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बुद्धि का चमत्कार

भगवतशरण उपाध्याय

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5860
आईएसबीएन :81-7028-226-8

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प्रस्तु हैं रोचक कहानियाँ...

Buddhi Ka Chamatkar a hindi book by Bhagwat Sharan Upadhyay - बुद्धि का चमत्कार - भगवतशरण उपाध्याय

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

बुद्धि का चमत्कार

काशी के एक निर्धन परिवार में एक बालक जनमा। सुन्दर होने से उसका नाम रखा गया सुतनु। बड़े प्यार से उसके मां-बाप ने उसे पाला। फिर जब वह बड़ा हुआ और उसके मां-बाप बूढ़े हुए तब वही उन्हें पालने लगा। उसके पास धन तो था नहीं, केवल बुद्धि थी। उसी से मजूरी कर वह अपने मां-बाप को पालता था। जब उसका बाप मर गया तब बड़े प्रेम से वह अपनी मां को पालने लगा।

बात बहुत पुरानी है। तब जो राजा काशी में राज करता था वह शिकार का बड़ा प्रेमी था। एक दिन वह जंगल में शिकार करने गया। उसके साथ उसके मंत्री, सेनापति और दरबारी भी शिकार करने गए। जंगल में हांका लगा लिया गया। हांका ढोल पीटकर जंगल में रहनेवाले राजा ने नौकर लगाया करते थे। ढोल पीटने से जानवर जंगल के बीच की ओर भागते और वहीं राजा शिकार किया करता। इस बार भी जंगल के बीच एक मचान बांधा गया जिस पर राजा जा बैठा। हांका लगाते जंगली लोग उसकी ओर बढ़े।

पर बहुत हांका लगाने पर भी कोई जानवर उधर से नहीं निकला। बड़ी देर बाद एक हिरन उधर से निकला। राजा ने उस पर तीर मारा। हिरन वह माया का था। जब उसने देखा कि राजा का तीर उसकी कोख में घुसना चाहता है तब वह झट से घूमकर मक्कड़ बना गिरकर मरे हुए-सा ज़ीमन पर पड़ा रहा। राजा बड़ा खुशी से उसे लेने के लिए उठा। जैसे ही वह हिरन के पास पहुंचा, हिरन उछला और भाग चला। राजा के साथी मुंह फेरकर हंसने लगे। राजा ने लाज की रक्षा के लिए हिरन का पीछा किया।

दूर जाने पर जब हिरन थककर बैठा, राजा ने तलवार का ऐसा हाथ मारा कि हिरन बीच से दो हिस्सों में कट गया। उसे डंडे से बांध, डंडा कंधे पर टिकाए राजा भूख-प्यास का मारा लौट चला। पर जंगल की राह ठहरी, भूल गई। फिर भी जंगली फल खाता, सोते का पानी पीता, वह एक बड़े पेड़ के नीचे पहुंचा। थका तो वह था ही, बड़ की छांव में ठंडी बहती बयार से उसे नींद आने लगी और वह वहीं बड़ के नीचे पड़कर सो गया।

बड़ के पेड़ पर मखादेव नाम का एक यक्ष रहता था। वह आदमी, जानवर जो भी उधर से जाता उसे पकड़कर खा जाता। जब उसके खाने का वक्त हुआ और भूख लगी तब वह पेड़ से उतरा। देखता क्या है कि एक आदमी बड़ की छांव में सोया पड़ा है और उसके पास ही हिरन की कटी देह धरी है। उसे बड़ी खुशी हुई कि आज बड़ा जायकेदार भोजन मिलेगा, आदमी भी, हिरन भी। उसकी जीभ से लार टपकने लगी।
तभी राजा की नींद खुल गई। जब उसने आदमी और जानवरों के कच्चा मांस खाने वाले यक्ष को देखा तब उसे बड़ा डर लगा। पर जब वह भागने को हुआ तब उसके पांव ज़मीन पर सट गए। यक्ष ने हंसकर कहा- ‘‘राजा, तुम यहां से भाग नहीं सकते। मैं यक्षों के राजा कुबेर का सेवक हूं। मुझे उन्होंने भोजन के लिए वरदान दिया है। कहा है कि जो भी इस बड़ की छाया के अन्दर आ जाएगा वह मेरा शिकार वह मेरा आहार बनेगा। इससे जो यहां आता है, देवता की कृपा से मेरा आहार बनता है। और अगर यहां से भागने की कोशिश करता है तो बड़ के नीचे की धरती उसे पकड़ लेती है। सो अब तुम यहां से लौट नहीं सकते। अपने देवता को याद करो और मेरा आहार बनो।’’

