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क्राइम रिपोर्टर कैसे बनें

एम. के. मजूमदार

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :143
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6053
आईएसबीएन :81-288-1770-1

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क्या आप क्राइम रिपोर्टर बनना चाहते हैं। इस दिशा में अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए एक उत्तम पुस्तक .....

Crime Reporter Kaise Bane - How to become a Crime Reporter by M K Majoomdar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


अपराध समाचार एवं अपराध पर आधारित लेख निश्चित रूप से पाठकों को रोमांचित करते हैं, इस तरह के समाचारों एवं लेखों का एक विस्तृत पाठक वर्ग भी है। यही कारण है कि आधुनिक पत्रकारिता में क्राइम रिपोर्टिंर के लिए समुचित स्थान है। अगर आप पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश कर, क्राइम रिपोर्टिंग के माध्यम से नाम और पैसा दोनों कमाना चाहते हैं तो यह पुस्तक आपके लिए पथ प्रदर्शक साबित होगी।

लेखकीय

पत्रकारिता के क्षेत्र में क्राइम रिपोर्टिंग (अपराध संवाद लेखन) एक रोचक व चुनौतीपूर्ण कार्य है। जिन लोगों में कुछ अलग करने का जज्बा व कुछ नया कर दिखाने की कशिश हो, उनका क्राइम रिपोर्टिंग में स्वागत है। पत्रकारिता के विभिन्न स्वरूप जैसे खेल पत्रकारिता, ग्रामीण पत्रकारिता, कृषि पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता विकास पत्रकारिता आदि पर ढेरों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। क्राइम रिपोर्टिंग के क्षेत्र में कैरियर बनाने वालों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था।

आज से पच्चीस साल पहले पत्रकारिता की ओर मेरी रुचि उत्पन्न हुई। उस वक्त मैंने अनेक बड़े पत्रकारों से मुलाकात की और उनमें पत्रकारिता के क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिये जानकारी माँगी मगर उनका रवैया कुछ अच्छा नहीं रहा, इसके बावजूद मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। क्षेत्रीय समाचार पत्र से लेकर विदेशी रेडियो के लिये मैंने न्यूज भेजी। इस बीच मेरा रुझान अपराध पत्रकारिता की ओर हुआ। मैं अपने अनुभवों का इस्तेमाल कर इस क्षेत्र में आगे बढ़ता रहा। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के सुदूर गाँव में रहते हुए भी मैंने वहां से फ्रीलांस क्राइम रिपोर्टर की। वहाँ से अपराध की घटनाओं पर रिपोर्ट, रपट, कहानी, लेख आदि लिखकर भेजे, जो भारत की बड़ी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। इसके बाद नागपुर, भोपाल, दिल्ली में रहकर कई छोटे-बड़े समाचार पत्रों में संवाददाता, ब्यूरो चीफ व, सह संपादक पद पर रहा। फिलहाल मैं मुंबई में रहकर फ्रीलांस क्राइम रिपोर्टिंग कर रहा हूँ।

पुस्तक में जो जानकारी दी है वह मेरे अपने अनुभव और विचार हैं। हो सकता है कि यह पूरी मुकम्मल किताब न बनी हो। मैं महान विद्वान बैंजामिन डिज के मत का यहाँ उल्लेख करना चाहूँगा, ‘‘किसी विषय से अच्छी तरह परिचित होने का सबसे अच्छा तरीका है कि उस पर पुस्तक लिख दी जाए।

मेरी इस पुस्तक को पढ़कर और कोई इससे उपयोगी पुस्तक लिख दे, यह मेरे लिए बड़ी प्रसन्नता की बात होगी। क्योंकि इस विषय में मौलिक पुस्तकों की नितांत आवश्यकता है।

डायमंड बुक्स ने जब पत्रकारिता की पुस्तकों की श्रृंखला निकाली, तब मैंने डायमंड बुक्स के नरेन्द्र जी के सामने क्राइम रिपोर्टर पर पुस्तक लिखने की बात कही तो वे कुछ देर तक सोचते रहे, फिर उन्होंने कहा, ‘अच्छा है, नयी पीढ़ी के काम की है।’ मैंने उनकी सोच के मुताबिक नयी पीढ़ी को ध्यान में रखकर इस पुस्तक को लिखा है।

