बाल एवं युवा साहित्य >> परियों की कहानियाँ परियों की कहानियाँमनमोहन सरल योगेन्द्र कुमार लल्ला
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प्रस्तुत हैं बालकथाएँ........
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
परियों के देश में
प्रस्तुत पुस्तक ‘बाल उपहार-माला’ की प्रथम पुस्तक
है।
इस माला की प्रत्येक पुस्तक बच्चों को जन्म-दिन, उत्सवों, त्यौहारों और अनेक अच्छे अवसरों पर उपहार देने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई है। इन्हें पढ़ने से बच्चों में पुस्तकों के प्रति रुचि जाग्रत होगी, ज्ञान और विचार-शक्ति बढ़ेगी, मानसिक स्तर ऊँचा उठेगा और साथ ही मनोरंजन भी होगा।
इन पुस्तकों को पढ़ने में बच्चे नानी-दादी की कहानियों की तरह रस लेंगे। अनेक रंग-बिरंगे चित्र, बढ़िया छपाई, सरल भाषा, मजबूत जिल्द और रोचक कहानियाँ इन पुस्तकों की पहली विशेषता है। ये लुभावनी, मनभावनी रोचक और ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें बच्चों को सहज ही आकर्षित करती हैं।
इस पुस्तक में परियों की कहानियाँ दी गई हैं। परियों का देश मीठी कल्पनाओं से भरा-पूरा होता है। हर बच्चा उस देश में जाने के सपने देखता है। और परियों की रानी से प्यारी-प्यारी बातें करता है। उसी देश की ये चुनी हुई कहानियाँ हैं। बहुत-कुछ अलौकिक होते हुए भी ये मानव-मन की सूझ-बूझ और कोमल भावनाओं को अपने में संजोए हैं। ये कहानियाँ गुदगुदाती हैं, हँसाती हैं और सोचने के लिए भी बाध्य करती हैं। सरल, सरस भाषा शैली में दुरंगे चित्रों के साथ यह पुस्तक श्रेष्ठ और बहुमूल्य उपहार है।
अच्छा, अब चलें परियों के देश में ......
इस माला की प्रत्येक पुस्तक बच्चों को जन्म-दिन, उत्सवों, त्यौहारों और अनेक अच्छे अवसरों पर उपहार देने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई है। इन्हें पढ़ने से बच्चों में पुस्तकों के प्रति रुचि जाग्रत होगी, ज्ञान और विचार-शक्ति बढ़ेगी, मानसिक स्तर ऊँचा उठेगा और साथ ही मनोरंजन भी होगा।
इन पुस्तकों को पढ़ने में बच्चे नानी-दादी की कहानियों की तरह रस लेंगे। अनेक रंग-बिरंगे चित्र, बढ़िया छपाई, सरल भाषा, मजबूत जिल्द और रोचक कहानियाँ इन पुस्तकों की पहली विशेषता है। ये लुभावनी, मनभावनी रोचक और ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें बच्चों को सहज ही आकर्षित करती हैं।
इस पुस्तक में परियों की कहानियाँ दी गई हैं। परियों का देश मीठी कल्पनाओं से भरा-पूरा होता है। हर बच्चा उस देश में जाने के सपने देखता है। और परियों की रानी से प्यारी-प्यारी बातें करता है। उसी देश की ये चुनी हुई कहानियाँ हैं। बहुत-कुछ अलौकिक होते हुए भी ये मानव-मन की सूझ-बूझ और कोमल भावनाओं को अपने में संजोए हैं। ये कहानियाँ गुदगुदाती हैं, हँसाती हैं और सोचने के लिए भी बाध्य करती हैं। सरल, सरस भाषा शैली में दुरंगे चित्रों के साथ यह पुस्तक श्रेष्ठ और बहुमूल्य उपहार है।
अच्छा, अब चलें परियों के देश में ......
