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नया आयाम

अभिमन्यु अनत

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :247
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5633
आईएसबीएन :81-288-1695-X

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अभिमन्यु अनत की 26 कहानियों पर आधारित नाटक...

Naya Aayam

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आज के समय में प्रवासी भारतीय जन का हिन्दी साहित्य में योगदान न केवल बहुल है बल्कि गुणात्मक रूप से भी गौरवान्वित हो रहा है, इस क्रम में मॉरिशस के अभिमन्यु अनत का नाम अग्रिम पंक्ति में रखा जा सकता है उनके उपन्यास ‘लाल पसीना’ ने उन्हें विशेष रूप से चर्चा में ला दिया है। अभिमन्यु मूलतः जन सरोकार के लेखक हैं उनकी रचनाएँ समाज के सर्वहास वर्ग तथा मध्य वर्ग के संघर्षरत परिवारों के इर्द-गिर्द बेहद संवेदनशील ढंग से बुनी जाती हैं और वह अपनी रचनाओं के माध्यम से उन मूल्यों की सृष्टि का दायित्व निभाते हैं जो कठिनाइयों और रूढ़ियों से जूझ रहे जन समूह को बल दे। परिवर्तन उनकी अकुलाहट का मुख्य केन्द्र है प्रस्तुत पुस्तक में अभिमन्यु अनत ने अपनी कहानियों को स्वयं नाट्य रूपांतरित किया है और यह नाटक आलेख ऐसे बन पड़े हैं, जैसे यह मूल रूप से इसी रूप में सृजे गए हों, मंच संयोजन, पात्रों का परिवेश का गठन इस ढंग से किया गया है कि यह नाटक मंचन के लिये लुभाते हैं, संवादों की भाषा सहज ग्राह्य है तथ्य को स्पष्ट रूप से मुखरित करने वाली है।
निश्चित रूप से ‘नया आयाम’ देश और जात की परिधि से बाहर पाठकों को समृद्ध करने वाली पुस्तक है। इसका स्वागत किया जाना चाहिये।


भूमिका

अब यह बहस निरन्तर महत्त्वपूर्ण होती जा रही है कि हिन्दी साहित्य के संवर्द्धन में प्रवासी भारतीय। लेखन को भी सम्मिलित किया जाए। सच तो यह है कि हिन्दी साहित्य रचना की इस वैश्विक धारा की अनदेखी करके हम हिन्दी के अन्तर्राष्ट्रीय आयाम की ही अनदेखी करेंगे। आज विश्व के अनेक देशों में बसे भारतीय लेख, चाहे वे प्रवासी हों या अप्रवासी, हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि में संलग्न हैं तथा उनकी कृतियां निरन्तर प्रकाशित होकर सामने आ रही हैं। आज अमेरिका, यू.के., सूरीनाम, फीजी आदि देशों में अनेक साहित्यकार हिन्दी में सृजनरत हैं लेकिन प्रवासी हिन्दी साहित्य लेखन में मॉरीशस का नाम अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं और उसमें भी प्रसिद्ध कथाकार अभिमन्यु अनत का लेखन और योगदान उत्कृष्टतम है। उन जैसी प्रांजल और प्रवाहमय हिन्दी भाषा लिखने वाले लेखक कम ही हैं। उनका लेखन भारत तथा हिन्दी के प्रति उनके समर्पित जुड़ाव को व्यक्त करता है।
अभिमन्यु अनत ने प्रचुर मात्रा में साहित्य-रचना की है जिसमें उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, निबंध आदि सभी विधाएं समाहित हैं। उनका उपन्यास ‘लाल पसीना’, ‘गोदान’, ‘मैला आंचल’, ‘कब तक पुकारूं’ जैसे उपन्यासों की परंपरा में गिने जाने योग्य है। उसी तरह उनकी ‘मातमपुर्सी’, ‘मान रक्षा’ जैसी अनेक कहानियां मानवीय संवेदना की नाटकीय अभिव्यक्ति के कारण श्रेष्ठ कहानियों की परंपरा में समादृत हैं।
उनकी अनेक कहानियों के नाटकीय रूपांतर भी मॉरीशस रेडियो और टेलीविजन के अतिरिक्त विभिन्न नाट्य-मंचों पर मंचित हो चुके हैं। यह पहला अवसर हैं कि स्वयं अपनी कहानियों के नाट्य-रूपान्तरणों पर आधारित एकांकी-नाटकों को एक संग्रह रूप में प्रकाशित कर रहे हैं।
इस पुस्तक में अभिमन्यु अनत जी ने स्वयं अपनी 26 कहानियों के नाट्य-रूपान्तरणों को संगृहीत किया है और इस तरह यह नाटक उनकी स्वतंत्र रचना की तरह परखे जा सकते हैं। इस पुस्तक में संकलित सारी ही रचनाओं का आदि परिवेश मॉरिशस के निम्न और मध्यवर्गीय परिवारों को रेखांकित करता है और इसकी विषय-वस्तु अभिमन्यु अनत के जनोन्मुख सरोकारों को सामने लाती है। आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक न्याय की ललक तथा समाज के हर धरातल पर स्त्री, पुरुष दोनों के लिए सहज अधिकारों की चेतना इन नाटकों में देखी जा सकती है। अपनी प्रस्तुति में ये नाटक भरपूर पठनीय हैं और अपनी सहजता के कारण बंध पाने में समर्थ हैं।

