स्वास्थ्य-चिकित्सा >> कैंसर कैंसरहरी ओम गुप्ता
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कैंसर जैसी भयानक बीमारी के बचाव व उसका उपचार की विधियाँ
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भूमिका
यह पूरे विश्व में प्रचलित एक बहुत पुरानी प्राकृतिक रासायनिक तत्वों वाली
चिकित्सा है। सूर्य स्नान, सतरंगी किरणों के सात रंग, लाल-हरा एवं नीले
रंगों के गुण इस चिकित्सा की मुख्य विशेषताएं हैं। सूर्य की किरणों एवं
इसके सात रंगों द्वारा हमारे शरीर को लाभ देने की उत्तम एवं लाभकारी तकनीक
है। यह सरल चिकित्सा साधारण व्यक्ति या गृहणी को भी आसानी से समझ आने वाली
है। अपने रोज की खाने-पीने, मलने या अन्य इस्तेमाल की वस्तुओं को अलग-अलग
रंग की सूर्य की किरणों से चार्ज करके इस्तेमाल करने से कैंसर तथा एड्स
जैसे जटिल रोगों से भी आप छुटकारा पा सकते हैं।
हमारे शरीर में स्वयं ठीक होने की क्षमता होती है। जिसे हम सूर्य की किरणों से जाग्रत कर स्वस्थ, निरोगी एवं सुन्दर बन सकते हैं। यह सात रंग हर रोग को ठीक कर अच्छी सेहत प्रदान करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ‘क्रोमोपैथी’ हानिरहित, बिना लागत, प्राकृतिक रासायनिक तत्त्व सूर्य देव के अमूल्य आशीर्वाद से सुसज्जित है। एक साधारण व्यक्ति भी इस चिकित्सा से निःशुल्क लाभ प्राप्त कर सकता है।
हमारे शरीर में स्वयं ठीक होने की क्षमता होती है। जिसे हम सूर्य की किरणों से जाग्रत कर स्वस्थ, निरोगी एवं सुन्दर बन सकते हैं। यह सात रंग हर रोग को ठीक कर अच्छी सेहत प्रदान करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ‘क्रोमोपैथी’ हानिरहित, बिना लागत, प्राकृतिक रासायनिक तत्त्व सूर्य देव के अमूल्य आशीर्वाद से सुसज्जित है। एक साधारण व्यक्ति भी इस चिकित्सा से निःशुल्क लाभ प्राप्त कर सकता है।
प्रस्तावना
उत्कृष्ट समाज सेवा के प्रतीक—श्री हरि ओम गुप्ता
प्रणाम ! उस ‘मां’ को जिसने तुम्हें जन्म दिया। श्री
हरि ओम
गुप्ता जिन्हें लोग प्यार तथा सादर से गुप्ता साहिब कहते हैं। एक सफल
उद्योगपति तथा प्रिय व्यक्ति हैं। मेरे तो वह परम घनिष्ट मित्र तथा साथी
हैं। उन्होंने अपना जीवन एक कुशल उद्योगपति के तौर पर व्यतीत किया परन्तु
अब वह तन, मन तथा धन से समाज की सेवा में जुट गए हैं। प्रारम्भ में
उन्होंने लोगों की सेवा अपने घर पर ही सूर्य की किरण और रंग चिकित्सा के
माध्यम से की। इस पद्धति का इस्तेमाल उन्होंने घरेलू वस्तुओं मिश्री, शहद,
वैसलीन, देसी घी, तेल और पानी को औषधीय गुणयुक्त कर औषधि के रूप में
प्रयोग करवाया। वह सुदूर गांवों में भी जाकर बेसहारा तथा असमर्थ मरीजों का
इलाज करते हैं। हम सब उनके मित्र तथा साथी उनकी लगन की सराहना करते हैं।
अब तो मरीज लोगों की सेवा करना ही इनका परम धर्म बन गया है। गुप्ता साहिब
