उपन्यास >> रंगमंच रंगमंचछ्वे इन हुन
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प्रस्तुत है उपन्यास...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
कोरिया के लब्धप्रतिष्ठ रचनाकार छ्वे इन हुन की प्रतिनिधि रचना है,
रंगमंच, जिसमें फंतासी के माध्यम से यथार्थ की भीतरी परत को उकेरने का
सार्थक प्रयत्न किया गया है।
यह उपन्यास मूलतः कथानायक के पागलपन और समाज को उसके अनुकूल न बदल पाने से उत्पन्न विफलता को दर्शाता है। दक्षिणी क्षेत्र में माता-पिता की छत्रछाया से अलग कथानायक का व्यक्तित्व क्रांति और प्रेम के तत्त्वों से निर्मित होता है जो कभी अमैत्रीपूर्ण समाज की आलोचना करता है तो कभी पुराने खुशहाल दिनों की नास्टेल्जिया से घिर जाता है।
कथानायक ली म्यंगजुन दर्शनशास्त्र का छात्र रहा है जो दुनिया और मनुष्य को एक खास नजरिये से विश्लेषित करता है। उसने उस दौर को देखा है जब वामपंथी और दक्षिणपंथी लोग कोरियाई प्रायद्वीप में अपनी अलग सरकारें स्थापित करने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे थे। वह दिन-प्रतिदिन कोरिया को अपने वैभव और आदर्श से च्युत भ्रष्टाचार के गर्त में गिरते हुए देखकर हताश होता है। तब भाग कर उत्तर की ओर चला जाता है जैसा कि उसके पिता ने पहले किया था। मगर उत्तर के कम्युनिस्टों की दृढ़ व्यवस्था के भीतर कुलबुलाती गुप्त शत्रुता को देख वह बेचैन हो उठता है। उत्तर के लोगों को असंख्य नारों के शोर तले सीमित स्वतंत्रता ही हासिल है जहाँ किसी व्यक्ति की सोच और व्यक्तित्व के विकास के लिए कोई जगह नहीं है।
कोरिया की लड़ाई उसे फिर दक्षिण क्षेत्र सियोल खींच लाती है जहाँ कम्युनिस्ट दास्ता में लड़ते हुए वह गिरफ्तार होता है और दक्षिण के एक द्वीप पर बंदी शिविर में रखा जाता है। लड़ाई क बाद कैदियों के समझौते के आधार पर वह तीसरे और तटस्थ देश के अपने शेष जीवन के लिए चुनता है लेकिन समुद्र यात्रा के दौरान समुद्र में कूद कर आत्महत्या कर लेता है।
राष्ट्रीय विभाजन की समस्याओं को प्रखरता से रेखांकित करने के कारण कोरियाई साहित्य के इतिहास में ‘रंगमंच’ ने युगान्तकारी कृति का दर्जा हासिल किया है। हिन्दी पाठकों को यह उपन्यास न केवल पठनीय लगेगा, बल्कि उनकी सोच को रचनात्मक आयाम भी प्रदान करेगा।
यह उपन्यास मूलतः कथानायक के पागलपन और समाज को उसके अनुकूल न बदल पाने से उत्पन्न विफलता को दर्शाता है। दक्षिणी क्षेत्र में माता-पिता की छत्रछाया से अलग कथानायक का व्यक्तित्व क्रांति और प्रेम के तत्त्वों से निर्मित होता है जो कभी अमैत्रीपूर्ण समाज की आलोचना करता है तो कभी पुराने खुशहाल दिनों की नास्टेल्जिया से घिर जाता है।