राजा का सपना
बहुत पुराने समय की बात है। एक महाराजा थे। महाराजा के पाँच पुत्र थे।
बड़े चार पुत्र जितने आलसी और आराम-तलब थे। सबसे छोटा राजकुमार उतना ही
साहसी, निर्भीक तथा फुर्तीला था।
एक बार महाराजा का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। उन्हें कोई अजीब-सा रोग हो गया। देश-विदेश के कई वैद्यों-हकीमों से इलाज करवाए गए पर सब निष्फल रहे। राजा बिचारा सब ओर से निराश हो गया, अन्त में उसने भगवान से प्रार्थना की कि ‘‘हे भगवान, जिस प्रकार भी हो मुझको इस रोग से छुड़ा दो यह मेरी जान ही ले लो।’’ और उस दिन मानों भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली। जब राजा रात को विश्राम कर रहे थे तो, उन्होंने अर्धनिद्रावस्था में एक स्वप्न देखा। उन्होंने अपने सम्मुख सुन्दर स्त्री को खड़ा देखा। वह स्त्री उनसे कह रही थी-‘‘महाराज मेरे पीछे चले आइए।’’ महाराज उस स्त्री के पीछे चल पड़े। वह स्त्री उनको एक अद्भुद चाँदी के खेत में ले गई। उस खेत के मध्य में एक चमचमाता हुआ अत्यन्त सुंदर सोने का वृक्ष खड़ा था और उस सोने के वृक्ष में एक हीरे का फल लगा हुआ था। वह स्त्री महाराज से बोली- ‘‘महाराज, यह हीरे का फल जो आप खा लेंगे तो आपका यह रोग दूर हो जावेगा।’’
इसके बाद एक जोर का धमाका हुआ और महाराज की नींद खुल गई। सुबह होने पर महाराज ने अपने राज्य के सभी सभासदों और अपने पुत्रों को बुलाया। इसके बाद उन्होंने अपने सपने का सविस्तार वर्णन सुनाया और फिर अपने पाँचों पुत्रों से बोले बोले- ‘‘क्या मैं अपने किसी पुत्र से यह आशा कर सकता हूँ कि वह मेरे लिए उस फल को जो कि एक सोने के पेड़ में लगा हुआ है, मेरी बीमारी को दूर करने के लिए ला सकेगा ?’’
राजकुमार एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। सबसे छोटे राजकुमार ने कहा-‘‘अवश्य।’’ राजा ने आगे कहा-‘‘जो राजकुमार इस कार्य को करने का बीड़ा उठाएगा उसको मैं पर्याप्त सेना और धन भी दूँगा।’’
धन का नाम सुनकर महाराज के चारों बड़े आलसी राजकुमार भी झट से बोल उठे-‘‘अवश्य महाराज, हम अवश्य उस हीरे के फल को लेने के लिए जाएँगे।’’
महाराज ने अपने बड़े राजकुमार को बहुत-सा धन और सोना देते हुए कहा-‘‘उक्त फल को लेकर ही लौटना।’’
राजकुमार ने कहा-‘‘निश्चित महाराज मैंने सुन रखा है कि उत्तर देश में ऐसा ही वृक्ष है जिसमें हीरे के फल लगे हुए है।’’ और वह चला गया उस अद्भुद फल की खोज में। महाराज ने उसके जाने पर सशंकित होकर कहा-‘‘यदि यह राजकुमार उक्त फल को न ला सका तो ?’’
तीन अन्य छोटे राजकुमार इस अवसर की ताक में थे, झट से बोल पड़े-‘‘महाराज हम भी उस फल को लेने जाएँगे।’’
राजा ने दूसरे राजकुमार को धन आदि देते हुए कहा-‘‘राजकुमार, तुम जाओ और सफलता प्राप्त करो।’’
तब दूसरे राजकुमार ने कहा-‘‘अवश्य मैं उस फल को लाऊँगा। मेरी माँ ने मुझसे कहा है कि दक्षिण में एक ऐसा ही फल है।’’
दूसरे राजकुमार के विदा होने पर तीसरे व चौथे राजकुमारों ने कहा-‘‘भगवान, अब हमको अवसर दिया जाए ? यदि ये दोनों राजकुमार फल को न ला सके तो हम अवश्य ले आएँगे।।’’
महाराज ने तीसरे राजकुमार को भी खूब धनराशि और सेना देकर विदा कर दिया। तीसरा राजकुमार उदयाचल की ओर चला। इसी प्रकार चौथा राजकुमार भी खूब धनराशि लेकर अस्ताचल की ओर चल पड़ा।
अपने चारों बड़े पुत्रों के चले जाने पर महाराज का मन संशय से भर उठा। वे फिर कहने लगे-‘‘यदि इन चारों में से कोई भी उस फल को न ला सका तो ?’’
