विविध >> शुभा शुभ जानने की तीस सरल विधियाँ शुभा शुभ जानने की तीस सरल विधियाँउमेश पाण्डे
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शुभाशुभ जानने की एक से बढ़कर एक सरल विधियाँ.......
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दो शब्द
अति प्राचीन काल से मानव जाति में अपने भविष्य को जानने व समझने की
जिज्ञासा रही है। ये बात और है कि कुछ प्रतिशत व्यक्ति इसके प्रति उदासीन
रहते हैं। मानव की इसी जिज्ञासा का हाल ज्योतिष ग्रंथों के रूप में प्रकट
हुआ। आज सैकड़ों वर्षों से भारत ही नहीं विश्व के कोने-कोने में ज्योतिष
ग्रंथों का महत्व बरकरार है। हर स्थान पर वहाँ के शोधकर्ताओं ने इस विद्या
को नये आयाम दिये हैं। फिर भी यदि विश्व के तमाम ज्योतिष ग्रंथों पर हम
नजर डालें तो हम पाते हैं कि इस
‘‘विज्ञान’’ में
जितना उन्नत भारत है और प्राचीन काल में हो रहा है उतना विश्व का कोई अन्य
राष्ट्र नहीं है। भारतीय ज्योतिष ग्रंथों में अनेकानेक सरल विधियों का
बड़ा ही सटीक वर्णन है एवं जिनके माध्यम से ज्योतिष को न जानने समझने वाला
व्यक्ति भी किसी प्रश्न का उत्तर बड़ी ही आसानी से मात्र साधारण गणनाएँ
करके जान सकता है।
ज्योतिष कार्य एवं शोध में सतत् संलग्न रहते हुए मैंने पाया कि अनेक व्यक्ति कई बार ‘‘छोटे-छोटे’’ प्रश्नों का (एक ज्योतिष की दृष्टि में वे प्रश्न छोटे-छोटे इसलिये हैं क्योंकि उनकी गणनाएँ सरल हैं) उत्तर प्राप्त करने हेतु परेशान होते रहते हैं। इस हेतु वे समय एवं धन दोनों ही का नुकसान उठाते हैं। उदाहरणार्थ कोई व्यक्ति ‘‘संतान होगी कि नहीं ?’’ अथवा ‘‘मेरा चोरी गया धन मिलेगा कि नहीं ?’’ यह जानना चाहता है तो इसके लिये उसे पहले एक अच्छा ज्योतिषी तलाशना होगा। तदुपरान्त अल्पाधिक व्यय करने के पश्चात् वह अपने प्रश्न का उत्तर पा सकेगा। यही नहीं ज्योतिष शास्त्र में ऐसी और भी विधियाँ हैं जिनके द्वारा आनेवाले समय या दिन शुभ अथवा अशुभ किस प्रकार का है यह भी जाना जा सकता है, अस्तु।
इस पुस्तक में ऐसी ही सरल एवं प्रभावी विधियों का वर्णन किया गया है।
साथ ही यह भी ध्यान रखा गया है कि इन विधियों का उपयोग करने वाला चाहे ज्योतिष शास्त्र के सिद्धान्तों को जानता हो या नहीं-ये उसके लिये समान रूप से उपयोगी रहें। कहने का तात्पर्य यह है कि ज्योतिष के सिद्धांतों से पूर्णत: अनभिज्ञ व्यक्ति भी इस पुस्तक को पढ़कर अपने और किसी भी अन्य व्यक्ति के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर या शुभाशुभ को जान कर सकता है।
इस पुस्तक में अन्तिम विधि के रूप में मैंने ‘‘जैव तरंग विधि’’ (Biorythm Method) का वर्णन किया है। यह विधि यूरोपीय देशों में कुछ दशक पूर्व से काफी प्रचलित हुई है और इससे प्राप्त होने वाले परिणाम भी आश्चर्यजनक रहे हैं। इस विधि को अत्यन्त ही सरल भाषा में मैंने पाठकों के लिये पहली बार उद्धत किया है। आज तक भारतीय भाषा में इस विधि के संबंध में कोई पुस्तक मेरे देखने में नहीं आई है। आशा है इस विधि के सिद्धान्त और फल आपके लिये मार्गदर्शक साबित होंगे। चूँकि इस विधि का वर्णन प्रथम बार ही किया जा रहा है इसलिए अन्य विधाओं की तुलना में उसे अधिक विस्तार भी दिया गया है और जो आवश्यक भी था। इस विषय को किसी स्वतन्त्र पुस्तक के रूप में यदि ईश्वर की कृपा रही तो और विस्तृत रूप से प्रस्तुत करूँगा।