कथानायक ली म्यंगजुन दर्शनशास्त्र का छात्र रहा है जो दुनिया और मनुष्य को एक खास नजरिये से विश्लेषित करता है। उसने उस दौर को देखा है जब वामपंथी और दक्षिणपंथी लोग कोरियाई प्रायद्वीप में अपनी अलग सरकारें स्थापित करने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे थे। वह दिन-प्रतिदिन कोरिया को अपने वैभव और आदर्श से च्युत भ्रष्टाचार के गर्त में गिरते हुए देखकर हताश होता है। तब भाग कर उत्तर की ओर चला जाता है जैसा कि उसके पिता ने पहले किया था। मगर उत्तर के कम्युनिस्टों की दृढ़ व्यवस्था के भीतर कुलबुलाती गुप्त शत्रुता को देख वह बेचैन हो उठता है। उत्तर के लोगों को असंख्य नारों के शोर तले सीमित स्वतंत्रता ही हासिल है जहाँ किसी व्यक्ति की सोच और व्यक्तित्व के विकास के लिए कोई जगह नहीं है।
कोरिया की लड़ाई उसे फिर दक्षिण क्षेत्र सियोल खींच लाती है जहाँ कम्युनिस्ट दास्ता में लड़ते हुए वह गिरफ्तार होता है और दक्षिण के एक द्वीप पर बंदी शिविर में रखा जाता है। लड़ाई क बाद कैदियों के समझौते के आधार पर वह तीसरे और तटस्थ देश के अपने शेष जीवन के लिए चुनता है लेकिन समुद्र यात्रा के दौरान समुद्र में कूद कर आत्महत्या कर लेता है।
राष्ट्रीय विभाजन की समस्याओं को प्रखरता से रेखांकित करने के कारण कोरियाई साहित्य के इतिहास में ‘रंगमंच’ ने युगान्तकारी कृति का दर्जा हासिल किया है। हिन्दी पाठकों को यह उपन्यास न केवल पठनीय लगेगा, बल्कि उनकी सोच को रचनात्मक आयाम भी प्रदान करेगा।
रंगमंच
मछली के गहरे रंग के परतदार शल्कों की तरह समुद्र में लहरें उठ रही थीं।
सफेद भारतीय जहाज ‘टैगोर’ काला धुआँ फेंकता हुआ,
बोरियों की
तरह लदे मुक्त युद्धबन्दियों को लिये किसी निरपेक्ष स्थान की खोज में
पूर्वी चीन के समुद्र पर फिसलने की जद्दो-जहद कर रहा था। मुक्त युद्धबन्दी
ली म्यंगजुन दाहिनी ओर की सीधी सीढ़ी से नीचे उतरा। जहाज के पिछले डेक की
रेलिंग पर अपने शरीर का भार टिका उसने पॉकेट से सिगरेट निकाली।
तेज हवा का झोंका उसके सिगरेट जलाने के प्रयास को सफल नहीं होने दे रहा था। आखिर वह झुँझलाकर बैठ गया और दाहिने हाथ से अपने चेहरे को ढँक कर सिगरेट जला ली। ठीक उसी समय, उसे लगा कि कोई उसे घूर रहा है। ये वहीं नजरें थीं जो जहाज पर चढ़ने के बाद से लगातार उसका पीछा कर रही थीं।
लेकिन म्युंगजुन की नजर पडते ही वह भूत की तरह कहीं गायब हो जाती थीं। इस बार उसे लगा कि वे आँखें जहाज के अन्दर खुलनेवाले दरवाजे के पीछे से झाँक रही थीं और उसके देखते ही कहीं छुप गईं। उसे लगा कि वह कुछ भूल रहा है। क्या इधर उसकी याददाश्त कमजोर होती जा रही है ? सच तो यह है कि उसके लिए भूलने लायक बात कोई भी नहीं थी। फिर भी जाने क्यों उसे लग रहा था कि वह कुछ भूल रहा है। उसे कुछ अजीब सा लग रहा था।
इसी समय जहाज का एक कर्मचारी हाथ में मोटी रस्सी लपेटे और मुँह से पाईप का धुआँ छोड़ते हुए उसकी ओर आया। दाहिने हाथ में पकड़े पाईप से म्यंगजुन की छाती को हल्के से एक-दो बार ठकठकाते हुए उसने उसे जहाज के कैप्टन के कमरे की ओर जाने का इशारा किया। म्यंगजुन ने सिगरेट समुद्र में फेंक दी और कैप्टन के कमरे की तरफ जानेवाली सीढ़ी की तरफ बढ़ गया। कैप्टन कुर्सी पर तिरछे होकर बैठे थे और चाय की चुस्की ले रहे थे। म्यंगजुन के आते ही उन्होंने बगल में रखी कुर्सी की ओर इशारा किया। काली मूँछें और दाढ़ी कैप्टन के चेहरे को अभिजात सौन्दर्य प्रदान कर रही थीं।
