अतिरिक्त >> मानसिक तनाव से मुक्ति के उपाय मानसिक तनाव से मुक्ति के उपायस्वामी गोकुलानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक मानसिक तनाव से मुक्ति के उपाय
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दो शब्द
(प्रथम संस्करण)
‘‘मानसिक तनाव से मुक्ति के
उपाय’’ नामक यह
पुस्तक पाठकों के सम्मुख रखते हुए हमें अत्यन्त आनन्द हो रहा
है।’’ How to Overcome Mental
Tension’’ इस
अंग्रेजी पुस्तक का यह हिन्दी अनुवाद है।
इस वर्तमान आधुनिक युग में हम जैसे वैज्ञानिक प्रगति कर रहे हैं, वैसे ही हम धर्म से तथा आध्यात्मिक मूल्यों से अधिकाधिक दूर जा रहे हैं। परिणामस्वरूप हमारा मानसिक सन्तुलन खोता जा रहा है और मानसिक समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। किन्तु उनको सुलझाने के उपाय हमें यह लौकिक विज्ञान नहीं दे रहा है। इसी कारण हमें तर्कसंगत तथा आध्यात्मिक उपायों का सहारा लेकर इन समस्याओं का निराकरण करने वाले मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
स्वामी गोकुलानन्दजी, जो सम्प्रति रामकृष्ण मिशन देहली में सचिव के रूप में कार्यरत हैं, उन्होंने इन समस्याओं का हल करने के लिए इस पुस्तक की रचना की है। स्वामी लोकेश्वरानन्दजी ने अपनी प्रस्तावना में तथा लेखक ने अपने प्राक्कथन में इस पुस्तक के दृष्टिकोण के बारे में लिखा ही है। हमें आशा है कि मानसिक तनाव की समस्या का सामना करने वाले सभी स्तर के लोगों के लिए यह पुस्तक सहायक होगी।
इस पुस्तक का अनुवाद डॉ. कृष्ण मुरारी, देहली ने किया है; हम उनके आभारी हैं।
इस वर्तमान आधुनिक युग में हम जैसे वैज्ञानिक प्रगति कर रहे हैं, वैसे ही हम धर्म से तथा आध्यात्मिक मूल्यों से अधिकाधिक दूर जा रहे हैं। परिणामस्वरूप हमारा मानसिक सन्तुलन खोता जा रहा है और मानसिक समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। किन्तु उनको सुलझाने के उपाय हमें यह लौकिक विज्ञान नहीं दे रहा है। इसी कारण हमें तर्कसंगत तथा आध्यात्मिक उपायों का सहारा लेकर इन समस्याओं का निराकरण करने वाले मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
स्वामी गोकुलानन्दजी, जो सम्प्रति रामकृष्ण मिशन देहली में सचिव के रूप में कार्यरत हैं, उन्होंने इन समस्याओं का हल करने के लिए इस पुस्तक की रचना की है। स्वामी लोकेश्वरानन्दजी ने अपनी प्रस्तावना में तथा लेखक ने अपने प्राक्कथन में इस पुस्तक के दृष्टिकोण के बारे में लिखा ही है। हमें आशा है कि मानसिक तनाव की समस्या का सामना करने वाले सभी स्तर के लोगों के लिए यह पुस्तक सहायक होगी।
इस पुस्तक का अनुवाद डॉ. कृष्ण मुरारी, देहली ने किया है; हम उनके आभारी हैं।
प्रकाशक
प्रस्तावना
आप मानसिक तनाव में क्यो रहते हैं तथा इससे मुक्ति का उपाय क्या
है—इस पुस्तक में इसी विषय की व्याख्या की गई है। इसके लेखक
स्वामी
गोकुलानन्दजी एक मनोवैज्ञानिक नहीं हैं। वे एक संन्यासी हैं जिनके पास
प्रत्येक आयु वर्ग के लोग आते हैं और अपने मन का भार हल्का करते हैं।
क्यों ? यह बताना कठिन है। संभवतः इसका यह कारण है कि वे स्नेही और प्रिय
हैं। एक बार उनसे मिलने के बाद बारम्बार मिलने की इच्छा होती है। शीघ्र ही
तुम्हें यह पता चल जाता है कि वे ऐसे व्यक्ति हैं जिनके समक्ष तुम अपने
समस्त गुप्त भेदों का रहस्योद्घाटन कर सकते हो। तुम उनसे उन बातों को कहते
हो जो तुम्हारे मन पर बोझ बनी हुई हैं। वे तुम्हें कुछ परामर्श देते हैं
और यह परामर्श बहुत सहायक सिद्ध होता है परन्तु प्रश्न यह है कि स्वामी
गोकुलानन्दजी कोई मनोवैज्ञानिक नहीं हैं फिर भी इस प्रकार के परामर्श देने
में सक्षम कैसे हैं ?
