रहस्य-रोमांच >> रहस्यमय टापू रहस्यमय टापूरॉबर्ट लुइस स्टीवेंसन
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प्रस्तुत उपन्यास अमर ग्रंथों में गिना गया है सवा सौ वर्षों के पश्चात् स्टीवेंसन का यह उपन्यास आज भी अत्यंत लोकप्रिय है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रस्तुत उपन्यास ‘रहस्यमय टापू’ अंग्रेजी के प्रख्यात
साहित्यकार रॉबर्ट लुइस स्टीवेंसन के प्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यास
‘ट्रैजर आइलैंड’ का हिंदी रूपांतरण है। जब वर्ष 1883
में यह पहली बार प्रकाशित हुआ तब पाठकों के बीच अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था। यह एक बेहद रोचक-रोमांचक एवं साहसपूर्ण कथा है। उपन्यास का किशोर नायक जिम जिस
प्रकार खजाने की खोज में निकलता है और समुद्र के बीच एक निर्जन टापू पर
खूंखार डाकुओं का सामना करता है, वहीं कदम-कदम पर हैरतअंगेज घटनाओं से
उसका सामना होता है। उपन्यास के मध्य ऐसी रोमांचक घटनाएँ घटती हैं जिन्हें
पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यह प्रत्येक वय के पाठकों के लिए पठनीय और
मनोरंजनपूर्ण है।
भूमिका
जे. के. रॉलिंग के तिलिस्मी किशोर-उपन्यास हैरी पॉर्टर को पाठक जगत् में
विस्मयकारी सफलता मिली है। उसकी लोकप्रियता का अनुमान इससे भी लगा कि उस
उपन्यास श्रृंखला की हर नई कड़ी की पाठक उत्कंठा से प्रतीक्षा करता। भाषा
और भौगोलिक सीमाओं को लाँघकर अंग्रेजी में लिखा गया यह उपन्यास प्रायः
प्रत्येक देश में देखा, पढ़ा और सुना जा रहा है। संचार माध्यमों ने इसे
घर-घर तक पहुँचा दिया है। जब संचार के इतने शक्तिमान साधन नहीं थे तब
श्रेष्ठ रचनाएँ पुस्तकों के रूप में ही पढ़ी जाती थीं। उन्नीसवीं सदी में
अंग्रेजी में लिखे गए एक किशोर उपन्यास की ब्रिटेन में खूब चर्चा हुई थी।
उस उपन्यास का नाम था ट्रैडर आइलैंड और उसके लेखक थे रॉबर्ट लुइस
स्टीवेंसन। उपन्यास बेहद लोकप्रिय हुआ था। जहाँ-जहाँ अंग्रेजी जाननेवाले
पाठक थे, उन देशों में इस उपन्यास को रुचि के साथ पढ़ा गया। फिर यूरोपीय
और अन्य भाषाओं में इसके अनुवाद प्रकाशित हुए। इसपर आधारित फिल्म और
टेलीविजन सीरियल बने। हिंदी में भी अनेक विद्वान लेखकों ने इसका अनुवाद
किया है।
अनुवाद की भी अपनी सीमाएँ होती हैं। मूल कृति के पात्रों और स्थानों के अपरिचित से नाम भी अनुवाद भाषा के पाठकों को खटकते हैं। यह अपरिचय मूल उपन्यास के रस को कुछ हद तक सोख लेता है। इसे ध्यान में रखते हुए मैंने आर.एल. स्टीवेंसन के इस उपन्यास का अनुवाद नहीं, रूपांतरण किया है। उसके पात्रों को भारतीय नाम दिए हैं और उपन्यास का परिवेश भी भारतीय कर दिया है। उपन्यास के किशोर नायक जिम का नाम यथावत् रहने दिया है, क्योंकि भारत में भी यह नाम अनजाना नहीं लगता।