म्यंगजुन ने अपने सामने रखी चाय की प्याली से एक चुस्की ली। यहाँ की चाय का स्वाद भी कुछ अलग ही था, बन्दी शिविर की चाय से बिल्कुल अलग। कैप्टन कभी-कभी उसे बुलाकर उसकी खास खिदमत करते थे।
म्यंगजुन ने कैप्टन की ओर से नजर हटाकर बाईं ओर की खिड़की से बाहर देखा। जहाज के मस्तूल के अलावा बाहर देखने के लिए यह सबसे अच्छी जगह थी। वहाँ विस्तृत समुद्र दिख रहा था, कागज़ के बहुरंगी कोरियाई हाथ-पंखों की तरह। फिर उसने दाईं ओर की खिड़की से बाहर देखा। वहाँ भी वैसा ही दृश्य था। दो समुद्री पक्षी युद्धविमान की तरह जहाज की बाईं ओर सटकर उड़ रहे थे। कभी-कभी वे जहाज़ के मस्तूल पर आकर बैठ जाते थे।
जहाज़ में बन्दियों की देखभाल का जिम्मा मुराजी पर था। वह दिन में काम के समय शराब पिया करता था और रात को बावर्ची तथा अन्य अफसरों के साथ जुआ खेलता था। युद्धबन्दियों और कैप्टन के बीच का काम म्यंगजुन ही सँभालता था। उसकी अंग्रेजी कामचलाऊ ही थी। कैप्टन के पूछने पर उसने बताया था कि उसने कॉलेज तक की पढ़ाई की है। इस पर कैप्टन ने कहा था, ‘‘अच्छा, तो यूनिवर्सिटी तक ?’’ कैप्टन की बोली में ‘आर’ का उच्चारण अमरीकी उच्चारण की तरह कर्कश नहीं था। उन्होंने अंग्रेजी जलसेना में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। बातचीत में भी वे कई जाने-माने अंग्रेज अफसरों का नाम लिया करते थे। उनकी आत्मप्रशंसा सुनने में बुरी नहीं लगती थी बल्कि उसमें बच्चों की सी सरलता और सीधापन झलकता था। देश के अन्य लोगों के साथ तुलना करने पर कैप्टन का स्वभाव बच्चों की तरह सरल लगता था। कभी-कभी वे बच्चों की ही तरह जिद्दी भी प्रतीत होते लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उनके विचार और हाव-भाव परिपक्व या विकसित नहीं थे। उनमें अपने ही ढंग की कुछ विशेषता थी।
कैप्टन ही नहीं, जहाज़ के बाकी कर्मचारी भी युद्धबन्दियों के मन की बात आसानी से समझ ले रहे थे...अपने देश से भागकर जानेवाले बन्दियों के लिए किसी नई जगह शरण लेने की बात कितनी शर्मनाक हो सकती है। म्यंगजुन को इस बात से और भी शर्म आती थी कि जहाज के कैप्टन और कर्मचारी उनकी लाचारियों और मन में छुपी चिन्ताओं को पहले से ही भाँप लेते हैं। कैप्टन ने बात शुरू की।
‘‘क्या सोच रहे हो ? कुछ उम्मीद दिख रही है या डर लग रहा है ?’’
‘‘नहीं, कुछ नहीं, कोई चिन्ता नहीं।’’ म्यंगजुन ने सिर हिलाते हुए उत्तर दिया।
कैप्टन सिगरेट के धुएँ के गोल-गोल छल्ले निकालते हुए हल्के से मुस्कुराए।
‘‘आखिर मेरे लिए भी समझना आसान नहीं....अपने देश को छोड़कर बाहर विदेश में रहने की बात..। माता-पिता, भाई-बहन क्या कोई नहीं है ?’’
‘‘हाँ, है।’’
‘‘कौन ? माँ ?’’
‘‘जी नहीं।’’
‘‘पिताजी ?’’
‘‘नहीं।’’
म्यंगजुन ने सिर हिलाते हुए सोचा कि कैप्टन ने माँ की बात पहले क्यों पूछी।
‘‘कोई गर्लफ्रेन्ड भी नहीं ?’’