इसका कारण यह है कि वे समस्त वर्गों के लोगों से मिलते हैं और उन्हें यह ज्ञात है कि आज के मानव की सामान्य समस्या क्या है ? उन्होंने अनुभव किया है कि आज का मनुष्य कितना स्वार्थी और लालची है, कि वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु किस सीमा तक जा सकता है। स्व-नियंत्रण ही ऐसी समस्याओं का एकमात्र समाधान है, परन्तु स्वयं को नियंत्रित करना इतना आसान नहीं है। मन को नियंत्रित करने का एक ही तरीका है कि इसे अधिक रुचिकर विषयों की ओर मोड़ दिया जाए। पर्वतारोही क्यों अपने जीवन को जोखिम में डालते हैं ? क्योंकि वे इसके अनुरक्त हैं। यह अभिरुचि उन्हें अन्य गतिविधियों की अपेक्षा ज्यादा आनन्ददायक लगती है। यह एक प्रश्न है उन अभिरुचियों का जिन्हें तुम विकसित करते हो। अपने मस्तिष्क को एक विषय से हटाकर दूसरी तरफ मोड़ दो। वो बातें, जो तनाव पैदा करती हैं, ज्यादा समय तक तुम्हें आकर्षित नहीं करती हैं।
तनाव की सम्धन्धित समस्या के प्रति स्वामी गोकुलानन्दजी का दृष्टिकोण सकारात्मक है। वे तुम्हें बताते हैं कि क्या करना चाहिए और किस तरफ तुम्हें प्रयत्नशील होना चाहिए। यह तैराकी सीखने के समान है। पहले तो तुम भयातुर होते हो, परन्तु जब एक बार तुम अपनी अधीरता पर नियन्त्रण कर लेते हो तो तुम तैराकी का आनन्द उठाना शुरु कर देते हो। अधिकांश कदम, जिन्हें उठाने के लिए स्वामी गोकुलानन्दजी तुम्हें कहते हैं, उसी प्रकार के हैं। एक बार प्रारम्भ करने के बाद इससे प्राप्य आनन्द के कारण उनके कथनानुसार ही करते जाते हो।
यह पुस्तक पढ़ने योग्य है तथा इस युग में सभी के लिए अत्यन्त हितकारी सिद्ध होगी।
इसका कारण यह है कि वे समस्त वर्गों के लोगों से मिलते हैं और उन्हें यह ज्ञात है कि आज के मानव की सामान्य समस्या क्या है ? उन्होंने अनुभव किया है कि आज का मनुष्य कितना स्वार्थी और लालची है, कि वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु किस सीमा तक जा सकता है। स्व-नियंत्रण ही ऐसी समस्याओं का एकमात्र समाधान है, परन्तु स्वयं को नियंत्रित करना इतना आसान नहीं है। मन को नियंत्रित करने का एक ही तरीका है कि इसे अधिक रुचिकर विषयों की ओर मोड़ दिया जाए। पर्वतारोही क्यों अपने जीवन को जोखिम में डालते हैं ? क्योंकि वे इसके अनुरक्त हैं। यह अभिरुचि उन्हें अन्य गतिविधियों की अपेक्षा ज्यादा आनन्ददायक लगती है। यह एक प्रश्न है उन अभिरुचियों का जिन्हें तुम विकसित करते हो। अपने मस्तिष्क को एक विषय से हटाकर दूसरी तरफ मोड़ दो। वो बातें, जो तनाव पैदा करती हैं, ज्यादा समय तक तुम्हें आकर्षित नहीं करती हैं।
तनाव की सम्धन्धित समस्या के प्रति स्वामी गोकुलानन्दजी का दृष्टिकोण सकारात्मक है। वे तुम्हें बताते हैं कि क्या करना चाहिए और किस तरफ तुम्हें प्रयत्नशील होना चाहिए। यह तैराकी सीखने के समान है। पहले तो तुम भयातुर होते हो, परन्तु जब एक बार तुम अपनी अधीरता पर नियन्त्रण कर लेते हो तो तुम तैराकी का आनन्द उठाना शुरु कर देते हो। अधिकांश कदम, जिन्हें उठाने के लिए स्वामी गोकुलानन्दजी तुम्हें कहते हैं, उसी प्रकार के हैं। एक बार प्रारम्भ करने के बाद इससे प्राप्य आनन्द के कारण उनके कथनानुसार ही करते जाते हो।
यह पुस्तक पढ़ने योग्य है तथा इस युग में सभी के लिए अत्यन्त हितकारी सिद्ध होगी।
स्वामी लोकेश्वरानन्द
प्राक्कथन
रामकृष्ण मिशन नई दिल्ली सचिव के रूप में, मेरे द्वारा इस पुस्तक की मूल
रूप से उत्पत्ति के निरन्तर अनुरोध और व्यक्तिगत भेंटवार्ता के कारण हुई
