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लाल बहादुर शास्त्री

कमलेश्वर

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6077
आईएसबीएन :81-7028-699-9

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प्रस्तुत है पुस्तक लाल बहादुर शास्त्री .....

Lal Bahadur Shastri

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पटकथा लेखन एक विशिष्ट विधा है, जिसमें शब्दों की भूमिका पढ़े जाने के बजाय देखने की होती है। मीडिया का क्षेत्र व्यापक होने और विजुअल मीडिया की गतिविधियाँ हमारे यहाँ तेज होने के बाद पटकथा-लेखन एक प्रमुख विधा के रूप में सामने आया और जिन लेखकों ने इस दिशा में पहल की, उनमें प्रख्यात साहित्यकार, अनेक सफल फिल्मों, लोकप्रिय धारावाहिकों के पटकथा लेखक व मीडिया विशेषज्ञ कमलेश्वर जी का नाम अग्रणी है। उन्होंने लोकप्रियता अर्जित कर चुके धारावाहिकों व टेली-फिल्मों की स्व-लिखित पटकथाएँ प्रकाशित करने की योजना बनाई थी। देश के प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी और प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के जीवन और कार्यों पर आधारित कमलेश्वर जी की यह पटकथा उसी योजना की नवीनतम प्रस्तुति है। आधुनिक युग में सुपरिचित महापुरुषों के जीवन को फिल्म में रूपान्तरित करना और उसकी पटकथा तैयार करना खासा चुनौती-भरा काम होता है। उपन्यास-कहानियों जैसी आजादी वहाँ नहीं मिल सकती हैं। इस दृष्टि से शास्त्री जी के जीवन पर आधारित कमलेश्वर जी की यह पटकथा नवोदित पटकथा-लेखकों को अलग तरह से प्रशिक्षित करेगी।

लाल बहादुर शास्त्री

सीन-1

ताशकन्द घोषणा पत्र पर दस्तखत हो रहे हैं।
(आर्काइवल फुटेज)

वी.ओ. : 10 जनवरी 1966 ! अहम दिन और ऐतिहासिक तारीख ! पाकिस्तान के नापाक इरादों को हिमालय की बर्फ और थार के रेगिस्तान में दफनाने वाले इस शख्स ने सोवियत संघ की पहल पर एक ऐतिहासिक कारनामे पर अपनी मुहर लगा दी। इसकी चर्चा पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। सच मानें तो दुनियाभर के देश अचम्भित नजरों से देख रहे थे। इस अजीम शख्सियत-भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को ! इस सामान्य कद-काठी और दुबली काया वाली शख्सियत में साहस का अटूट माद्दा किस कदर भरा था। इन्होंने देश की बागडोर सँभालने में जिस समझदारी और दूरंदेशी वाली सूझ-बूझ का परिचय दिया, वह ऐतिहासिक हैं। शास्त्री जी ने अपने जिन फौलादी इरादों से पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी वह पाकिस्तान के लिए कभी न भूलने वाला एक सबक है।
पार्श्व में ‘लालबहादुर शास्त्री की जय’ के जयकारों की गूँज।
‘लाल बहादुर शास्त्री जिन्दाबाद !’
‘जिन्दाबाद......’
‘जिन्दाबाद......’
‘इन्कलाब जिन्दाबाद !’
‘भारत माता की जय !’


इंटरकट/


विश्राम गृह का दृश्य।

शास्त्रीजी प्रवेश करते हैं। कुर्सी पर बैठते हैं। शान्त संगीत। कैमरा पर्सनाल्टी पर जूम करता हुआ चेहरे को फोकस करता है।
चेहरे पर शान्ति का भाव।

कैमरा/वाइड-दरवाज़े पर-

सेवक हाथ में ट्रे लेकर प्रवेश करता है और शास्त्री जी के सामने टेबुल पर रखकर चला जाता है। ट्रे में भोजन होता है, जोकि ढँककर रखा होता है शास्त्री जी इससे बेखबर हैं। वे यादों में खोए हैं। दूर देखता हुआ उनका लुक। शान्त संगीत जारी है-
शास्त्री जी को अपने गाँव की याद आती है। फुटेज-गाँव और गलियाँ)
बैकग्राउंड में गीत बजता है।
‘झीनी झीनी बीनी चदरिया........’
(ले आउट लगभग 4-5 सैकेंड्स) कट
वी.ओ. : कबीर का यह निर्गुन शास्त्री जी अक्सर गुनगुनाया करते थे.........प्रधनामंत्री शास्त्री जी अपने कपड़े बदलकर सोने की तैयारी में थे। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के इस प्रधानमंत्री की सादगीभरी जिन्दगी बेमिसाल थी ! इतनी ऊँचाइयों पर पहुँचने के बावजूद, उनके दिलो-दिमाग़ में इन्हीं लमहों के साथ उभर रही थीं, कुछ धुँधली सी यादें.......अपने घर-गाँव की-


सीन-2


फ्लैश बैक

गाना : वन्दे मातरम्

एक पुराने भीड़ भरे कस्बे का दृश्य। साधु हाथ में तिरंगा लिए अपने बच्चे के साथ गली में भिक्षाटन पर निकला है। साधु के बच्चे की आवाज सुरीली है और वो वन्दे मातरम गा रहा है भीख माँगने का उसका एक खास अन्दाज़ है। लोग अपने आँगनों और बरामदों उठाए एक घर में दाखिल होता है.......घड़े को देखता है और दौड़कर उस बच्चे का गाना सुनने के लिए पलटता है।
रहवासी-1 : राम राम साधु महाराज !
साधु : राम राम !
रहवासी-2 : सब भला चंगा तो है न साधू बाबा !
साधु : बस ऊपरवाले की दया समझो।
(पार्श्व में साधु के बच्चे का वन्दे मातरम् गायन जारी है)

इंटरकट-1

वही घड़े वाला बालक लाल बहादुर आगे बढ़ता है और आकर साधु के पास खड़ा हो जाता है।
लाल बहादुर : (साधु के बेटे से) भीखू भैया, भीखू भैया, मुझे भी ये गाना सिखा दोगे।
(साधु का गर्व और खुशी का रिएक्शन)
तभी कन्धे पर स्कूल बैग लिए एक छोटी लड़की वहाँ आती है, उसका नाम फातिमा है।
फातिमा : अरे......मुझे ये गाना आता है। मैं तो भीखू भैया से ये पहले ही सीख चुकी हूँ।
बालक लाल बहादुर का रिएक्शन।
साधु का गर्व और खुशी का रिएक्शन।
लड़की ‘वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्’ गाती हुई फ्रेम से बाहर जाती है।
भीखू : मैंने फातिमा को सिखाया था....तुम्हें भी सिखा दूँगा।
(भीखू गाना शुरू करता है-बालक लाल बहादुर भी बुदबुदाते हुए उसके साथ-साथ स्वर में स्वर मिलाता है। साधु का गर्व और खुशी का रिएक्शन।)

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