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भगत की सीख

बलदेव साव

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :15
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6168
आईएसबीएन :81-237-3925-7

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बलदेव साव द्वारा लिखित कहानी भगत की सीख...

Bhagat Ki Sheekh -A Hindi Book by Baldev Sav - भगत की सीख - बलदेव साव

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भगत की सीख

भगत गांव भर का मुखिया था। उसका मन पूजा-पाठ में लगा रहता था। दान-पुन्न करने में भी वह आगे था। घर आए मेहमान का बहुत आदर करता था। उसके दरवाजे से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था। हमेशा जरूरतमंद लोगों की वह मदद करता था। खेती-बाड़ी का उसे ज्ञान था। नाड़ी की भी उसे अच्छी समझ थी। जड़ी-बूटियों से वह सर्दी जुकाम खांसी दूर कर देता था। लोग उसे मानते थे।

वह झगडे की जड़ तक जाता। उपाय खोजता। चुटकी बजाते दोनों दलों को खुश कर देता था। वे एक हो जाते। वहां थाने पुलिस का कोई काम न था। वह सब के सुख-दुख में शामिल होता था। इसीलिए लोग उसे भरत कहा करते थे। असल नाम किसी को भी मालूम नहीं था।

पांच भाइयों में वह सबसे बड़ा था। जवानी में कड़ी मेहनत कर उसने छह एकड़ जमीन को साठ एकड़ बनाया था। एक चक जमीन उसी की थी। परिवार बढ़ा तो जरूरतें बढ़ीं। बेटे बेटियों का विवाह किया। पोते-पोती हुए। एक चूल्हें में सबका खान-पीना आसान न था। भरत ने समय को पहचाना। परिवार का बंटवारा कर दिया। पड़ोसी देखते रह गए। बंटवारे के बाद भगत के परिवार में दो बेटे उनकी बहुएं और मां थी। बड़े का एक लड़का और एक लड़की थी। छोटे के दो लड़के और एक लड़की थी।

आजकल भगत परेशान रहता है। लोग कहते–‘‘क्या हुआ इस भगत को।’’ क्यों चुप रहता है ? पुराने साथी पूछते-‘‘भैय्या भगत, तुम्हें क्या तकलीफ हैं। हमें बताओ। भैया न तुम किसी से मिलते न हंसते हो, क्या बात है ? भगत उनकी ओर देखता, फिर आंखें नीची कर लेता। इसके बाद कुछ भी पूंछने की हिम्मत किसी की नहीं थी।

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