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दो भाई

निशात फारुक

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6138
आईएसबीएन :81-237-4287-3

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यह कहानी है दो भाइयों की। एक भाई अमीर और चालाक था। दूसरा बेहद गरीब पर ईमानदार था।

Do Bhai A Hindi Book by Nishant Faruk

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

दो भाई

यह कहानी है दो भाइयों की। एक भाई अमीर और चालाक था। दूसरा बेहद गरीब पर ईमानदार था।
सभी उससे खुश रहते। उसकी बड़ाई करते। अमीर भाई यह देख जलता।

एक साल सूखा पड़ा। खेतों में अन्न का एक दाना तक न उगा। गरीब भाई का परिवार भूखों मरने लगा। पति पत्नी ने भूख सहन कर ली। लेकिन बच्चों का रोना उनसे देखा न गया। लाचार हो वह अमीर भाई के घर पहुंचा।
उसने भाई से कहा, ‘‘भइया, मुझे एक बोरी आटा दे दो। बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं।’’

अमीर भाई बोला, ‘‘आटा मिल जाएगा लेकिन आटे के बदले तुम्हें अपनी एक आँख देनी होगी। मंजूर है ?’’
गरीब भाई बहुत गिड़गिड़ाया। अमीर भाई न माना। मरता क्या न करता। आँखें निकलवाने को तैयार हो गया।

अमीर भाई ने गरीब भाई की एक आँख निकलवा ली। और बोरा भर आटा दे दिया। बोरा लादकर गरीब भाई किसी तरह घर जा पहुंचा। पत्नी उसे देखकर घबरा गई। पूछने पर पति ने सारा किस्सा कह सुनाया। सभी रोने चिल्लाने लगे। पर भूख से दम तोड़ता परिवार करता भी क्या।

कुछ ही दिनों में आटा खत्म हो गया। गरीब भाई फिर अमीर के घर पहुंचा।
अमीर भाई ने पूछा, ‘‘आटे के बदले दूसरी आँख देने को तैयार हो ?’’
‘‘भाई मैं अंधा हो जाऊंगा। मेरी जिंदगी तबाह हो जाएगी। रहम करो। ऐसे में थोड़ा-सा आटा दे दो।’’
गरीब भाई फिर गिड़गिड़ाया।

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