‘‘जी नहीं।’’
म्यंगजुन को लगा कि कैप्टन से कुछ भी छुपाना उसके लिए मुश्किल है। कैप्टन को लगा कि उसने शायद अचानक म्यंगजुन के दिल के घाव को फिर से कुरेद दिया है। गाल पर हाथ रखे सिर हिलाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘माफ करना, माफ करना।’’
केप्टन ने बड़ी कुशलता से अपनी गलती सुधारने की कोशिश की। म्यंगजुन को भी लगा कि कैप्टन को इस तरह संकोच में डालना उसके लिए ठीक नहीं था।
आमने-सामने की खिड़िकियों से हवा का एक झोंका आकर दीवार पर पिन से टँगे सामुद्रिक दिग्दर्शक नक्शे को फड़फड़ाते हुए चला गया। बगल की खिड़की से परदे की तरह दिखनेवाले आकाश में समुद्री पक्षी ऊपर नीचे उड़ते हुए एक लकीर-सी छोड़कर जहाज़ के पिछली ओर गायब हो जाते थे।
बाहर धूप खिलने लगी थी और उसके साथ ही म्यंगजुन के मन का भार धीरे-धीरे हल्का हो रहा था। लेकिन कैप्टन का प्रश्न कोई गर्लफ्रेन्ड नहीं है ?’ फिर एक बार घंटे की आवाज की तरह उसके मन की गहराई में प्रतिध्वनित होने लगा।
‘‘गर्लफ्रेन्ड हो तो कोई इस तरह देश छोड़कर विदेश जाने की बात सोचता है ?’’
म्यंगजुन ने अपने जवाब से कैप्टन के संकोच को दूर करने की कोशिश की। कैप्टन ने भी कुछ सोचकर कहा,
‘‘क्यों नहीं ? हो भी सकता है ?’’
उनकी गम्भीर आवाज़ में म्यंगजुन को एक बार फिर अचंभित कर दिया था।
खाली प्याले को हाथ में लेकर म्यंगजुन अपने दिल को टटोल रहा था। कैप्टन ने अपनी बात फिर दोहराई।
‘‘नामुमकिन नहीं है।’’
‘‘जी...’’
म्यंगजुन का संकोच कुछ कम जरूर हुआ, उसे लगा कि अपने उत्तर से उसने अपने दिल में छुपी सच्चाई को बताने में कुछ हद तक सफलता प्राप्त कर ली है।
‘कभी-कभी किसी महत्त्वपूर्ण रिश्ते को त्यागकर भी आदमी किसी बन्दरगाह से रवाना होने के लिए बाध्य हो जाता है।’’
म्यंगजुन को लगा कि कैप्टन को भी अपनी कोई पुरानी याद सताने लगी है। उसने सोचा, रात के अन्धकार से ढके समुद्र की तरह कैप्टन के अधूरे प्यार की कहानी, शुरू होने में अब देर नहीं है। उसी समय एक नाविक आया और जहाज की किसी मशीन में गड़बड़ी के बारे में कैप्टन को बताने लगा। कैप्टन उठ खड़े हुए और म्यंगजुन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले-‘‘शाम को फिर मिलते हैं।’’
मुस्कुराते हुए कैप्टन नाविक के पीछे-पीछे सीढ़ी से नीचे उतरने लगे। म्यंगजुन वहाँ कुछ देर बैठकर नीचे अपने कमरे में चला आया। कमरे में मिस्टर पाक नीचे वाले बेड पर दीवार की ओर तिरछा लेटा था। म्यंगजुन को आते देख वह करवट बदल सामने की ओर घूम गया। मिस्टर पाक हामहुँग के किसी स्कूल में अध्यापक था। जहाज में आने के बाद से वह सो ही रहा था। चौकोर चेहरे पर सिकुड़ी सी आँखोंवाला वह नौजवान म्यंगजुन को शुरू से ही कुछ थका-हारा सा लगा था। यूँ तो म्यंजुन भी कम थका नहीं था, लेकिन मिस्टर पाक के शरीर पर मैल की एक परत सी जम गई थी, पसीने की बदबू भी बता रही थी कि उसके लिए जीना कितना कठिन रहा होगा। उसकी स्थिति म्यंगजुन को अपने देश के उत्तरी भाग की सच्चाई की याद दिला रही थी। उस पार साँप की तरह विष उगलने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के लोग जीवन की ऐसी सच्चाई की बात करनेवालों को बुर्जुआजी की बुरी आदतों का शिकार बताते थे। सोचकर म्यंगजुन को हँसी आने लगी।
मिस्टर पाक ने फिर एक बार करवट बदली और दीवार की तरह मुड़ते हुए पूछा-
‘‘अगला स्टॉप हांगकांग है क्या ?’’
