नाटक-एकाँकी >> अभिज्ञान शाकुन्तल अभिज्ञान शाकुन्तलकालिदास
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विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...
राजा : (आप-ही-आप) न जाने यह बालक किस कुल का है। इसके एक बार के स्पर्श से ही मुझको इतना सुख मिल रहा है, तब उस भाग्यवान को जिसका यह अपना सगा पुत्र है, इसको गोद में बैठाकर कितना सुख मिलता होगा।
[तापसी दोनों को देखती है।]
तापसी : आश्चर्य, महान् आश्चर्य।
राजा : आर्ये! इसमें आश्चर्य की क्या बात है?
तापसी : आपका और इस बालक का एक समान मिलता-जुलता रूप देखकर तो मुझे विस्मय हो रहा है। न केवल इतनी ही बात बल्कि और यह भी है कि आपके सर्वथा अपरिचित होने पर भी इसने आपकी बात को टाला नहीं। आपने जिस प्रकार कहा इसने उसे मान लिया।
[राजा बालक को दुलारता है।]
राजा : (तापसी से) यदि यह ऋषिकुमार नहीं है तो फिर यह कौन है?
कृपया बताइये तो।
तापसी : यह तो पुरुवंश का कुमार है।
[राजा आश्चर्य मुद्रा में]
राजा : (मन-ही-मन) अरे, यह क्या मेरे अपने ही वंश का है। तभी तो यह तापसी इसकी आकृति और मेरी आकृति को एक समान बता रही है।
परन्तु पुरुवंशियों की तो यह पारम्परिक रीति है-
युवावस्था में वे पृथ्वी की रक्षा करते हुए विलास संसाधनों से परिपूर्ण राजभवनों में रहते हैं और वृद्धावस्था में अपनी पतिव्रता पत्नी को साथ लेकर वन में जाकर वृक्षों के नीचे कुटिया बनाकर निवास करते हैं।
[प्रकट में]
किन्तु पृथ्वी पर के मनुष्य तो यहां पर अपनी सामर्थ्य से पहुंच नहीं सकते फिर यह बालक यहां किस प्रकार आ गया?
तापसी : आप यह ठीक ही कह रहे हैं। इसकी मां अप्सरा की पुत्री है, इसलिए उसने इसको इस देवगुरु मरीचि के आश्रम में जन्म दिया है।
राजा : (अपने आप ही) अरे, यह तो मेरी आशा की दूसरी किरण दिखाई दे रही है।
अच्छा, यह तो बताइये कि वह देवी किस राजर्षि की पत्नी हैं?
तापसी : (मुंह बनाकर) छि:, छि:, जिसने अपनी पत्नी का परित्याग कर दिया हो, ऐसे पापी का नाम भी कौन अपने मुख से निकालना चाहेगा?
राजा : (अपने आपसे) तापसी की यह बात तो बिलकुल मुझ पर घटित हो रही है। यदि ऐसी बात है तो फिर इससे उसके माता-पिता का ही नाम पूछकर देखता हूं।
किन्तु क्या किसी पराई स्त्री के विषय में इस प्रकार पूछना अच्छा होगा?
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