गीता प्रेस, गोरखपुर >> कूर्मपुराण कूर्मपुराणगीताप्रेस
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भगवान् कूर्म द्वारा कथित होने के कारण ही इस पुराण का नाम कूर्म पुराण विख्यात हुआ।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नम्र निवेदन
पुराण भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है। यह एक ऐसा विश्वकोश है, जिसमें
धार्मिक, आर्थिक, नैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक भौगोलिक आदि सभी
विषय अति सरल एवं सुगम भाषा में वर्णित हैं। वेदों में वर्णित विषयों का
रहस्य पुराणों में रोचक उपाख्यानों के व्दारा प्रस्तुत किया गया है।
इसीलिये इतिहास-पुराणों के द्वारा बेदोपबृंहणका विधान किया गया है।
पुराणों के परिज्ञान के बिना वेद, वेदांग एवं उपनिषदों का ज्ञाता भी
ज्ञानवान नहीं मान गया है। इससे पुराण-सम्बन्धी ज्ञानकी आवश्यकता और
महत्ता परिलक्षित होती है।
महापुराणों की सूची में पंद्रहवें पुराण के रूप में परिगणित कूर्मपुराण का विशेष महत्त्व है। सर्वप्रथम भगवान् विष्णुने कूर्म अवतार धारण करके इस पुराण को राजा इन्द्रद्युम्न को सुनाया था, पुनः भगावन् कूर्म ने उसी कथानक को समुद्र-मन्थन के समय इन्द्रादि देवताओं तथा नारदादि ऋषिगणों से कहा। तीसरी बार नैमिषारण्यके द्वादशवर्षीय महासत्रके अवसर पर रोमहर्षण सूत के द्वारा इस पवित्र पुराण को सुनने का सैभाग्य अट्ठासी हजार ऋषियों को प्राप्त हुआ। भगवान् कूर्म द्वारा कथित होने के कारण ही इस पुराण का नाम कूर्म पुराण विख्यात हुआ।
रोमहर्षण सूत तथा शौनकादि ऋषियों के संवाद के रूप में आरम्भ होनेवाले इस पुराण में सर्वप्रथम सूतजी ने पुराण-लक्षण एवं अट्ठारह महापुराणों तथा उपपुराणों के नामों का परिगणन् करते हुए भगवान के कूर्मावतार की कथा का सरस विवेचन किया है। कूर्मावतार के ही प्रसंग में लक्ष्मी की उत्पत्ति और महात्म्य, लक्ष्मी तथा इन्द्रद्युम्न का वृत्तान्त, इन्द्रद्युम्न के द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति, वर्ण, आश्रम और उनके कर्तव्य वर्णन तथा परब्रह्म के रूप में शिवतत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। तदनन्तर सृष्टिवर्णन, कल्प, मन्वन्तर तथा युगों की काल-गणना, वराहावतारकी कथा, शिवपार्वती-चरित्र, योगशास्त्र, वामनवतार की कथा, सूर्य-चन्द्रवंशवर्णन, अनुसूया की संतति-वर्णन तथा यदुवंश के वर्णन में भगवान् श्रीकृष्ण के मंगल मय चरित्र का सुन्दर निरूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें श्रीकृष्ण द्वारा शिव की तपस्या तथा उनकी कृपा से साम्बनामक पुत्र की प्राप्ति, लिंगमाहात्म्य, चारों युगों का स्वभाव तथा युगधर्म-वर्णन, मोक्षके साधन, ग्रह-नक्षत्रों का वर्णन, तीर्थ-महात्म्य, विष्णु-महात्म्य, वैवस्तव मन्वतरके 28 द्वापरयुगों के 28 व्यासों का उल्लेख, शिव के अवतारों का वर्णन, भावी मन्वन्तरों के नाम, ईश्वरगीता तथा कूर्मपुराण के फलश्रुति की सरस प्रस्तुति है। हिन्दुधर्म के तीन मुख्य सम्प्रदायों—वैष्णव, शैव, एवं शाक्त के अद्भुत समन्वय के साथ इस पुराण में त्रिदेवोंकी एकता, शक्ति-शक्तिमानमें अभेद तथा विष्णु एवं शिवमें परमैक्यका सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।