‘‘हाँ।’’
म्यंगजुन ऊपर अपने बंक की ओर चढ़ने लगा। ऊपर से उसे मिस्टर पाक के तकिए के नीचे ह्विस्की की आधी खाली बोतल दिखी। उसे लगा कि मिस्टर पाक कल से अकेले ही शराब की चुस्कियाँ ले रहा है।
‘‘क्या हम वहाँ उत्तर पाएँगे ?’’
‘‘शायद नहीं जापान में भी तो हम नहीं उतर पाए थे।’’
‘‘हम क्या कोई कैदी है ?’’ हमें निकलने भी नहीं देंगे ? हम क्या अभी भी युद्धबन्दी हैं ?’’ उसकी आवाज में नशा था।
तेज हवा का झोंका उसके सिगरेट जलाने के प्रयास को सफल नहीं होने दे रहा था। आखिर वह झुँझलाकर बैठ गया और दाहिने हाथ से अपने चेहरे को ढँक कर सिगरेट जला ली। ठीक उसी समय, उसे लगा कि कोई उसे घूर रहा है। ये वहीं नजरें थीं जो जहाज पर चढ़ने के बाद से लगातार उसका पीछा कर रही थीं।
लेकिन म्युंगजुन की नजर पडते ही वह भूत की तरह कहीं गायब हो जाती थीं। इस बार उसे लगा कि वे आँखें जहाज के अन्दर खुलनेवाले दरवाजे के पीछे से झाँक रही थीं और उसके देखते ही कहीं छुप गईं। उसे लगा कि वह कुछ भूल रहा है। क्या इधर उसकी याददाश्त कमजोर होती जा रही है ? सच तो यह है कि उसके लिए भूलने लायक बात कोई भी नहीं थी। फिर भी जाने क्यों उसे लग रहा था कि वह कुछ भूल रहा है। उसे कुछ अजीब सा लग रहा था।
इसी समय जहाज का एक कर्मचारी हाथ में मोटी रस्सी लपेटे और मुँह से पाईप का धुआँ छोड़ते हुए उसकी ओर आया। दाहिने हाथ में पकड़े पाईप से म्यंगजुन की छाती को हल्के से एक-दो बार ठकठकाते हुए उसने उसे जहाज के कैप्टन के कमरे की ओर जाने का इशारा किया। म्यंगजुन ने सिगरेट समुद्र में फेंक दी और कैप्टन के कमरे की तरफ जानेवाली सीढ़ी की तरफ बढ़ गया। कैप्टन कुर्सी पर तिरछे होकर बैठे थे और चाय की चुस्की ले रहे थे। म्यंगजुन के आते ही उन्होंने बगल में रखी कुर्सी की ओर इशारा किया। काली मूँछें और दाढ़ी कैप्टन के चेहरे को अभिजात सौन्दर्य प्रदान कर रही थीं।
म्यंगजुन ने अपने सामने रखी चाय की प्याली से एक चुस्की ली। यहाँ की चाय का स्वाद भी कुछ अलग ही था, बन्दी शिविर की चाय से बिल्कुल अलग। कैप्टन कभी-कभी उसे बुलाकर उसकी खास खिदमत करते थे।
म्यंगजुन ने कैप्टन की ओर से नजर हटाकर बाईं ओर की खिड़की से बाहर देखा। जहाज के मस्तूल के अलावा बाहर देखने के लिए यह सबसे अच्छी जगह थी। वहाँ विस्तृत समुद्र दिख रहा था, कागज़ के बहुरंगी कोरियाई हाथ-पंखों की तरह। फिर उसने दाईं ओर की खिड़की से बाहर देखा। वहाँ भी वैसा ही दृश्य था। दो समुद्री पक्षी युद्धविमान की तरह जहाज की बाईं ओर सटकर उड़ रहे थे। कभी-कभी वे जहाज़ के मस्तूल पर आकर बैठ जाते थे।