इन सभी नाटकों का मंचन बेहद सरल है। मंचीय-निर्देशों के रहते यह काम और सरल हो गया है। इन नाटकों की सफलता जहां इनके मंचन में है वहीं उन्हें पढ़ना भी एक सुखद अनुभव से साक्षात्कार करने जैसा है। मेरा विश्वास है कि अभिमन्यु अनत द्वारा अपनी ही कहानियों के नाट्य रूपांतरों की यह प्रस्तुति प्रवासी नाट्य रचना कोष को समृद्ध करने वाली सिद्ध होगी।

-प्रो. सुरेश ऋतुपर्ण
जापान

1


मान रक्षा


एक शानदार बंगले के आगे मनमोहक फुलवारी का वाइड शॉट।
जूम इन मालकिन और धनुवा पर क्लोज़ अप।
धनुवा ऑचीरियोम के फूल मालकिन को थमाते हुए।
दृश्य-1
धनुवा : पैंतीस साल मादाम ! लगता है अभी कल ही इस फुलवारी से जुड़ा था आज बिछड़ने की घड़ी आ गई।
मालकिन : हमें भी यह बिछड़ना दुखी कर गया है। क्या फूल है ! क्या रंग ! क्या खुशबू ! धनुवा तुम्हारे हाथों में तो जादू है। हमारे बाग की यह रौनक तुम्हारी वफादारी, मेहनत और लगन का परिणाम है।
मालिक : धनुवा के फूलों की नई नस्लें तो स्टेट हाउस के बाग तक पहुंच गई है।
मालकिन : तुम जानते हो धनुवा मेरे भाई ने तो बार-बार चाहा कि है तुम्हें अपनी फुलवारी का माली बना ले।
मालिक : और मैं हर बार यही कहता रहा कि वह चाहे तो हमारी कोठी ले ले पर धनुवा को लेने की बात न करे।
धनुवा गदगद होकर हाथ जोड़ लेता है।
धनुवा : मैं इस बाग से नहीं उस दुनिया से हटाया जा रहा हूं। जो मुझे अपने घर अपने परिवार से भी अधिक प्रिय रही है।
मालकिन : मैं जानती हूं धनुवा। जितना दुःख तुम्हें हो रहा है उतना ही हमें भी।
धनुवा : मालकिन ! अभी मेरी ताकत गई नहीं है। मैं तो आखिरी दम तक इन फूलों के बीच रह कर यहीं आखिरी सांस लेना चाहता हूं।
मालकिन : मैं तुम्हारे जज्बात को समझती हूं। अब इस उम्र में तो तुम्हें अपने परिवार के बीच जीना है।
धनुवा : वहां तो जीना ही है पर सांसे इन फूलों की पंखुड़ियों पर अटकी रहेंगी।
मालकिन : मैं तुम्हारे दर्द को समझ रही हूं। पर क्या करें। इस तरह का आना-जाना तो बना ही रहता है।