लोगों को अपने घर पर ही निःशुल्क दवाई देते हैं।
अब लगभग पाँच वर्ष से मुझे तो ऐसा लगता है कि परमात्मा ने उनका तीसरा ज्ञान चक्षु खोल दिया है। उन्होंने अपनी कलम उठाई तथा लिखना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने इस समय केवल सूर्य किरण तथा रंग चिकित्सा के माध्यम से विभिन्न रोगों के उपचार हेतु किताबों की झड़ी लगा दी है। जो आजकल हर निकटतम बुक स्टाल पर उपलब्ध है। उनकी पद्धति को अपनाने से मनुष्य स्वस्थ, निरोग, सुन्दर, सुडौल और जीवन भर सुखपूर्वक तथा आनन्द से रहता है। मुझे आशा है कि इन पुस्तकों में दिए गए ज्ञान का अनुसरण तथा अभ्यास कर पाठक शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक करके सुखमय जीवन व्यतीत करेंगे।
अब लगभग पाँच वर्ष से मुझे तो ऐसा लगता है कि परमात्मा ने उनका तीसरा ज्ञान चक्षु खोल दिया है। उन्होंने अपनी कलम उठाई तथा लिखना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने इस समय केवल सूर्य किरण तथा रंग चिकित्सा के माध्यम से विभिन्न रोगों के उपचार हेतु किताबों की झड़ी लगा दी है। जो आजकल हर निकटतम बुक स्टाल पर उपलब्ध है। उनकी पद्धति को अपनाने से मनुष्य स्वस्थ, निरोग, सुन्दर, सुडौल और जीवन भर सुखपूर्वक तथा आनन्द से रहता है। मुझे आशा है कि इन पुस्तकों में दिए गए ज्ञान का अनुसरण तथा अभ्यास कर पाठक शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक करके सुखमय जीवन व्यतीत करेंगे।
वेद प्रकाश खारा
M.A., M.Ed., P.E.S. (Retd.)
निरोगी होने की अद्भुत कहानी
लेखक की जुबानी
मुझे बीमारियों ने इतना घेर लिया था कि मैं खुदकुशी करने को मजबूर हो गया
था और एक दिन मैंने यह फैसला किया कि ऐसी जिन्दगी से तो मर जाना ही अच्छा
है। यह निर्णय लेकर मैं एक दिन खुदकुशी करने के लिए अपनी गाड़ी लेकर
हरिद्वार के लिए चल पड़ा।
लेकिन, हरिद्वार जाने के बजाय मैं ऋषिकेश चला गया। यह सोचकर कि अगर मैंने चारपाई पकड़ ली तो मुझे अस्पताल दाखिल करवा दिया जाएगा और मुझसे यह बर्दाश्त नहीं होगा। जो मुझे बीमारियां लगी हुई थीं, वह इस प्रकार थीं—माइग्रेन—जिसमें कि मैं हर समय सिर पर गमछा कस कर बांधे रखता था, मधुमेह ने भी पूरा जोर पकड़ा हुआ था।
यहां तक कि मेरी पीठ पर फोड़े रोज निकल आते थे। सिर पर भी फोड़े हो गए थे तथा पैरों से पानी रिसना शुरू हो गया था, मेरे हाथों पोरों की चमड़ी उखड़ने लग गई थी। सो कर उठता था तो हाथ की उँगलियाँ जहां की तहां अकड़ जाती थीं। दर्द के कारण मुझे पंद्रह-बीस मिनट उंगलियों को हरकत में लाने के लिए लग जाते थे। चलने में काफी मुश्किल होती थी और जब मैं सीढ़ियाँ चढ़ता तो मैं अपने घुटनों को पकड़ कर एक-एक सीढ़ी बहुत मुश्किल से चढ़ता था। ब्लड प्रेशर, शरीर की कमजोरी, रात को नींद न आना (नींद न आने का तो मुझे बहुत ज्यादा दुख होता था)। मानसिक रोग और छोटी-बड़ी कई बीमारियों ने जकड़ रखा था। हाथ की पकड़ने की ताकत भी समाप्त हो गई थी। इस अवस्था में मुझे कोई बाहर से पन्द्रह गोलियां सुबह से शाम तक खानी पड़ती थीं। दवाई कम न पड़ जाए इस कारण मैं ज्यादा से ज्यादा मात्रा में दवाई लेकर रखता था।