जहाज़ में बन्दियों की देखभाल का जिम्मा मुराजी पर था। वह दिन में काम के समय शराब पिया करता था और रात को बावर्ची तथा अन्य अफसरों के साथ जुआ खेलता था। युद्धबन्दियों और कैप्टन के बीच का काम म्यंगजुन ही सँभालता था। उसकी अंग्रेजी कामचलाऊ ही थी। कैप्टन के पूछने पर उसने बताया था कि उसने कॉलेज तक की पढ़ाई की है। इस पर कैप्टन ने कहा था, ‘‘अच्छा, तो यूनिवर्सिटी तक ?’’ कैप्टन की बोली में ‘आर’ का उच्चारण अमरीकी उच्चारण की तरह कर्कश नहीं था। उन्होंने अंग्रेजी जलसेना में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। बातचीत में भी वे कई जाने-माने अंग्रेज अफसरों का नाम लिया करते थे। उनकी आत्मप्रशंसा सुनने में बुरी नहीं लगती थी बल्कि उसमें बच्चों की सी सरलता और सीधापन झलकता था। देश के अन्य लोगों के साथ तुलना करने पर कैप्टन का स्वभाव बच्चों की तरह सरल लगता था। कभी-कभी वे बच्चों की ही तरह जिद्दी भी प्रतीत होते लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उनके विचार और हाव-भाव परिपक्व या विकसित नहीं थे। उनमें अपने ही ढंग की कुछ विशेषता थी।
कैप्टन ही नहीं, जहाज़ के बाकी कर्मचारी भी युद्धबन्दियों के मन की बात आसानी से समझ ले रहे थे...अपने देश से भागकर जानेवाले बन्दियों के लिए किसी नई जगह शरण लेने की बात कितनी शर्मनाक हो सकती है। म्यंगजुन को इस बात से और भी शर्म आती थी कि जहाज के कैप्टन और कर्मचारी उनकी लाचारियों और मन में छुपी चिन्ताओं को पहले से ही भाँप लेते हैं। कैप्टन ने बात शुरू की।
‘‘क्या सोच रहे हो ? कुछ उम्मीद दिख रही है या डर लग रहा है ?’’
‘‘नहीं, कुछ नहीं, कोई चिन्ता नहीं।’’ म्यंगजुन ने सिर हिलाते हुए उत्तर दिया।
कैप्टन सिगरेट के धुएँ के गोल-गोल छल्ले निकालते हुए हल्के से मुस्कुराए।
‘‘आखिर मेरे लिए भी समझना आसान नहीं....अपने देश को छोड़कर बाहर विदेश में रहने की बात..। माता-पिता, भाई-बहन क्या कोई नहीं है ?’’
‘‘हाँ, है।’’
‘‘कौन ? माँ ?’’
‘‘जी नहीं।’’
‘‘पिताजी ?’’
‘‘नहीं।’’
म्यंगजुन ने सिर हिलाते हुए सोचा कि कैप्टन ने माँ की बात पहले क्यों पूछी।
‘‘कोई गर्लफ्रेन्ड भी नहीं ?’’
‘‘जी नहीं।’’
म्यंगजुन को लगा कि कैप्टन से कुछ भी छुपाना उसके लिए मुश्किल है। कैप्टन को लगा कि उसने शायद अचानक म्यंगजुन के दिल के घाव को फिर से कुरेद दिया है। गाल पर हाथ रखे सिर हिलाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘माफ करना, माफ करना।’’
केप्टन ने बड़ी कुशलता से अपनी गलती सुधारने की कोशिश की। म्यंगजुन को भी लगा कि कैप्टन को इस तरह संकोच में डालना उसके लिए ठीक नहीं था।
आमने-सामने की खिड़िकियों से हवा का एक झोंका आकर दीवार पर पिन से टँगे सामुद्रिक दिग्दर्शक नक्शे को फड़फड़ाते हुए चला गया। बगल की खिड़की से परदे की तरह दिखनेवाले आकाश में समुद्री पक्षी ऊपर नीचे उड़ते हुए एक लकीर-सी छोड़कर जहाज़ के पिछली ओर गायब हो जाते थे।
बाहर धूप खिलने लगी थी और उसके साथ ही म्यंगजुन के मन का भार धीरे-धीरे हल्का हो रहा था। लेकिन कैप्टन का प्रश्न कोई गर्लफ्रेन्ड नहीं है ?’ फिर एक बार घंटे की आवाज की तरह उसके मन की गहराई में प्रतिध्वनित होने लगा।
‘‘गर्लफ्रेन्ड हो तो कोई इस तरह देश छोड़कर विदेश जाने की बात सोचता है ?’’
