बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
जटायु एक टीले के नीचे जाकर रुक गए। अन्य लोग साथ आ मिले तो वे बोले, ''राम! मेरी दृष्टि में यह यहां का सबसे सुंदर तथा सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है, विशेष रूप से गुप्त युद्ध के लिए। इस टीले के चारों ओर ढूह हैं, जिनके पीछे छिपकर युद्ध किया जा सकता है। सामने के वन के पीछे गोदावरी है। बायीं ओर कपिल गंगा की धारा है। आगे इन दोनों का संगम है। यह संगम हमारे लिए प्राकृतिक सीमा है।...और सुंदर तो यह स्थान है 'ही।''
''बहुत सुंदर स्थान है। मेरा मन तो इसी टीले के ऊपर आश्रम बनाने का हो रहा है।'' सीता बोलीं, ''आश्चर्य है कि इतने सुंदर स्थान पर अभी तक कोई आश्रम क्यों नहीं बना।''
''यहां अनेक आश्रम थे, वैदेही!'' जटायु धीरे से बोले, ''कपिल का, गौतम का...कुछ अन्य ऋषियों का भी। वस्तुतः किसी समय इस स्थान को तपोवन ही कहा जाता था। किंतु खर-दूषण के सैनिकों ने उनमें से एक भी नहीं रहने दिया।''
''यह तो अपने-आप में ही प्राकृतिक गढ़ है।'' लक्ष्मण ने निरीक्षण के पश्चात अपना निष्कर्ष बताया।
''आप अद्भुत हैं, तात जटायु!'' राम मुस्कराए, ''सब सहमत हैं कि यही स्थान उपयुक्त है।''
राम टीले के ऊपर चढ़ गए। वहां से सारा क्षेत्र, किसी मानचित्र के समान दिखाई पड़ रहा था। ढूहों तथा टीलों के नीचे विरल वन था, जिसमें अनेक वट तथा पीपल के वृक्ष दिखाई पड़ रहे थे। कदाचित् इन्हीं में कहीं पांच वट इकट्ठे होंगे, जिसके कारण इस स्थान का नाम किसी ने पंचवटी रख दिया होगा। वन के वृक्षों के उस पार कहीं-कहीं गोदावरी की धारा दिखाई पड़ रही थी। जल बहुत अधिक नहीं था। शिलाओं से टकराता जल बड़े वेग से बह रहा था। इन शिलाओं के कारण, इस स्थान पर नौकाचालन संभव नहीं था। बायीं ओर से कपिल गंगा की धारा आकर मिल रही थी...वर्षा में जब गोदावरी भर जाती होगी, तो निश्चित रूप से जल इन टीलों के नीचे तक आ जाता होगा...यहां से गोदावरी न तो अति निकट थी और न ही दूर...इसके पार कहीं जनस्थान था, राक्षसों का सैनिक स्कंधावार...।
राम ने अपने हाथों में पकड़े खड्ग और धनुष भूमि पर रख दिए। कंधों पर टंगे तूणीर भी उन्होंने उतार दिए। शेष लोगों ने भी शस्त्र भूमि पर, वृक्षों के तनों के साथ टिका दिए।
अगले ही क्षण सबके हाथों में कुल्हाड़ियां और कुदाल आ गए। तीव्र गति से कार्य होने लगा। वृक्षों की शाखाएं कट-कटकर गिरने लगीं। शाखाओं के पत्ते उतारे गए और सुंदर तथा दृढ़ कुटीर आकार लेने लगे।
जटायु एक वृक्ष की छाया में बैठे, उन लोगों का कौशल देख रहे थे। राम, लक्ष्मण और सीता में राजपरिवार वाली कोई कोमलता दिखाई नहीं पड़ रही थी। वे साधारण वनवासियों के समान कार्य कर रहे थे-हां, उनकी दक्षता अवश्य असाधारण थी। यह सब उनके दीर्घकालीन वनवास का ही फल हो सकता है। ये लोग कब से वन में रह रहे हैं?...विशेष रूप से सीता को देखकर आश्चर्य हो रहा था। उसने कैसे स्वयं को इस जीवन के अनुकूल बनाया होगा?
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