बन्दूके ही नहीं चाहिएँ, तोपें चाहिएँ, मशीनगनें
चाहिएँ, उनके लिए बारूद-गोला चाहिए, बम चाहिए, हवाई जहाज चाहिए, बम
फेंकनेवाली मशीनें चाहिएँ। उनके लिए ट्रेण्ड आदमी चाहिएँ। लेकिन मैने कोई
जगह नहीं देखी, जहाँ स्ट्राइक नहीं होती है। सब जगह पर होती है। साथ ही
हमें पेट्रोल चाहिए, यह सब कहाँ से लाओगे? हमारा पेट्रोल परदेसियों की
मेहरबानी पर है। कल हमारा पेट्रोल वह बन्द कर दें, तो हमारी लड़ाई खत्म।
पेट्रोल के बिना कुछ नहीं चल सकता। क्योंकि आज की लड़ाई ऐसी लड़ाई नहीं,
जैसी पहले थी। पेट्रोल चाहिए, उसके साथ हजारों ट्रक चाहिए और ट्रक्स भी
ऐसे चाहिए जो बराबर तैयार मिलें। जीप्स चाहिए कि बिना सड़क के भी चली जाएं,
पहाड़ के ऊपर जा सकनेवाली मोटरें चाहिएँ।
अब ये सब चीजें कहाँ से लाओगे?
कहां बनती हैं इधर? और इधर हमें नए कारखाने खोलने होंगे, तो किस तरह
खोलेंगे? स्ट्राइक होगी और क्या होगा? अब लोहा चाहिए। क्योंकि बन्दूक
बनानी हो, तोप बनानी हो, सब चीज बनानी हो, तो स्टील चाहिए, लोहा चाहिए।
टाटा का एक कारखाना हमारे हिन्दुस्तान में जमशेदपुर में है और हमने उसकी
काफी मदद की है। क्योंकि हम यह समझते थे कि वह मुसीबत में था। लोहा एक
नेशनल वेल्थ है, राष्ट्र की दौलत है। अगर उसको हम ठीक नहीं रखेंगे, तो
हमको मुश्किल पड़ेगी। तो आज भी एक ही कारखाना है। लेकिन आज स्टील (लोहा) पर
कन्ट्रोल है। आपको मालूम है कि आज मकान बनाना हो तो उसके लिए स्टील चाहिए,
या लोहा चाहिए, तो नहीं मिलेगा। उस पर कन्ट्रोल है, क्योंकि हमारे पास है
ही नहीं। हमारे देश में जो लोहा बनता है, वह बहुत कम बनता है। हिन्दुस्तान
में ऐसे कारखाने बहुत से चाहिए। तो हमें लोहे के नये कारखाने बनाने हैं और
बनाने के लिए हम क्या करें? अब आप बताएं कि बड़ा कारखाना बनाएँ, तो अभी तो
जो एक ही चलता है, उसमे भी बार-बार स्ट्राइक होती है। दूसरा बनाएँगे, तो
वहाँ भी स्ट्राइकें होंगी। हम बड़ी आर्मी बनाएँगे, उसके लिए पूरा कपड़ा
चाहिए। हमें इधर कपड़ा न मिले तो चल सकता है, लेकिन आर्मी को हमें काश्मीर
भेजना है, उसके पास भी कपड़ा न हो, तो वह पहले दिन ही मर जाएगा। क्योंकि
वहाँ इतनी ठंड पड़ती है। ठंड न भी हो, तो भी आर्मी का यूनिफार्म तो चाहिए
और स्पेयर (फालतू) भी चाहिए। यह सब चीज़ें पहले से हमें सोचनी पड़ेगी। अब वह
कहाँ बने? वह घर में नहीं बन सकता। वह कारखाने में बनेगा। लेकिन कारखाने
में तो स्ट्राइक करो। इस तरह कभी काम चलेगा?
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