दृश्य-2



घर के भीतर का दृश्य। धनुवा खयालों में खोया हुआ है।
छोटी बहू का प्रवेश

बहू 1 : पिता जी लोग कह रहे हैं कि आपकी विदाई के अवसर पर मालिक अपने यहां जश्न मना रहे हैं। लोग यह भी बोल रहे हैं कि ऐसी किस्मत इससे पहले किसी कामगार को नसीब नहीं हुई है।
धनुवा : पर मेरे लिए यह खुशी की बात नहीं है बहू। बेकारी मुझे मार डालेगी ।
बेटा : खुशी तो हम लोगों को भी नहीं है।
बहू 1 : आपकी बेकारी से तो हम भी दुखी हैं। आपको अपनी नौकरी कितनी पसन्द थी बाबू जी।
बेटा : सुना है कि नौकरी से हटने पर मालिक आपको बहुत बड़ा तोहफा देने वाले हैं।
धनुवा : कल आखिरी बार के लिए मैं अपने फूल-पौधों  से बातें कर पाऊंगा फिर तो हमेशा के लिए उनसे दूर हो जाऊंगा। कितनी दुखदायी होगी मेरे लिए वह घड़ी !
बेटा : हम सभी के लिए कितना दुखदायी होगा।


दृश्य-3



दृश्य परिवर्तन

फुलवारी। क्षितिज पर अस्त होता हुआ सूरज। पौधों के आखिरी कतार की सिंचाई करके वह पौधों के बीच खड़ा उन्हें निहारता और सराहता रहा। फिर मालिक की भव्य कोठी को देखता हुआ बाग से बाहर होने लगा।
छोटी रजनी का प्रवेश।

रजनी : चाचा ! सचमुच अब आप यहां काम नहीं करेंगे ?
धनुवा : हां गुड़िया।
रजनी : तो अब मुझे सुबह-शाम फूल कौन देगा ?
धनुवा : तुम्हारी मां कैसी है रजनी ?
रजनी : मां ही ने तो मुझे यह बात बताई। वह बहुत उदास है दादा।
धनुवा : (रजनी को गुलाब थमाते हुए) मेरी ओर से तुम्हें यह आखिरी फूल।
रजनी : सचमुच, आप यहां से जा रहे हैं ? मुझे तो इस बात का यकीन ही नहीं रहा चाचा।
धनुवा : दुनिया में और भी तो कई बाग हैं, जो मेरे बिना फूलते-फलते रहे हैं।
रजनी : मां बता रही थी कि अब आपको तनख्वाह नहीं मिलेगी।
धनुवा : अब तो हर महीने पांच सौ के बदले बस सवा सौ रुपये मिलेंगे। पर इससे क्या। गुज़ारा हो ही जाएगा।

दृश्य-4



अतीत का दृश्य—कोठी के सामने मालिक और मालिकिन के सामने हाथ जोड़े।
धनुवा : साहब ! आप मुझे और भी एक-दो साल सेवा में रखे रहिएगा।
मालिक : आप बहुत काम कर चुके अब आपको आराम की जरूरत है।
मालकिन : हां ! धनुवा, तुम अपने परिवार के साथ आराम की ज़िंदगी बसर करो।
धनुवा : पेट भी साथ-साथ आराम करने को तैयार हो तब तो !
मालिक : धनुवा तुम्हारे दो शादी-शुदा बेटे हैं। तुम्हारे ये दोनों बेटे तुम्हारा खयाल रखेंगे।
मालकिन : मैंने भी धनुवा से यही कहा। हमसे बिछड़ने का यह मतलब नहीं कि तुम हमसे बिलकुल नहीं मिलोगे।
धनुवा : मैं तो मिलता रहूंगा मालकिन।