ऋषिकेश में कुछ दिनों के बाद एक सज्जन मुझे मिले। मैंने बातों ही बातों में कहा कि मुझे रात में नींद नहीं आती। फिर यह सज्जन बोले कि यह कौन सी बड़ी बात है ? उन्होंने मुझे शीशी में दस बारह बूंद तेल डालकर दे दी और कहने लगे कि इसकी पाँच-छः बूंदें रात को सोते समय सिर में तालू पर डालकर हाथ की अगली पोरों से धीरे-धीरे पन्द्रह-बीस मिनट तक मल लेना। साथ में माथे और कनपटी पर भी मल लेना। आपको नींद आ जाएगी। परन्तु नींद की गोली मत खाना और मैंने उनके कहे अनुसार ही किया। रात भर मुझे गहरी और मीठी नींद आई।
जब मैं सुबह उठा तो मेरा शरीर हल्का था। मन बहुत प्रसन्न हुआ। दूसरे दिन भी अच्छी नींद आई। इससे पहले मैं नींद की गोली की दो से चार गोली रात को लेकर सोता था। मैं सोच में पड़ गया कि इस तेल में कौन सा जादू है, जिसने कि एकदम रामबाण की तरह असर किया है। शाम को मैं उन सज्जन के कमरे में गया और मैंने कहा कि भाई साहब आपकी बहुत मेहरबानी है। इस दवाई ने तो मेरे ऊपर जादू की तरह असर किया है। वह कहने लगे कि गुप्ता जी इस तेल को इस्तेमाल करने वाले लोग इसे जादू का तेल ही कहते हैं। मैंने उनसे प्रार्थना की कि मुझे थोड़ा सा तेल और दे दो। उन्होंने कहा कि मैं क्षमा चाहता हूं कि आपको और तेल नहीं दे सकता। क्योंकि मैं भी घर से घूमने निकला हूं और सात-आठ महीने बाद ही घर जाना है।
उन्होंने मुझे कई तरह की दवाईयां दिखाईं और बोले कि मेरे एक मित्र चंडीगढ़ में इन दवाइयों को सूर्य की रोशनी में चार्ज करके तैयार करते हैं। उनसे कोई मांगे तो वह थोड़ी बहुत कभी-कभी दे देते हैं। उनका यह कोई धंधा नहीं है। मेरे पास एक किताब है, उसे ले जाइए और पढ़ लें। उस किताब को मैं रात-भर पढ़ता रहा और जो कुछ भी मुझे अपने रोगों से मिलता-जुलता मिला उन पन्नों की मैंने दूसरे दिन प्रातः फोटोकॉपी करवा ली। वहां एक सप्ताह बिता कर वापिस आकर मैंने दिल्ली से यह किताब मंगवाई यह किताब श्री द्वारकानाथ नारंग जी की थी।
मैं उस किताब के अनुसार सूर्य किरण और रंग चिकित्सा (क्रोमोपैथी) के माध्यम से धीरे-धीरे दवाईयां तैयार करता और लेता रहा और परहेज भी पूरे नियम से कहता रहा। मैं तीन महीने में पूरी तरह ठीक हो गया। पहले मेरा वजन सतानवे किलो था और स्वस्थ होने के बाद मेरा वजन सत्तर किलो हो गया। मैंने सब दवाइयां छोड़ दीं। मेरा जोड़ों का दर्द ठीक हो गया। मांसपेशियां, सिर पर फोड़े, पैरों में पानी निकलना, सब ठीक हो गया और क्या-क्या बताऊँ, अब मैं पूर्णतः स्वस्थ हूँ। अब हर रोज सुबह आठ-दस किलोमीटर और शाम को भी चार-पांच किलोमीटर तक सैर करता