वास्तु एवं ज्योतिष >> भारतीय ज्योतिष भारतीय ज्योतिषनेमिचन्द्र शास्त्री
|
9 पाठकों को प्रिय 382 पाठक हैं |
ज्योतिष विज्ञान के सभी मूलभूत सिद्धान्त, उनका इतिहास और उसके विकास-क्रम की सुगम जानकारी...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ज्योतिषशास्त्र भारतीय विद्या का महत्वपूर्ण अंग है, विशेषकर इसलिए कि एक
ओर तो आचार्यों ने इसे पराविद्या की कोटि में ला दिया और और दूसरी ओर इसका
प्रवेश सर्वसाधारण के जीवन में इस सीमा तक व्याप्त होगा कि शुभ घड़ी, लग्न
और मुहूर्त-शोधन दैनन्दिन जीवन के अंग बन गये। पंचांग के तत्त्वों का
ज्ञान चाहे सर्वसाधारण को भी न हो किन्तु ज्योतिषियों द्वारा नियोजित
अनेकों पंचांग उत्तर में और दक्षिण में अपनी-अपनी पद्धिति के अनुसार
प्रचलित हैं, मान्य हैं। राशि-फल का तो वैज्ञानिक कहे जानेवाला आज के युग
में इतनी व्यापकता से प्रसार हो गया है कि अनेक
‘बौद्धिक’
व्यक्ति भी पत्र-पत्रिकाओं के ‘भविष्य-फल’ वाले अंश
को खुले
तौर पर, और कुछ लोग प्रच्छन्न रूप से देख लेते हैं। विशिष्ट धातु-निर्मित
और नगीनों-जड़ी मुद्रिकाओं के प्रभाव को कुछ लोग भी कभी-कभी मानते देखे
गये हैं, इसे ज्योतिषशास्त्र के अध्ययन की दृष्टि से विद्वानों
द्वारा सर्वाधिक मान्यता प्राप्त हुई और इसका प्रमुख कारण है ग्रन्थ में
सर्वसाधारण की समझ के योग्य ज्योतिष सम्बन्धी सब प्रकार की विषय सामग्री
का स्पष्ट रूप से रोचक शैली में प्रस्तुतीकरण।
स्वर्गीय डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य देश के उन गिने-चुने विद्वानों में से थे जिनके ज्ञान का क्षेत्र बहुत व्यापक था। संस्कृति, प्राकृत, अपभ्रंश, अर्धमागधी आदि प्राचीन भाषाओं में प्राप्त दर्शन, साहित्य, इतिहास, पौराणिक गाथाओं का उत्स आदि अनेक विषयों के वह पारंगत विद्वान थे। भाषाशास्त्र का उनका पाण्डित्य भी विलक्षण था।
यह ग्रन्थ ज्योतिषशास्त्र के इतिहास का दिग्दर्शन कराता है। ज्योतिष के सारे सिद्धान्तों का विवेचन करता है, प्रमुख ज्योतिर्विदों का ऐतिहासिक क्रम से परिचय प्रस्तुत करता है और विवेचन विषयक दृष्टि की व्यावहारिकता इस कौशल से आधी है कि मननपूर्वक स्वाध्याय और अभ्यास करनेवाला व्यक्ति स्वयं कुण्लियाँ बना सकता, भाग्यफल प्रतिपादिता कर सकता है। इष्ट-अनिष्ट के मूलभूत कारणों को और उनके क्रियान्वयन की प्रक्रिया को इतनी सहजता से समझाने वाला और कोई ग्रन्थ दुर्लभ है। सारणियाँ और सारणियों का संयोजन इस ग्रन्थ की विशेषता है। भारतीय ज्ञानपीठ के गौरव-ग्रन्थों में इसका प्रकाशन अपना विशिष्ट स्थान रखता है। डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य की स्मृति का यह एक उज्जवल निकष है।
स्वर्गीय डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य देश के उन गिने-चुने विद्वानों में से थे जिनके ज्ञान का क्षेत्र बहुत व्यापक था। संस्कृति, प्राकृत, अपभ्रंश, अर्धमागधी आदि प्राचीन भाषाओं में प्राप्त दर्शन, साहित्य, इतिहास, पौराणिक गाथाओं का उत्स आदि अनेक विषयों के वह पारंगत विद्वान थे। भाषाशास्त्र का उनका पाण्डित्य भी विलक्षण था।