रॉबर्ट लुइस स्टीवेंसन के लेखन का मैं विद्यार्थी जीवन से प्रशंसक रहा हूँ। विश्व के इस श्रेष्ठ लेखक के प्रति मेरी श्रद्धा मुझे स्कॉटलैंड की राजधानी विश्व एडिनबरा ले गई, जहाँ स्टीवेंसन पैदा हुए थे। उनके उपन्यासों और कहानियों में ऐसा चुंबक है, जो पाठक को पकड़कर बैठा लेता है और तब तक नहीं छोड़ता जब तक वह उन्हें पढ़ नहीं लेता। उनमें मोहक किस्सागोई है। अतींद्रिय शक्तियों का द्वंद्व है, वैसा ही जैसा हैरी पॉटर में है। मनुष्य में रची अच्छाई और बुराई की शक्तियों के टकराव को उनके चर्चित उपन्यास ‘द स्ट्रेंज केस ऑफ डॉक्टर जेकिल ऐंड मिस्टर हाइड’ में इस खूबी के साथ गूँथा गया है कि वह खंडित व्यक्तित्व के मनोविज्ञान का एक उदाहरण बन गया। साहित्यकार मानते हैं कि फ्योदोर दॉस्तोवास्की का ‘क्राइम ऐंड पनिशमेंट’, ब्राम स्टोकर का ‘ड्रेकुला’, मैरी शैली का ‘फ्रैंकस्टीन’ और फ्रांज़ का ‘काफ्का का ‘मेटामॉरफोसिस’ स्टीवेंसन के इसी उपन्यास से प्रेरित थे। वैसे स्टीवेंसन इस उपन्यास के प्रकाशन से पाँच वर्ष पूर्व ही सन् 1881 में अपने किशोर उपन्यास ‘ट्रैज़र आइलैंड’ के धारावाहिक प्रकाशन से प्रसिद्ध हो गए थे। इस किशोर उपन्यास को अपार लोकप्रियता प्राप्त हुई। यह एक बालक जिम की साहस कथा है, जो कैरीबियन द्वीप डेड चेस्ट पर डाकुओं द्वारा छिपाकर रखे गए खजाने की तलाश में निकलता है। रुपांतरित उपन्यास में मैंने उस टापू को अंडमान निकोबार के सौ से अधिक निर्जन द्वीपों में से एक बताया है। षड्यंत्रों और भयानकों खतरों से खेलनेवाले बालक जिम की यह साहस कथा रहस्य से सराबोर है, परंतु इसमें कहीं भी जादू टोना या अंधविश्वास की कोई छाया नहीं मिलेगी। विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि यह अत्यंत पठनीय है। मूल कथा में कोई हेर-फेर नहीं किया गया है। निर्णय सुधी पाठक स्वयं करें।
अनुवाद की भी अपनी सीमाएँ होती हैं। मूल कृति के पात्रों और स्थानों के अपरिचित से नाम भी अनुवाद भाषा के पाठकों को खटकते हैं। यह अपरिचय मूल उपन्यास के रस को कुछ हद तक सोख लेता है। इसे ध्यान में रखते हुए मैंने आर.एल. स्टीवेंसन के इस उपन्यास का अनुवाद नहीं, रूपांतरण किया है। उसके पात्रों को भारतीय नाम दिए हैं और उपन्यास का परिवेश भी भारतीय कर दिया है। उपन्यास के किशोर नायक जिम का नाम यथावत् रहने दिया है, क्योंकि भारत में भी यह नाम अनजाना नहीं लगता।
रॉबर्ट लुइस स्टीवेंसन के लेखन का मैं विद्यार्थी जीवन से प्रशंसक रहा हूँ। विश्व के इस श्रेष्ठ लेखक के प्रति मेरी श्रद्धा मुझे स्कॉटलैंड की राजधानी विश्व एडिनबरा ले गई, जहाँ स्टीवेंसन पैदा हुए थे। उनके उपन्यासों और कहानियों में ऐसा चुंबक है, जो पाठक को पकड़कर बैठा लेता है और तब तक नहीं छोड़ता जब तक वह उन्हें पढ़ नहीं लेता। उनमें मोहक किस्सागोई है। अतींद्रिय शक्तियों का द्वंद्व है, वैसा ही जैसा हैरी पॉटर में है। मनुष्य में रची अच्छाई और बुराई की शक्तियों के टकराव को उनके चर्चित उपन्यास ‘द स्ट्रेंज केस ऑफ डॉक्टर जेकिल ऐंड मिस्टर हाइड’ में इस खूबी के साथ गूँथा गया है कि वह खंडित व्यक्तित्व के मनोविज्ञान का एक उदाहरण बन गया। साहित्यकार