हूं। मुझे मिलने वाले लोग कहने लगे कि क्या बात है गुप्ता जी ! पहले से स्वस्थ लग रहे हो। मेरा हर किसी से यही जवाब होता था कि मैं ठीक हूँ। मेरे रोग भी ठीक हो गए हैं। लोग मुझे कहने लगे कि हमें भी कोई ऐसी दवाई दे दो कि हम लोग भी आपकी तरह स्वस्थ हो जायें। लोगों की इस उक्ति को ध्यान में रखकर मैं ‘सूर्य किरण और रंग चिकित्सा (क्रोमोपैथी)’ के माध्यम से दवाईयां तैयार करता हूँ। जिन लोगों ने विश्वास के साथ इलाज किया वह लोग ठीक हो गए।
लेकिन, हरिद्वार जाने के बजाय मैं ऋषिकेश चला गया। यह सोचकर कि अगर मैंने चारपाई पकड़ ली तो मुझे अस्पताल दाखिल करवा दिया जाएगा और मुझसे यह बर्दाश्त नहीं होगा। जो मुझे बीमारियां लगी हुई थीं, वह इस प्रकार थीं—माइग्रेन—जिसमें कि मैं हर समय सिर पर गमछा कस कर बांधे रखता था, मधुमेह ने भी पूरा जोर पकड़ा हुआ था।
यहां तक कि मेरी पीठ पर फोड़े रोज निकल आते थे। सिर पर भी फोड़े हो गए थे तथा पैरों से पानी रिसना शुरू हो गया था, मेरे हाथों पोरों की चमड़ी उखड़ने लग गई थी। सो कर उठता था तो हाथ की उँगलियाँ जहां की तहां अकड़ जाती थीं। दर्द के कारण मुझे पंद्रह-बीस मिनट उंगलियों को हरकत में लाने के लिए लग जाते थे। चलने में काफी मुश्किल होती थी और जब मैं सीढ़ियाँ चढ़ता तो मैं अपने घुटनों को पकड़ कर एक-एक सीढ़ी बहुत मुश्किल से चढ़ता था। ब्लड प्रेशर, शरीर की कमजोरी, रात को नींद न आना (नींद न आने का तो मुझे बहुत ज्यादा दुख होता था)। मानसिक रोग और छोटी-बड़ी कई बीमारियों ने जकड़ रखा था। हाथ की पकड़ने की ताकत भी समाप्त हो गई थी। इस अवस्था में मुझे कोई बाहर से पन्द्रह गोलियां सुबह से शाम तक खानी पड़ती थीं। दवाई कम न पड़ जाए इस कारण मैं ज्यादा से ज्यादा मात्रा में दवाई लेकर रखता था।
ऋषिकेश में कुछ दिनों के बाद एक सज्जन मुझे मिले। मैंने बातों ही बातों में कहा कि मुझे रात में नींद नहीं आती। फिर यह सज्जन बोले कि यह कौन सी बड़ी बात है ? उन्होंने मुझे शीशी में दस बारह बूंद तेल डालकर दे दी और कहने लगे कि इसकी पाँच-छः बूंदें रात को सोते समय सिर में तालू पर डालकर हाथ की अगली पोरों से धीरे-धीरे पन्द्रह-बीस मिनट तक मल लेना। साथ में माथे और कनपटी पर भी मल लेना। आपको नींद आ जाएगी। परन्तु नींद की गोली मत खाना और मैंने उनके कहे अनुसार ही किया। रात भर मुझे गहरी और मीठी नींद आई।
जब मैं सुबह उठा तो मेरा शरीर हल्का था। मन बहुत प्रसन्न हुआ। दूसरे दिन भी अच्छी नींद आई। इससे पहले मैं नींद की गोली की दो से चार गोली रात को लेकर सोता था। मैं सोच में पड़ गया कि इस तेल में कौन सा जादू है, जिसने कि एकदम रामबाण की तरह असर किया है। शाम को मैं उन सज्जन के कमरे में गया और मैंने कहा कि भाई साहब आपकी बहुत मेहरबानी है। इस दवाई ने तो मेरे ऊपर जादू की तरह असर किया है। वह कहने लगे कि गुप्ता जी इस तेल को इस्तेमाल करने वाले लोग इसे जादू का तेल ही कहते हैं। मैंने उनसे प्रार्थना की कि मुझे थोड़ा सा तेल और दे दो। उन्होंने कहा कि मैं क्षमा चाहता हूं कि आपको और तेल नहीं दे सकता। क्योंकि मैं भी घर से घूमने निकला हूं और सात-आठ महीने बाद ही घर जाना है।
