लोगों की राय

हास्य-व्यंग्य >> हाय पैसा हाय

हाय पैसा हाय

ईशान महेश

प्रकाशक : क्रिएटिव बुक कम्पनी प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5421
आईएसबीएन :81-86798-06-4

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

416 पाठक हैं

मजेदार और समय के अनुसार लिखा गया हास्य व्यंग्य

Hay Paisa Hay

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘हाय पैसा हाय !’ ईशान महेश का नया व्यंग्य-संग्रह है। इससे पहले आए इनके व्यंग्य-संग्रह ‘सरेआम’ को पाठकों ने बहुत सराहा था। इनके व्यंग्य जन-साधारण की उस जमीन से जुडे हैं, जिस पर वह जी रहा है-घुट-घुटकर तड़प-तड़प कर दुःख और कष्ट में डूब-डूब कर। ईशान महेश में पाएंगे आप-अपनापन खुद को।

‘हाय पैसा हाय ! में विभिन्न सरकारी विभागों के भ्रष्ट कर्मचारियों द्वारा रिश्वत के लिए अपनाए गए हथकंड़ों पर तीखा व्यंग्य है। देश में समाई हुई अनुशासनहीनता भारतीय जनमानस की हीन भावना, स्वार्थी, धूर्त और पाखंडी लोगों की नीचता का निकष्ट नाच ‘हाय, पैसा हाय !’ में निर्बाध रूप से होता दिखाई देता है।

सभ्य डकैती, सिपाही की भीष्म प्रतिज्ञा, अंग्रेज की बच्ची, नोंटों का चक्कर, कथा एक गतिरोधक की, जनता के दामाद, भय का करंट, थानेदार का डर, चालान का गणित, बीच का रास्ता, पुलिस का काम, हाथी जितना कुत्ता, लागा चुनरी में दाग इत्यादि ढेर सारे व्यंग्य आपको इतना हंसाएंगे कि अपने देश की दुर्दशा देखकर आपकी आंखों से पीड़ा, दुख और कष्ट के आंसू बह चलेंगे।


एक जनवरी मार्ग



‘‘हैप्पी न्यू ईयर।’’ उन्होंने एक चमचमाता सुनहरा कार्ड मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह आपके लिए इंविटेशन है।’’
‘‘किस बात का न्योता है ?’’ मैंने अभिवादन स्वरूप मुस्कराकर पूछा।
‘‘कल से नया साल शुरू होने जा रहा है न, इसलिए हर साल की तरह इस साल भी हमारा क्लब क्नॉट प्लेस के किसी एक होटल में पार्टी दे रहा है।’’ उन्होंने अपनी छाती फुलाकर बताया, ‘‘इस साल इस क्लब का प्रेसिडेंट मैं हूँ। मैंने सोचा अब घर-घुरसु पड़ोसी को जरा दुनिया दिखवा दूँ।’’ वे जबरदस्ती हँसे, ‘‘मेरी बात का बुरा मत मानना। नए साल पर सब माफ होता है।’’

मन में आया, उनसे पूछूँ कि यह अंग्रेजी नव वर्ष क्या तुम्हारे पूर्वजों का बनाया हुआ है। क्या कभी अंग्रेजों ने दीपावली पर दीए जलाए हैं जो तुम इतने हर्षोल्लास से उनका नव वर्ष मना रहे हो।...किंतु शिष्टाचारवश मन की बात कह न सका और औपचारिकता में कार्ड खोलकर पढ़ने लगा। ‘‘अरे पार्टी रात के दस बजे से एक बजे तक क्यों है ?’’ मैं चौका। ‘‘तुम घर से बाहर निकलोगे तो दुनियादारी का कुछ पता चलेगा।’’ वे हँसे, ‘‘अरे भई, दस बजे तो लोग पीना शुरू करेंगे। सारी विदेशी दारु मँगवाई है। इधर लोग पीना शुरू करेंगे, उधर गर्ल्स डांस करना शूरु करेंगी। पौने बारह बजे तक डांस चलेगा।’’ उन्होंने मुस्कराकर अपने दाँतों से अपना होंठ काटा और अपनी जीभ से इसे गीला करते हुए धीरे से कहा। ‘‘डांस, नॉनवेज है। तुम्हारी तबीयत हरी हो जाएगी और तुम इस पार्टी के इंविटेशन से इंम्प्रैस होकर मेरे पैर पकड़ लोगे ! और कहोगे, ‘‘मुझे अपने क्लब का मैम्बर बना लो।’’

