लोगों की राय

कविता संग्रह >> संकल्प सन्त्रास संकल्प

संकल्प सन्त्रास संकल्प

विष्णुकांत शास्त्री

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 590
आईएसबीएन :81-263-0683-1

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

55 पाठक हैं

बाँग्लादेश की संग्रामी जनता के अन्तःस्पन्दन एवं उसके मुक्तिकामी वज्र-संकल्प को ध्वनित करनेवाली 56 कविताओं के संकलन ...

Sankalp Santras Sankalp - A hindi Book by - Vishnukant Shastri संकल्प सन्त्रास संकल्प - विष्णुकांत शास्त्री

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


बांग्लादेश की क्रान्ति कई दृष्टियों से विलक्षण है। इसकी एक विशेषता यह है कि इसने भाषा और संस्कृति के आधार पर धर्मान्धता और राजनीतिक-आर्थिक शोषण की शक्तियों को चुनौती दी। सन् 1952 से 1970 तक के लम्बे वैधानिक संघर्ष की प्रेरणा के केंन्द्र-बिंदु के रूप में विद्यमान था, छात्रों का 21 फरवरी 1952 का वह बलिदान जो उन्होंने बांग्ला भाषा के सम्मान की रक्षा के लिए दिया था।

लोकतान्त्रिक पद्धति के अनुसार व्यक्त संपूर्ण जनता की आकांक्षाओं को मार्च 1971 में, जब बर्बर पाकिस्तानी शासकों ने अकथ्य सैनिक अत्याचार द्वारा कुचल देना चाहा, तब वही बलिदानी चेतना सशस्त्र मुक्ति-संग्राम के रूप में प्रकट हुई। संस्कृति को भावुकता करार देने वालों को इस क्रांति से कुछ सीखना चाहिए।.....

बांग्लादेश में जो हुआ वह मात्र विस्फोट नहीं था, वह संकल्पबद्ध योजना और भविष्य के निर्माण की प्रेरणा से उदभूत क्रान्ति थी।
स्वतन्त्रता की यह चिनगारी अन्तरतम से आयी थी, इसकी गवाही बाँग्लादेश की ‘क्रान्तिधात्री कविता’ भी देती है। संगीनों के साये में पलने वाले सन्त्रास के बावजूद, बाँग्लादेश की संग्रामी जनता के अन्तःस्पन्दन एवं उसके मुक्तिकामी वज्र-संकल्प को ध्वनित करनेवाली 56 कविताओं के संकलन का यह नया संस्करण समर्पित है दुनिया के सभी स्वाधीनता प्रेमियों को।

प्रस्तुति


बांग्ला भाषा और साहित्य के सुधी मर्मज्ञ श्री विष्णुकान्त शास्त्री ने ‘संकल्प सन्त्रास संकल्प’ शीर्षक इस संकल्प के अन्तर्गत 56 कविताओं का ‘अनुवाद’ किया है, मात्र इतना कहना पर्याप्त नहीं। वास्तव में विष्णुकान्त जी ने इन कविताओं को बहुत हद तक स्वयं जिया है, जब संग्राम-भूमि की परिधि और वातावरण को आत्मसात् करते हुए उन्होंने इनमें कवि-कवित्रियों से साक्षात्कार किया और प्रत्यक्ष सहानुभूति के सूत्रों द्वारा उनसे सम्बद्ध हुए। इसलिए अनुवाद में अनुभूति की ऊष्मा और मुखरता है।

कविताएँ स्वयं जो कुछ बोलती हैं, वह मूल-पाठ में ध्वनित है। किन्तु अनुवाद-पाठ विष्णुकान्त जी से सुना जाए। 256 जनवरी, 1972 का गणतन्त्र दिवस राजधानी के उन साहित्यकारों और मित्रों के लिए अविस्मरणीय रहेगा जिन्होंने श्रीमती रमा जैन के निमन्त्रण पर उस दिन 6, सरदार पटेल मार्ग, नयी दिल्ली में विष्णुकान्त जी से मूल काव्य के साथ-साथ अनुवाद पाठ और प्रत्येक पठित रचनाकार के व्यक्तित्व एवं कवित्व के परिपार्श्व के सम्बन्ध में उनकी टिप्पणियाँ सुनीं, उनके अनुभव सुने।

भारतीय ज्ञानपीठ गौरवान्वित है कि इतिहास के इस ज्वलन्त दस्तावेज़ को, काव्य की इस अमर कृति को प्रकाश में लाने का श्रेय उसे प्राप्त हुआ। हम बांग्लादेश के भारत-स्थिति हाई कमिश्नर डॉ. अज़ीज़ुर्रहमान मल्लिक के आभारी हैं कि उन्होंने इस संकल्प की परिकल्पना से प्रभावित होकर इसके लिए आमुख लिखा।

