कहानी संग्रह >> कथा भारती गुजराती कहानियाँ कथा भारती गुजराती कहानियाँरमेश उपाध्याय
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प्रस्तुत हैं गुजराती कहानियाँ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बीस गुजराती कहानियों के इस संग्रह में गुजरात के प्रतिष्ठित एवं परिचित
लेखकों की कहानियां संग्रहीत हैं। बीसवीं सदी के प्रारंभ से लेकर आज तक के
लेखकों की इन कहानियों में विषयवस्तु एवं शैली के कारण रोचक पठन सामग्री
प्राप्त होती है। संग्रह की कहानियां गुजरात के रीतिरिवाज विचार भावानुभव
और परंपराओं के साथ आधुनिक विचारधारा तथा प्रयोगशील मानस की परिचायिका
हैं। इनमें जीवन से संबंधित गंभीर विचार हैं और दैनंदिन जीवन की सामान्य
घटनाओं का मार्मिक निरूपण भी।
इन कहानियों का संकनल प्रो. यशवंत शुक्ल तथा प्रो. अनिरुद्ध ब्रह्मभट्ट ने किया है। गुजरात के गिने चुने शिक्षाविदों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। गुजराती समालोचना में इनकी देन सराहनीय है।
अनुवादक श्री रमेश उपाध्याय स्वयं हिन्दी के श्रेष्ठ कहानीकार हैं जिनका गुजराती भाषा पर भी उतना ही अधिकार है।
इन कहानियों का संकनल प्रो. यशवंत शुक्ल तथा प्रो. अनिरुद्ध ब्रह्मभट्ट ने किया है। गुजरात के गिने चुने शिक्षाविदों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। गुजराती समालोचना में इनकी देन सराहनीय है।
अनुवादक श्री रमेश उपाध्याय स्वयं हिन्दी के श्रेष्ठ कहानीकार हैं जिनका गुजराती भाषा पर भी उतना ही अधिकार है।
भूमिका
कहानी तो पहाड़-सी पुरानी है और देश की जनता के पास होती है। पुराणकथा,
दृष्टांतकथा, नीतिकथा, लोककथा आदि गुजराती में थीं ही और आज भी हैं। परंतु
गद्य साहित्य की एक स्वतंत्र विधा के रूप में आज हम जिसे कहानी कहते हैं,
उसकी शुरुआत गुजरात में बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में हुई लगती है।
गुजराती भाषा में उपन्यास जैसी अन्य साहित्यिक विधाओं की भांति ही कहानी
भी पाश्चात्य से लेकर विकसित की गई विधा है। गुजराती कहानी ने अपनी रूपगत
संभावनाओं का विकास करने में जहां आवश्यक हुआ, पुराण कथा, लोककथा आदि की
निरूपण-पद्धति के कुछ तत्वों का सहयोग अवश्य किया है (जैसे जयंति दलाल की
कहानी ‘मूंक करोति’ में) किंतु इससे यह नहीं कहा जा
सकता कि
आज की कहानी का पुराणकथा, दंतकथा आदि से सीधा संबंध है।
श्री अंबालाल साकरलाल देसाई की कहानी ‘शांतिहास’ (सन् 1900 ई.) गुजराती भाषा की पहली कहानी मानी जाती है। आश्चर्य की बात यह है कि अंबालाल ने यह कहानी, कहानी लिखने के इरादे से नहीं, बल्कि एक अर्थशास्त्री की दृष्टि से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने के पीछे छिपे अपने विचारों को मूर्त रूप देने के लिए लिखी है। इस प्रकार की बोधात्मक कहानियां इस काल में और लिखी गई हैं। ‘शांतिहास’ अपने विषय की दृष्टि से इस काल की अन्य कहानियों से भिन्न है, क्योंकि इस काल की कहानियों का विषय क्षेत्र मुख्य रूप से सामाजिक कुरीतियों और जड़ जातिवाद के परिणामस्वरूप टूटते प्रेम संबंधों के आस पास ही फैला दिखाई देता है।
