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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

लक्ष्मण अपने खड्ग पर शूर्पणखा का दबाव अनुभव कर रहे थे... अपने वय की स्त्री की दृष्टि से शूर्पणखा का बल असाधारण था ...लक्ष्मण ने झटके से अपना खड्ग हटाया, तो शूर्पणखा अपने ही जोर से धरती पर जा रही; किंतु असाधारण स्फूर्ति से वह उठी और पुनः लक्ष्मण पर झपटी। लक्ष्मण ने पुनः खड्ग का प्रहार किया। शूर्पणखा के हाथ से कटार दूर जा गिरी। भूमि पर लोटती हुई, शूर्पणखा भी कटार तक गयी और पुनः उठ खड़ी हुई। इस बार उसने लक्ष्मण पर प्रहार किया। लक्ष्मण ने उसे सीधे खड्ग पर रोका और धक्का देने से पूर्व, क्षण-भर शूर्पणखा के रूप को देखा-उसके श्रृंगार का सारा वैभव लुट चुका था। केश खुलकर बिखर गए थे। वस्त्र मिट्टी से मैले हो गए थे। सुगधित द्रवों पर धूल ने कीचड़ बना दिया था। अनेक स्थानों से शरीर छिल गया था। स्वेद और धूल ने चेहरे के लेपों को विकृत कर दिया था; और उसके हृदय के विकृत भाव-हिंसा, घृणा, उग्रता आकर उसके चेहरे पर चिपक गए थे।-वह राक्षसी अत्यन्त घृणित और भयंकर रूप धारण किए हुए थी...

लक्ष्मण के झटके से शूर्पणखा की कटार पुनः हवा में उछल गयी और वह स्वयं भूमि पर जा गिरी। लक्ष्मण ने खड्ग की नोक उसके वक्ष से जा लगायी, "न्याय के अनुसार तो तेरा दंड सिवाय मृत्यु के और कुछ नहीं हो सकता; किंतु तू निशस्त्र स्त्री है और हमारे आश्रम में अकेली है, इसलिए तेरा वध नहीं करूंगा। पर अदंडित तू नहीं जाएगी। ले दंड के चिन्ह...!''

और लक्ष्मण ने क्षण भर में अपने कौशल से उसकी नासिका और श्रवणों पर खड्ग की एक-एक सूक्ष्म रेखा बना दी, जिनसे रक्त की बूंदें टपक रही थी। लक्ष्मण पीछे हट गए। "उठ! और चली जा।"

शूर्पणखा सहमी-सी उठी। उसने आशंका-भरी दृष्टि से लक्ष्मण को देखा और फिर झटके से पलटकर भागी। सब कुछ जैसे क्षण भर में ही हो गया था।

सीता अभी तक आकस्मिकता के झटके से ही नहीं उबरी थीं। बिना यह जाने कि बाहर कौन है और क्या स्थिति है-वे असावधान-सी, सहज रूप से बाहर आयी थी। इससे पहले कि वे शूर्पणखा को देखतीं और समझतीं कि वह कौन है तथा क्या चाहती है-शूर्पणखा उन पर आघात कर चुकी थी। वह तो सौमित्र की ही स्फूर्ति थी, जिसने उन्हें बचा लिया; अन्यथा जाने क्या अघटनीय घटता ...क्षण-भर स्तब्धता रही और तब राम बोले, ''आर्य जटायु की बात सत्य हुई। शूर्पणखा की उग्रता अब उग्रतर ही होगी। रावण को चुनौती भेजी जा चुकी। कल से संघर्ष के लिए प्रस्तुत रहो।''

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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