आमुख


‘संकल्प, सन्त्रास, संकल्प’ श्री विष्णुकान्त शास्त्री कर्त्तृक हिन्दी भाषाय अनूदित छप्पनटी कवितार संकलन। मूल कवितागुलि बांग्लादेशेर कविदेव लेखा। बांग्लादेशेर मुक्तियुद्धेर समये एदेर अधिकांश रचित हयछिलो। युद्ध चला कालीन एइ कवितागुलि जनसाधारणेर मनोबल असाधारणभावे बाड़िये छिलो। से जन्ये बांग्लादेशेर इतिहासे एइ कवितागुलिर एकटि विशेष स्थान आछे।

कवितागुल के रचनार काल अनुयायी तिनटी पर्बें साजानों हयछे। प्रथम पर्बटीर नाम-‘अन्धकारेर मुकाबिला’। पूर्व बांग्लार पर्बें भाषा आने आन्दोलनेर समय थेके 25 से मार्च 1971 एर मध्ये रचित कवितागुलि एइ पर्बे स्थान पेयेछे। 25 से मार्च थेके 16 इ दिसम्बरेर मध्ये लेखा कवितागुलि द्वितीय पर्बेर अन्तर्भुक्त, पर्बटीर नाम-‘घनायमान अन्धकार ओ विद्रोही किरणावली’। तृतीय पर्बटीर नाम ’रक्ते रांगा भोर’–स्वाधीनता लाभेर परवर्तीकाले लेखा कवितागलि एइ पर्बें संकलित हयेछे।

समस्त कवितागुलिर परिचय देओया भूमिकाते सम्भव नय। सबहगुलि कवितातेई कविदेर वेदनाबोध ओ अमननीय संकल्प उज्जालभावे फूटे उठेछे। शेष पर्बेर कतिताय स्वाधीनोत्तर, सूस्थतर जीवन फिरे पाओयार आशा ओ शहीदोर प्रति कृतज्ञता परिस्फुट।

कवितागुलिर मान यथायथ, तबे कोन कविता बांग्भगिते अथवा चित्रकल्पेर नूतनत्व अथवा अनुभवेर तीव्रतार सहजेइ दृष्टि आकर्षण करे। एई सब कविता मध्ये सिकन्दर आबू जाफरेर चलबेइ आमादेर सग्राम चलबेई, रहिमा सिद्दीकिर ‘जेगे आछे’, हुमायूं आजादेर ‘ब्लाड ब्यांक’, फजल साहाबुद्दीनेर, ‘आमार बांग्ला’, नसीमून आरार ‘आमार हातेइ चाबि’, निर्मलन्दु गुणेर ‘लज्जा’, शमसुर्रहमानेर ‘प्रतिटि अक्खरे’ ओर ‘बंदी शिविर थेके’, अलाउद्दीन आजादेर ‘आत्मचित्र’ एवं हिलाल हाफिजेर ‘अस्त्रसमर्पण’ स्वकीयताय सम्मुज्वल। एइ सब कवितार अधिकांशेर रचनाकाले बांग्लादेशे अत्याचार चरम पर्याये उठे छ; सेइ परिस्थितितेउ जाँरा ए रकम कविता लेखन ताँदेर प्रतिभार प्रशंसा करार मतो भाषा दुर्लभ। जसीमुद्दीन ‘गीतारा कोथाय गेलो’ एवं बेगम सूफिया कामालेर ‘मोर जादूदेर समाधि परे’ एवं ‘श्रीमती इन्दिरा गांधी के’ ओ उल्लेख करार मतो कविता।

एइ कवितागुलिर अनुवाद हओयाते सेगुलि बृहत्तर पाठकबर्गेर काछे निवेदित होते पारलो। एइ धरनेर प्रचेष्ठा सब समयेइ अभिनन्दनीय।

अध्यापक विष्णुकान्त शास्त्री महाशय बांग्लादेश स्वाधीनता–संग्रामेर अनेक नेतृस्थानीय व्यक्ति एवं बहु मुक्ति योद्धार संगे व्यक्तिगत भावे परिचित। तिनि विभिन्न मुक्ति योद्धा शिविर परिदर्शन करेछेन, मुक्तियोद्धादेर संगे घनिष्ठभावे मिलछेन एवं बांग्लादेशेर स्वाधीनता-संग्राम ओ तार अग्रगतिर ओपर ‘धर्युग’ पत्रिकाय नियमितभावे लिखछेन। आमार संगे ताँर परिचय हय कलिकाता विश्वविद्यालय बाँग्लादेश सहायक समितिर माधयमे। गत वत्सर अध्यापक शास्त्री आमार संगे भारतवर्षे विभिन्न विश्वविद्यालय एवं विशिष्ट शहर गुलि परिभ्ररण करेछन एवं बांग्लादेश सम्बन्धे सधीसमावेश ओ जनसभाय आमादेर वक्तत्य पेश करेछेन। सेई समय द-एकटी बुद्धिजीवी समावेशे तिनी बांग्लादेशेर कविदेर रचित कयेकटी कवितार हिन्दू अनुवाद सुनिये छेन। बांग्लादेशेर स्वाधीनता-संग्रामे शास्त्री महाशयेर अवदान आमादेर प्रशंसार दावी ऱाखे।
बांग्लादेश ओ भारतवर्षेर मध्ये जे बन्धुत्व स्थापित हयेछे आरओ घनिष्ठतर होक एवं भारतवर्ष ओ बांग्लादेशेर नागरिकदेर मध्ये भ्रातृत्वबोध आरओ दृढ़ होक ऐटा आमोदेर काम्य। शास्त्री महाशय संकलन एइ क्षेत्रे विशेष सहायक हबे आमि विश्वास करि, एइ संकलनेर माध्यमे भारत ओ बांग्लादेशेर मध्य, विशेष करे सांस्कृतिक क्षेत्र, नैकट्य वृद्ध पाबे-आमि एई आशाओं पोषण करि।

