अतिरिक्त >> मिट्टी का आदमी मिट्टी का आदमीवसिरेड्डी सीता देवी
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सांबय्या एक मेहनती किसान है। वह मिट्टी में पैदा हुआ और मिट्टी में ही पला है। जमाने से ही उसने सब सीखा है। धरती ही उसकी अक्षरपाटी है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मिट्टी का आदमी
सांबय्या एक मेहनती किसान है। वह मिट्टी में पैदा हुआ और मिट्टी में ही
पला है। जमाने से ही उसने सब सीखा है। धरती ही उसकी अक्षरपाटी है। हल उसकी
खड़िया है। खेत उसकी पाठशाला है। धरती ने रोज एक सबक सिखाया तो उसने उसका
धरती पर ही अभ्यास किया। उसके लिए मां, भगवान गुरू सब धरती ही है।
उसका पिता वेंकय्या कंगाली में पेट थामें फिरता हुआ उस गांव में आया था। पहले किसी के घर नौकर हुआ। कुछ समय बाद उसने बटाई पर कुछ जमीन ले ली। कड़ी मेहनत की। दस–बारह साल में उसने दो एकड़ जमीन खरीदी। फिर बेटा सांबय्या ने काम संभाल लिया।
जमीन पर ही भरोसा रखने वाले मेहनती सांबय्या ने फसल में बचत की। बेटा वेंकटपति के पैदा होने तक गाँव के छोटे किसानों में उसकी गिनती होने लगी। वेंकटपति के शादी के लायक होते-होते सांबय्या गांव का एक अमीर किसान बन गया। पसीना बहाकर मेहनत करने से ही धन पैदा होता है सांबय्या ने अपने जीवन में मेहनत को ऊपर रखा। उसके लिए मेहनत ही पूँजी थी। यही सांबय्या की सोच थी।
उसका पिता वेंकय्या कंगाली में पेट थामें फिरता हुआ उस गांव में आया था। पहले किसी के घर नौकर हुआ। कुछ समय बाद उसने बटाई पर कुछ जमीन ले ली। कड़ी मेहनत की। दस–बारह साल में उसने दो एकड़ जमीन खरीदी। फिर बेटा सांबय्या ने काम संभाल लिया।
जमीन पर ही भरोसा रखने वाले मेहनती सांबय्या ने फसल में बचत की। बेटा वेंकटपति के पैदा होने तक गाँव के छोटे किसानों में उसकी गिनती होने लगी। वेंकटपति के शादी के लायक होते-होते सांबय्या गांव का एक अमीर किसान बन गया। पसीना बहाकर मेहनत करने से ही धन पैदा होता है सांबय्या ने अपने जीवन में मेहनत को ऊपर रखा। उसके लिए मेहनत ही पूँजी थी। यही सांबय्या की सोच थी।
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