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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

छह

 

खर को सेना सहित विदा कर, शूर्पणखा अपने शयन-कक्ष में जा लेटी। स्थिति कहां-से-कहां तक जा पहुंची-वह सोच रही थी-कहां उसने सोचा था कि अपने रूप-वैभव से राम को मुग्ध करेगी, और कहां आज खर को अपने समस्त सेनापतियों तथा चौदह सहस्र सैनिकों की विशाल सेना लेकर राम पर आक्रमण करने के लिए जाना पड़ गया है...किंतु क्या सचमुच इसकी आवश्यकता थी?...शूर्पणखा का मन निश्चय नहीं कर पा रहा था-क्या सचमुच इसकी आवश्यकता थी? दो तापस धनुर्धारियों और उनके कुछ सहायकों को दंडित करने के लिए जनस्थान के समस्त

सेनापतियों, महारथियों और संपूर्ण सेना का जाना आवश्यक था क्या?...पर जब दूषण ने राम की शक्ति का तिरस्कारपूर्वक उल्लेख किया था, तो स्वयं शूर्पणखा ने ही उसका विरोध कर, उसे आवेश दिलाया था...नहीं तो कोई भी व्यक्ति कितना भी युद्ध-कुशल क्यों न हो, कितने दिव्यास्त्रों का ज्ञान उसे क्यों न हो-उसके लिए इतनी बड़ी, साधन-संपन्न सेना का जाना...

...चलो, कोई बात नही-उसने सोचा-सैनिक पड़े-पड़े आलसी ही तो हो गए थे, उनका व्यायाम हो जाएगा और राम तथा सौमित्र के सम्मुख राक्षसों का शक्ति-प्रदर्शन हो जाएगा।

सहसा वह चौंककर उठ बैठी। अभी घड़ी-दो घड़ी में खर, बंदी राम, अपहृत सीता और मृत सौमित्र के साथ यहां आ पहुंचेगा और वह ऐसे बैठी है, जैसे कुछ होना ही न हो, "द्वार पर कौन है?''

"स्वामिनी।"

"वज्रा को भेज।'' शूर्पणखा बोली, "और कापालिका को भी आने के लिए कह दे।''

"जो आज्ञा।''

शूर्पणखा दर्पण के सामने बैठ गयी-खर राम को बंदी करने गया है। अब राम मेरे भोग्य पदार्थ के रूप में यहां रहेगा। उसे लुभाना अब आवश्यक नहीं है-अब उसकी नहीं, मेरी इच्छा चलेगी। वह मुझे लुभाने का प्रयत्न करेगा। अपनी इच्छा से मेरे अंगों को नहीं सहलाएगा तो मेरे कशाधातों के कारण अपने शरीर को सहलाता रहेगा। स्वयं को कष्टों से बचाने के लिए, अधिक सुविधाएं पाने के लिए, अपने जीवन के छोटे-छोटे सुखों के लिए, मुझ पर रीझने का नाटक करेगा, घटिया चाटुकारों के समान मेरी स्तुति करता फिरेगा, मेरे भू-संकेतों पर नाचेगा...

''आदेश दें, स्वामिनी!'' वज्रा ने आकर अभिवादन किया।

"काम-क्रीड़ा के अनुकूल मेरा प्रसाधन कर दे।'' शूर्पणखा ने दर्पण में अपना मुखड़ा देखते हुए कहा, "और परिधान बदल दे।"

वज्रा सखियों के साथ अपने काम में लग गयी। राम को साथ वाले कक्ष में बंदी रखना पड़ेगा। शूर्पणखा सोच रही थी। उसके लिए आरंभ में प्रहरियों की भी व्यवस्था करनी पड़ेगी। वह बलिष्ठ है, अधिक प्रहरियों का प्रबध करना पड़ेगा। बहुत उत्पात करेगा तो? शूर्पणखा का रोष उद्दीप्त हो उठा। उसे पैरों में श्रृंखलाएं पहनाकर रखना पड़ेगा। शांति से रहेगा, तो उसे अपने क्य में भी रख सकती है।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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