इस काल की कहानियों का एक अन्य उल्लेखनीय लक्षण है हास्यरस का निरूपण। रमणभाई नीलकंठ ने ‘भोमियाने दीघेली भूलथाप’ नामक एक हास्यरस की प्रसंग कथा की उद्भावना मार्क ट्वेन की एक रचना के आधार पर की थी। इसके प्रकाशन के साथ ही मानो गुजराती कहानी में हास्यरस की कहानियों का दौर शुरू हुआ। इस दौर की कहानियों के प्रमुख लेखकों-धनसुखलाल मेहता क.मा. मुंशी, मलयानिल आदि ने हास्यरस की कहानियों का सृजन किया है। क.मा. मुंशी की कहानियों में हास्य मुख्य रूप से कोमल और मार्मिक है। मलयानिल की कहानियों में हास्य प्रमुख नहीं किंतु उसकी धारा उनकी अनेक कहानियों में बहती दिखाई देती है। इस प्रकार प्रारंभिक काल की गुजराती कहानी में तीन चीजें विशेष रूप से देखने को मिलती हैं-उपदेश, समाज सुधार और हास्यरस का निरूपण। इससे बहुधा ऐसा हुआ है कि कहीं कहानी उपदेश के नीचे दब गई है, कहीं समाज-सुधार का झंडा फहराने में कहानी का गठन शिथिल हो गया है, तो कहीं हास्यरस की निष्पत्ति भले हो गई हो, कहानी कहानी नही रह गई है, हालांकि इसके कुछ सुखद अपवाद भी देखने को मिलते हैं। उन अपवादों में श्री मलयानिल की कहानी गोवालणी सन् (1918) तुरंत ध्यान आकर्षित करती है।
यह रचना साहित्येतर कारणों से रहित है। शुद्ध कलाकृति पहली बार इस कहानी में मिलती है। ग्वालिन के प्रति कहानी के नायक का आकर्षण और उससे बचने के लिए ग्वालिन के द्वारा निकाला गया सहज उपाय इतने सहज ढंग से निरूपित हुआ है कि कहीं कोई आयास नजर नहीं आता और कहानी अपने उद्देश्य में सफल होती है।
इस प्रारंभिक काल की कहानी में ‘सुंदरी सुबोध, ‘गुणसुंदरी’, ‘वार्ता -वारिधि,’ ‘वीसमी सदी’ आदि का योगदान एक प्रेरक शक्ति के रूप में उल्लेखनीय है।
धूमकेतु के प्रवेश के साथ गुजराती कहानी में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आया। विषय क्षेत्र का विस्तार हुआ और कहानी में ध्वनितत्व का महत्व स्वीकृत हुआ। धूमकेतु ने अपनी कहानियों में प्रकृति और चरित्रों के व्यवहार की सुसंगता की ओर अपने पूर्ववर्ती रचनाकारों की अपेक्षा विशेष ध्यान दिया।
धूमकेतु की कहानियों में वन –जीवन, ग्राम –जीवन, और नगर -जीवन के विविध पक्षों को ग्रहण किया गया है। जीवन को देखने और चित्रित करने में उनका रुझान मुख्यतः भावनावादी रहा है। उनके अधिकांश पात्र भावुकतापूर्ण जीवन जीने के कारण व्यावहारिक यथार्थ जगत के साथ बहुधा अपना तालमेल नहीं बिठा पाते और इसके कारण कहानी में करुणा उत्पन्न होती है। शायद इसीलिए उनके पात्र अव्यावहारिक और सनकी जैसी लगते हैं। अपने खयालों में मस्त ऐसे मनुष्यों की एक पूरी दुनिया धूमकेतु ने खड़ी कर दी है।