म्यंगजुन ने अपने जवाब से कैप्टन के संकोच को दूर करने की कोशिश की। कैप्टन ने भी कुछ सोचकर कहा,
‘‘क्यों नहीं ? हो भी सकता है ?’’
उनकी गम्भीर आवाज़ में म्यंगजुन को एक बार फिर अचंभित कर दिया था।
खाली प्याले को हाथ में लेकर म्यंगजुन अपने दिल को टटोल रहा था। कैप्टन ने अपनी बात फिर दोहराई।
‘‘नामुमकिन नहीं है।’’
‘‘जी...’’
म्यंगजुन का संकोच कुछ कम जरूर हुआ, उसे लगा कि अपने उत्तर से उसने अपने दिल में छुपी सच्चाई को बताने में कुछ हद तक सफलता प्राप्त कर ली है।
‘कभी-कभी किसी महत्त्वपूर्ण रिश्ते को त्यागकर भी आदमी किसी बन्दरगाह से रवाना होने के लिए बाध्य हो जाता है।’’
म्यंगजुन को लगा कि कैप्टन को भी अपनी कोई पुरानी याद सताने लगी है। उसने सोचा, रात के अन्धकार से ढके समुद्र की तरह कैप्टन के अधूरे प्यार की कहानी, शुरू होने में अब देर नहीं है। उसी समय एक नाविक आया और जहाज की किसी मशीन में गड़बड़ी के बारे में कैप्टन को बताने लगा। कैप्टन उठ खड़े हुए और म्यंगजुन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले-‘‘शाम को फिर मिलते हैं।’’
मुस्कुराते हुए कैप्टन नाविक के पीछे-पीछे सीढ़ी से नीचे उतरने लगे। म्यंगजुन वहाँ कुछ देर बैठकर नीचे अपने कमरे में चला आया। कमरे में मिस्टर पाक नीचे वाले बेड पर दीवार की ओर तिरछा लेटा था। म्यंगजुन को आते देख वह करवट बदल सामने की ओर घूम गया। मिस्टर पाक हामहुँग के किसी स्कूल में अध्यापक था। जहाज में आने के बाद से वह सो ही रहा था। चौकोर चेहरे पर सिकुड़ी सी आँखोंवाला वह नौजवान म्यंगजुन को शुरू से ही कुछ थका-हारा सा लगा था। यूँ तो म्यंजुन भी कम थका नहीं था, लेकिन मिस्टर पाक के शरीर पर मैल की एक परत सी जम गई थी, पसीने की बदबू भी बता रही थी कि उसके लिए जीना कितना कठिन रहा होगा। उसकी स्थिति म्यंगजुन को अपने देश के उत्तरी भाग की सच्चाई की याद दिला रही थी। उस पार साँप की तरह विष उगलने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के लोग जीवन की ऐसी सच्चाई की बात करनेवालों को बुर्जुआजी की बुरी आदतों का शिकार बताते थे। सोचकर म्यंगजुन को हँसी आने लगी।
मिस्टर पाक ने फिर एक बार करवट बदली और दीवार की तरह मुड़ते हुए पूछा-
‘‘अगला स्टॉप हांगकांग है क्या ?’’
‘‘हाँ।’’
म्यंगजुन ऊपर अपने बंक की ओर चढ़ने लगा। ऊपर से उसे मिस्टर पाक के तकिए के नीचे ह्विस्की की आधी खाली बोतल दिखी। उसे लगा कि मिस्टर पाक कल से अकेले ही शराब की चुस्कियाँ ले रहा है।
‘‘क्या हम वहाँ उत्तर पाएँगे ?’’
‘‘शायद नहीं जापान में भी तो हम नहीं उतर पाए थे।’’
‘‘हम क्या कोई कैदी है ?’’ हमें निकलने भी नहीं देंगे ? हम क्या अभी भी युद्धबन्दी हैं ?’’ उसकी आवाज में नशा था।
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लोगों की राय
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