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कहानी संग्रह >> बाँसुरीवाला जादूगर

बाँसुरीवाला जादूगर

सूरज मृदुल

प्रकाशक : मैट्रिक्स पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6032
आईएसबीएन :978-81-904823-6

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हिन्दी साहित्य की कई विधाओं के यशस्वी लेखक डॉ. सूरज मृदुल द्वारा लिखित बाल कहानियों का संग्रह..

Bansuri Vala Jadugar a hindi book by Suraj Mridul - बाँसुरीवाला जादूगर - सूरज मृदुल

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


बाल साहित्य की लेखन –परम्परा दूसरे देशों से अधिक भारत में प्राचीन रही है। बच्चों के लिए लिखने का सुख बेहद आत्मनेपदी तो है ही, इन लेखकों में प्रशंसित होना भी इस कारण आवश्यक है कि ये पीढ़ियों के निर्माण को लक्ष्य कर लिखे जाते हैं। डॉ. सूरज मृदुल की कहानियों की विशेषता यह मानी जा सकती है कि उनमें कहने की मौलिकता, सहजता एवं सजीवता है। वह बड़ों के लिये जैसी कहानियाँ लिखते रहे हैं, इससे स्पष्ट है कि उनके अन्दर एक विचित्र-सा प्राणी मौजूद है, जो हर वक्त संवेदनशीलता को लेकर चौकस रहता है। जीवन, जलवायु और जद्दोजहद उनकी कहानियों में उफनने वाले तत्त्व रहे हैं।

डॉ. मृदुल जी ने मिथकीय कथाओं की संक्षिप्तता पर गौर किया है, पर उनमें भी रोचक सम्प्रेषण की युक्ति का तेज है। भारतीय संस्कार, मौलिक तेजस्विता एवं पुनर्निमाण की जिस व्यग्रता से इन्होंने बच्चों की कहानियाँ लिखी हैं, उनके ऊपर बच्चों से पहले बड़े ध्यान दे और अपने बच्चों के चरित्र संवारने के लिए उनसे ये कहानियाँ पढ़वाएँ तो इसी में लेखक भी अपनी सफलता मानेगा वैसे हिन्दी साहित्य की कई विधाओं के यशस्वी लेखक डॉ. सूरज मृदुल ने बच्चों के लिये पूरी सतर्कता से यह कृति लिखी है।

इन बच्चों की कहानी के माध्यम से रोचकता पूर्वक परम्परा, नीति एवं आदर्श समझाने की कला में डॉ. सूरज मृदुल बेशक निपुण हैं। यह कहानी संग्रह बच्चों को इस लिहाज से भी तृप्त करेगा कि इसमें बनावटी पन नहीं है, व्यवहार और घटनाओं की जीवन्त प्रस्तुति पुस्तकों की तरह पर्याप्त स्वागत होगा
अश्वनी कुमार आलोक
समाचार –सम्पादक

डॉ. सूरज मृदुल

हमारे भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि समूचे विश्व में कथा-कहानियों की समृद्धि परम्परा रही है। न जाने कब से हर पीढ़ी दादा-दादी या नाना-नानी से कहानियाँ सुनकर ही बड़ी होती रही है। अनवरत चली आ रही है परम्परा जिसे हम अपनी समृद्ध विरासत भी कह सकते हैं। कहानियाँ हर आयु वर्ग के लिए अलग होती हैं और जब बात बाल कहानियों की आती है तो कहानी, उसकी भाषा व शब्दों के चयन पर कुछ विशेष ही ध्यान देना पड़ता है। बच्चों के सरल व निष्कलुष मन पर कहानियों का अमिट प्रभाव होता है। अतः बाल कहानियों के गुलदस्ते में से इन्होंने चुन-चुनकर फूल पिरोए हैं। इनकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता है कथावस्तु का आंचलिक परिवेश ! कुछ ऐसे शब्द जो अँचल विशेष में ही सुनने को मिलते हैं, कहानियों में एक नए रस की सृष्टि करते हैं। वैसे भी वास्तविकता पर आधारित जमीन से जुड़ी कहानियाँ बच्चों के सरल मन पर जल्द ही अधिकार जमा लेती हैं।
कहानियों का संग्रह बाँसुरीवाला जादूगर समग्र रूप से बच्चों के अलावा बड़ों के लिए भी उपयोगी है। डॉ. सूरज मृदुल के इस संग्रह की एक अन्य विशेषता यह भी है कि उन्होंने इन कहानियों के माध्यम से वर्तामान समाज में व्याप्त विषमताओं पर भी कुठाराघात किया है।

