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मेहनत का मंत्र

गोविन्द शर्मा

प्रकाशक : साहित्यागार प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :110
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5703
आईएसबीएन :81-7711-093-4

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‘मेहनत का मंत्र’ बाल कथा संग्रह में गोविन्द शर्मा की बत्तीस बाल कथाएँ संग्रहीत है। जिनमें कहीं नैतिकता का संदेश है तो कहीं देश भक्ति का...

Mehnat ka mantra

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

बाल मन की कथाएँ

बाल मन का नन्दन-कानन बड़ा मनभावन है। उसमें सुकोमल भावनाओं के साथ ही विचरण किया जा सकता है। यदि बाल शब्दावली, कथन की पद्धति और कथ्य की नवीन अभिव्यक्ति हो तो बालक उसे अवश्य पढ़ना पसन्द करेंगे। ऐसी अभिव्यक्ति का बालकों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। वे ऐसा बाल साहित्य पढ़ेंगे और उसे प्रचारित भी करेंगे।
गोविन्द शर्मा देश के ऐसे बाल साहित्य लेखक हैं जिनकी बाल कथाएँ सन्देश के कारण बाल पाठकों को पसन्द आती हैं और उन्हें पढ़े बिना नहीं रह सकते। सहज-सरल शब्दावली के कारण उनकी बाल कथाएँ बाल मन में रचबस जाती हैं और वे शीर्षक पढ़कर कह सकते हैं यह कथा गोविन्द शर्मा ने लिखी है।

गोविन्द शर्मा के कथा सूत्रों की समन्विति भी ऐसी है कि वह बालकों के मानस पटल से विस्मृत नहीं होती, चाहे बाल कथा के पात्र बच्चे हों या जानवर, वे बाल रुचि के अनुकूल प्रभाव छोड़ते हैं।

‘मेहनत का मंत्र’ बाल कथा संग्रह में गोविन्द शर्मा की बत्तीस बाल कथाएँ संग्रहीत है। जिनमें कहीं नैतिकता का संदेश है तो कहीं देश भक्ति का, कहीं सम्मान भावना का तो कहीं परिश्रम का। नया संदेश देनेवाली ये बाल कथाएँ उन्हें भी पसन्द आएँगी जो बाल मनोविज्ञान को समझते हैं या बाल साक्षी को महत्त्व देते हैं।

गोविन्द शर्मा ने बाल कथाओं पर राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय अनेक पुरस्कार प्राप्त किए हैं और उन्हें बाल साहित्य के लिए संस्थाओं द्वारा भी ‘समर्थ बाल साहित्यकार’ के रूप में समादृत किया गया, उनकी बाल साहित्य की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, इस सबसे इतर बात की जाए तो कहूँगा, वे हार्दिक व्यक्ति हैं और अच्छे मन को जीने वाला व्यक्ति ही अच्छा बाल साहित्य दे सकता है।

विश्वास है, गोविन्द शर्मा के अभिनव प्रकाशन ‘मेहनत का मंत्र’ को बाल मंच की साक्षी मिलेगी और यह एक उल्लेखनीय प्रकाशन होगा।

डॉ. तारादत्त ‘निर्विरोध

ज़िम्मेदार लेखक की ईमानदार कोशिश


तिलिस्म व दूरदर्शन की खोखली संस्कृति से बच्चों को बाहर निकाल उनका ध्यान प्रेरक व आदर्श बाल साहित्य की ओर आकर्षित करने वाले भारतीय लेखकों की पंक्ति में गोविन्द शर्मा भी हैं। वे लम्बे अरसे से बच्चों के लिए लिख रहे हैं।
बच्चों की दुनिया में ऐसी सामग्री परोसी जा रही है जो उनके किसी काम की नहीं उल्टे उन्हें मानसिक बौद्धिक स्तर पर हानि ही पहुँचा रही है।

बच्चों को सचमुच ऐसा साहित्य ही चाहिए जो उनमें बौद्धिक विकास तो करे ही, साथ ही उनमें नैतिकता के बीजों का प्रस्फुटन भी कर सके और भावनात्मक स्तर पर भी समृद्ध करे। वर्तमान में तो ऐसे साहित्य की नितान्त आवश्यकता है क्योंकि बच्चे बाहरी चमक-दमक से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। यथार्थ से जुड़ी बातें भूलते जा रहे हैं।