अंत में, मैं ‘‘भगवती पॉकेट बुक्स’’ के श्री राजीव जी अग्रवाल का हृदय से आभारी हूँ जिनके सहयोग के बगैर इस पुस्तक का आपके समक्ष आना संभव नहीं था। मैं अपने उन सभी सहयोगियों का भी हृदय से आभारी हूँ विशेष रूप से श्री रवि गंगवाल, श्री ललित गोखरू, डॉ. प्रफुल्ल दवे, डॉ. हौसिला प्रसाद पाण्डेय एवं डॉ. वसंत कुमार जी जोशी का, जिनका परोक्ष या अपरोक्ष सहयोग इस पुस्तक के रचनाकाल में मुझे प्राप्त हुआ। मैं, उन ग्रंथकारों का भी हृदय से आभारी हूँ जिनके ग्रंथों के कुछ अंशों को मैंने इस पुस्तक में आधार बनाया है। पुस्तक के संबंध में आपके सुझाव अथवा आलोचनाओं का मैं हृदय से स्वागत करूँगा।
धन्यवाद।
ज्योतिष कार्य एवं शोध में सतत् संलग्न रहते हुए मैंने पाया कि अनेक व्यक्ति कई बार ‘‘छोटे-छोटे’’ प्रश्नों का (एक ज्योतिष की दृष्टि में वे प्रश्न छोटे-छोटे इसलिये हैं क्योंकि उनकी गणनाएँ सरल हैं) उत्तर प्राप्त करने हेतु परेशान होते रहते हैं। इस हेतु वे समय एवं धन दोनों ही का नुकसान उठाते हैं। उदाहरणार्थ कोई व्यक्ति ‘‘संतान होगी कि नहीं ?’’ अथवा ‘‘मेरा चोरी गया धन मिलेगा कि नहीं ?’’ यह जानना चाहता है तो इसके लिये उसे पहले एक अच्छा ज्योतिषी तलाशना होगा। तदुपरान्त अल्पाधिक व्यय करने के पश्चात् वह अपने प्रश्न का उत्तर पा सकेगा। यही नहीं ज्योतिष शास्त्र में ऐसी और भी विधियाँ हैं जिनके द्वारा आनेवाले समय या दिन शुभ अथवा अशुभ किस प्रकार का है यह भी जाना जा सकता है, अस्तु।
इस पुस्तक में ऐसी ही सरल एवं प्रभावी विधियों का वर्णन किया गया है।
साथ ही यह भी ध्यान रखा गया है कि इन विधियों का उपयोग करने वाला चाहे ज्योतिष शास्त्र के सिद्धान्तों को जानता हो या नहीं-ये उसके लिये समान रूप से उपयोगी रहें। कहने का तात्पर्य यह है कि ज्योतिष के सिद्धांतों से पूर्णत: अनभिज्ञ व्यक्ति भी इस पुस्तक को पढ़कर अपने और किसी भी अन्य व्यक्ति के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर या शुभाशुभ को जान कर सकता है।
इस पुस्तक में अन्तिम विधि के रूप में मैंने ‘‘जैव तरंग विधि’’ (Biorythm Method) का वर्णन किया है। यह विधि यूरोपीय देशों में कुछ दशक पूर्व से काफी प्रचलित हुई है और इससे प्राप्त होने वाले परिणाम भी आश्चर्यजनक रहे हैं। इस विधि को अत्यन्त ही सरल भाषा में मैंने पाठकों के लिये पहली बार उद्धत किया है। आज तक भारतीय भाषा में इस विधि के संबंध में कोई पुस्तक मेरे देखने में नहीं आई है। आशा है इस विधि के सिद्धान्त और फल आपके लिये मार्गदर्शक साबित होंगे। चूँकि इस विधि का वर्णन प्रथम बार ही किया जा रहा है इसलिए अन्य विधाओं की तुलना में उसे अधिक विस्तार भी दिया गया है और जो आवश्यक भी था। इस विषय को किसी स्वतन्त्र पुस्तक के रूप में यदि ईश्वर की कृपा रही तो और विस्तृत रूप से प्रस्तुत करूँगा।