मैं अपने उन पत्रकार मित्रों का शुक्रगुजार हूँ, जिन्होंने मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में एक लफ्ज लिखने में मदद नहीं की। उनका शुक्रिया मैं इसलिए करना चाहता हूँ कि उन्होंने मुझे लिखने में मदद की होती तो शायद मैं आज दूसरों के सहारे या उनके इशारे पर काम रहा होता। लेखन का शुरूआती दिनों में वरिष्ठ पत्रकारों के रुखे व्यवहार से मेरे दिल में पत्रकार बनकर दिखाने का जुनून पैदा हो गया और मैंने बिना किसी के सहयोग से एक अलग मुकाम हासिल किया है। ऐसा ही जुनून आप पर भी अपने अंदर पैदा करें। देखिये फिर आपको शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता।

इस पुस्तक के लेखन में मेरी पत्नी अपूर्णा मजूमदार का विशेष सहयोग मिला है। वह भी लेखिका हैं, उनकी रचनाएं देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।

डायमंड प्रकाशन के नरेन्द्र जी का खासकर आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने पत्रकारिता की पुस्तकों की श्रृंखला शुरू की है जिससे नयी पीढ़ी को पत्रकारिता में कैरियर बनाने में मददगार साबित होगी।

अंत में मैं उन सब संपादकों का आधार व्यक्त करना चाहता हूँ जिन्होंने मेरे लेखों को अपनी पत्र-पत्रिकाओं में स्थान देकर लेखकीय प्रतिभा को समझा। मैं उन पाठकों का भी आभार व्यक्त करता हूं जो मुझे मेरे नाम से ही जानते हैं।


लेखक


क्राइम रिपोर्टर बनने से पहले



अपराध की खबरों के बिना आज अखबार को अधूरा माना जाता है, क्योंकि आज का पाठक अपराध की खबरों को बड़े चाव से पढ़ता है कुछ दशक पहले तक अपराध की बड़ी-बड़ी घटनाओं को एक कालम में जगह मिलना मुश्किल होता था, परन्तु आज अखबारों में अपराध की हर छोटी-से-छोटी घटनाओं को भी प्रमुखता से प्रकाशित किया जा रहा है।

इलैक्ट्रॉनिक और साइबर मीडिया के इस जमाने में क्राइम रिपोर्टिंग का काम काफी तेज हो गया है। वहीं क्राइम रिपोर्टर का मान सम्मान भी बढ़ा है। जिसके चलते आज युवाओं का रुझान क्राइम रिपोर्टर बनने की ओर हुआ है। यदि आप क्राइम रिपोर्टर बनना चाहते हैं तो यह जान लें कि पत्रकारिता के क्षेत्र में सबसे रोमांचक, चुनौतीपूर्ण व साहसिक क्षेत्र है। यदि आप आपमें साहस, जिज्ञासा, आत्मविश्वास, चुनौती स्वीकार्य करने की शक्ति, किसी भी बाधा से लड़ने की हिम्मत है तो आप क्राइम रिपोर्टर बन सकते हैं।

क्राइम रिपोर्टिंग जितनी रोमांचक है उतनी ही साहसिक व चुनौतीपूर्ण काम है। क्राइम रिपोर्टर को शारीरिक व मानसिक रूप से चुस्त और दुरुस्त होना चाहिए। उसे घटना की सूचना मिलने पर जाने के लिए तत्पर रहना चाहिए।

क्राइम रिपोर्टर बनने से पहले खुद से सवाल करें। क्या आपमें चुनौतीपूर्ण कार्य करने का साहस है ? किसी भी प्रकार की बाधा आने पर उससे लड़ने की शक्ति है ? आपमें भरपूर आत्मविश्वास है ? यदि इन सवालों का उत्तर हाँ में है तो आप इस, फील्ड में आएं वर्ना क्राइम रिपोर्टर बनने का ख्वाब न संजोएँ।