मुझे लगा कि उन्होंने सुबह-सुबह ही मदिरा का सेवन किया है, तभी उल्टी बात कर रहे हैं। मैंने उन्हें टोका, ‘‘अरे भाई, भोजन का नॉनवेज होना तो मेरी समझ में आता है, किन्तु नृत्य भला कैसे नॉनवेज हो सकता है ?’’
‘‘कैसे लेखक हो यार तुम।’’ उन्होंने मुझे धिक्कारा, ‘‘वेज और नॉनवेज का कॉनसैप्ट बड़ा अजीब है। भेड़िए के लिए हरी सब्जियाँ नॉनवेज हैं और गाय के लिए खरगोश का मांस।’’ वे अपनी बात पर स्वयं मुग्ध हुए और ठहाका मार कर हँस दिए, ‘‘खैर आगे का प्रोग्राम सुनो। बारह बजे तक सब पीकर धुत्त हो जाएँगे। जैसे ही बारह बजेंगे, मै होटल के हॉल में लगा बड़ा गुब्बारा फोडूँगा। और दो मिनट के लिए लाइटें बंद कर दी जाएँगी। उस दो मिनट में आप किसी के साथ कुछ भी करें-सब माफ होगा। किसी का मतलब समझ रहे हो न ?

उनकी आँखों से झाँकता पिशाच मुझे मुँह चिढ़ा रहा था, ‘‘और जमकर हो-हंगामा करेंगे। शैम्पेन के फव्वारे छोड़ेंगे। सैक्सी साँग गाएँगे। भद्दे इशारों वाले नाच नाचेंगे। जी भर कर मुँह उठाकर अपने दुशमनों को गालियाँ देंगे। पुलिस की जो टुकड़ियाँ कानून और व्यवस्था बनाने के लिए तैनात होंगी, उनको भी पिलाएँगे। अपनी- अपनी कारों या जीपों के बोनट पर खड़े होकर ठुमके लगाएँगे। और जानते हो एक जनवरी के न्यूज पेपरों के मेन पेजों पर हमारी फोटोग्राफ छपेगी। उस पर लिखा होगा। ‘‘नव वर्ष का स्वागत करते कुछ नवयुवक।’’
अपने देश का वर्तमान देखकर मुझे चक्कर आ गया और मैं अपना माथा पकड़ भूमि पर बैठ गया।


चालान का गणित


मैंने देखा मुख्य चोराहे पर लाल बत्ती थी लेकिन फिर भी सभी वाहन ऐसे भागे जा रहे थे जैसे मंदिर के बाहर कोई धनी भक्त डबल रोटी बाँट रहा हो और उसे प्राप्त करने के लिए याचक उमड़-घुमड़ कर पड़ रहे हों। मैंने सोचा हो सकता है रात को पुलिस विभाग के किसी अति बुद्धिमान परामर्शदाता ने यह सुझाया हो कि लोगों को लाल बत्ती का उल्लंघन करने में मजा आता है इसलिए उन्हें मजे लेने दो और नया कानून बना दो कि हरी बत्ती पर रुकना है और लाल बत्ती को कूदना है। लेकिन मेरी बुद्धि ने टोका, नहीं यह संभव नहीं है। हो सकता है कि जब बत्ती लाल हो तो संकेतों ने काम करना बंद कर दिया हो। ऐसे में वहाँ तैनात सिपाही ने वाहनों के संचालन का दायित्व ले लिया होगा और उसने ही इन सब वाहनों को लाल बत्ती को पार करने की अनुमति दी होगी। खैर कुछ भी रहा हो। मैं भी अन्य वाहनों की रेलम-पेल में लाल बत्ती कूद गया।

जैसे ही चौराहा पार किया तो देखा कि दो- तीन यातायात पुलिस के सिपाही लाल बत्ती पार करने वाले वाहनों को रुकने का संकेत कर रहे थे लेकिन सभी वाहन अपनी लाइन में, उनकी उपेक्षा कर आगे बहते चले गए। सिपाही हाथ मलते रह गए और अपने मलते हाथों से उन्होंने मुझे भी रुकने का इशारा किया। मैंने अपना स्कूटर रोक दिया।
‘‘गाड्डी सैड में लगा।’’ सिपाही ने मुझे आदेश दिया।
‘‘लाइसेंस निकालो।’’ अकस्मात प्रकट हुए इस्पैक्टर ने चालान बुक में मेरे स्कूटर का नंबर लिखते हुए मुझसे पूछा, ‘सौ रुपए हैं ?’’

‘‘हाँ, हैं।’’ मैं अपना लाइसेंस इंस्पैक्टर की ओर बढ़ा दिया।
‘‘फिर ठीक है।’’ उसने आश्वस्त होकर चालान में मेरा-नाम पता इत्यादि दर्ज किया और पन्ना फाड़ कर मेरी ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘सौ रुपए निकालो।’’
मैंने सौ रुपए निकाल कर इंस्पैक्टर को दे दिए और पूछा। ‘‘अब मेरा अपराध तो बता दीजिए।’’
‘‘तुमने रेड लाइट क्रोस की है।’’ इंस्पैक्टर बोला।
‘‘हाँ, लाल बत्ती तो मैंने पार की है।’’ मैं बोला, ‘‘लेकिन भ्रम मैं पार हो गई। बाकि सभी वाहन जा रहे थे। मैंने सोचा हो सकता है बत्ती खराब हो।’’
‘‘बत्ती बिल्कुल ठीक है। इंस्पैक्टर चौराहे की लाल बत्ती का उल्लंघन करते वाहनों की अगली खेप को देखने लगा। ‘‘धत् तेरे की। एक भी साला नहीं रुका।’’

