गीता प्रेस, गोरखपुर >> बालक के आचरण बालक के आचरणहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
7 पाठकों को प्रिय 405 पाठक हैं |
बालक ही सदैव देश का भविष्य होते हैं। लेखक ने बहुत ही सुन्दरता के साथ बालक को जीवन में कैसा आचरण करना चाहिए यह बताया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।श्रीहरि:।।
नम्र निवेदन
बालक के आचरण कैसे होने चाहिये, यही इस छोटी-सी पुस्तक में लेखक द्वारा
दिखाया गया है। चरित्र-निर्माण शिक्षा का प्राण है, मुख्य अंग है। इस
पुस्तक से बालकों को चरित्र-निर्माण में पर्याप्त प्रेरणा मिलेगी। इसके
द्वारा उन्हें आदर्श जीवन बनाने में कुछ भी सहायता मिली तो हमें बड़ी
प्रसन्नता होगी।
हनुमानप्रसाद पोद्दार
।।श्रीहरि:।।
बालकों के आचरण
(1)
देश की लाज
हम उस देश में उत्पन्न हुए हैं-
जिस देश में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् राम ने अवतार
लिया।
जिस देश में लीलापुरुषोत्तम कृष्ण ने अवतार लिया।
हम उस देश में उत्पन्न हुए हैं-
जिस देश में महर्षि वाल्मीकि ने
रामायण का गान किया।
जिस देश में महर्षि वेदव्यास ने
महाभारत का निर्माण किया।
हम उस देश में उत्पन्न हुए हैं—
जिस देश में युधिष्ठिर-
जैसे धर्मात्मा हुए।
जिस देश में दधीच-
जैसे दानी हुए।
जिस देश में हरिश्चन्द्र-
जैसे सत्यवादी हुए।
हम उस देश में उत्पन्न हुए हैं—
जिस देश में राणाप्रताप–जैसे प्रणवीर हुए।
जिस देश में छत्रपति
शिवाजी-जैसे धीर-वीर हुए।
जिस देश में गुरु गोविन्दसिंह-जैसे कर्मवीर हुए।
हम उस देश में उत्पन्न हुए हैं—
जिस देश में लोकमान्य तिलक-जैसे कर्मयोगी हुए
जिस देश में महामना
मालवीय-जैसे
निष्ठावान् हुए।
जिस देश में महात्मा गांधी जैसे सत्य-
अहिंसा के पुजारी हुए।
हमारा देश-
भीम और अर्जुन-जैसे वीरोंका
देश है।
सावित्री और अनसूया-
जैसी पतिव्रताओं का देश है।
गोस्वामी तुलसीदास और
सूरदास-जैसे भक्तों का देश है।
हमारा देश-
गौरवशाली है।
वैभवशाली है।
उन्नतिशाली है।
हम ऐसा काम नहीं करेंगे—
जो हमारे देशकी मर्यादा के अनुकूल न हो।
जो हमारे देश के सम्मान के अनुकूल न हो।
हम देश के गौरव की रक्षा करेंगे।
हम देश के सम्मान की रक्षा करेंगे।
हम देश की लाज रखेंगे।
जिस देश में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् राम ने अवतार
लिया।
जिस देश में लीलापुरुषोत्तम कृष्ण ने अवतार लिया।
हम उस देश में उत्पन्न हुए हैं-
जिस देश में महर्षि वाल्मीकि ने
रामायण का गान किया।
जिस देश में महर्षि वेदव्यास ने
महाभारत का निर्माण किया।
हम उस देश में उत्पन्न हुए हैं—
जिस देश में युधिष्ठिर-
जैसे धर्मात्मा हुए।
जिस देश में दधीच-
जैसे दानी हुए।
जिस देश में हरिश्चन्द्र-
जैसे सत्यवादी हुए।
हम उस देश में उत्पन्न हुए हैं—
जिस देश में राणाप्रताप–जैसे प्रणवीर हुए।
जिस देश में छत्रपति
शिवाजी-जैसे धीर-वीर हुए।
जिस देश में गुरु गोविन्दसिंह-जैसे कर्मवीर हुए।