है जो जीवन की समस्याओं की दलदल में फँसे हुए हैं। उनमें से अधिकांश अपनी
व्यक्तिगत समस्याओं पर विचार विमर्श करते आते हैं और लगभग ऐसी समस्त
समस्यायें मानसिक तनाव से सम्बन्धित होती हैं। अतः मैंने श्रृंखलाबद्ध रूप
में व्याख्यान देने का निर्णय किया जो टेप किये गये और अंततः इस पुस्तक के
रूप में सम्पादित हुए।
यथार्थः यह कहा जाता रहा है कि वर्तमान सदी तनावों की सदी है। इन तनावों पर नियंत्रण पाने का एकमात्र तरीका है—मस्तिष्क पर नियंत्रण पाना। तब तक हमें यह ज्ञात न हो कि मस्तिष्क को कैसे प्रशिक्षित किया जाए, एक उद्देश्यपूर्ण जीवन व्यतीत करना अत्यन्त कठिन कार्य है।
इन व्याख्यानों में मैंने तनाव और उस पर नियंत्रण की समस्याओं का दो दृष्टिकोणों से विचार किया है—पूर्वी और पश्चिमी। इसमें मैंने मन के नियंत्रण के सम्बन्ध में हमारे प्राचीन योगियों ने जो कुछ कहा है उस मत को तो रखा है परन्तु साथ ही वर्तमान युग के आधुनिक पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों के कथन को भी उद्धृत किया है।
इस परिचर्चा से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि स्नायु तन्तुओं के तनाव और दबाव की मनःशारीरिक प्रकृति स्वास्थ्य सम्बन्धी गंभीर खतरों को जन्म देती है। हमारे अंदर विद्यमान विभिन्न प्रकार की विरोधाभासी वासनाएँ और इच्छाएँ एक साथ तुष्टि चाहती हैं। विषयासक्ति और आत्मशान्ति के बीच अक्सर तीव्र प्रतियोगिता या यूँ कहें कि एक प्रकार की रस्साकशी होती रहती है। एक प्रख्यात कथनानुसार, आत्मशक्ति तो प्रबल होती है परन्तु देह निर्बल होती है इसका परिणाम है—गहरा तनाव उत्पन्न हो सकता है। जैसा कि श्रीरामकृष्ण देव अपने रीतिगत तत्त्वविवेचन में कहा करते थे— इच्छाओं के दमन के स्थान पर, हमें उन्हें उच्चतर लक्ष्य की तरफ मोड़ देना चाहिए। दूसरे शब्दों में हमें उनका पुनर्गठन करना चाहिए। निग्रह के स्थान पर उन्नयन पर जोर देना चाहिए।
अधिकांश लोगों में धर्म के अतिरिक्त जीवन के सम्बन्ध में भी गलत धराणायें विद्यमान हैं। अतिमहत्त्वाकांक्षा, बौद्धिक प्रतिस्पर्धा, अतिश्रम, प्रतिस्पर्धा में व्यस्त द्वयात्मक वहिर्मुखी तथा आन्तरिक प्रवृत्तियाँ-ये सभी मानसिक शान्ति के लिए हानिकारक हैं। पुनर्वश्वास जागृत करने हेतु हमें अपने अस्तित्व के सम्बन्ध में संतुलित दृष्टिकोण पैदा करना होगा। अतीत के प्रति पश्चाताप या भविष्य को लेकर चिन्तित होने के स्थान पर, हमें अपना सम्पूर्ण ध्यान वर्तमान पर केन्द्रित करना चाहिए।
अनुपयोगी वार्तालाप, उद्देश्यहीन कार्य, निरर्थक विवादों, दोष ढूँढ़ने की प्रवृत्तियों, चुगलखोरी, तमोमय विचारों और इस प्रकार की समस्त विभ्रान्तियों जो हमारी ओजस्वी, मानसिक शक्तियों को नष्ट कर देती हैं—इन सब का परिहार कर हम अपनी इच्छाशक्ति को विकसित करें, यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। सुविचार पुरस्कृत होते हैं और कुविचार दण्ड के भागीदार बनते हैं।
हमें समय-समय पर अपनी मानसिक प्रक्रियाओं के पुनर्विलोकन को सीखना चाहिए। क्षणभंगुर सांसारिक लाभ के लिए प्रार्थना करने की अपेक्षा, इच्छा शक्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना आवश्यक है। अन्य समस्त विचारों का बहिष्कार कर मात्र केवल इसी विचार पर अपने को एकाग्र करना, मानसिक तनाव को दूर करने में सफल होने की एक निश्चित पद्धति है।