दृश्य-5



धनुवा के घर का दृश्य अपने परिवार के बीच

बहू 1 : मेरा बाप जब रिटायर हुआ था तो सरकार ने लम्प सम में बहुत बड़ी रकम दी थी। दो सौ हजार रुपये, ताकि उसका बाकी जीवन उसके और दूसरों के लिए बोझ न बने।
धनुवा : लोग बता रहे थे कि कल मेरी बिदाई के समय साहब मुझे कुछ उपहार देंगे। देखें नसीब में क्या है।
बहू 2 : ये मालिक लोग तो अपने कुत्ते के गले में सोने का नेकलेस पहना देते हैं पिता जी। आपने तो जीवन भर उनकी सेवा की है। आपको मालिक खाली हाथ थोड़े ही विदा करेंगे।


दृश्य परिवर्तन



धनुवा अपने कमरे में अकेला अपनी ही आवाज़ को सुनता रहा।
धनुवा : कितनी बड़ी तन्हाई ! कितना अकेलापन का एहसास होने लगा। मैंने जीवन के बहुत बड़े भाग को अजनबियों के साथ गुजार दिया। तुम अपने पेट के लिए दूसरों का मुंह नहीं ताक सकते। अजनबियों के साथ दोस्त बने रहने के लिए तुम्हारे पास एक ही चारा है धनुवा। वह है कोई नई नौकरी। तुम ही तो कहते रहे हो कि काम प्यारा होता है चाम नहीं। सम्भव है मालिक की ओर से एक अच्छी रकम मिल जाए जिससे कोई धंधा शुरू किया जा सके।

दरवाजा खुलता है।

उसकी बड़ी बहू और बेटा सामने आ जाते हैं।
छोटी बहू पहले से वहां होती है। बड़ा बेटा चारपाई पर बैठते हुए।
बेटा : पापा तुम अभी तक जाग रहे हो ?
बहू 2 : नींद नहीं आ रही है क्या ?
धनुवा : इस उम्र में क्या नींद।
बहू 1 : (ससुर जी) पिताजी इतने उदास मत होइए। लोग कह तो रहे हैं कि हमारे मालिक रहमदिल आदमी हैं। वे आपको खाली हाथ नहीं निकालेंगे।
बहू 2 : हां। मेरी सहेली तो कह रही थी कि ठीक सरकार में नौकरी करने वालों की तरह आपको भी हज़ारों रुपये मिलेंगे। पिताजी हमारे घर में रंगीन टी.वी. अब तो आ ही जानी चाहिए।
(नाती मां के पल्लू को बार-बार खींचता है)
बहू 1 : (दो बार झटके देकर आखिर में उबल पड़ती है) क्या है ?
नाती : मेरे लिए बाइसिकल !
बहू 2 : चुप।
बेटा : हमें सबसे पहले अपने घर में दो कमरे जोड़ने होंगे।
बहू 1 : कमरे तो बाद में जुड़ते रहेंगे। सबसे पहले इस घर में रंगीन टी.वी. आ ही जानी चाहिए। पिता जी आप भी तो कहा करते हैं कि बिन रंगों के रामायण सीरियल फीका लगता है।
नाती : (मां के पल्लू को फिर खींचता है) बाइसिकल ! लाल रंग की।
बहू 1 : तू चुप भी रहेगा या....
बेटा : पहले घर में दो कमरे जोड़े जाएंगे। समझे।
बहू 2 : अभी से ही हवा में महल क्यों खड़ा करने लगे। हाथ में कुछ आ जाने दो। इस घर में सभी लोग रंगीन टी.वी. के सपने देख रहे हैं। कोई यह नहीं कह रहा है कि मेरा पति महीनों से एक मोटर साइकिल न खरीद पाकर नौकरी पैदल जाता रहा है।
(वार्तालाप के दौरान रोशनी बदलती रहती है)
बेटा : पापा तुम अपनी बड़ी बहू की बातों का बुरा मत मानना।
धनुवा : बुरा क्यों मानूं ?
बेटा : मुझे भी एक दोस्त ने बताया कि उसके मालिक के मैनेजर रिटायर हुए थे तब उसके लिए भी मालिक ने अपने घर पार्टी दी थी। उसको विदा करते हुए उन्होंने उसके हाथ में एक लिफाफा रख दिया था। जानते हो उस लिफाफे में क्या था ?
धनुवा : सुना था उसमें एक चैक था।
बेटा : जानते हो कितने का ?
धनुवा : नहीं
बेटा : पचहत्तर हजार का। बीस साल की नौकरी के बदले उसका उपहार था। पापा तुम तो 30 साल से ज्यादा साहब की नौकरी में रहे हो।
धनुवा : कहां राजा भोज कहां गंगू तेली। बेटा उस मालिक का वह कामगार तो मैनेजर था। वह साहब का रिश्तेदार था। मैं ठहरा एक अदना सा माली।
बेटा : पर नहीं पापा। तुम्हारा उपहार भी बड़ा होगा। पापा तुम अपना उपहार मेरे हाथ में देना। दर्शन भैया का क्या विश्वास ? कब घोड़ों के पीछे गंवा दे।
धनुवा : मुझे तो बेटा बस दो जून रोटी चाहिए। उपहार तुम दोनों आपस में बांट लेना।