मानते हैं कि फ्योदोर दॉस्तोवास्की का ‘क्राइम ऐंड पनिशमेंट’, ब्राम स्टोकर का ‘ड्रेकुला’, मैरी शैली का ‘फ्रैंकस्टीन’ और फ्रांज़ का ‘काफ्का का ‘मेटामॉरफोसिस’ स्टीवेंसन के इसी उपन्यास से प्रेरित थे। वैसे स्टीवेंसन इस उपन्यास के प्रकाशन से पाँच वर्ष पूर्व ही सन् 1881 में अपने किशोर उपन्यास ‘ट्रैज़र आइलैंड’ के धारावाहिक प्रकाशन से प्रसिद्ध हो गए थे। इस किशोर उपन्यास को अपार लोकप्रियता प्राप्त हुई। यह एक बालक जिम की साहस कथा है, जो कैरीबियन द्वीप डेड चेस्ट पर डाकुओं द्वारा छिपाकर रखे गए खजाने की तलाश में निकलता है। रुपांतरित उपन्यास में मैंने उस टापू को अंडमान निकोबार के सौ से अधिक निर्जन द्वीपों में से एक बताया है। षड्यंत्रों और भयानकों खतरों से खेलनेवाले बालक जिम की यह साहस कथा रहस्य से सराबोर है, परंतु इसमें कहीं भी जादू टोना या अंधविश्वास की कोई छाया नहीं मिलेगी। विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि यह अत्यंत पठनीय है। मूल कथा में कोई हेर-फेर नहीं किया गया है। निर्णय सुधी पाठक स्वयं करें।
रमेश नैयर
रहस्यमय टापू
गाँव का मुखिया, डॉक्टर और मेरे बहुत सारे मित्र मुझसे बार-बार समुद्र के
निर्जन टापू के खजाने से जुड़ा किस्सा लिख देने के लिए कहा करते थे। आखिर
एक दिन मैंने अपनी लेखनी उठाई और उस रोचक -रोमांचक अभियान को कागजों पर
उतारने के लिए बैठ गया।
मेरे पिता का समुद्र के किनारे एक छोटा सा लॉज था। वह ज्यादा चलता नहीं था। बहुत कम लोग वहाँ ठहरने के लिए आते थे। मुझे अच्छी तरह से याद है कि एक दिन एक बूढ़ा मछुआरा वहाँ ठहरने के लिए आया। उसके पीछे कुछ लोग एक बड़ी-सी तिजोरी लेकर आए। वह मछुआरा लंबे कद का था। उसकी कद-काठी बहुत मजबूत थी। उसके हाथ खुरदरे थे और उन पर चोटों के अनेक निशान थे। उसके एक गाल पर तलवार की चोट का गहरा निशान था।
वह लॉज में पड़ा-पड़ा शराब पीता रहता और एक पुराना समुद्री गीत गाता रहता। गीत के बोल थे-
‘‘मुरदे की तिजोरी पंद्रह लोग। छकते दारू उड़ाते मौज।।’’
आते ही उसने मेरे पिता से कहा था, ‘‘मैं यहाँ पर कुछ दिन रुकूँगा। मैं बहुत सीधा -सादा आदमी हूँ। मुझे सादा भोजन और सस्ती शराब चाहिए। मैं यहाँ रहकर आने-जानेवाले जहाजों पर नजर रखूँगा। तुम मेरा नाम जानना चाहते हो तो सुनो, तुम मुझे ‘कप्तान’ कह सकते हो।
यह सब कहने के बाद उसने मेरे पिता के सामने सोने के चार सिक्के फेंकते हुए कहा, ‘‘जब ये खत्म हो जाएँ तो तुम मुझे बता देना। मैं और सिक्के दे दूँगा।’’
उसकी आवाज बड़ी रुखी थी। उसके कपड़ों पर कई तरह के दाग लगे हुए थे। वह बड़ा खूँखार दिखता था। मैंने सोचा, वह किसी वक्त किसी जहाज का कप्तान रहा होगा। सारा दिन वह समुद्र के किनारे बैठा रहता और दूरबीन से आने-जानेवाले जहाजों को देखता रहता। शाम होते ही वह लॉज के सामने के कमरे में आग जलाकर बैठ जाता और शराब पीने लगता। दिन भर वह इधर-उधर घूमता रहता और लौटते ही पूछता, ‘‘क्या सड़क से कोई नाविक गुजरा था ?’’