‘कल्याण’ वर्ष 71 के विशेषांक के रूप में पूर्व प्रकाशित इस पुराण के विषय-वस्तु की उपयोगिता एवं पाठकों के आग्रहको दृष्टिगत रखते हुए अब इसको पुराण के रीप में सानुवाद प्रस्तुत हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। आशा है, प्रेमी पाठक गीताप्रेस से प्रकाशित अन्य पुराणों की भाँति इस पुराण को भी अपने अध्ययन-मनन तथा संग्रह का विषय बनाकर हमारे श्रमको सार्थक करेंगे।
महापुराणों की सूची में पंद्रहवें पुराण के रूप में परिगणित कूर्मपुराण का विशेष महत्त्व है। सर्वप्रथम भगवान् विष्णुने कूर्म अवतार धारण करके इस पुराण को राजा इन्द्रद्युम्न को सुनाया था, पुनः भगावन् कूर्म ने उसी कथानक को समुद्र-मन्थन के समय इन्द्रादि देवताओं तथा नारदादि ऋषिगणों से कहा। तीसरी बार नैमिषारण्यके द्वादशवर्षीय महासत्रके अवसर पर रोमहर्षण सूत के द्वारा इस पवित्र पुराण को सुनने का सैभाग्य अट्ठासी हजार ऋषियों को प्राप्त हुआ। भगवान् कूर्म द्वारा कथित होने के कारण ही इस पुराण का नाम कूर्म पुराण विख्यात हुआ।
रोमहर्षण सूत तथा शौनकादि ऋषियों के संवाद के रूप में आरम्भ होनेवाले इस पुराण में सर्वप्रथम सूतजी ने पुराण-लक्षण एवं अट्ठारह महापुराणों तथा उपपुराणों के नामों का परिगणन् करते हुए भगवान के कूर्मावतार की कथा का सरस विवेचन किया है। कूर्मावतार के ही प्रसंग में लक्ष्मी की उत्पत्ति और महात्म्य, लक्ष्मी तथा इन्द्रद्युम्न का वृत्तान्त, इन्द्रद्युम्न के द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति, वर्ण, आश्रम और उनके कर्तव्य वर्णन तथा परब्रह्म के रूप में शिवतत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। तदनन्तर सृष्टिवर्णन, कल्प, मन्वन्तर तथा युगों की काल-गणना, वराहावतारकी कथा, शिवपार्वती-चरित्र, योगशास्त्र, वामनवतार की कथा, सूर्य-चन्द्रवंशवर्णन, अनुसूया की संतति-वर्णन तथा यदुवंश के वर्णन में भगवान् श्रीकृष्ण के मंगल मय चरित्र का सुन्दर निरूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें श्रीकृष्ण द्वारा शिव की तपस्या तथा उनकी कृपा से साम्बनामक पुत्र की प्राप्ति, लिंगमाहात्म्य, चारों युगों का स्वभाव तथा युगधर्म-वर्णन, मोक्षके साधन, ग्रह-नक्षत्रों का वर्णन, तीर्थ-महात्म्य, विष्णु-महात्म्य, वैवस्तव मन्वतरके 28 द्वापरयुगों के 28 व्यासों का उल्लेख, शिव के अवतारों का वर्णन, भावी मन्वन्तरों के नाम, ईश्वरगीता तथा कूर्मपुराण के फलश्रुति की सरस प्रस्तुति है। हिन्दुधर्म के तीन मुख्य सम्प्रदायों—वैष्णव, शैव, एवं शाक्त के अद्भुत समन्वय के साथ इस पुराण में त्रिदेवोंकी एकता, शक्ति-शक्तिमानमें अभेद तथा विष्णु एवं शिवमें परमैक्यका सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।
‘कल्याण’ वर्ष 71 के विशेषांक के रूप में पूर्व प्रकाशित इस पुराण के विषय-वस्तु की उपयोगिता एवं पाठकों के आग्रहको दृष्टिगत रखते हुए अब इसको पुराण के रीप में सानुवाद प्रस्तुत हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। आशा है, प्रेमी पाठक गीताप्रेस से प्रकाशित अन्य पुराणों की भाँति इस पुराण को भी अपने अध्ययन-मनन तथा संग्रह का विषय बनाकर हमारे श्रमको सार्थक करेंगे।
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