यह प्रसन्नता की बात ही कही जाएगी कि ऐसी नाजुक स्थिति में गोविन्द शर्मा जैसे ज़िम्मेदार लेखक की ईमानदार कोशिश ‘मेहनत का मंत्र’ पुस्तक रूप में हमारे हाथ में है।

इस पुस्तक में बहुत कुछ ऐसा है। जिसकी देश के बच्चों को बड़ी आवश्यकता है। स्पष्ट कहूँ तो बच्चों के माध्यम से समाज को बड़ी आवश्यकता है। नैतिक मूल्यों, राष्ट्र-प्रेम का सन्देश, प्रकृति-प्रेम, जीव-जन्तुओं के प्रति स्नेहभाव के साथ ही श्रम का महत्त्व जैसे विषयों पर अच्छी, स्तरीय रचनाओं का सृजन देश के कतिपय लेखक कर रहे हैं, उसी श्रृंखला में गोविन्द शर्मा ने भी लेखकीय ज़िम्मेदारी का एहसास, अपनी पूरी ऊर्जा के साथ इस संकलन में करने की कोशिश की है।

भाषा की सरलता और स्वाभाविकता लिए अपनी कहानियों के माध्यम से इन्द्रधनुषी रंग बिखेरने वाले, समर्पित भाव से बच्चों के लिए लिखने वाले इस विनम्र लेखक को इसलिए भी हृदय से धन्यवाद व बधाई देने का मन करता है क्योंकि इन्होंने बच्चों की बहुत खूबसूरत और उजली दुनिया का जो स्वप्न अपनी आँखों में सँजोया है और अपनी क़लम से आस्था और भरोसे की जो स्याही भरी है, वह ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाएँ देती रहेगी और पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों के माध्यम से इस देश के नौनिहालों के हाथों में पहुँचती रहेंगी, मुझे पूरा विश्वास है !

सुधीर सक्सेना ‘सुधि

सबसे बड़ा तिरंगा

घर में बंद रहना, वह भी किसी त्यौहार के दिन, बड़ा ही कठिन होता है। पर जरूरी हो, तो ऐसा भी करना पड़ता है। इसी पन्द्रह अगस्त की बात है। बारह वर्षीय योगी को घर में रहना पड़ा। स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लेने के लिए वह घर से बाहर नहीं जा सका। क्योंकि किसी जरूरी काम से उसके माता-पिता, भाई-बहन दूसरे शहर चले गए थे। घर को सूना छोड़ने की बजाय उन्होंने योगी को दिनभर घर में ही रहने को कहा था। उसे स्कूल से भी छुट्टी दिलवा दी।

बिजली नहीं थी, इसलिए वह टेलीविजन भी नहीं देख पा रहा था। वह सोचने लगा, उसके दोस्त स्वतंत्रता दिवस समारोह में परेड़ और सांस्कृतिक कार्यक्रम देख रहे होंगे। उसके कुछ दोस्त तो परेड़ देखने के लिए दिल्ली जाने वाले थे। वे गए होंगे। वहां से वापस आकर वे सब उसे बताएंगे कि स्वतंत्रता दिवस समारोह में उन्होंने क्या देखा।

 पर वह खुद कुछ नहीं बता सकेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब योगी के दोस्त आए और उन्होंने समारोह का आँखों देखा हाल बताना शुरू किया, तो योगी भी पीछे नहीं रहा। उसने भी कैसे घर में रहकर स्वतंत्रता दिवस मनाया। वह भी अपने दोस्तों को बताने लगा।

दोस्तों की बातों के जवाब में उसने बताया, ‘‘मेरे पास एक तिरंगा झंड़ा है। मैंने उसे छत की मुंडेर पर लाठी के सहारे लगा दिया। मैंने ध्वज को सलामी दी और राष्ट्रगान गाया।’’

‘‘उस समय तुम्हारे सिवा कोई और खड़ा नहीं हुआ होगा ?’’ उसका एक मित्र बोला।
‘‘क्यों नहीं ? मैंने अपनी बहन के सब गुड्डे-गुडियों को पहले ही एक कतार में खड़ा कर दिया था। मेरे कहने पर हमारा टामी भी अपने पिछले पैरों पर खड़ा हो गया था। मुझे जोर-जोर से राष्ट्र गान गाते सुनकर आंगन में एक तरफ हमारी गाय भी खड़ी हो गई थी।’’ योगी की बात सुनकर उसके दोस्त हंस पड़े।

 

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