जब कोई भी नाविक लॉज में आकर रुकता तो उस दौरान वह चुपचाप अपने कमरे में चूहे की तरह दुबका रहता था।
एक दिन वह मुझे एक ओर ले गया और मेरे हाथ में चाँदी का एक सिक्का थमाते हुए कहने लगा, ‘‘बेटे तुम जरा समुद्र पर नजर रखा करो। यदि किसी दिन कोई लँगड़ा मछुआरा दिख जाए तो तुम फौरन मुझे खबर करना।’’
उस दिन से ऐसा हुआ कि मैं उस लँगड़े मछुआरे के बारे में सोचने लगा। वह लँगड़ा मछुआरा मेरे सपने में आकर मुझे डराने लगा। जब कभी समुद्र में तूफान उठता, वह लँगड़ा मछुआरा मेरे विचारों पर हावी हो जाता।
इस प्रकार कई महीने गुजर गए। हर महीने वह चाँदी का एक सिक्का मुझे थमा देता। लेकिन यह सिक्का मुझे महँगा पड़ रहा था, क्योंकि रह-रहकर मेरे खयालों में वह लँगड़ा मछुआरा घूम जाता। मेरे मन से अब उस कप्तान का भय निकल चुका था। हर शाम वह मुझे गीत सुनाता। उसे बहुत सारे समुद्री गीत याद थे। वह तरह-तरह की कहानियाँ भी सुनाता। उसकी सारी कहानियाँ डरावनी होती थीं। वह बताता कि उसने सारी जिंदगी समुद्री डाकुओं और बहुत खतरनाक लोगों के साथ गुजरी है।
मेरे पिता के पास उसने जो रकम जमा की थी, वह खत्म हो चुकी थी। किराए और खाने की बड़ी रकम उस पर चढ़ गई थी। पर मेरे पिता उससे तकाजा करने का साहस नहीं जुटा पाते थे। एक बार हिम्मत जुटाकर जब उन्होंने उससे पैसे माँग लिये तो कप्तान आग बबूला हो गया। मेरे पिता डरकर फौरन कमरे से बाहर चले गए। जब तक कप्तान लॉज में रहा, मैंने उसे कभी कपड़े बदलते नहीं देखा। उसका कोट बहुत गंदा था। जब कभी वह नशे में होता तो आस-पास के लोगों से बातें करता, वरना अपने आप तक सीमित रहता। लोग उससे बहुत डरते थे। उसके कमरे में रखी तिजोरी हमेशा बंद रहती थी। किसी ने उसे खुला हुआ नहीं देखा था।
मेरे पिता का स्वास्थ्य निरंतर खराब होता जा रहा था। एक दिन दोपहर बाद हमारे कस्बे के डॉक्टर साहब उन्हें देखने आए। डॉक्टर साहब अपना काम समाप्त करके बरामदे में पाइप सुलगाकर बैठे थे। एकाएक कप्तान जोर-जोर से अपना पुराना गीत गाने लगा। फिर वह डॉक्टर साहब के पास पहुँचकर टेबल को पीटने लगा। डॉक्टर ने आदेश के स्वर में कहा, ‘‘शोर नहीं।’’
कप्तान ने आँखें तरेरकर डॉक्टर की ओर देखा तो डॉक्टर ने उसे घुड़कते हुए कहा, ‘‘यदि तुम इसी तरह शराब पीते रहते तो इस धरती को तुम जैसे गंदे और बदमाश आदमी से जल्दी ही छुटकारा मिल जाएगा।’
कप्तान का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। वह उछलकर खड़ा हो गया और जेब से एक लंबा सा चाकू निकालकर डॉक्टर को घूरने लगा।
मेरे पिता का समुद्र के किनारे एक छोटा सा लॉज था। वह ज्यादा चलता नहीं था। बहुत कम लोग वहाँ ठहरने के लिए आते थे। मुझे अच्छी तरह से याद है कि एक दिन एक बूढ़ा मछुआरा वहाँ ठहरने के लिए आया। उसके पीछे कुछ लोग एक बड़ी-सी तिजोरी लेकर आए। वह मछुआरा लंबे कद का था। उसकी कद-काठी बहुत मजबूत थी। उसके हाथ खुरदरे थे और उन पर चोटों के अनेक निशान थे। उसके एक गाल पर तलवार की चोट का गहरा निशान था।
वह लॉज में पड़ा-पड़ा शराब पीता रहता और एक पुराना समुद्री गीत गाता रहता। गीत के बोल थे-
‘‘मुरदे की तिजोरी पंद्रह लोग। छकते दारू उड़ाते मौज।।’’
आते ही उसने मेरे पिता से कहा था, ‘‘मैं यहाँ पर कुछ दिन रुकूँगा। मैं बहुत सीधा -सादा आदमी हूँ। मुझे सादा भोजन और सस्ती शराब चाहिए। मैं यहाँ रहकर आने-जानेवाले जहाजों पर नजर रखूँगा। तुम मेरा नाम जानना चाहते हो तो सुनो, तुम मुझे ‘कप्तान’ कह सकते हो।
यह सब कहने के बाद उसने मेरे पिता के सामने सोने के चार सिक्के फेंकते हुए कहा, ‘‘जब ये खत्म हो जाएँ तो तुम मुझे बता देना। मैं और सिक्के दे दूँगा।’’
उसकी आवाज बड़ी रुखी थी। उसके कपड़ों पर कई तरह के दाग लगे हुए थे। वह बड़ा खूँखार दिखता था। मैंने सोचा, वह किसी वक्त किसी जहाज का कप्तान रहा होगा। सारा दिन वह समुद्र के किनारे बैठा रहता और दूरबीन से आने-जानेवाले जहाजों को देखता रहता। शाम होते ही वह लॉज के सामने के कमरे में आग जलाकर बैठ जाता और शराब पीने लगता। दिन भर वह इधर-उधर घूमता रहता और लौटते ही पूछता, ‘‘क्या सड़क से कोई नाविक गुजरा था ?’’
