कविता संग्रह >> अनुकरणीय अनुकरणीयअमृत बिसारिया
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मानव मूल्यों पर आधारित कविताएं
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मेरी कवितायें मानव मूल्यों पर आधारित है। यदि हम श्रेष्ठ जीव है तो हमारा
विकास मानवता और संस्कारों द्वारा होना चाहिये यह मेरा मानना है। मैंने
जीवन के हर एक पहलू को छूने की कोशिश की है। मेरी पहली कोशिश है आशा करती
हूँ कि आप सबको पसन्द आएगी। मैं पहले भी लिखा करती थी। परन्तु
विवाहोपरान्त पारिवारिक जिम्मेजारियों को निभाने में समय कम पड़ गया अब
जिम्मेदारियों को पूरा करके उन्मुक्त लेखनी की तरफ अग्रसर हूँ। मैंने
कविता के माध्यम से समाज के सभी वर्गों के भावनाओं को छूने की कोशिश की है
सरल और सुबोध भाषा में। लिखी है जिसमें सभी के लिये समझना आसान हो। मेरी
कविता संग्रह ‘‘अनुकरणीय’’ में
मेरे परिवार के
सदस्यों के नाम का पहला अक्षर समाहित हैं। मेरा नाम अमृत विसारिया है।
लेकिन इस संग्रह में मैंने अपने द्वितीय नाम बिसारिया को प्रथम स्थान दिया
है। अतः इसमें मेरा नाम बिसारिया ‘अमृत’ है।
प्रस्तावना
हृदय की गहन अनुभूतियाँ जब अभिव्यक्ति का आधार पाना चाहती हैं, कल्पनाओं
के पंख कोई अज्ञात आश्रम पा जाना चाहते हैं एंव राग-द्वेष से मुक्त बुद्धि
कोई भावनाओं के आवेग के साथ बह जाना चाहती है, तब हृदय की सीपी से शब्दों
के रम्य मोतियों की लड़ियाँ निकलकर कविता की कड़ियाँ बन जाती हैं।
कवयित्री श्रीमती अमृत विसारिया ने प्रकारान्तर से संभवतः यही
बात
की है-
‘मधुर सुरों की सुर सरिता में मन खोया मेरा ऐसे,
मदमाती लहरों में सीप में मोती दमके जैसे।’’
मदमाती लहरों में सीप में मोती दमके जैसे।’’
‘अनुकरणीय काव्य संग्रह में श्रीमती बिसारिया ने मानव मन की उस
गहराई को प्रतिबिम्बित किया है, जो हृदय की
‘मुक्तवस्था’
कहलाती है और जिसे आचार्य शुक्ल ने ‘रसदशा’ कहा है।
जहाँ
पहुँच कर स्व–पर भेद नहीं रहता, वहां पहुँचकर कवि एक
ओर
ब्रह्मनंद जैसी अनुभूति करता है, वहीं दूसरी ओर अपने दुःख से नहीं अपितु
दूसरों के दुःख से दुःखी होकर उनके दुःख में सहभागी होना चाहता है। ऐसी ही
स्थिति श्रीमती अमृत बिसारिया की इन पंक्तियों में देखी जा सकती है-
पाने की खुशी हलकी हलकी
मूल्यों के खोने का गम है।
दुखता है मन रोता है मन,
बचपन में जाने का मन है।
मूल्यों के खोने का गम है।
दुखता है मन रोता है मन,
बचपन में जाने का मन है।
श्रीमती बिसारिया ने अपनी रचनाओं में स्वनाम के अनुरूप अमृत तत्व भरने का
प्रयास किया है। उन्होंने एक सर्वप्रिय शिक्षिका के रूप में माँ सरस्वती
की सफल साधिका बनकर अपने विद्यार्थियों को मानवीय मूल्यों के प्रति जाग्रत
किया है। वह ‘जागरुकता’ कविता के माध्यम से भविष्य के
कर्णधारों का आह्वान करती हैं-
‘‘संस्कार डूबते सितारे हो गए,
सांस्कृतिक लालिमा फैलाओ,
उषा की मजबूत किरणों से
मानवता को पृथ्वी पर ले आओ।
सांस्कृतिक लालिमा फैलाओ,
उषा की मजबूत किरणों से
मानवता को पृथ्वी पर ले आओ।
श्रीमती बिसारिया का सेवानिवृत्ति का समय है, किन्तु उनकी साहित्य सेवा का
