जीवनी/आत्मकथा >> बाबा आमटे बाबा आमटेतारा धर्माधिकारी
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बाबा आमटे का जन्म 26 दिसंबर 1914 को महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले में हिंगणघाट गांव में हुआ था। उनका परिवार एक सनातनी ब्राह्मण परिवार था।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
गठन
बाबा आमटे का जन्म 26 दिसंबर 1914 को महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले में
हिंगणघाट गांव में हुआ था। उनका परिवार एक सनातनी ब्राह्मण परिवार था।
उनके पिता देवीदास हरबाजी आमटे शासकीय सेवा में लेखपाल (एकांउटेंट) थे।
वरोड़ा से पांच-छह मील दूर गोरजे गांव में उनकी जमींदारी थी। बाबा का बचपन
बहुत ही ठाट-बाट से बीता। सोने के पालने में चांदी की चम्मच से उन्हें
खाना खिलाया जाता।
रेशमी कुर्ता, सिर पर जरी की टोपी तथा पांवों में बूट-यही उनकी वेशभूषा रहती। उनकी चार बहनें और एक भाई था। उनका पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे था।
बाबा अपने पिता से हमेशा डरे-सहमे से रहते, उनसे बात करने से कतराते थे। लेकिन अपनी मां से उनकी गाढ़ी छनती थी। उनकी माताजी एक स्वतंत्र विचारों वाली महिला थीं। बचपन में मां ने आमटे को खेलने के लिए एक लुढ़कने वाला गुड्ढ़ा दिया था जो बार-बार गिराये जाने पर भी उठ कर बैठ जाता था। मां कहा करती थीं, ‘‘देख बेटे, जिंदगी में इसकी तरह गिरते-पड़ते रहने के, मात खाने के, धराशायी होने के प्रसंग आते ही रहेंगे, पर डरना नहीं, हथियार नहीं डालना।
रेशमी कुर्ता, सिर पर जरी की टोपी तथा पांवों में बूट-यही उनकी वेशभूषा रहती। उनकी चार बहनें और एक भाई था। उनका पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे था।
बाबा अपने पिता से हमेशा डरे-सहमे से रहते, उनसे बात करने से कतराते थे। लेकिन अपनी मां से उनकी गाढ़ी छनती थी। उनकी माताजी एक स्वतंत्र विचारों वाली महिला थीं। बचपन में मां ने आमटे को खेलने के लिए एक लुढ़कने वाला गुड्ढ़ा दिया था जो बार-बार गिराये जाने पर भी उठ कर बैठ जाता था। मां कहा करती थीं, ‘‘देख बेटे, जिंदगी में इसकी तरह गिरते-पड़ते रहने के, मात खाने के, धराशायी होने के प्रसंग आते ही रहेंगे, पर डरना नहीं, हथियार नहीं डालना।
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