दृश्य-6



सुबह। धनुवा अपने घर से बाहर निकलता है।

धनुवा : छोटी बहू ! मेरे खाने की टोकरी ला देना जरा।
बहू 2 : आप नौकरी पर जा रहे हैं पिता जी ?
धनुवा : सूरज बादलों में छिप रहा और मुझे वक्त का खयाल ही नहीं रहा।
बहू 2 : पर पिता जी आपकी नौकरी का तो कल आखिरी दिन था।
धनुवा : मेरे पौधों की सिंचाई कौन करेगा। कल मैंने बहुत सारे नए पौधे रोपे हैं। वे धूप में सूख जाएंगे।

(बड़ी बहू का प्रवेश)
बहू 1 : शाम को मालिक के घर जाना है आपको। ठाठ के साथ आपकी विदाई होगी। आप अभी से कहां के लिए निकल रहे हैं।
धनुवा : लेकिन रजनी तो फुलवारी में रह गई होगी। कौन उसे फूल देगा ? बड़ी बहू रात में मुझे नींद नहीं आई, तनिक भी नहीं...फिर भी लगा कि तुम दोनों की सास मेरी बगल में थी।
बहू 2 : सपना देखा होगा आपने।
धनुवा : बिन आँखें मूंदे ? ठीक कहा तुमने। अब तो दिन दहाड़े सपने देखने के दिन ही आने वाले हैं।


दृश्य-7



फुलवारी का दृश्य...


दोनों बहुएं घर के भीतर चली जाती हैं। धनुवा अपने आप से बातें करता है।
धनुवा : अपनी मृत्यु से एक दिन पहले बच्चों की मां मुझसे बोली थी कि मैं नौकरी छोड़ दूं। उसकी मृत्यु का वही तो एक दिन था जब मैं नौकरी पर नहीं जा पाया था। पैंतीस साल में एक ही दिन की गैर हाजिरी। मैं अपनी पत्नी के गम को बाग के फूलों के बीच खाद की तरह बिखेरता रहा था। उन फूलों के बीच मुझे अपनी पत्नी की मुस्कान झलकती दिखाई पड़ती थी। अब उस मुस्कान को कहां देख पाऊंगा।

रजनी का प्रवेश।

रजनी : चाचा ! मैं आपको फुलवारी में ढूंढ़ती रही।
धनुवा : तुम्हें तो मालूम है रजनी कि वहां की मेरी नौकरी का कल आखिरी दिन था। मैंने तुम्हें आखिरी फूल दिया था। तुम्हारी मां कैसी है रजनी ?
रजनी : ठीक है। मां बता रही थी कि आज शाम को मालिक के घर पर आपको तोहफा दिया जाएगा।
धनुवा : पैंतीस साल तक मैं मालिक के यहां काम करता रहा। न जाने कितनी पार्टियां होती रहीं। कभी दावत नहीं मिली। अब जब नौकरी नहीं तो पहली बार दावत मिली है।
रजनी : चाचा मेरी मां को भी एक दिन मालिक नौकरी से हटा देंगे ?
धनुवा : तुम्हारी मां को मेरी उम्र की होने में अभी दस साल बाकी हैं।