यह यौवन-काल है। उनकी ‘भविष्य बुनेगें’ रचना इस सत्य
की
पुष्टि करती है कि उनका मन अब एक ऐसा ‘इंटरनेंट’ हो
चुका है,
जिससें उनके चिन्तन के सभी पल ‘फीड’ हैं। उन्होंने
‘अन्तर्मन की परतों पर कलम की घिसाई की है।’ उनके भूत
व
वर्तमान के अनुभव के पन्ने ‘अनुकरणीय’ काव्य संग्रह
बनकर
सामने आए हैं।
कवियित्री ‘‘अपनापन को लेकर अधिक चिन्तित हैं किन्तु उनका आशावादी स्वर है कि ‘अपने पराए हुए में, कुछ अपने अवश्य नजर आएँगे। उनकी ‘क्षणिकाएं’ चमत्कृत्य करती है- वाह-वाह करने का मन करता है। ‘बेटियाँ, ‘पर्यादा ‘भविष्य का बचपन’ ‘आधिक्य’ जैसी रचनाएँ आज के परिवेश में सुधारात्मक चिन्तन को विविश करती है। ‘चरण पादुका’ जैसे विषय पर रोचक कविता लिखना कोई अमृत बिसारिया से सीखे। ‘क’ से व्यंजनों की शुरुआत होती है - ‘क’ की महिमा अवश्य पढ़िये। मेरा विश्वास है कि श्रीमती बिसारिया की लेखनी सभी वर्गों को अपनी कविता द्वारा विभूषित करेगी। गोस्वामी तुलसीदासने ‘रामचरित मानस’ का शुभारंभ ‘वर्णानाम अर्थसंघानाम्’ से किया है।
वर्णों से शब्द, शब्दों से सार्थक अर्थों की काव्य सरिता श्रीमती अमृत बिसारिया के भगीरथ प्रयासों से सतत बहती रहेगी। पंतजी की इन पंक्तियों को उनकी काव्य रचना सार्थक कहती रहेगी-
कवियित्री ‘‘अपनापन को लेकर अधिक चिन्तित हैं किन्तु उनका आशावादी स्वर है कि ‘अपने पराए हुए में, कुछ अपने अवश्य नजर आएँगे। उनकी ‘क्षणिकाएं’ चमत्कृत्य करती है- वाह-वाह करने का मन करता है। ‘बेटियाँ, ‘पर्यादा ‘भविष्य का बचपन’ ‘आधिक्य’ जैसी रचनाएँ आज के परिवेश में सुधारात्मक चिन्तन को विविश करती है। ‘चरण पादुका’ जैसे विषय पर रोचक कविता लिखना कोई अमृत बिसारिया से सीखे। ‘क’ से व्यंजनों की शुरुआत होती है - ‘क’ की महिमा अवश्य पढ़िये। मेरा विश्वास है कि श्रीमती बिसारिया की लेखनी सभी वर्गों को अपनी कविता द्वारा विभूषित करेगी। गोस्वामी तुलसीदासने ‘रामचरित मानस’ का शुभारंभ ‘वर्णानाम अर्थसंघानाम्’ से किया है।
वर्णों से शब्द, शब्दों से सार्थक अर्थों की काव्य सरिता श्रीमती अमृत बिसारिया के भगीरथ प्रयासों से सतत बहती रहेगी। पंतजी की इन पंक्तियों को उनकी काव्य रचना सार्थक कहती रहेगी-
तुम जन मन में वहन कर सको मेरे विचार।
वाणी मेरी चाहिए तुम्हें क्या अलंकार।’
वाणी मेरी चाहिए तुम्हें क्या अलंकार।’
कवयित्री श्रीमती अमृत बिसारिया का व्यक्तित्व उनकी
‘मासूम’
कविता जैसै निश्छल है-मासूम-सा चेहरा, मन सुनहरा है। मैं
‘अनुकरणीय’ काव्य संग्रह का हार्दिक अभिनंदन एवं उनका
सादर
वंदन करता हूँ।
पुरोवाक्
श्रीमती अमृत बिसारिया के स्वरचित प्रथम काव्य संग्रह का मैंने आद्योपान्त
अवलोकन किया। श्रीमती अमृत का जन्म ऐसे परिवार में हुआ, जिसमें गाँधीवादी
विचारधारा रची बसी थी। इसलिये आप बाल्यकाल से ही विनम्र, सुसंस्कृत,
कर्त्तव्यनिष्ठ परिश्रमी और नैतिक मूल्यों का जीवन में पालन करती रही है।
इतिहास एवं नागरिक शास्त्र में एम.ए. उत्तीर्ण करने के पश्चात केन्द्रीय
विद्यालय में अध्यापिका के पद पर नियुक्त हुई। आप सदैव छात्रों के समक्ष
आदर्श रूप में ही रही, केन्द्रीय विद्यालय बी.एच.ई.एल से 31 जनवरी 2008