अंत में, मैं ‘‘भगवती पॉकेट बुक्स’’ के श्री राजीव जी अग्रवाल का हृदय से आभारी हूँ जिनके सहयोग के बगैर इस पुस्तक का आपके समक्ष आना संभव नहीं था। मैं अपने उन सभी सहयोगियों का भी हृदय से आभारी हूँ विशेष रूप से श्री रवि गंगवाल, श्री ललित गोखरू, डॉ. प्रफुल्ल दवे, डॉ. हौसिला प्रसाद पाण्डेय एवं डॉ. वसंत कुमार जी जोशी का, जिनका परोक्ष या अपरोक्ष सहयोग इस पुस्तक के रचनाकाल में मुझे प्राप्त हुआ। मैं, उन ग्रंथकारों का भी हृदय से आभारी हूँ जिनके ग्रंथों के कुछ अंशों को मैंने इस पुस्तक में आधार बनाया है। पुस्तक के संबंध में आपके सुझाव अथवा आलोचनाओं का मैं हृदय से स्वागत करूँगा।
धन्यवाद।
उमेश पाण्डे
1
कच्छप-विधि
इस विधि के अंतर्गत पहले एक कछुए की आकृति बनाई जाती है। तदुपरान्त
प्रश्नकर्ता का जो जन्म नक्षत्र होता है उसे कछुए की पीठ पर स्थापित किया
जाता है। उसके आगे के 2 नक्षत्र भी पीठ पर ही रखे जाते हैं। तदुपरान्त
क्रमवार 3-3 नक्षत्र क्रमश: उसके पेट, नासा, पूँछ, नेत्र, अग्रबाहु, मुख,
पिच्छबाहु तथा गर्दन पर रखें। विभिन्न नक्षत्रों के आद्याक्षर निम्नानुसार
हैं-
अश्विनी : चू, चे, चो, ला
भरणी : ली, लू, ले, लो
कृत्तिका : अ, इ, उ, ए
रोहिणी : ओ, वा, वी, वू
मृगशिर : वे, वो, क, की
आर्द्रा : कु, घ, ङ, छ
पुनर्वसु : के, को, हा, ही
पुष्य : हू, हे, हो, डा
अश्लेषा : डी, डू, डे, डो
मघा : मा, मी, मू, मे
पूर्वाफाल्गुनी : मो, टा, टी, टू
उत्तराफाल्गुनी :टे, टो, पा, पी
हस्त : पू, प, ण, ठ
चित्रा : पे, पो, रा, री
स्वाति : रू, रे, रो, ता
विशाखा : ती, तू, ते, तो
अनुराधा : ना, नी, नू, ने
ज्येष्ठा : नो, या, यी, यू
मूल : ये, यो, भा, भी
पूर्वाषाढ़ा : भू, धा, फा, ढ़ा
उत्तराषाढ़ा : भे, भो, जा, जी
श्रवण : खी, खू, खे, खो
धनिष्ठा : गा, गी, गू, गे
शततारका : गो, सा, सी, सू
पूर्वाभाद्रपद : से, सो, दा, दी
उत्तराभाद्रपद : दू, थ, झ, त्र
रेवती : दे, दो, चा, ची
उदाहरण के तौर पर माना कि प्रश्नकर्ता का नाम ‘‘महेश कुमार’’ है। तथा जिस समय वह प्रश्न करता है उस समय का चंद्र नक्षत्र अश्विनी है। तब उपरोक्त विधि के अनुसार पहले कच्छप आकृति हम बनायेंगे (अथवा पुस्तक में दिये गये चित्र को ही ले लें) अब, प्रश्नकर्ता का जन्म नक्षत्र हुआ ‘‘मघा’’ (मा या म से नाम प्रारंभ होने के कारण)। अत: हम मघा तथा उसके बाद के 2 नक्षत्र अर्थात् पूर्वा फाल्गुनी तथा उत्तरा फाल्गुनी ये 3 कछुए की पीठ पर, उसके बाद के 3 अर्थात् हस्त, चित्रा तथा स्वाति उसके पेट पर, और फिर बाद के तीन अर्थात् विशाखा, अनुराधा एवं ज्येष्ठा, उसकी नासा पर तथा इसी प्रकार के विभिन्न नक्षत्रों को विधि अनुसार कच्छप आकृति पर प्रत्यारोपित करेंगे।
