हास्य-व्यंग्य >> हंसो और मर जाओ हंसो और मर जाओअशोक चक्रधर
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हास्य व्यंग्य कविताएँ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हंसो, तो
बच्चों जैसी हंसी,
हंसो, तो
सच्चों जैसी हंसी।
इतना हंसो
कि तर जाओ,
हंसो
और मर जाओ।
हँसो और मर जाओ
बच्चों जैसी हंसी,
हंसो, तो
सच्चों जैसी हंसी।
इतना हंसो
कि तर जाओ,
हंसो
और मर जाओ।
हँसो और मर जाओ
चौथाई सदी पहले
लगभग रुदन-दिनों में
जिनपर
हम
हंसते-हंसते मर गए
उन
प्यारी बागेश्री को
समर-पति की ओर
स-समर्पित
लगभग रुदन-दिनों में
जिनपर
हम
हंसते-हंसते मर गए
उन
प्यारी बागेश्री को
समर-पति की ओर
स-समर्पित
श्वेत या श्याम
छटांक का ग्राम
धूम या धड़ाम
अविराम या जाम,
जैसा भी है
ये था उन दिनों का-
काम
छटांक का ग्राम
धूम या धड़ाम
अविराम या जाम,
जैसा भी है
ये था उन दिनों का-
काम
ओज़ोन लेयर
पति-पत्नी में
बिलकुल नहीं बनती है,
बिना बात ठनती है।
खिड़की से निकलती हैं
आरोपों की बदबूदार हवाएं,
नन्हें पौधों जैसे बच्चे
खाद-पानी का इंतजाम
किससे करवाएं ?
होते रहते हैं
शिकवे-शिकायतों के
कंटीले हमले,
सूख गए हैं
मधुर संबंधों के गमले।
नाली से निकलता है
घरेलू पचड़ों के कचरों का
मैला पानी,
नीरस हो गई है ज़िन्दगानी।
संबंध
लगभग विच्छेद हो गया है,
घर की ओज़ोन लेयर में
छेद हो गया है।
सब्ज़ी मंडी से
ताज़ी सब्ज़ी लाये गुप्ता जी
तो खन्ना जी मुरझा गए,
पांडे जी
कृपलानी के फ़्रिज को
आंखों ही आंखों में खा गए।
ज़ाफरी के
नए-नए सोफ़ो को
काट गई
कपूर साहब की
नज़रों की कुल्हाड़ी,
सुलगती ही रहती है
मिसेज लोढ़ा की
ईर्ष्या की काठ की हांडी।
सोने का सैट दिखाया
सरला आंटी ने
तो कट के रह गईं
मिसेज़ बतरा,
उनकी इच्छाओं की क्यारी में
नहीं बरसता है
ऊपर की कमाई के पानी का
एक भी क़तरा।
मेहता जी का
जब से प्रमोशन हुआ है,
शर्मा जी के अंदर कई बार
ज़बर्दस्त भूक्षरण हुआ है।
बीहड़ हो गई है आपस की राम राम,
बंजर हो गई है
नमस्ते दुआ सलाम।
बस ठूंठ जैसा
एक मक़सद-विहीन सवाल है—
‘क्या हाल है ?’