लम्बी विदेश यात्राओं के अनुभव को डॉ. सूरज मृदुल ने अपने लेखन में बड़ी परिपक्वता से सहेजा है। इन्होंने सरस, सुगम एवं रोचक शब्द रूपी मोतियों के माध्यम से ऐसी माला का निर्माण कर पाठकों के दिल पर जादुई असर डालता है, जो पाठकों के मन को बरबस भा जाता है। यही कारण है कि प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं।

प्रकाशक

ज्ञानवर्धक बाल कहानियों का गुच्छा !


एक जमाना था जब रात को सोते समय अपनी दादी या नानी से कहानियां सुनाने की ज़िद किया करते थे। दादी या नानी भी रोज उन्हें उनकी रुचि के अनुकूल अच्छी-अच्छी, रोचक एवं मनमोहक कहानियाँ सुनाया करती थीं। ये कहानियाँ बच्चों के लिये लोरी का काम भी करती थीं, क्योंकि बच्चे इन कहानियों को सुनते-सुनते निद्रा की देवी की गोद में पसर जाते थे। फिर समय ने करवट बदली और हावी हो गया इलेक्ट्रानिक्स मीडिया। अब न तो वे दादी और नानी ही हैं और न ही कहानियों के लिए जिद करके मचलने वाले हठी बच्चे ! बस, कहानियाँ तो पत्र-पत्रिकाओं तक अथवा अधिक कहें तो पुस्तक के पन्नों तक सिमट कर अस्तित्वहीन हो गयी । भला, ये कैसे प्रचलित हो पाती, क्योंकि कहानी तो सुनने की विधा अधिक है, पढ़ने की कम ! फिर भी रोचक पुस्तके यदा –कदा बच्चों के हाथ लग जाने पर पढ़ ही ली जाती हैं !

बाल साहित्य की अन्य विधाओं की भांति कहानी भी बच्चों को खूब पसन्द आती है। ‘‘बाँसुरीवाला जादूगर’’
डॉ. सूरज मृदुल द्वारा तिरपन बाल कहानियों का बच्चों की प्रेरणास्त्रोत एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ का एक ऐसा पुष्प गुच्छा है जिसकी खुशबू से हर बच्चे का अन्तर्मन सुवासित हो उठेगा। इस कृति में अलग-अलग रंगों तथा सुगन्धों वाली कहानियों का समायोजन लेखक की सूझ-बूझ का एक अनूठा तथा प्रशंसनीय कदम है। समग्र कहानियों की कथा-वस्तु के मद्देनजर इस कृति की कहानियों के आठ वर्ग बनाए जा सकते हैं- सीख देनेवाली कहानियाँ, ऐतिहासिक कहानियाँ, राजा-महाराजाओँ की कहानियां, नटखट और चुलबुली कहानियां, सभ्यता-संस्कृति की कहानियां, जीव-जन्तुओं पर आधारित कहानियाँ, साधु-सन्तों की कहानियाँ और फलों और पर्वों की कहानियाँ !

सीख देने वाली कहानियों के अन्तर्गत जो कहानियाँ रखी जा सकती हैं, उनके शीर्षक हैं- ‘‘भाग्यशाली’’ ‘‘देश की गरिमा’’ ‘‘उपहार’’ ‘‘थैंक्यू’’ ‘‘मिल गई माँ’’ ‘‘उऋण’’ ‘‘मेहनत की कीमत’’, ‘‘दृढ़ संकल्प’’, ‘‘नयी रौनक’’, ‘‘दिशा बदल गई’’ ‘‘नयी रोशनी’’ ‘‘अपने लोग’’ ‘‘रामायण’’, ‘‘इज्जत’’, पछतावा’’ ! ‘‘भाग्यशाली’’ में रमेश और गोपाल में रमेश और गोपाल बाबू के माध्यम से अपने कर्त्तव्य को निभाकर खुशी पाने की बात कही गई। ‘‘देश की गरिमा’’ कहानी में स्वामी विवेकानन्द की सादगी का वर्णन है जिसके कारण वे समूचे विश्व के सिरमौर बने। ‘‘उपहार’’ कहानी में रमेश को मेहनत के बल पर साताक्लाज द्वारा मिले उपहार का लेखा-जोखा है। ‘‘थैंक्यू’’ में अपना-अपना काम करने की सीख दी गयी है। ‘‘मिल गई माँ’’ कहानी के माध्यम से मुसीबत में साहस से काम लेने की कला दर्शाई गई है। ‘‘उऋण’’ कहानी के माध्यम से पता चलता है कि माँ कितनी पीड़ा सहकर अपने बच्चों पर वात्सल्य और ममता लुटा कर उन्हें पालती है। ‘‘मेहनत की कीमत’’ नामक कहानी में तीन भाईयों एवं एक बहन के माध्यम से कथा-वस्तु को पिरोया गया है और बताया गया है कि कर्म ही पूजा है। ‘‘दृढ़ संकल्प’’ कहानी के माध्यम से बताया गया है कि आदमी अगर दृढ़ता से कोई काम करने का संकल्प कर ले तो वह अपनी मंजिल प्राप्त कर सकता है।