जब कोई भी नाविक लॉज में आकर रुकता तो उस दौरान वह चुपचाप अपने कमरे में चूहे की तरह दुबका रहता था।
एक दिन वह मुझे एक ओर ले गया और मेरे हाथ में चाँदी का एक सिक्का थमाते हुए कहने लगा, ‘‘बेटे तुम जरा समुद्र पर नजर रखा करो। यदि किसी दिन कोई लँगड़ा मछुआरा दिख जाए तो तुम फौरन मुझे खबर करना।’’
उस दिन से ऐसा हुआ कि मैं उस लँगड़े मछुआरे के बारे में सोचने लगा। वह लँगड़ा मछुआरा मेरे सपने में आकर मुझे डराने लगा। जब कभी समुद्र में तूफान उठता, वह लँगड़ा मछुआरा मेरे विचारों पर हावी हो जाता।
इस प्रकार कई महीने गुजर गए। हर महीने वह चाँदी का एक सिक्का मुझे थमा देता। लेकिन यह सिक्का मुझे महँगा पड़ रहा था, क्योंकि रह-रहकर मेरे खयालों में वह लँगड़ा मछुआरा घूम जाता। मेरे मन से अब उस कप्तान का भय निकल चुका था। हर शाम वह मुझे गीत सुनाता। उसे बहुत सारे समुद्री गीत याद थे। वह तरह-तरह की कहानियाँ भी सुनाता। उसकी सारी कहानियाँ डरावनी होती थीं। वह बताता कि उसने सारी जिंदगी समुद्री डाकुओं और बहुत खतरनाक लोगों के साथ गुजरी है।
मेरे पिता के पास उसने जो रकम जमा की थी, वह खत्म हो चुकी थी। किराए और खाने की बड़ी रकम उस पर चढ़ गई थी। पर मेरे पिता उससे तकाजा करने का साहस नहीं जुटा पाते थे। एक बार हिम्मत जुटाकर जब उन्होंने उससे पैसे माँग लिये तो कप्तान आग बबूला हो गया। मेरे पिता डरकर फौरन कमरे से बाहर चले गए। जब तक कप्तान लॉज में रहा, मैंने उसे कभी कपड़े बदलते नहीं देखा। उसका कोट बहुत गंदा था। जब कभी वह नशे में होता तो आस-पास के लोगों से बातें करता, वरना अपने आप तक सीमित रहता। लोग उससे बहुत डरते थे। उसके कमरे में रखी तिजोरी हमेशा बंद रहती थी। किसी ने उसे खुला हुआ नहीं देखा था।
मेरे पिता का स्वास्थ्य निरंतर खराब होता जा रहा था। एक दिन दोपहर बाद हमारे कस्बे के डॉक्टर साहब उन्हें देखने आए। डॉक्टर साहब अपना काम समाप्त करके बरामदे में पाइप सुलगाकर बैठे थे। एकाएक कप्तान जोर-जोर से अपना पुराना गीत गाने लगा। फिर वह डॉक्टर साहब के पास पहुँचकर टेबल को पीटने लगा। डॉक्टर ने आदेश के स्वर में कहा, ‘‘शोर नहीं।’’
कप्तान ने आँखें तरेरकर डॉक्टर की ओर देखा तो डॉक्टर ने उसे घुड़कते हुए कहा, ‘‘यदि तुम इसी तरह शराब पीते रहते तो इस धरती को तुम जैसे गंदे और बदमाश आदमी से जल्दी ही छुटकारा मिल जाएगा।’
कप्तान का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। वह उछलकर खड़ा हो गया और जेब से एक लंबा सा चाकू निकालकर डॉक्टर को घूरने लगा।
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लोगों की राय
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