तब पाँचवें साहसी पुत्र ने उत्तर दिया -‘‘महाराज, यद्यपि मुझको इस वृक्ष का कुछ भी पता नहीं, न मुझे इस बात का ही भरोसा है कि मैं उस फल को ले आउँगा। यद्यपि चारों दिशाएँ घिर गई हैं। यथापि आपकी आज्ञा के सम्मुख मैं भी मस्तक नवाता हूँ और उस हीरे के फल को प्राण-प्रण से लाने का वादा करता हूँ।’’
महाराज ने उत्तर दिया-‘‘अवश्य जाओ बेटा ! राज-कोष व राज-सेना में तुम्हारी सहायता के लिए अभी बहुत सामग्री शेष है।’’
राजकुमार ने कहा सफलता प्राप्त करने के लिए मैं सेना व धन को बहुत आवश्यक नहीं समझता। धन होने पर मनुष्य कठिन परिश्रम नहीं कर सकता। मुझे आज्ञा दीजिए मैं अकेला ही जाऊँगा और इसके बाद अपना धनुष-बाण सँभाल, घोड़े पर सवार हो पाँचवाँ राजकुमार भी चल दिया।
प्रथम राजकुमार सेना व धन लेकर गर्व से फूलता उत्तर दिशा की ओर चला। वह फल की कुछ भी खोज न करके सारा धन ऐशो-आराम से खर्च करने लगा। जब उत्तर की ओर बहुत आगे जाने पर चढ़ाई और ठण्ड बढ़ने लगी तो वह आलसी राजकुमार घबरा कर लौट पड़ा। इधर दूसरा राजकुमार भी उसी प्रकार धन बरबाद करता हुआ बढ़ चला और जब रुपया खत्म हो गया तथा दक्षिण की ओर गर्मी बढ़ने लगी तो वह भी घबराकर लौट आया।
इसी प्रकार पहले और दूसरे राजकुमार की भाँति तीसरा व चौथा भी अपना सारा धन नष्ट कर अन्त में ‘‘सपना भी कहीं सच होता है’’, कहते हुए लौट पड़े।
इधर पाँचवा साहसी राजकुमार उस अज्ञात फल की प्राप्ति के लिए आगे को बढ़ता चला गया। उसके पास न तो सेना थी और न ऐशो आराम में खर्च करने को धन ही। उसके पास तो केवल धनुष-बाण था और थी ‘हीरे के फल’ की प्राप्त करने की तीव्र इच्छा। उसने राजभवन से निकलते ही सोचा कि किधर जाए ? अन्त में उसने एक राह पकड़ ली और उसी पर चलता गया। चलते–चलते वह अनेक वनों व पर्वतों को पार करता हुआ हिमालय पर पहुँचा। फिर मार्ग की कठिनाई में उसे घोड़े को भी छोड़ देना प़ड़ा। हिमालय की शुक्र-कान्ति ने उसके मन को हर लिया। उसने निश्चय किया कि वह अवश्य ही उस फल को प्राप्त कर लेगा। वह उस दिशा की ओर आगे बढ़ता ही गया। जब भूख लगती तो हिम खाता और नींद लगती तो हिम–शैय्या के ऊपर सोकर उस सपने को सपना देखा करता।
हिमालय की उन चोटियों में कुछ साधु-महात्माओं समाधिस्थ हो ध्यान किया करते थे। एक दिन जब राजकुमार हिम वर्वत पर चढ़ रहा था तो उसने देखा कि एक महात्मा समाधि लगाए बैठे हैं।
एक बार महाराजा का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। उन्हें कोई अजीब-सा रोग हो गया। देश-विदेश के कई वैद्यों-हकीमों से इलाज करवाए गए पर सब निष्फल रहे। राजा बिचारा सब ओर से निराश हो गया, अन्त में उसने भगवान से प्रार्थना की कि ‘‘हे भगवान, जिस प्रकार भी हो मुझको इस रोग से छुड़ा दो यह मेरी जान ही ले लो।’’ और उस दिन मानों भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली। जब राजा रात को विश्राम कर रहे थे तो, उन्होंने अर्धनिद्रावस्था में एक स्वप्न देखा। उन्होंने अपने सम्मुख सुन्दर स्त्री को खड़ा देखा। वह स्त्री उनसे कह रही थी-‘‘महाराज मेरे पीछे चले आइए।’’ महाराज उस स्त्री के पीछे चल पड़े। वह स्त्री उनको एक अद्भुद चाँदी के खेत में ले गई। उस खेत के मध्य में एक चमचमाता हुआ अत्यन्त सुंदर सोने का वृक्ष खड़ा था और उस सोने के वृक्ष में एक हीरे का फल लगा हुआ था। वह स्त्री महाराज से बोली- ‘‘महाराज, यह हीरे का फल जो आप खा लेंगे तो आपका यह रोग दूर हो जावेगा।’’
इसके बाद एक जोर का धमाका हुआ और महाराज की नींद खुल गई। सुबह होने पर महाराज ने अपने राज्य के सभी सभासदों और अपने पुत्रों को बुलाया। इसके बाद उन्होंने अपने सपने का सविस्तार वर्णन सुनाया और फिर अपने पाँचों पुत्रों से बोले बोले- ‘‘क्या मैं अपने किसी पुत्र से यह आशा कर सकता हूँ कि वह मेरे लिए उस फल को जो कि एक सोने के पेड़ में लगा हुआ है, मेरी बीमारी को दूर करने के लिए ला सकेगा ?’’
राजकुमार एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। सबसे छोटे राजकुमार ने कहा-‘‘अवश्य।’’ राजा ने आगे कहा-‘‘जो राजकुमार इस कार्य को करने का बीड़ा उठाएगा उसको मैं पर्याप्त सेना और धन भी दूँगा।’’
धन का नाम सुनकर महाराज के चारों बड़े आलसी राजकुमार भी झट से बोल उठे-‘‘अवश्य महाराज, हम अवश्य उस हीरे के फल को लेने के लिए जाएँगे।’’
महाराज ने अपने बड़े राजकुमार को बहुत-सा धन और सोना देते हुए कहा-‘‘उक्त फल को लेकर ही लौटना।’’
राजकुमार ने कहा-‘‘निश्चित महाराज मैंने सुन रखा है कि उत्तर देश में ऐसा ही वृक्ष है जिसमें हीरे के फल लगे हुए है।’’ और वह चला गया उस अद्भुद फल की खोज में। महाराज ने उसके जाने पर सशंकित होकर कहा-‘‘यदि यह राजकुमार उक्त फल को न ला सका तो ?’’
तीन अन्य छोटे राजकुमार इस अवसर की ताक में थे, झट से बोल पड़े-‘‘महाराज हम भी उस फल को लेने जाएँगे।’’
राजा ने दूसरे राजकुमार को धन आदि देते हुए कहा-‘‘राजकुमार, तुम जाओ और सफलता प्राप्त करो।’’
तब दूसरे राजकुमार ने कहा-‘‘अवश्य मैं उस फल को लाऊँगा। मेरी माँ ने मुझसे कहा है कि दक्षिण में एक ऐसा ही फल है।’’
दूसरे राजकुमार के विदा होने पर तीसरे व चौथे राजकुमारों ने कहा-‘‘भगवान, अब हमको अवसर दिया जाए ? यदि ये दोनों राजकुमार फल को न ला सके तो हम अवश्य ले आएँगे।।’’
महाराज ने तीसरे राजकुमार को भी खूब धनराशि और सेना देकर विदा कर दिया। तीसरा राजकुमार उदयाचल की ओर चला। इसी प्रकार चौथा राजकुमार भी खूब धनराशि लेकर अस्ताचल की ओर चल पड़ा।
अपने चारों बड़े पुत्रों के चले जाने पर महाराज का मन संशय से भर उठा। वे फिर कहने लगे-‘‘यदि इन चारों में से कोई भी उस फल को न ला सका तो ?’’