अब हम चित्र में ये देखेंगे कि प्रश्नकर्ता के प्रश्नकाल के समय का चन्द्र नक्षत्र कच्छप आकृति में कहाँ गिरा ? उपरोक्त उदाहरण के उक्त चित्र में ‘‘अश्विनी’’ नक्षत्र पूँछ पर गिरा। अन्त में अग्रानुसार फलित चित्र प्राप्त करेंगे-
(1) प्रश्नकाल का चन्द्र नक्षत्र यदि कच्छप के नासा क्षेत्र में पड़े तो कार्य होने की पूरी संभावना है अर्थात् प्रश्न का उत्तर धनात्मक है।
(2) यदि चन्द्र नक्षत्र नेत्र पर पड़े तो कार्य होगा, पर टुकड़े-टुकड़े में अथवा रुक-रुककर। अर्थात् प्रश्न का फल अर्द्ध धनात्मक जानें।
(3) यदि चन्द्र नक्षत्र पेट अथवा पूँछ अथवा ग्रीवा पर गिरे तो कार्य नहीं होगा। अर्थात् इस स्थिति में प्रश्न का फल ऋणात्मक जानें।
(4) अग्रबाहु पर चन्द्र नक्षत्र का पड़ना कार्य के शीघ्र होने की सूचना देता है। अर्थात् इस स्थिति में प्रश्न का फल अत्यन्त धनात्मक है।
(5) मुख तथा पिच्छबाहु पर चन्द्र नक्षत्र पड़ने से प्रश्न का उत्तर अर्द्ध धनात्मक समझें अर्थात् कार्य होने में संदेह है।
उपरोक्त उदाहरण में चन्द्र नक्षत्र का पूँछ में पड़ा होने से प्रश्न का उत्तर ऋणात्मक होगा। यह फलित प्राप्त होगा।
अश्विनी : चू, चे, चो, ला
भरणी : ली, लू, ले, लो
कृत्तिका : अ, इ, उ, ए
रोहिणी : ओ, वा, वी, वू
मृगशिर : वे, वो, क, की
आर्द्रा : कु, घ, ङ, छ
पुनर्वसु : के, को, हा, ही
पुष्य : हू, हे, हो, डा
अश्लेषा : डी, डू, डे, डो
मघा : मा, मी, मू, मे
पूर्वाफाल्गुनी : मो, टा, टी, टू
उत्तराफाल्गुनी :टे, टो, पा, पी
हस्त : पू, प, ण, ठ
चित्रा : पे, पो, रा, री
स्वाति : रू, रे, रो, ता
विशाखा : ती, तू, ते, तो
अनुराधा : ना, नी, नू, ने
ज्येष्ठा : नो, या, यी, यू
मूल : ये, यो, भा, भी
पूर्वाषाढ़ा : भू, धा, फा, ढ़ा
उत्तराषाढ़ा : भे, भो, जा, जी
श्रवण : खी, खू, खे, खो
धनिष्ठा : गा, गी, गू, गे
शततारका : गो, सा, सी, सू
पूर्वाभाद्रपद : से, सो, दा, दी
उत्तराभाद्रपद : दू, थ, झ, त्र
रेवती : दे, दो, चा, ची
उदाहरण के तौर पर माना कि प्रश्नकर्ता का नाम ‘‘महेश कुमार’’ है। तथा जिस समय वह प्रश्न करता है उस समय का चंद्र नक्षत्र अश्विनी है। तब उपरोक्त विधि के अनुसार पहले कच्छप आकृति हम बनायेंगे (अथवा पुस्तक में दिये गये चित्र को ही ले लें) अब, प्रश्नकर्ता का जन्म नक्षत्र हुआ ‘‘मघा’’ (मा या म से नाम प्रारंभ होने के कारण)। अत: हम मघा तथा उसके बाद के 2 नक्षत्र अर्थात् पूर्वा फाल्गुनी तथा उत्तरा फाल्गुनी ये 3 कछुए की पीठ पर, उसके बाद के 3 अर्थात् हस्त, चित्रा तथा स्वाति उसके पेट पर, और फिर बाद के तीन अर्थात् विशाखा, अनुराधा एवं ज्येष्ठा, उसकी नासा पर तथा इसी प्रकार के विभिन्न नक्षत्रों को विधि अनुसार कच्छप आकृति पर प्रत्यारोपित करेंगे।
अब हम चित्र में ये देखेंगे कि प्रश्नकर्ता के प्रश्नकाल के समय का चन्द्र नक्षत्र कच्छप आकृति में कहाँ गिरा ? उपरोक्त उदाहरण के उक्त चित्र में ‘‘अश्विनी’’ नक्षत्र पूँछ पर गिरा। अन्त में अग्रानुसार फलित चित्र प्राप्त करेंगे-