हम उस देश में उत्पन्न हुए हैं—
जिस देश में लोकमान्य तिलक-जैसे कर्मयोगी हुए
जिस देश में महामना
मालवीय-जैसे
निष्ठावान् हुए।
जिस देश में महात्मा गांधी जैसे सत्य-
अहिंसा के पुजारी हुए।
हमारा देश-
भीम और अर्जुन-जैसे वीरोंका
देश है।
सावित्री और अनसूया-
जैसी पतिव्रताओं का देश है।
गोस्वामी तुलसीदास और
सूरदास-जैसे भक्तों का देश है।
हमारा देश-
गौरवशाली है।
वैभवशाली है।
उन्नतिशाली है।
हम ऐसा काम नहीं करेंगे—
जो हमारे देशकी मर्यादा के अनुकूल न हो।
जो हमारे देश के सम्मान के अनुकूल न हो।
हम देश के गौरव की रक्षा करेंगे।
हम देश के सम्मान की रक्षा करेंगे।
हम देश की लाज रखेंगे।
(2)
धर्म का पालन
भगवान् धर्म की रक्षा के लिये अवतार लेते हैं।
सत्पुरुष धर्म की रक्षा करते हैं।
अच्छे लोग धर्म का पालन करते हैं।
जो धर्म की रक्षा करता है
धर्म उसकी रक्षा करता है।
जो धर्म का पालन करता है।
धर्म उसका पालन करता है।
जो धर्म की मर्यादा पर चलता है,
उसकी मर्यादा बची रहती है।
राजा शिबि धर्मात्मा थे।
राजा रन्तिदेव धर्मात्मा थे।
राजा युधिष्ठिर धर्मात्मा थे।
धर्मात्माओं का नाम अमर हुआ।
धर्मात्माओं को भगवान् धाम मिला।
धर्मात्माओं का संसार सम्मान करता है।
धर्म के पालन से सुख मिलता है।
धर्म के पालन से शान्ति मिलती है।
धर्म के पालन से यश बढ़ता है।
धर्म के पालन से कल्याण होता है।
जहाँ धर्म है, वहाँ दुःख नहीं।
जहाँ धर्म है, वहाँ अशान्ति नहीं।
जहाँ धर्म है, वहाँ झगड़े-झंझट नहीं।
जहाँ धर्म है, वहाँ दया है।
जहाँ धर्म है, वहाँ सत्य है।
जहाँ धर्म है, वहाँ क्षमा है।
जहाँ धर्म है, वहाँ उदारता है।
जहाँ धर्म है वहाँ त्याग है।
जहाँ धर्म है, वहाँ आनन्द है।
हम धर्म का पालन करेंगे।
हम धर्म की मर्यादा पर चलेंगे।
हम धर्मानुकूल व्यवहार करेंगे।
सत्पुरुष धर्म की रक्षा करते हैं।
अच्छे लोग धर्म का पालन करते हैं।
जो धर्म की रक्षा करता है
धर्म उसकी रक्षा करता है।
जो धर्म का पालन करता है।
धर्म उसका पालन करता है।
जो धर्म की मर्यादा पर चलता है,
उसकी मर्यादा बची रहती है।
राजा शिबि धर्मात्मा थे।
राजा रन्तिदेव धर्मात्मा थे।
राजा युधिष्ठिर धर्मात्मा थे।
धर्मात्माओं का नाम अमर हुआ।
धर्मात्माओं को भगवान् धाम मिला।
धर्मात्माओं का संसार सम्मान करता है।
धर्म के पालन से सुख मिलता है।
धर्म के पालन से शान्ति मिलती है।
धर्म के पालन से यश बढ़ता है।
धर्म के पालन से कल्याण होता है।
जहाँ धर्म है, वहाँ दुःख नहीं।
जहाँ धर्म है, वहाँ अशान्ति नहीं।
जहाँ धर्म है, वहाँ झगड़े-झंझट नहीं।
जहाँ धर्म है, वहाँ दया है।
जहाँ धर्म है, वहाँ सत्य है।
जहाँ धर्म है, वहाँ क्षमा है।
जहाँ धर्म है, वहाँ उदारता है।
जहाँ धर्म है वहाँ त्याग है।
जहाँ धर्म है, वहाँ आनन्द है।
हम धर्म का पालन करेंगे।
हम धर्म की मर्यादा पर चलेंगे।
हम धर्मानुकूल व्यवहार करेंगे।
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book