यंत्र-सभ्यता के फलस्वरूप उत्पन्न नगर जीवन की यांत्रिकता के सामने प्रकृति के बीच स्थित ग्राम जीवन की नैसर्गिकता को धूमकेतू ने अपनी कितनी ही कहानियों में प्रस्तुत किया है और कई बार तो नगर जीवन की अपेक्षा ग्राम जीवन के प्रति उनका पक्षपात स्पष्ट रूप से सामने आ जाता है। ग्राम जीवन को रोमांटिक भाषा में लपेटकर चित्रित करना उन्हें अच्छा लगता है। परिस्थितियों की अपेक्षा पात्र धूमकेतू की कहानियों में बहुधा अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। अतः धूमकेतू की अधिकांश कहानियां पात्र प्रधान है।
धूमकेतू के आगमन से गुजराती कहानी को पहली बार काव्यमय प्रकृति वर्णन, मिला, नाजुक गद्य मिला, भांति-भांति के पात्र मिले, नगर संस्कृति से उत्पन्न मानव जीवन की कितनी ही समस्याओं का निरूपण मिला और प्रमुख रूप से एकरंगदर्शी नजर से देखा हुआ गांव मिला। प्रेम भावना विषक उत्सर्ग धूमकेतू के अनेक पात्रों में दिखाई देता है। यह प्रेम व्यक्ति के प्रति, पशु-पक्षियों के प्रति एवं धरती के प्रति होता है। इसके प्रति दुविधारहित लगन कई बार तो पंक्तिबद्धता के रूप में भी सामने आती है।
रा.वि. पाठक द्विरेफ की कहानियों में पात्र कहानी में चित्रित यथार्थ की कठोर धरती पर प्रस्तुत हुए। निरूपण में भावुकता के स्थान पर तर्कपूर्ण संयम द्विरेक की कहानियों की उल्लेखनीय विशेषता है। द्विरेक ने पात्रों के मनोभावों तथा उन मनोभावों के कारण अनिवार्यतः उभरती परिस्थितियों के बीच के अकृत्रिम अनुसंधान पर ध्यान दिया और उसके द्वारा मानव जीवन के रहस्य को ध्वनित कर दिखाया। द्विरेफ अपनी कहानियों में प्रयोगशील रहे हैं, इसलिए अभिव्यक्ति की विभिन्न शैलियां उनकी कहानियों में देखने को मिलती हैं। मानव जीवन में निहित अंधी शक्तियों का चित्रण द्विरेक ने कुशलपूर्वक किया। मानव जीवन की नियामक शक्ति के रूप में शारीरिक तत्वों के प्रभाव को अपना कथ्य बनाती हुई कहानियां पहले-पहल द्विरेफ ने ही दीं।
जिस समय द्विरेक की ये कहानियां लिखी जा रही थीं, प्रगतिवाद का दौर शुरु हो चुका था, परंतु द्विरेफ की कहानियों पर उसका प्रभाव बहुत कम दिखाई देता है। मेघाणी की कहानियों पर उसका प्रभाव काफी पड़ा। मेघाणी की कहानियों की सरंचना की दो प्रमुख शक्तियां है-एक तो लोकसाहित्य से मेघाणी का निकट संपर्क और दूसरे, प्रगतिवाद का प्रभाव। निम्न वर्ग के दलित-पीड़ित मनुष्यों के प्रति सहानुभूति मेघाणी की कहानियों में तुरंत ध्यान आकृष्ट करती है। मेघाणी में साहस, आत्मत्याग और वीरत�
श्री अंबालाल साकरलाल देसाई की कहानी ‘शांतिहास’ (सन् 1900 ई.) गुजराती भाषा की पहली कहानी मानी जाती है। आश्चर्य की बात यह है कि अंबालाल ने यह कहानी, कहानी लिखने के इरादे से नहीं, बल्कि एक अर्थशास्त्री की दृष्टि से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने के पीछे छिपे अपने विचारों को मूर्त रूप देने के लिए लिखी है। इस प्रकार की बोधात्मक कहानियां इस काल में और लिखी गई हैं। ‘शांतिहास’ अपने विषय की दृष्टि से इस काल की अन्य कहानियों से भिन्न है, क्योंकि इस काल की कहानियों का विषय क्षेत्र मुख्य रूप से सामाजिक कुरीतियों और जड़ जातिवाद के परिणामस्वरूप टूटते प्रेम संबंधों के आस पास ही फैला दिखाई देता है।
इस काल की कहानियों का एक अन्य उल्लेखनीय लक्षण है हास्यरस का निरूपण। रमणभाई नीलकंठ ने ‘भोमियाने दीघेली भूलथाप’ नामक एक हास्यरस की प्रसंग कथा की उद्भावना मार्क ट्वेन की एक रचना के आधार पर की थी। इसके प्रकाशन के साथ ही मानो गुजराती कहानी में हास्यरस की कहानियों का दौर शुरू हुआ। इस दौर की कहानियों के प्रमुख लेखकों-धनसुखलाल मेहता क.मा. मुंशी, मलयानिल आदि ने हास्यरस की कहानियों का सृजन किया है। क.मा. मुंशी की कहानियों में हास्य मुख्य रूप से कोमल और मार्मिक है। मलयानिल की कहानियों में हास्य प्रमुख नहीं किंतु उसकी धारा उनकी अनेक कहानियों में बहती दिखाई देती है। इस प्रकार प्रारंभिक काल की गुजराती कहानी में तीन चीजें विशेष रूप से देखने को मिलती हैं-उपदेश, समाज सुधार और हास्यरस का निरूपण। इससे बहुधा ऐसा हुआ है कि कहीं कहानी उपदेश के नीचे दब गई है, कहीं समाज-सुधार का झंडा फहराने में कहानी का गठन शिथिल हो गया है, तो कहीं हास्यरस की निष्पत्ति भले हो गई हो, कहानी कहानी नही रह गई है, हालांकि इसके कुछ सुखद अपवाद भी देखने को मिलते हैं। उन अपवादों में श्री मलयानिल की कहानी गोवालणी सन् (1918) तुरंत ध्यान आकर्षित करती है।
यह रचना साहित्येतर कारणों से रहित है। शुद्ध कलाकृति पहली बार इस कहानी में मिलती है। ग्वालिन के प्रति कहानी के नायक का आकर्षण और उससे बचने के लिए ग्वालिन के द्वारा निकाला गया सहज उपाय इतने सहज ढंग से निरूपित हुआ है कि कहीं कोई आयास नजर नहीं आता और कहानी अपने उद्देश्य में सफल होती है।
इस प्रारंभिक काल की कहानी में ‘सुंदरी सुबोध, ‘गुणसुंदरी’, ‘वार्ता -वारिधि,’ ‘वीसमी सदी’ आदि का योगदान एक प्रेरक शक्ति के रूप में उल्लेखनीय है।
धूमकेतु के प्रवेश के साथ गुजराती कहानी में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आया। विषय क्षेत्र का विस्तार हुआ और कहानी में ध्वनितत्व का महत्व स्वीकृत हुआ। धूमकेतु ने अपनी कहानियों में प्रकृति और चरित्रों के व्यवहार की सुसंगता की ओर अपने पूर्ववर्ती रचनाकारों की अपेक्षा विशेष ध्यान दिया।
धूमकेतु की कहानियों में वन –जीवन, ग्राम –जीवन, और नगर -जीवन के विविध पक्षों को ग्रहण किया गया है। जीवन को देखने और चित्रित करने में उनका रुझान मुख्यतः भावनावादी रहा है। उनके अधिकांश पात्र भावुकतापूर्ण जीवन जीने के कारण व्यावहारिक यथार्थ जगत के साथ बहुधा अपना तालमेल नहीं बिठा पाते और इसके कारण कहानी में करुणा उत्पन्न होती है। शायद इसीलिए उनके पात्र अव्यावहारिक और सनकी जैसी लगते हैं। अपने खयालों में मस्त ऐसे मनुष्यों की एक पूरी दुनिया धूमकेतु ने खड़ी कर दी है।
