मनोरंजक कथाएँ >> भोला राजा भोला राजारबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्र साहित्य की अनूठी कहानी भोला राजा ......
Bhola Raja-A Hindi Book by Ravindranath Thakur - भोला राजा - रबीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भोला राजा
गुजुरपाड़ा ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे एक छोटा-सा गाँव है। वहाँ के एक छोटे-से जमींदार हैं पीतांम्बर राय। बस्ती कोई बड़ी नहीं है। पीताम्बर राय अरे पुराने चंडी मंदिर के बरामदे में बैठते हैं। वे अपने को राजा कहते हैं गांव के सभी लोग उनको राजा मानते हैं। अपने को उनकी प्रजा कहते है। लेकिन इस छोटे-से गाँव के बाहर राजा पीताम्बर राय को कोई नहीं जानता। इसी तरह बाहर के किसी राजा को गाँव वालों ने कभी नहीं देखा वे किसी दूसरे को राजा मानते भी नहीं। नदी के किनारे एक बड़ा-सा पुराना महल है। इसे त्रिपुरा के राजाओं ने केवल तीर्थस्थान के लिए बनवाया था। बहुत दिनों से त्रिपुरा का कोई राजा इस महल में नहीं आया, इसलिये यह खाली पड़ा रहता है। त्रिपुरा के राजा के बारे में गाँव वाले इससे ज्यादा कुछ नहीं जानते।
एक दिन भादों के महीने में गाँव वालों को एक नयी खबर मिली। खबर यह थी की त्रिपुरा के एक राजकुमार नदी किनारे वाले महल में रहने के लिए आ रहे हैं। कुछ दिनों बाद बहुत से पगड़ी पहने लोग आ पहुँचे। धूम-सी मच गयी। उसके करीब एक हफ्ते बाद हाथी-घोड़े, नौकर आदि लेकर नक्षत्रराय गुजुरपाड़ा गाँव में आ पहुँचा। उसके ठाट-बाट देखकर गाँव वाले अचरज में पड़ गये। आज तक पीताम्बर ही बड़े भारी राजा जान पड़ते थे, अब किसी को पीताम्बर का ध्यान तक नहीं रहा। सभी ने एक ही बात कही-हाँ, राजकुमार इसी प्रकार के हुआ करते हैं।
इस तरह लोग अपने गाँव के पुराने राजा पीताम्बर को पूरी तरह भूल गए। पीताम्बर राय इससे दुःखी होने के बजाय बहुत खुश हुए। उन्हें नक्षत्रराय एक सुंदर-सजीला जवान लगा। उन्होंने भी उसे अपने गांव का राजा मान लिया। नक्षत्रराय कभी हाथी पर सवार होकर बाहर निकलते तो पीताम्बर अपनी प्रजा को पुकार कर कहते ! ‘‘राजा देखा है ? वह देख, राजा देख!’’
एक दिन भादों के महीने में गाँव वालों को एक नयी खबर मिली। खबर यह थी की त्रिपुरा के एक राजकुमार नदी किनारे वाले महल में रहने के लिए आ रहे हैं। कुछ दिनों बाद बहुत से पगड़ी पहने लोग आ पहुँचे। धूम-सी मच गयी। उसके करीब एक हफ्ते बाद हाथी-घोड़े, नौकर आदि लेकर नक्षत्रराय गुजुरपाड़ा गाँव में आ पहुँचा। उसके ठाट-बाट देखकर गाँव वाले अचरज में पड़ गये। आज तक पीताम्बर ही बड़े भारी राजा जान पड़ते थे, अब किसी को पीताम्बर का ध्यान तक नहीं रहा। सभी ने एक ही बात कही-हाँ, राजकुमार इसी प्रकार के हुआ करते हैं।
इस तरह लोग अपने गाँव के पुराने राजा पीताम्बर को पूरी तरह भूल गए। पीताम्बर राय इससे दुःखी होने के बजाय बहुत खुश हुए। उन्हें नक्षत्रराय एक सुंदर-सजीला जवान लगा। उन्होंने भी उसे अपने गांव का राजा मान लिया। नक्षत्रराय कभी हाथी पर सवार होकर बाहर निकलते तो पीताम्बर अपनी प्रजा को पुकार कर कहते ! ‘‘राजा देखा है ? वह देख, राजा देख!’’
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