प्रख्यात साहित्य ओ सांस्कृतिक प्रतिष्ठान तथा साहित्येर उच्चतर पृष्ठपोषक ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ एइ संकलनटी प्रकाशनेर व्यवस्था अवलम्बन करे तादेर विशिष्टतार परिचय दियेछेन। ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ ताँदेर ऐतिह्ननुयायी एई संकटनटीर हिन्दी लिपिर संगे मूल कवितागुलिर देवनागरी अक्खरे मुद्रिक करे रचनागुलिर सौन्दर्य ओ भाव पाठकदेर उपलब्धि करार सुयोग दियेछेन। भारतीय ज्ञानपीठेर एइ प्रचेष्ठा अभिनन्दनीय।


आमुख



‘संकल्प सन्त्रास संकल्प’ श्री विष्णुकान्त शास्त्री द्वारा हिन्दी में अनूदित छप्पन बांग्ला कविताओं का संकलन है। मूल कविताएँ बांग्लादेश के कवियों ने लिखी हैं। इनमें से अधिकाँश कविताएँ बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के समय लिखी गयी थीं। युद्ध के समय इन कविताओं ने असाधारण रूप से जनसाधारण रूप से जनसाधारण का मनोबल बढ़ाया था। इसलिए बांग्लादेश के इतिहास में इन कविताओं का एक विशेष स्थान है।

कविताओं को रचनाकाल के अनुसार तीन खण्डों में बाँटा गया है। प्रथम खण्ड का नाम है ‘अँधेरे को चुनौती। प्रथम खण्ड में पूर्व बंगाल के भाषा आन्दोलन के समय से 25 मार्च 1971 के दरमियान रची गयी कविताओं को सम्मिलित किया गया है। 25 मार्च और 16 दिसम्बर के बीच लिखी गयी कविताओं को द्वितीय खण्ड में सम्मिलित किया गया है इस खण्ड का नाम है ‘गहराता अँधेरा और विद्रोही किरणें। तीसरे खण्ड का नाम ‘रक्त रंजित भोर’ है। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद रची गयी कविताओं को इस खण्ड में सम्मिलित किया गया है।

इस भूमिका में सारी कविताओं का परिचय देना सम्भव नहीं है। कवियों का वेदना-बोध तथा अदम्य संकल्प इन समस्त कविताओं में समुज्जवल रूप से फूट उठा है तीसरे खण्ड की कविताओं में स्वाधीनता के बाद स्वस्थतर जीवन लौट आने की आशा तथा शहीदों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त हुई है।

सभी कविताओं का महत्त्व तो समान ही है फिर भी कुछ कविताओं के शिल्प की नवीनता, चित्र-विधान की नूतनता अथवा अनुभव की तीव्रता सहज ही ध्यान आकर्षित कर लेती है। इन सब कविताओं में सिकन्दर अबू ज़फ़र की ‘संग्राम चलबेइ’ रहीमा सिद्दीकी की ‘जेगे आछे, हुमायँ आजाद की ‘ब्लड बैंक’ फ़ज़ल शहाबुद्दीन की ‘अमीर बंग्ला, नसीमुन आरा की ‘आमार हतेई ताबी’ निमर्लेनिदु गुण की लज्जा’ शमसुर्रहमान की ‘प्रतिटि अक्खरे’ तथा ‘बन्दी शिविर थेके’ अलाउद्दीन अल आज़ाद की ‘आत्मचित्र’ तथा हिलाल हाफ़िज की ‘अस्त्र-समर्पण’ कविताओं का अपना एक अलग स्थान है।
इनमें से अधिकांश कविताओं के रचनाकाल के समय बांग्लादेश में अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था। ऐसी परिस्थितियों में भी जो कवि इन कविताओं की रचना कर सके उनकी प्रतिभा की प्रशंसा के लिए शब्द ढूँढ पाना सम्भव नहीं। जसीमुद्दीन की ‘गीतारा कोथाय गेलों’ एवं बेगम सूफिया कमाल ‘मोर जादूदेर समाधि परे’ तथा ‘श्रीमती इन्दिरा गाँधी के प्रति’ कविताएं भी सर्वथा उल्लेखनीय हैं।
इन कविताओं का हिन्दी में अनुवाद हो जाने से ये और भी बृहत्तर पाठक वर्ग को उपलब्ध हो सकेंगी। इस प्रकार का कोई भी प्रयास सदैव अभिनन्दनीय होता है।

अज़ीज़ुर्रहमान मल्लिक

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book