यंत्र-सभ्यता के फलस्वरूप उत्पन्न नगर जीवन की यांत्रिकता के सामने प्रकृति के बीच स्थित ग्राम जीवन की नैसर्गिकता को धूमकेतू ने अपनी कितनी ही कहानियों में प्रस्तुत किया है और कई बार तो नगर जीवन की अपेक्षा ग्राम जीवन के प्रति उनका पक्षपात स्पष्ट रूप से सामने आ जाता है। ग्राम जीवन को रोमांटिक भाषा में लपेटकर चित्रित करना उन्हें अच्छा लगता है। परिस्थितियों की अपेक्षा पात्र धूमकेतू की कहानियों में बहुधा अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। अतः धूमकेतू की अधिकांश कहानियां पात्र प्रधान है।
धूमकेतू के आगमन से गुजराती कहानी को पहली बार काव्यमय प्रकृति वर्णन, मिला, नाजुक गद्य मिला, भांति-भांति के पात्र मिले, नगर संस्कृति से उत्पन्न मानव जीवन की कितनी ही समस्याओं का निरूपण मिला और प्रमुख रूप से एकरंगदर्शी नजर से देखा हुआ गांव मिला। प्रेम भावना विषक उत्सर्ग धूमकेतू के अनेक पात्रों में दिखाई देता है। यह प्रेम व्यक्ति के प्रति, पशु-पक्षियों के प्रति एवं धरती के प्रति होता है। इसके प्रति दुविधारहित लगन कई बार तो पंक्तिबद्धता के रूप में भी सामने आती है।
रा.वि. पाठक द्विरेफ की कहानियों में पात्र कहानी में चित्रित यथार्थ की कठोर धरती पर प्रस्तुत हुए। निरूपण में भावुकता के स्थान पर तर्कपूर्ण संयम द्विरेक की कहानियों की उल्लेखनीय विशेषता है। द्विरेक ने पात्रों के मनोभावों तथा उन मनोभावों के कारण अनिवार्यतः उभरती परिस्थितियों के बीच के अकृत्रिम अनुसंधान पर ध्यान दिया और उसके द्वारा मानव जीवन के रहस्य को ध्वनित कर दिखाया। द्विरेफ अपनी कहानियों में प्रयोगशील रहे हैं, इसलिए अभिव्यक्ति की विभिन्न शैलियां उनकी कहानियों में देखने को मिलती हैं। मानव जीवन में निहित अंधी शक्तियों का चित्रण द्विरेक ने कुशलपूर्वक किया। मानव जीवन की नियामक शक्ति के रूप में शारीरिक तत्वों के प्रभाव को अपना कथ्य बनाती हुई कहानियां पहले-पहल द्विरेफ ने ही दीं।
जिस समय द्विरेक की ये कहानियां लिखी जा रही थीं, प्रगतिवाद का दौर शुरु हो चुका था, परंतु द्विरेफ की कहानियों पर उसका प्रभाव बहुत कम दिखाई देता है। मेघाणी की कहानियों पर उसका प्रभाव काफी पड़ा। मेघाणी की कहानियों की सरंचना की दो प्रमुख शक्तियां है-एक तो लोकसाहित्य से मेघाणी का निकट संपर्क और दूसरे, प्रगतिवाद का प्रभाव। निम्न वर्ग के दलित-पीड़ित मनुष्यों के प्रति सहानुभूति मेघाणी की कहानियों में तुरंत ध्यान आकृष्ट करती है। मेघाणी में साहस, आत्मत्याग और वीरत�
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