जवाब को भी जैसे
अकाल ने छुआ है
मुर्दनी के अंदाज़ में—
‘आपकी दुआ है।’
अधिकांश लोग नहीं करते हैं
चंदा देकर
एसोसिएशन की सिंचाई,
सैक्रेटरी
प्रैसीडेंट करते रहते हैं
एक दूसरे की खिंचाई।
खुल्लमखुल्ला मतभेद हो गया है,
कॉलोनी की ओज़ोन लेयर में
छेद हो गया है।
बरगद जैसे बूढ़े बाबा को
मार दिया बनवारी ने
बुढ़वा मंगल के दंगल में,
रमतू भटकता है
काले कोटों वाली कचहरी के
जले हुए जंगल में।
अभावों की धूल
और अशिक्षा के धुएं से
काले पड़ गए हैं
गांव के कपोत,
सूख गए हैं
चौधरियों की उदारता के
सारे जल स्रोत।
उद्योग चाट गए हैं
छोटे-मोटे धंधे,
कमज़ोर हो गए हैं
बैलों के कंधे।
छुट्टल घूमता है
सरपंच का बिलौटा,
रामदयाल
मानसून की तरह
शहर से नहीं लौटा।
सुजलां सुफलां
शस्य श्यामलामं धरती जैसी
अल्हड़ थी श्यामा।
सब कुछ हो गया
लेकिन न शोर हुआ
न हंगामा।
दिल दरक गया है
लाखों हैक्टेअर
परती धरती की तरह
श्यामा का चेहरा
सफ़ेद हो गया है,
बिलकुल नहीं बनती है,
बिना बात ठनती है।
खिड़की से निकलती हैं
आरोपों की बदबूदार हवाएं,
नन्हें पौधों जैसे बच्चे
खाद-पानी का इंतजाम
किससे करवाएं ?
होते रहते हैं
शिकवे-शिकायतों के
कंटीले हमले,
सूख गए हैं
मधुर संबंधों के गमले।
नाली से निकलता है
घरेलू पचड़ों के कचरों का
मैला पानी,
नीरस हो गई है ज़िन्दगानी।
संबंध
लगभग विच्छेद हो गया है,
घर की ओज़ोन लेयर में
छेद हो गया है।
सब्ज़ी मंडी से
ताज़ी सब्ज़ी लाये गुप्ता जी
तो खन्ना जी मुरझा गए,
पांडे जी
कृपलानी के फ़्रिज को
आंखों ही आंखों में खा गए।
ज़ाफरी के
नए-नए सोफ़ो को
काट गई
कपूर साहब की
नज़रों की कुल्हाड़ी,
सुलगती ही रहती है
मिसेज लोढ़ा की
ईर्ष्या की काठ की हांडी।
सोने का सैट दिखाया
सरला आंटी ने
तो कट के रह गईं
मिसेज़ बतरा,
उनकी इच्छाओं की क्यारी में
नहीं बरसता है
ऊपर की कमाई के पानी का
एक भी क़तरा।
मेहता जी का
जब से प्रमोशन हुआ है,
शर्मा जी के अंदर कई बार
ज़बर्दस्त भूक्षरण हुआ है।
बीहड़ हो गई है आपस की राम राम,
बंजर हो गई है
नमस्ते दुआ सलाम।
बस ठूंठ जैसा
एक मक़सद-विहीन सवाल है—
‘क्या हाल है ?’
जवाब को भी जैसे
अकाल ने छुआ है
मुर्दनी के अंदाज़ में—
‘आपकी दुआ है।’
अधिकांश लोग नहीं करते हैं
चंदा देकर
एसोसिएशन की सिंचाई,
सैक्रेटरी
प्रैसीडेंट करते रहते हैं
एक दूसरे की खिंचाई।
खुल्लमखुल्ला मतभेद हो गया है,
कॉलोनी की ओज़ोन लेयर में
छेद हो गया है।
बरगद जैसे बूढ़े बाबा को
मार दिया बनवारी ने
बुढ़वा मंगल के दंगल में,
रमतू भटकता है
काले कोटों वाली कचहरी के
जले हुए जंगल में।
अभावों की धूल
और अशिक्षा के धुएं से
काले पड़ गए हैं
गांव के कपोत,
सूख गए हैं
चौधरियों की उदारता के
सारे जल स्रोत।
उद्योग चाट गए हैं
छोटे-मोटे धंधे,
कमज़ोर हो गए हैं
बैलों के कंधे।
छुट्टल घूमता है
सरपंच का बिलौटा,
रामदयाल
मानसून की तरह
शहर से नहीं लौटा।
सुजलां सुफलां
शस्य श्यामलामं धरती जैसी
अल्हड़ थी श्यामा।
सब कुछ हो गया
लेकिन न शोर हुआ
न हंगामा।
दिल दरक गया है
लाखों हैक्टेअर
परती धरती की तरह
श्यामा का चेहरा
सफ़ेद हो गया है,
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