महाविपद में भी हमें सकारात्मक दृष्टिकोण को अवश्य कायम रखना चाहिए। यह याद रखना अच्छा है कि अवसाद का भी एक चिकित्सीय उपयोग पक्ष है—यह हमें महानतर उपलब्धियों की ओर ले जाता है।
यथार्थः यह कहा जाता रहा है कि वर्तमान सदी तनावों की सदी है। इन तनावों पर नियंत्रण पाने का एकमात्र तरीका है—मस्तिष्क पर नियंत्रण पाना। तब तक हमें यह ज्ञात न हो कि मस्तिष्क को कैसे प्रशिक्षित किया जाए, एक उद्देश्यपूर्ण जीवन व्यतीत करना अत्यन्त कठिन कार्य है।
इन व्याख्यानों में मैंने तनाव और उस पर नियंत्रण की समस्याओं का दो दृष्टिकोणों से विचार किया है—पूर्वी और पश्चिमी। इसमें मैंने मन के नियंत्रण के सम्बन्ध में हमारे प्राचीन योगियों ने जो कुछ कहा है उस मत को तो रखा है परन्तु साथ ही वर्तमान युग के आधुनिक पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों के कथन को भी उद्धृत किया है।
इस परिचर्चा से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि स्नायु तन्तुओं के तनाव और दबाव की मनःशारीरिक प्रकृति स्वास्थ्य सम्बन्धी गंभीर खतरों को जन्म देती है। हमारे अंदर विद्यमान विभिन्न प्रकार की विरोधाभासी वासनाएँ और इच्छाएँ एक साथ तुष्टि चाहती हैं। विषयासक्ति और आत्मशान्ति के बीच अक्सर तीव्र प्रतियोगिता या यूँ कहें कि एक प्रकार की रस्साकशी होती रहती है। एक प्रख्यात कथनानुसार, आत्मशक्ति तो प्रबल होती है परन्तु देह निर्बल होती है इसका परिणाम है—गहरा तनाव उत्पन्न हो सकता है। जैसा कि श्रीरामकृष्ण देव अपने रीतिगत तत्त्वविवेचन में कहा करते थे— इच्छाओं के दमन के स्थान पर, हमें उन्हें उच्चतर लक्ष्य की तरफ मोड़ देना चाहिए। दूसरे शब्दों में हमें उनका पुनर्गठन करना चाहिए। निग्रह के स्थान पर उन्नयन पर जोर देना चाहिए।
अधिकांश लोगों में धर्म के अतिरिक्त जीवन के सम्बन्ध में भी गलत धराणायें विद्यमान हैं। अतिमहत्त्वाकांक्षा, बौद्धिक प्रतिस्पर्धा, अतिश्रम, प्रतिस्पर्धा में व्यस्त द्वयात्मक वहिर्मुखी तथा आन्तरिक प्रवृत्तियाँ-ये सभी मानसिक शान्ति के लिए हानिकारक हैं। पुनर्वश्वास जागृत करने हेतु हमें अपने अस्तित्व के सम्बन्ध में संतुलित दृष्टिकोण पैदा करना होगा। अतीत के प्रति पश्चाताप या भविष्य को लेकर चिन्तित होने के स्थान पर, हमें अपना सम्पूर्ण ध्यान वर्तमान पर केन्द्रित करना चाहिए।
अनुपयोगी वार्तालाप, उद्देश्यहीन कार्य, निरर्थक विवादों, दोष ढूँढ़ने की प्रवृत्तियों, चुगलखोरी, तमोमय विचारों और इस प्रकार की समस्त विभ्रान्तियों जो हमारी ओजस्वी, मानसिक शक्तियों को नष्ट कर देती हैं—इन सब का परिहार कर हम अपनी इच्छाशक्ति को विकसित करें, यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। सुविचार पुरस्कृत होते हैं और कुविचार दण्ड के भागीदार बनते हैं।
हमें समय-समय पर अपनी मानसिक प्रक्रियाओं के पुनर्विलोकन को सीखना चाहिए। क्षणभंगुर सांसारिक लाभ के लिए प्रार्थना करने की अपेक्षा, इच्छा शक्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना आवश्यक है। अन्य समस्त विचारों का बहिष्कार कर मात्र केवल इसी विचार पर अपने को एकाग्र करना, मानसिक तनाव को दूर करने में सफल होने की एक निश्चित पद्धति है।
महाविपद में भी हमें सकारात्मक दृष्टिकोण को अवश्य कायम रखना चाहिए। यह याद रखना अच्छा है कि अवसाद का भी एक चिकित्सीय उपयोग पक्ष है—यह हमें महानतर उपलब्धियों की ओर ले जाता है।
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लोगों की राय
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