ईस्वी को सेवानिवृत्त हो रही हैं।
श्रीमती अमृत के जीवन में सदा सुख ही नहीं रहा अपितु विवाह के कुछ वर्ष बाद ही आप पर दु:खों का ऐसा वज्रपात हुआ जिससे उभर पाना बहुत कठिन कार्य था। लेकिन आप दु:खों में अटल चट्टान की तरह अडिग रही। एक तपस्विनी की तरह आपने अपने बच्चों का लालन-पालन माँ तथा पिता दोनों बनकर किया। आपने अपने तीनों पुत्रों श्री रोहित, ऋत्विक् और रक्षित पुत्री ऋतु को योग्य बनाया आज ये सभी योग्य पदों पर आसीन हैं।
श्रीमती अमृत का प्रस्तुत काव्य ‘‘अनुकरणीय’’ संग्रह पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। आपने इस काव्य रचना में समसामयिक एवं यथार्थ समस्याओं पर तथा उनके निदान पर अधिक जोर दिया है। अपने काव्य में आपने, भविष्य बुनेंगे, मही और गुण, भविष्य का बचपन, ख्वाब, दोस्ती, व्यर्थ की वस्तुओं की, चाहत, मरीज, नाक का मोती, दोस्ती, पुस्तकालय, शान्ति के दूत और आज की लड़की आदि जीवनोपयोगी विषयों पर विचार प्रस्फुटित हुए है। काव्य को ध्यान से पढ़ने पर सहज अनुभूति होती है कि आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने कहा है। दु:खों से कविता उपजती है। आपके कविता संग्रह से ये चार पंक्तियाँ प्रस्तुत करना चाहूँगी-
श्रीमती अमृत के जीवन में सदा सुख ही नहीं रहा अपितु विवाह के कुछ वर्ष बाद ही आप पर दु:खों का ऐसा वज्रपात हुआ जिससे उभर पाना बहुत कठिन कार्य था। लेकिन आप दु:खों में अटल चट्टान की तरह अडिग रही। एक तपस्विनी की तरह आपने अपने बच्चों का लालन-पालन माँ तथा पिता दोनों बनकर किया। आपने अपने तीनों पुत्रों श्री रोहित, ऋत्विक् और रक्षित पुत्री ऋतु को योग्य बनाया आज ये सभी योग्य पदों पर आसीन हैं।
श्रीमती अमृत का प्रस्तुत काव्य ‘‘अनुकरणीय’’ संग्रह पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। आपने इस काव्य रचना में समसामयिक एवं यथार्थ समस्याओं पर तथा उनके निदान पर अधिक जोर दिया है। अपने काव्य में आपने, भविष्य बुनेंगे, मही और गुण, भविष्य का बचपन, ख्वाब, दोस्ती, व्यर्थ की वस्तुओं की, चाहत, मरीज, नाक का मोती, दोस्ती, पुस्तकालय, शान्ति के दूत और आज की लड़की आदि जीवनोपयोगी विषयों पर विचार प्रस्फुटित हुए है। काव्य को ध्यान से पढ़ने पर सहज अनुभूति होती है कि आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने कहा है। दु:खों से कविता उपजती है। आपके कविता संग्रह से ये चार पंक्तियाँ प्रस्तुत करना चाहूँगी-
दो टुक कलेजें का करता,
बचपन रोता सड़कों पर
पावों में जान नहीं है
दिल में मुस्कान नहीं है
भूत भविष्य कहाँ है ?
उसका तो वर्तमान नहीं है।
बचपन रोता सड़कों पर
पावों में जान नहीं है
दिल में मुस्कान नहीं है
भूत भविष्य कहाँ है ?
उसका तो वर्तमान नहीं है।
मैं श्रीमती अमृत बिसारिया को उनकी प्रथम कृति के प्रणयन पर साधुवाद एवं
बधाई देता हूँ। यह आशा करता हूँ कि भविष्य में उनकी लेखनी से अनेक काव्य
रचनाएं नि:सृत होती रहेंगी।
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लोगों की राय
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