(1) प्रश्नकाल का चन्द्र नक्षत्र यदि कच्छप के नासा क्षेत्र में पड़े तो कार्य होने की पूरी संभावना है अर्थात् प्रश्न का उत्तर धनात्मक है।
(2) यदि चन्द्र नक्षत्र नेत्र पर पड़े तो कार्य होगा, पर टुकड़े-टुकड़े में अथवा रुक-रुककर। अर्थात् प्रश्न का फल अर्द्ध धनात्मक जानें।
(3) यदि चन्द्र नक्षत्र पेट अथवा पूँछ अथवा ग्रीवा पर गिरे तो कार्य नहीं होगा। अर्थात् इस स्थिति में प्रश्न का फल ऋणात्मक जानें।
(4) अग्रबाहु पर चन्द्र नक्षत्र का पड़ना कार्य के शीघ्र होने की सूचना देता है। अर्थात् इस स्थिति में प्रश्न का फल अत्यन्त धनात्मक है।
(5) मुख तथा पिच्छबाहु पर चन्द्र नक्षत्र पड़ने से प्रश्न का उत्तर अर्द्ध धनात्मक समझें अर्थात् कार्य होने में संदेह है।
उपरोक्त उदाहरण में चन्द्र नक्षत्र का पूँछ में पड़ा होने से प्रश्न का उत्तर ऋणात्मक होगा। यह फलित प्राप्त होगा।
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- दो शब्द
- कच्छप-विधि
- पल्ली पतन, फल कथन विधि
- वस्त्रों पर लगे दाग-धब्बों के आधार पर भविष्य संकेत
- शुभाशुभ ज्ञान चन्द्र नक्षत्र-पुरुष के द्वारा
- ताश के पत्तों से भविष्य कथन
- आँखों के वर्गों के आधार पर भविष्य कथन की विधि
- बिन्दु क्रम विधि से शुभाशुभ
- मृत्यु अरिष्ट ज्ञान-गणितीय विधि भी
- खोई हुई वस्तु मिलेगी अथवा नहीं ?
- सूर्य नक्षत्र-पुरुष द्वारा शुभाशुभ ज्ञान
- रामाज्ञा प्रश्न विधि
- शकाब्द के आधार पर विभिन्न मासों में तेजी-मंदी जानने की विधि
- श्री रामशलाका प्रश्नावली द्वारा भविष्य कथन
- ब्रह्मांक प्रश्न फलित विधि
- गर्भ प्रश्न फलित प्राप्त करने की विधि
- चक्र द्वारा तेजी-मंदी ज्ञात करना
- तेजी-मंदी ज्ञात करने की विंशोपक विधि
- शुभाशुभ ज्ञात करने की नक्षत्र बेध-विधि
- संक्रान्ति गणना के आधार पर तेजी-मंदी ज्ञात करना
- दिन कैसा बीतेगा तथा प्रश्नों के उत्तर ज्ञात करने हेतु त्रिनाड़ी पद्धति
- अंग स्फुरण, शुभाशुभ एवं गणना
- शनि नक्षत्र-पुरुष द्वारा शुभाशुभ ज्ञात करना
- राशि स्वर फल कथन विधि
- यात्रा शुभाशुभ ज्ञात करने हेतु गणना
- कार्य सिद्धि-असिद्धि हेतु प्रश्न विधि
- प्रश्न फलित
- वर्षा ज्ञान की सरल विधियाँ
- किसी भी भूखंड पर भवन निर्माण की अनुकूलता
- राशियाँ
- जीवन तरंग पद्धति......प्रमाण खोज
- जीवन तरंग (Biorythm) चक्रों पर बिन्दु प्राप्त करना
- विभिन्न चक्रों को बनाने की विधि
- विभिन्न चक्रों पर विभिन्न स्थितियों के मूल फलित
- दैहिक, भावनात्मक एवं बौद्धिक चक्रों पर स्थितियों के आधार पर फलित
- विभिन्न राशियों की प्रकृतियाँ तथा उनके जातकों के लिए सावधान रहने वाले दिवस
- एक विशिष्ट तेरहवीं राशि “अरेक्ने" (Arachne) या "मकड़ी"
- संदर्भ ग्रंथ
अनुक्रम
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लोगों की राय
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