घात लगाकर बैठे सिपाही प्रकट हुए और लिफ्ट माँगने की शैली में उल्लंघनकर्ताओं को रुकने का इशारा करते रहे और वाहन उन्हें मुँह चिढ़ाकर सरपट दौड़ गए।
‘‘आपने मेरे आगे जा रहे किसी भी वाहन का चालन क्यों नहीं किया ?’’ मैंने पूछा।
‘‘उनका चालान तो तब होता, जब रुकते।’’ इंस्पैक्टर बोला, ‘‘तुम भले आदमी लगते हो। इसलिए तुम रुक गए और हमने तुम्हारा चालान कर दिया।

‘‘वह देखिए।’’ तभी मैंने इंस्पैक्टर का ध्यान लालबत्ती का उल्लंघन करते दस-बारह रेबड़े-रिक्शे और साइकिल वालों की ओर आकृष्ट किया, इन्हें तो आप पकड़ सकते हैं। इनका चालान कीजिए। ये रेहड़ी- रिक्शा-साइकिल वाले लालबत्ती की परवाह ही नहीं करते। जिसके कारण, दूसरी ओर जिसकी ही बत्ती है, उसे रुके रहना पड़ता है और जब तक रिक्शाओं का काफिला गुजरता है तब तक उसकी लाल बत्ती हो जाती है और आक्रोश में वह उसे टाप जाता है। इसलिए आप इनका भी चालान कीजिए। इन्हें आप पकड़ भी सकते हैं।’’
‘‘पर हम इनका चालान नहीं कर सकते।’’ इंस्पैक्टर ने कहा।
‘‘क्यों ?’’
‘‘क्योंकि ये बेचारे गरीब आदमी है।’’ इंस्पैक्टर उदारतापूर्वक बोला।
‘‘क्या गरीब होने से नियम तोड़ने की अनुमति मिल जाती है ?’’ मैंने आश्चर्यपूर्वक पूछा।
‘‘हाँ गरीब होने से नियम तोड़ने की अनुमति मिल जाती है।’’ इंस्पैक्टर निर्द्वंद्व स्वर में बोला, ‘‘तुम रिक्शा रेहड़ा लेकर आओ। लाल बत्ती पार कर जाओ। मैं क्या, कोई भी तुम्हारा चालान नहीं करेगा।’’
‘‘पर ऐसा क्यों हैं ? ’’ मैंने जिज्ञासा की।
‘‘सरकार की नीति है।’’ वह कंधे उचकाकर बोला।
‘‘वह कैसे हैं’’ मेरी आँखें जिज्ञासा में फैल गई।

‘‘वह ऐसे।’’ इंस्पैक्टर विश्राम की मुद्रा में मोटर साइकिल पर बैठ गया। उसने पश्चिम दिशा की ओर इशारा किया और बोला, ‘‘वह देखो। झुग्गी झोपड़ी वालों ने बीच सड़क में अपनी झुग्गियाँ डाल दीं। फलतः हमें वह सड़क यातायात के लिए बंद करनी पड़ी। तुम अपने घर के नक्शे से अलग एक कमरा भी डालकर दिखा सकते हो ? हम यानी हमारा मित्र वर्ग उसे अगले दिन ढा देगा; लेकिन इन्हें हम छू भी नहीं सकते। इन्होंने बिजली के तारों पर अवैध कनेक्शन उछाले हुए हैं-तुम बिना मीटर के बिजली ले कर तो देखो। ये कहीं भी पाइप लाइन तोड़ सकते हैं-क्योंकि ये गरीब और पिछड़े वर्ग से हैं। जैसे शास्त्रों में ब्राह्मण और दूत अवध्य है; वैसे ही सरकारी कानून की दृष्टि में चालान मुक्त हैं।’’

मैंने अपना सिर इंस्पैक्टर के चरणों में झुका दिया और प्रभावित स्वर में बोला, गुरुदेव आप सत्य कहते हैं-गरीब का चालान कैसा ? मुझ मूर्ख को तो यह तथ्य आज ही समझ में आया कि हमारी सरकार ! ‘गरीबों की सरकार’ कैसे कहलाती है। मैंने अपना सिर उठाया और कहा, ‘‘अब मैं भविष्य में कभी लाल बत्ती पार नहीं करूँगा। लेकिन अगर फिर यही सीन बने तो क्या करूँ।’’
‘‘तो।’’ इंस्पेक्टर हँसा, ‘‘तो किसी रिक्शा में अपना स्कूटर रख कर लाल बत्ती टाप जाना। तुम्हारा चालान नहीं होगा। यह मेरा वचन है।


प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book