‘‘नयी रौनक’’ कहानी में पढ़ायी के महत्त्व पर बल दिया गया है। ‘‘दिशा बदल गई’’ कहानी में यह दर्शाया गया है कि जब अन्धकार से आदमी बाहर आता है तब उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान प्राप्त होता है फिर वह अच्छे रास्ते की ओर निकल पड़ता है अपनी मंजिल पाने के लिए ! ‘‘नयी रोशनी’’ कहानी में पता चलता है कि एक ऐसा आदमी जो अपनी जिन्दगी से निराश हो गया लेकिन जब उसे ज्ञान की ज्योति प्राप्त हुई तो वह विद्वान मनीषी बन गया। ‘‘अपने लोग’’ कहानी के माध्यम से यह दिखाया गया है कि पिता अपने पुत्र की उन्नति की कामना करता है। ‘‘रामायण’’ की कहानी आदर्श पात्रों के संस्कार अपने जीवन में उतारने की सीख देती है। ‘‘इज्जत’’ कहानी यह दर्शाती है कि पढ़-लिख लेने से अहं नहीं नम्रता आती है। ‘‘पछतावा’’ कहानी की सीख है कि सीख कोई समान खरीदने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। हमेशा सोच-समझकर सामान लेना चाहिए, नहीं तो पछताना पड़ता है !

ऐतिहासिक कहानियों के अन्तर्गत ये कहानियाँ रखी जा सकती है। ‘‘है - ‘‘आजीवन वेमन’’, ‘‘अभूतपूर्व वीरांगना अहिल्या’’, ‘‘वारीगना दुर्गावती’’, ‘‘सरोजनी नायडू’’, ‘‘भारत अरुणा आसफअली’’, ‘‘लालबहादुर शास्त्री’’, ‘‘चतुर्भुज राम’’ ! ‘‘आजीवन वेमन की कहानी में एक अभूतपूर्व वीरांगना की कहानी है जिसने इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
‘‘अभूतपूर्व वीरागना अहिल्या बाई’’ कहानी में तीक्ष्ण बुद्धि के द्वारा कर्म करने की कथा कही गई है। ‘‘वारागना दुर्गावती’’ कहानी में रानी दुर्गावती के पराक्रमी एवं बहादुरी का वर्णन है।’’ ‘‘सरोजनी नायडू’’ नामक कहानी में स्वत्रन्त्रता प्राप्ति में महिलाएँ भी आगे रहीं, गाथा का वर्णन है। ‘‘भारतरत्न अरुणा आसफ अली’’ कहानी में अरुणा आसफअली के शौर्य की गाथा है। ‘‘लाल बहादुर शास्त्री’’ कहानी में दूरदृष्टि और मंजिल को छूने के दृढ़ संकल्प की कहानी है ! ‘‘चतुर्भुज राम’’ एक आदर्श और विशिष्ट स्वतन्त्रता सेनानी एवं सामाजिक व्यक्ति जो भूलने वाला एक व्यक्ति काहानी है।

