मनोरंजक कथाएँ >> पारस मणि पारस मणिरबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्र जी की एक उत्कृष्ट रचना पारसमणि ....
Parasmani -A Hindi Book by Ravindranath Thakur
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पारसमणि
वृन्दावन में यमुना नदी के किनारे बैठे ऋषि सनातन प्रभुनाम का जाप कर रहे थे। एक गरीब ब्राह्मण ने आकर प्रणाम किया। सनातन ने पूछा, ‘‘भाई, कहां से आ रहे हो? तुम्हारा नाम क्या है?’’
ब्राह्मण कहने लगा, ‘‘महाराज बहुत दूर से आया हूं। मेरा दुःख कहा नहीं जा सकता। भगवान की पूजा करते हुए एक रात में मानो कोई देवता मुझे कह गये थे
‘‘यमुना के किनारे सनातन गोस्वामी के पास जाकर प्रार्थना करना। वह भले साधु तुम्हारे कष्टों को दूर करेंगे।’’
सनातन बोले, ‘‘भाई, मेरी आशा पर तू यहां आया है। पर मैं क्या हूं ? जो कुछ था, उसे फेंककर केवल यह झोली लेकर जगत् में निकल पड़ा हूं। परन्तु हां, मुझे याद आता है। किसी दिन किसी को देने के लिए काम आयेगी, यह सोचकर उस स्थान पर रेती में एक मणि दबाकर रखी हुई है। जा भाई उसे ले जा। तेरा दुःख उससे दूरे होगा। तुझे बहुत धन मिलने वाला है।’’
पारसमणि ! अहा हा ! ब्राह्मण दौड़ता-दौड़ता गया और मुनि द्वारा बतायी जगह पर खोदकर मणि निकाल लाया। अपने लोहे के तावीज से मणि को छुआते ही वह सोने का हो गया। ब्राह्मण खुशी से नाचने लगा। खूब नाचा। मन में उसने अनेक प्रकार के महल खड़े कर लिये। कौन-कौन से सुख भोगूंगा, उसकी तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगा, फिर थककर आराम करने के लिए नदी के किनारे जा बैठा। यमुना के प्रवाह का मधुर कलरव सुनकर चित्त शांत हो गया। पक्षियों के कलोल को सुनने लगा और सामने सूरज डूबने का दृश्य देखने लगा।
ब्राह्मण की एक आंख इस अद्भुत सौन्दर्य पर लगी हुई थी और दूसरी आंख अपने सपनों के उन महलों की ओर थी। उसका मन डोलने लगा। उसे सनातन गोस्वामी का स्मरण हो आया। उसे अनेक बातें याद आने लगी।
ब्राह्मण कहने लगा, ‘‘महाराज बहुत दूर से आया हूं। मेरा दुःख कहा नहीं जा सकता। भगवान की पूजा करते हुए एक रात में मानो कोई देवता मुझे कह गये थे
‘‘यमुना के किनारे सनातन गोस्वामी के पास जाकर प्रार्थना करना। वह भले साधु तुम्हारे कष्टों को दूर करेंगे।’’
सनातन बोले, ‘‘भाई, मेरी आशा पर तू यहां आया है। पर मैं क्या हूं ? जो कुछ था, उसे फेंककर केवल यह झोली लेकर जगत् में निकल पड़ा हूं। परन्तु हां, मुझे याद आता है। किसी दिन किसी को देने के लिए काम आयेगी, यह सोचकर उस स्थान पर रेती में एक मणि दबाकर रखी हुई है। जा भाई उसे ले जा। तेरा दुःख उससे दूरे होगा। तुझे बहुत धन मिलने वाला है।’’
पारसमणि ! अहा हा ! ब्राह्मण दौड़ता-दौड़ता गया और मुनि द्वारा बतायी जगह पर खोदकर मणि निकाल लाया। अपने लोहे के तावीज से मणि को छुआते ही वह सोने का हो गया। ब्राह्मण खुशी से नाचने लगा। खूब नाचा। मन में उसने अनेक प्रकार के महल खड़े कर लिये। कौन-कौन से सुख भोगूंगा, उसकी तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगा, फिर थककर आराम करने के लिए नदी के किनारे जा बैठा। यमुना के प्रवाह का मधुर कलरव सुनकर चित्त शांत हो गया। पक्षियों के कलोल को सुनने लगा और सामने सूरज डूबने का दृश्य देखने लगा।
ब्राह्मण की एक आंख इस अद्भुत सौन्दर्य पर लगी हुई थी और दूसरी आंख अपने सपनों के उन महलों की ओर थी। उसका मन डोलने लगा। उसे सनातन गोस्वामी का स्मरण हो आया। उसे अनेक बातें याद आने लगी।
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