राजा बहुत घबराया पर उसने हिम्मत नहीं हारी। वह यक्ष से बोला, ‘‘यक्ष, देखो, आज तुम इस हिरन को खाकर अपनी भूख मिटाओ, मेरी जान छोड़ दो। इसके बदले मैं रोज भोजन के साथ एक आदमी भेज दिया करूंगा। आखिर रोज तो तुम्हारे खाने के लिए यहां आता नहीं होगा।

कितनी ही बार तुम्हारे भोजन में नागा भी पड़ जाता होगा, क्योंकि पेड़ की छांव के नीचे आना संयोग की ही बात होगी। पर मैं जुगत बताता हूं उससे नित्य तुम्हें भोजन मिलता रहेगा, कभी भूखों नहीं रहना पड़ेगा। मेरी बात मानों और मुझे छोड़ दो।’’

यक्ष ने सोचा कि राजा बात सही कह रहा है, इस तरह बराबर मुझे आहार मिलता रहेगा। सो उसने राजा को छोड़ दिया और हिरन को खाकर ही अपनी क्षुधा बुझाई। पर कहा कि उसे अगर भोजन के लिए एक दिन भी कोई नहीं आया तो वह राजा को ही खा जाएगा।
राजा बहुत चिन्तित अपनी नगरी को गया। मंत्री के पूछने पर उसने अपनी चिन्ता का कारण बताते हुए यक्ष की कहानी कही।
मंत्री बोला- ‘‘महाराज, इसमें परेशान होने की क्या बात है ? कारागार में बहुत सारे कैदी हैं, भोजन के थाल के साथ रोज़ एक को भेज दिया करें। राज में अपराध भी नहीं होगा और अपनी जान भी बची रहेगी।’’

राजा मंत्री की बात सुनकर बहुत खुश हुआ और पकवानों के साथ कारागार में रोज एक कैदी वह यक्ष के पास भेजने लगा। यक्ष पकवान और आदमी दोनों को खा जाता। पर कारागार में कैद कैदियों की संख्या की भी एक सीमा थी। धीरे-धीरे कैदी चुक गए। अब राजा फिर खतरे में पड़ गया।

चिन्ता से बचने के लिए उसने मंत्री की ओर देखा।
मंत्री बोला- ‘‘महाराज, इसमें चिन्ता की क्या बात है ? आप ऐसा करें कि राज में मुनादी करा दें कि जो यक्ष का भोजन लेकर उसके पास जाएगा उसे हज़ार सोने के सिक्के दिए जाएंगे।’’ राजा ने मंत्री को वैसा करने की आज्ञा दी। मंत्री ने वैसा ही किया। पर कोई सिक्के लेने आया नहीं।’’

पर जब सुतनु ने मुनादी सुनी तो वह सोचने लगा कि वह क्यों न सिक्के लेकर मैं ही यक्ष के पास जाऊं और उसे समझाने की कोशिश करूं। अगर वह मान गया तो ठीक वरना ये हज़ार सिक्के तो हैं ही। मां को जिन्दगी भर इनसे आहार मिलता रहेगा। उसने मां को समझाया पर उसने बार-बार मना कर दिया। तब चुपके से सोने के सिक्के घर में डाल वह राजा के पास जा पहुंचा।
राजा से बोला- ‘‘मैं यक्ष का आहार लेकर जाऊंगा।’’
राजा ने प्रसन्न होकर कहा- ‘‘जाओ, भगवान् तुम्हारा भला करे। तुम्हें कुछ चाहिए ?’’
सुतनु बोला- ‘‘हां, महाराज, चाहिए।’’
राजा ने पूछा- ‘‘क्या चाहिए ?’’
‘‘मुझे अपनी सोने की खड़ाऊं दे दें ?’’
‘‘क्या करोगे मेरी सोने की खड़ाऊं ?’’


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