राजाओं-महाराजाओं पर आधारित कहानियाँ भी इस कृति में रखी गई हैं। ‘‘वफादार कल्लू’’, ‘‘उठों राजा’’ ‘‘दोस्ती,’’ ‘‘धनुष किसने तोड़ा‘‘ ! ‘‘वफादार कल्लू’’ कहानी में रमनापुर के राजा ईश्वरनाथ को कथा का नायक बनाया गया है ! यह राजा के बुद्धि एवं विवेक की गाथा है। ‘‘उठों राजा’’ कहानी में साधु द्वारा की गई भविष्यवाणी का वर्णन है। ‘‘दोस्ती’’ कहानी में रोम को राजा और उसके गुलाम एण्ड्रोक्लस के इर्द-गिर्द कथा चित्रित है जिसमें गुलाम की सूझ-बूझ से उसे गुलामी से मुक्ति मिली। ‘‘धनुष किसने तोड़ा’’ कहानी में अध्यापक एवं विद्यार्थी के माध्यम से शिक्षा जगत से सम्बन्धित कथा वस्तु ली गई है और सामान्य ज्ञान को उजागर किया गया है। कमजोर विद्यार्थी अकसर ऐसे ही उत्तर देते है जैसा कि इस कहानी में वर्णन है।

कुछ नटखट व चुलबुली कहानियाँ भी इस कृति में रखी गई हैं जिनके उदाहरण है- ‘‘नटखट राजू और सिक्का’’ ‘‘भोली प्रभा’’ ‘‘डर’’ ‘‘नटखट सोनू’’ ‘‘तृप्त हुई माँ’’, ‘‘खाजा’’ ‘‘पापा टी.वी. ला दो न’’, ‘‘मिठाईवाला अपना’’, ‘‘कंजूस’’ ! ‘‘नटखट राजू और सिक्का’’ कहानी में राजू की उच्छृंखलता का वर्णन है जिसे डॉ. ने नया जीवन दान दिया। ‘‘भोली प्रभा’’ कहानी में प्रभा की साफगोई को उजागर किया है। बच्चे मन के कितने निर्मल एवं निश्छल होते हैं, इस कहानी से ये बातें पता चलती हैं। ‘‘डर’’ नामक कहानी के अंतर्गत मुसीबत में पड़े बच्चे की जान बचाकर नयी जिंदगी देने के कथानक का ताना-बाना बुना गया है। ‘‘नटखट सोनू’’ कहानी में सोनू नामक एक शैतान लड़के की गाथा है जो कभी भी शान्त होकर नहीं बैठता। सोनू की शैतानी को यह कहानी बयान करती है। ‘‘तृप्त हुई माँ’’ कहानी में पुत्र प्राप्ति हेतु ‘‘गंगा’’ माता से याचना संबंधी वृतान्त है। ‘‘खाजा’’ कहानी में बिहार प्रदेश नालंदा जिले की बस्ती ‘‘सिलाव’’ को वर्णित किया गया है। ‘‘पापा टी. वी. ला दो न’’, कहानी के अंतर्गत अनुज की जिद की कहानी है। ‘‘चालाकी’’ कहानी में एक कीड़ा है जिसने श्वेता जैसी नन्ही-मुन्नी गुड़िया को परेशान कर दिया था। ‘‘मिठाई वाला अपना’’ कहानी में तुरंत के प्यार पाने पर गोदवाले बच्चे भी अपनी माँ को भूल जाते हैं। यही इस कथा की कहानी है। ‘‘कंजूस’’ कहानी में ऐसे प्रकार के कंजूस हैं जिन्हें सुनकर और देखकर आदमी हैरतअंगेज रह जाता है।

भारतीय सभ्यता संस्कृति से जुड़ी कहानियों के अंतर्गत –‘‘पगड़ी’’, ‘‘प्रणाम’’, ‘‘लक्ष्य के लिए प्रेरक बड़ों से आशीर्वाद’’, ‘‘खुशहाल किसान समृद्ध देश’’, ‘‘पुस्तकालय हैं’’। ‘‘पगड़ी कहानी’’ में भारतीय पोशाक की गाथा है। यह राजा महाराजाओं की एक शान भी है। साथ ही साथ इससे खाँसी, नजला एवं बुखार रोगों से छुटकारा मिल जाता है। ‘‘प्रणाम’’ की कहानी यह दर्शाती है कि विश्व में लोग आपस में मिलने पर जो एक दूसरे को अभिवादन करते हैं वह सभी धर्मों के रीति-रिवाज भारतीय ‘‘प्रणाम’’ से ही लिए गए हैं। इसकी गाथा हिन्दू धर्म के सभी धर्म ग्रन्थों में दिखाई पड़ती है।

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