यह ग्रन्थ ज्योतिषशास्त्र के इतिहास का दिग्दर्शन कराता है। ज्योतिष के सारे सिद्धान्तों का विवेचन करता है, प्रमुख ज्योतिर्विदों का ऐतिहासिक क्रम से परिचय प्रस्तुत करता है और विवेचन विषयक दृष्टि की व्यावहारिकता इस कौशल से आधी है कि मननपूर्वक स्वाध्याय और अभ्यास करनेवाला व्यक्ति स्वयं कुण्लियाँ बना सकता, भाग्यफल प्रतिपादिता कर सकता है। इष्ट-अनिष्ट के मूलभूत कारणों को और उनके क्रियान्वयन की प्रक्रिया को इतनी सहजता से समझाने वाला और कोई ग्रन्थ दुर्लभ है। सारणियाँ और सारणियों का संयोजन इस ग्रन्थ की विशेषता है। भारतीय ज्ञानपीठ के गौरव-ग्रन्थों में इसका प्रकाशन अपना विशिष्ट स्थान रखता है। डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य की स्मृति का यह एक उज्जवल निकष है।
प्रकाशक
प्रथम अध्याय
भारतीय ज्योतिष स्वरूप और विकास
आकाश की ओर दृष्टि डालते ही मानव-मस्तिष्क में उत्कण्ठा उत्पन्न होती है
कि ये ग्रह-नक्षत्र क्या वस्तु हैं ? तारे क्यों टूटकर गिरते हैं ? पुच्छल
तारे क्या हैं और ये कुछ दिनों में क्यों विलीन हो जाते हैं ? सूर्य
प्रतिदिन पूर्व दिशा में ही क्यों उदित होता है ? ऋतुए क्रमानुसार क्यों
आती है ? आदि।
मानव-स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि कि वह जानना चाहता है-क्यों ? कैसे ? क्या हो रहा है ? और क्या होगा ? यह केवल प्रत्यक्ष बातों को ही जानकर सन्तुष्ट नहीं होता, बल्कि जिन बातों से प्रत्यक्ष लाभ होने की सम्भावना नहीं है, उनकों जानने के लिए भी उत्सुक रहता है। जिस बात के जानने की मानव को उत्कट इच्छा रहती है। उसके अवगत हो जाने पर उसे जो आनन्द मिलता है, जो तृप्ति होती है उससे वह निहाल हो जाता है।
मनोविज्ञान दृष्टिकोण से विशलेषण करने पर ज्ञात होगा कि मानव की उपयुक्त जिज्ञासा ने ही उसे ज्योतिषशास्त्र के गम्भीर रहस्योद्घाटन के लिए प्रवृत्त किया है। आदिम मानव ने आकाश की प्रयोगशाला में सामने आनेवाला ग्रह, नक्षत्र और तारों प्रभृति का अपने कुशल चक्षुओं द्वारा पर्यवेक्षण करना प्रारम्भ किया और अनेक रहस्यों का पता लगाया। परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि तब से अब तक विश्व की रहस्यमयी प्रवृत्ति के उद्घाटन करने का प्रयत्न करने पर भी यह और उलझता जा रहा है।...
मानव-स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि कि वह जानना चाहता है-क्यों ? कैसे ? क्या हो रहा है ? और क्या होगा ? यह केवल प्रत्यक्ष बातों को ही जानकर सन्तुष्ट नहीं होता, बल्कि जिन बातों से प्रत्यक्ष लाभ होने की सम्भावना नहीं है, उनकों जानने के लिए भी उत्सुक रहता है। जिस बात के जानने की मानव को उत्कट इच्छा रहती है। उसके अवगत हो जाने पर उसे जो आनन्द मिलता है, जो तृप्ति होती है उससे वह निहाल हो जाता है।
मनोविज्ञान दृष्टिकोण से विशलेषण करने पर ज्ञात होगा कि मानव की उपयुक्त जिज्ञासा ने ही उसे ज्योतिषशास्त्र के गम्भीर रहस्योद्घाटन के लिए प्रवृत्त किया है। आदिम मानव ने आकाश की प्रयोगशाला में सामने आनेवाला ग्रह, नक्षत्र और तारों प्रभृति का अपने कुशल चक्षुओं द्वारा पर्यवेक्षण करना प्रारम्भ किया और अनेक रहस्यों का पता लगाया। परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि तब से अब तक विश्व की रहस्यमयी प्रवृत्ति के उद्घाटन करने का प्रयत्न करने पर भी यह और उलझता जा रहा है।...
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book