तब पाँचवें साहसी पुत्र ने उत्तर दिया -‘‘महाराज, यद्यपि मुझको इस वृक्ष का कुछ भी पता नहीं, न मुझे इस बात का ही भरोसा है कि मैं उस फल को ले आउँगा। यद्यपि चारों दिशाएँ घिर गई हैं। यथापि आपकी आज्ञा के सम्मुख मैं भी मस्तक नवाता हूँ और उस हीरे के फल को प्राण-प्रण से लाने का वादा करता हूँ।’’
महाराज ने उत्तर दिया-‘‘अवश्य जाओ बेटा ! राज-कोष व राज-सेना में तुम्हारी सहायता के लिए अभी बहुत सामग्री शेष है।’’
राजकुमार ने कहा सफलता प्राप्त करने के लिए मैं सेना व धन को बहुत आवश्यक नहीं समझता। धन होने पर मनुष्य कठिन परिश्रम नहीं कर सकता। मुझे आज्ञा दीजिए मैं अकेला ही जाऊँगा और इसके बाद अपना धनुष-बाण सँभाल, घोड़े पर सवार हो पाँचवाँ राजकुमार भी चल दिया।
प्रथम राजकुमार सेना व धन लेकर गर्व से फूलता उत्तर दिशा की ओर चला। वह फल की कुछ भी खोज न करके सारा धन ऐशो-आराम से खर्च करने लगा। जब उत्तर की ओर बहुत आगे जाने पर चढ़ाई और ठण्ड बढ़ने लगी तो वह आलसी राजकुमार घबरा कर लौट पड़ा। इधर दूसरा राजकुमार भी उसी प्रकार धन बरबाद करता हुआ बढ़ चला और जब रुपया खत्म हो गया तथा दक्षिण की ओर गर्मी बढ़ने लगी तो वह भी घबराकर लौट आया।
इसी प्रकार पहले और दूसरे राजकुमार की भाँति तीसरा व चौथा भी अपना सारा धन नष्ट कर अन्त में ‘‘सपना भी कहीं सच होता है’’, कहते हुए लौट पड़े।
इधर पाँचवा साहसी राजकुमार उस अज्ञात फल की प्राप्ति के लिए आगे को बढ़ता चला गया। उसके पास न तो सेना थी और न ऐशो आराम में खर्च करने को धन ही। उसके पास तो केवल धनुष-बाण था और थी ‘हीरे के फल’ की प्राप्त करने की तीव्र इच्छा। उसने राजभवन से निकलते ही सोचा कि किधर जाए ? अन्त में उसने एक राह पकड़ ली और उसी पर चलता गया। चलते–चलते वह अनेक वनों व पर्वतों को पार करता हुआ हिमालय पर पहुँचा। फिर मार्ग की कठिनाई में उसे घोड़े को भी छोड़ देना प़ड़ा। हिमालय की शुक्र-कान्ति ने उसके मन को हर लिया। उसने निश्चय किया कि वह अवश्य ही उस फल को प्राप्त कर लेगा। वह उस दिशा की ओर आगे बढ़ता ही गया। जब भूख लगती तो हिम खाता और नींद लगती तो हिम–शैय्या के ऊपर सोकर उस सपने को सपना देखा करता।
हिमालय की उन चोटियों में कुछ साधु-महात्माओं समाधिस्थ हो ध्यान किया करते थे। एक दिन जब राजकुमार हिम वर्वत पर चढ़ रहा था तो उसने देखा कि एक महात्मा समाधि लगाए बैठे हैं।
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लोगों की राय
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