दृश्य-8


शाम का वक्त।

मालिक का आलिशान घर। सजावट। विस्तृत बरामदा मेहमानों से भरा। मालिक ने मेहमानों को सम्बोधित किया। लोग बारी-बारी से मालिक को बधाई और तोहफे देते। सभी मेहमान तालियां बजाकर बधाई देते हैं। अपने बेटे का इशारा पाकर धनुवा भी आगे बढ़कर मालिक को बधाई देता है।

मालिक : आज मेरे जन्मदिन के इस अवसर पर मेरी बगल में हमारा माली धनुवा भी मौजूद है। मेरे जन्म दिन की इस खुशी में एक और खुशी जुड़ गई है। आज मैं चालीस साल का हो रहा हूं और धनुवा आज अपना साठवां साल पूरा कर रहा है।
मालिक : इस खुशी के साथ एक दुखद घड़ी जुड़ गई है। आज धनुवा नौकरी से अवकाश पा रहा है। हमारा यह माली हमारे बाप के जमाने से हमारी सेवा में रहा है। धनुवा जैसा मेहनती और फर्मबरदार माली मिलना मुश्किल है। कभी भी शिकायत का अवसर नहीं दिया।
धनुवा : साहब ! मैं तो बस अपना फर्ज निभाता था।
मालिक : इतने वफादार कामगर को इस विदाई के मौके पर हम तहे दिल से उसका शुक्रिया अदा करते हैं। धनुवा ने पैंतीस साल हमारी सेवा की। फुलवारी को सजाया चमकाया। बाग को रंगबिरंगा बनाया। सुगंधित किया। फूलों के इस जादूगर को हम और क्या दे सकते हैं।
धनुवा हाथ जोड़ लेता है।
मालिक की पत्नी का एक गुलदस्ते के साथ सामने आना।
मालकिन : हमें तुम्हारी कमी बहुत खलेगी। तुम्हारे जाने से हमारी फुलवारी का पता नहीं क्या होगा।
मालिक : इस समय मुझे एक घटना याद आ रही है। एक बार बाग में काम करते हुए धनुवा के पांव में चोट आ गई थी। मैंने उसके पास कुछ रुपये भिजवाए थे पर उसने यह कहकर रुपयों को लौटा दिया था कि वह अपने पसीने की कमाई के अलावा किसी तरह की दया और दान का मंजर नहीं कर सकता।
लोग तालियां बजाते हैं।
मालिक : यह घटना इस आदमी के स्वाभिमान को झलकाती है। यही वजह है कि हम धनुवा की मान रक्षा के लिए उसे उसके पसीने से सीचे हुए फूलों का एक गुलदस्ता भेंट कर रहे हैं।
लोगों के बीच तालियों की गड़गड़ाहट शुरू होती है। उसी के बीच मालकिन गुलदस्ते के साथ धनुवा तक पहुंचती हैं और गुलदस्ता धनुवा के हाथ में थमा देती हैं।
मालकिन : धन्यावद धनुवा ! तुम हमसे दूर जाकर भी दूर नहीं जाओगे। वैसे भी हमारे बाग में चप्पे-चप्पे पर तुम्हारी याद रहेगी। हर फूल हर फल में तुम्हारी यादगार बनी रहेगी।
धनुवा  : मालकिन...
गान....


दृश्य-9


रजनी : चाचा ! आखिर आपके घर के लोग आपको छोड़ पहले ही घर क्यों चले गए ?
धनुवा : इसकी वजह जानने के लिए अभी तुम बहुत छोटी हो रजनी।
धनुवा रजनी का हाथ थामे चलता हुआ एकाएक रुक जाता है। अपने हाथ के आंचिरियोम के गुलदस्ते उसे थमा कर कहता है-
धनुवा : रजनी, याद है मैंने एक बार तुम्हें आंचिरियोम थमाते हुए कहा था कि आंचिरियोम एक ऐसा फूल है जो अपने पौधे से कट कर भी लंबे समय तक नहीं मुर्झाता, खिला ही रहता है।

 

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