यदि आपने क्राइम रिपोर्टर बनने का विचार बना ही लिया है, इसमें आने और जाने अपराध की घटना घटित होने का समय निश्चित नहीं होता। अपराध अलसुबह या देर रात में भी घटित हो सकता है। इसके लिये आपको तैयार रहना होगा कि घटना की सूचना मिलते ही समय की ओर ध्यान दिये बिना रिपोर्टिंग करने जाने के लिये तैयार रहें।
अपराध घटित होने का कोई स्थान निश्चित नहीं होता है। यह शहर में या दूर जंगल में हो सकता है। बिना किसी डर या परेशानी के घटनास्थल पर पहुँचने के लिये तैयार रहें।
जब आप घटनास्थल पर पहुँचेंगे तो सबसे पहले आपका सामना खून से लथपथ डेड बॉडी या सड़ी गली लाश से होगा। ऐसे में आपके मन में किसी प्रकार का भय या घृणा होगी तो आप वहाँ रुक कर घटना के बारे में जानकारी नहीं ले सकते।

क्राइम रिपोर्टर बनने के लिये बड़ा जिगर यानी हिम्मतवाला होना चाहिए। दिल के कमजोर लोगों को इस क्षेत्र में नहीं आना चाहिये। रात के वक्त किसी शमशान में हत्या की सूचना मिलने पर साहसी व्यक्ति ही वहाँ रिपोर्टिंग के लिये जा पाएगा। अनेक व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो दिन में भी शमशान जाने में डरते हैं। रात में वहां जाने का सवाल ही नहीं होता। ऐसी जगह पर जाने की सूचना मिलते ही डर के मारे उनका बुरा हाल हो जाएगा।
क्राइम रिपोर्टर को स्थाई गुण्डों द्वारा डराया-धमकाया भी जा सकता है। ऐसे में डरकर व क्राइम रिपोर्टिंग छोड़ सकता है। असामाजिक तत्त्वों से डरने वाला व्यक्ति क्राइम रिपोर्टर नहीं बन सकता है।

यह सब बातें मैं आपको डराने के लिये नहीं लिख रहा हूँ। यह सब वास्तविकता है। यह सब मैं अपने अनुभव पर कह सकता हूँ। मैंने अपने सामने ऐसे लोगों को भी देखा है जो क्राइम रिपोर्टर का बढ़ता क्रेज देखकर इस क्षेत्र में आ गये परंतु इसके बाद परेशान हताश, निराश होकर उन्होंने अपना क्षेत्र बदल दिया। यदि उन्हें इस क्षेत्र में आने के लिये जानकारी व होने वाली समस्या के बारे में जानकारी होती तो वे शायद इस क्षेत्र को न चुनते और उनका वक्त भी खराब नहीं होता।

एक बात यह भी कहना चाहूँगा। इस फील्ड में शुरू में परेशानियाँ जरूर हैं। जैसे-जैसे समय गुजरता जाता है, अनुभव काम देने लगता है नेटवर्क बढ़ जाता है। जो अपने कैरियर को ऊँचाईयों तक ले जाने में काफी लाभदायक होता है। इस फील्ड में प्रतिस्पर्द्धा काफी कम होती है क्योंकि क्राइम लेखन व क्राइम रिपोर्टर की संख्या बहुत कम है। ऐसे में अपने लेखन शैली के द्वारा अपनी पैठ बना सकते हैं।

फ्रीलांसर भी क्राइम रिपोर्टर या क्राइम राइटर बनकर पूर्णकालिक या अंशकालिक यह काम कर सकते हैं। बशर्ते उसमें भगदौड़ सामग्री जुटाने की क्षमता हो और साहस हो।

अपने देश में अपराध साहित्य की सबसे अधिक व्यावसायिक पत्रिकाएँ निकलती हैं, जिन्हें हर माह नई घटनाओं वाली सत्यकथा की जरूरत होती है। अधिकतर अपराध साहित्य की पत्रिकाएं यह सेवा फ्रीलांसर से लेती हैं। यदि आपकी जानकारी अच्छी है तो संपादक उसे प्रकाशित करने के लिए तैयार रहते हैं।

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