अतिरिक्त >> भले घर का लड़का भले घर का लड़कासतीश जायसवाल
|
9 पाठकों को प्रिय 177 पाठक हैं |
सतीश जायसवाल द्वारा प्रस्तुत कहानी भले घर का लड़का ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भले घर का लड़का
एक दिन की बात है। कोनी गांव के सरपंच शहर गए थे। वहां पूरा दिन लग गया।
शाम हो गई। अब घर लौट रहे थे।
सरपंच पुराने जमाने के हैं। आज भी घोड़े पर चढ़ते हैं। उसी से लौट रहे हैं।
शहर पीछे छूट गया, गांव अभी दूर था। रास्ता सुनसान था। मौसम ठंडा था। सरपचं ने चादर ओढ़ ली।
तभी उन्हें एक लड़का दिखा। लड़का अकेला था और पैदल जा रहा था। ठंड के दिन और रात का समय। रास्ता सूना। ऐसे में अकेला लड़का।
सरपरंच को शक हुआ जरूर कोई बात है। पता करना चाहिए। लड़का कौन है ? कहां से आ रहा है, कहां जा रहा है ? रास्ता तो नहीं भटक गया। ? सरपंच ने घोड़ा बढ़ाया। लड़के के पास पहुंचे।
लड़का रो रहा है। भले घर का लगता है। थका हुआ भी दिखता है। सरपंच अनुभवी हैं। समझ गए कि क्या बात हो सकती है। सरपंच घोड़े से उतरे और लड़के के साथ चलने लगे। सुनसान रास्ते से लड़का डर चुका है। सरपंच ने उसका डर कम किया।। फिर उससे बात की—‘‘बेटा, कहां से आ रहे हो ?’’
लड़के ने जवाब दिया—‘‘कहीं से भी नहीं।’’
सरपंच ने बात आगे बढ़ाई—‘‘कहां जा रहे हो ?’’
लड़के ने वैसे ही जवाब दिया—‘‘कहीं भी’’।
सरपंच समझ गए कि लड़का अभी गुस्से में है। सरपंच ने लड़के को घोड़े पर बिठा लिया। उसने गरम कपड़े भी नहीं पहने हैं। हाथ-पांव ठंडे हो रहे हैं। सरपंच ने अपनी चादर उसे ओढ़ा दी। उसे अच्छा लगा। उसका गुस्सा भी कम हुआ। सरपंच ने धीरे-धीरे उससे सब जान लिया। लड़का अपने घर से भागा हुआ है। आज घर में खूब मार पड़ी। इसलिए स्कूल से घर नहीं लौटा। भाग आया। अब कभी नहीं लौटेगा।
सरपंच पुराने जमाने के हैं। आज भी घोड़े पर चढ़ते हैं। उसी से लौट रहे हैं।
शहर पीछे छूट गया, गांव अभी दूर था। रास्ता सुनसान था। मौसम ठंडा था। सरपचं ने चादर ओढ़ ली।
तभी उन्हें एक लड़का दिखा। लड़का अकेला था और पैदल जा रहा था। ठंड के दिन और रात का समय। रास्ता सूना। ऐसे में अकेला लड़का।
सरपरंच को शक हुआ जरूर कोई बात है। पता करना चाहिए। लड़का कौन है ? कहां से आ रहा है, कहां जा रहा है ? रास्ता तो नहीं भटक गया। ? सरपंच ने घोड़ा बढ़ाया। लड़के के पास पहुंचे।
लड़का रो रहा है। भले घर का लगता है। थका हुआ भी दिखता है। सरपंच अनुभवी हैं। समझ गए कि क्या बात हो सकती है। सरपंच घोड़े से उतरे और लड़के के साथ चलने लगे। सुनसान रास्ते से लड़का डर चुका है। सरपंच ने उसका डर कम किया।। फिर उससे बात की—‘‘बेटा, कहां से आ रहे हो ?’’
लड़के ने जवाब दिया—‘‘कहीं से भी नहीं।’’
सरपंच ने बात आगे बढ़ाई—‘‘कहां जा रहे हो ?’’
लड़के ने वैसे ही जवाब दिया—‘‘कहीं भी’’।
सरपंच समझ गए कि लड़का अभी गुस्से में है। सरपंच ने लड़के को घोड़े पर बिठा लिया। उसने गरम कपड़े भी नहीं पहने हैं। हाथ-पांव ठंडे हो रहे हैं। सरपंच ने अपनी चादर उसे ओढ़ा दी। उसे अच्छा लगा। उसका गुस्सा भी कम हुआ। सरपंच ने धीरे-धीरे उससे सब जान लिया। लड़का अपने घर से भागा हुआ है। आज घर में खूब मार पड़ी। इसलिए स्कूल से घर नहीं लौटा। भाग आया। अब कभी नहीं लौटेगा।
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
लोगों की राय
No reviews for this book