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मानव मशीन

आर.एल. बिजलानी, एस.के. मनचंदा

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5685
आईएसबीएन :81-237-4407-2

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आम आदमी के जटिल मानव शरीर रचना की सही-सही जानकारी...

Manav Masheen

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


शारीरिक और मानसिक तंदुरुस्ती की सकारात्मक अवस्था। केवल बीमारियों का अभाव ही स्वास्थ्य नहीं कहलाता। जिस किसी ने चिकित्सा-शास्त्र का अध्ययन किया है, वह अच्छी तरह से जानता है कि मानव मशीन एक ऐसी यंत्र रचना है जिसकी रूपरेखा तथा बनावट विश्व में सबसे अधिक विलक्षण मानी जा सकती है। इसमें नियंत्रण और प्रक्रियाओं की ऐसी प्रणालियाँ हैं, जिनकी बदौलत मानव शरीर किसी भी परिवेश में रहते हुए और किन्ही भी छेड़खानियों को सहते हुए सामान्य अवस्था में बना रहता है। ज्यों-ज्यों चिकित्सकीय ज्ञान की उन्नति होती जा रही है, त्यों-त्यों शरीर संरचना और ऐसा चयापचयी (मेटाबोलिक) प्रक्रियाओं के बारे में हमारे सामने अधिकाधिक रहस्य खुलते जा रहे हैं, जो सकारात्मक स्वास्थ्य की स्थिति को बनाए रखने में सहायक होती हैं और शरीर को बीमरियों से बचाए रखती हैं। इन प्रक्रियाओं को पूरी तरह से समझ पाना किसी चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थी के लिए भी कठिन है।
हमारा शरीर किस प्रकार कार्य करता है तथा अलग-अलग खुराकों और जलवायु का हमारी शारीरिक प्रणालियों पर असर पड़ता है इसके बारे में हम में से प्रत्येक की अलग धारणाएं हैं। ये धारणाएं किन्हीं तथ्यों पर नहीं बल्कि दूसरों से सुनी–सुनाई बातों पर आधारित होती हैं। एक आम आदमी की भाषा में किसी ऐसी प्रकाशित सामग्री के बेहद कमी है, या कहिए लगभग अभाव है, जो जटिल मानव शरीर-रचना की सही-सही जानकारी दे सके।
डॉ. बिजलानी और डॉ मनचंदा ने एक आदमी के लिए मानव-मशीन संबंधी जानकारी एक ऐसी भाषा में प्रस्तुत की है जिसे हर व्यक्ति समझ सकता है उनका यह कार्य निश्चित रूप से अपने आप में विशेष महत्व रखता है। सरल किंतु समझदारी से तैयार किए गए आरेख विषय को समझने में सहायता करते हैं। मुझे विश्वास है कि इस कृति ने एक अभाव की पूर्ति की है और इस पुस्तक को पढ़कर प्रत्येक पाठक लाभांवित होगा।

एच.डी. टंडन
निदेशक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान


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