अतिरिक्त >> बुढ़ापे का प्रेम बुढ़ापे का प्रेमगणेश खुगशाल
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पढ़िये बुढ़ापे का प्रेम एक रोचक कहानी ......
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बुढ़ापे का प्रेम
पहाड़ तो बड़े होते हैं लेकिन पहाड़ी गांव छोटे होते हैं। वह गांव तो और
भी छोटा था। उस गांव में छह परिवार रहते थे। उस गांव में या तो बच्चे थे
या बूढ़े।
छठे परिवार में सिर्फ पति-पत्नी थे वह भी पैंसठ-सत्तर साल के बूढ़े। उनसे कुछ काम-काज तो होता नहीं था। बूढ़ी अवस्था में हाथ –पैर तो कम चलते हैं लेकिन जवान खूब चलती हैं।
गांव के बूढ़े आपस में बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाते और अपने जमाने भर की बातें करते रहते। परदेस गए बेटों और उनके साथ चली गई बहुओं की खूब बुराई होती-ऐसी ही बातों में उनका दिन पूरा होता, खेती अधेल (खेती का पैदा अनाज का आधा -आधा हिस्सा) और तिहाड़ (खेती में हुए अनाज का तीसरा हिस्सा) में दूसरों को दे रखी थी। उससे जो भी अनाज मिलता उसी से गुजारा चलता था।
बुढ़ापे में इच्छाएं बच्चों की सी हो जाती है। लालसाएँ बढ़ जाती हैं। खट्टी-मीठी और चटपटी चीजें खाने को खूब मन करता है। अच्छी चीजें खाने को जीभ तरसती रहती है। बुढ़ापें में एक बात और भी होती है—‘बुढ़ापे में प्रेम बढ़ जाता है’। कहते भी हैं ‘बुढ़ापे का प्रेम जवानी से दूना होता है’। शायद इसी प्रेम के कारण बुढ़ापे में पति-पत्नी एक दूसरे से पहले निभने की कामना भगवान् से करते रहते हैं।
जाड़ों के दिन थे। पहाड़ में सर्दियों में एक दिन की बरसात से भी ठंड बढ़ जाती है है। कई दिन से पानी बरस रहा था। लग रहा था आसमान बर्फ गिराकर ही खुलेगा।
बुढ़िया ने कहा, ‘‘आज पावों की उंगलियां सुबह से ही सुन्न हो रही हैं। लगता है कि बर्फ गिरेगी’।
छठे परिवार में सिर्फ पति-पत्नी थे वह भी पैंसठ-सत्तर साल के बूढ़े। उनसे कुछ काम-काज तो होता नहीं था। बूढ़ी अवस्था में हाथ –पैर तो कम चलते हैं लेकिन जवान खूब चलती हैं।
गांव के बूढ़े आपस में बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाते और अपने जमाने भर की बातें करते रहते। परदेस गए बेटों और उनके साथ चली गई बहुओं की खूब बुराई होती-ऐसी ही बातों में उनका दिन पूरा होता, खेती अधेल (खेती का पैदा अनाज का आधा -आधा हिस्सा) और तिहाड़ (खेती में हुए अनाज का तीसरा हिस्सा) में दूसरों को दे रखी थी। उससे जो भी अनाज मिलता उसी से गुजारा चलता था।
बुढ़ापे में इच्छाएं बच्चों की सी हो जाती है। लालसाएँ बढ़ जाती हैं। खट्टी-मीठी और चटपटी चीजें खाने को खूब मन करता है। अच्छी चीजें खाने को जीभ तरसती रहती है। बुढ़ापें में एक बात और भी होती है—‘बुढ़ापे में प्रेम बढ़ जाता है’। कहते भी हैं ‘बुढ़ापे का प्रेम जवानी से दूना होता है’। शायद इसी प्रेम के कारण बुढ़ापे में पति-पत्नी एक दूसरे से पहले निभने की कामना भगवान् से करते रहते हैं।
जाड़ों के दिन थे। पहाड़ में सर्दियों में एक दिन की बरसात से भी ठंड बढ़ जाती है है। कई दिन से पानी बरस रहा था। लग रहा था आसमान बर्फ गिराकर ही खुलेगा।
बुढ़िया ने कहा, ‘‘आज पावों की उंगलियां सुबह से ही सुन्न हो रही हैं। लगता है कि बर्फ गिरेगी’।
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