उन्होंने मुझे कई तरह की दवाईयां दिखाईं और बोले कि मेरे एक मित्र चंडीगढ़ में इन दवाइयों को सूर्य की रोशनी में चार्ज करके तैयार करते हैं। उनसे कोई मांगे तो वह थोड़ी बहुत कभी-कभी दे देते हैं। उनका यह कोई धंधा नहीं है। मेरे पास एक किताब है, उसे ले जाइए और पढ़ लें। उस किताब को मैं रात-भर पढ़ता रहा और जो कुछ भी मुझे अपने रोगों से मिलता-जुलता मिला उन पन्नों की मैंने दूसरे दिन प्रातः फोटोकॉपी करवा ली। वहां एक सप्ताह बिता कर वापिस आकर मैंने दिल्ली से यह किताब मंगवाई यह किताब श्री द्वारकानाथ नारंग जी की थी।
मैं उस किताब के अनुसार सूर्य किरण और रंग चिकित्सा (क्रोमोपैथी) के माध्यम से धीरे-धीरे दवाईयां तैयार करता और लेता रहा और परहेज भी पूरे नियम से कहता रहा। मैं तीन महीने में पूरी तरह ठीक हो गया। पहले मेरा वजन सतानवे किलो था और स्वस्थ होने के बाद मेरा वजन सत्तर किलो हो गया। मैंने सब दवाइयां छोड़ दीं। मेरा जोड़ों का दर्द ठीक हो गया। मांसपेशियां, सिर पर फोड़े, पैरों में पानी निकलना, सब ठीक हो गया और क्या-क्या बताऊँ, अब मैं पूर्णतः स्वस्थ हूँ। अब हर रोज सुबह आठ-दस किलोमीटर और शाम को भी चार-पांच किलोमीटर तक सैर करता हूं। मुझे मिलने वाले लोग कहने लगे कि क्या बात है गुप्ता जी ! पहले से स्वस्थ लग रहे हो। मेरा हर किसी से यही जवाब होता था कि मैं ठीक हूँ। मेरे रोग भी ठीक हो गए हैं। लोग मुझे कहने लगे कि हमें भी कोई ऐसी दवाई दे दो कि हम लोग भी आपकी तरह स्वस्थ हो जायें। लोगों की इस उक्ति को ध्यान में रखकर मैं ‘सूर्य किरण और रंग चिकित्सा (क्रोमोपैथी)’ के माध्यम से दवाईयां तैयार करता हूँ। जिन लोगों ने विश्वास के साथ इलाज किया वह लोग ठीक हो गए।
‘कोई तन दुखी, कोई मन दुखी, कोई धनहित रहित उदास।
थोड़े-थोड़े सब दुःखी, इक सुखी राम का दास।’
थोड़े-थोड़े सब दुःखी, इक सुखी राम का दास।’
मैंने यह निश्चय किया कि अब मैं रोगी व्यक्तियों की निःशुल्क सेवा करूंगा
यही सोचकर मैंने ‘आशीर्वाद सूर्य किरण और रंग चिकित्सा
(क्रोमोपैथी)’ के नाम से निःशुल्क सेवा केन्द्र घर में ही खोल
रखा
है।
मैंने इस पुस्तक में इलाज करने का ऐसा तरीका बताया है कि जिसमें कोई खर्च नहीं है। प्रकृति द्वारा मानव को दी हुई यह एक अमूल्य देन है, आसानी से समझ में आने वाली, स्वस्थ रखने वाली, बुढ़ापा रोके रखने वाली, अनूठी पद्धति को सरल और स्पष्ट बना दिया है। इस पद्धति के मूलभूत सिद्धान्तों का सामान्य ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद मैंने यह किताब लिखी है।
सेवा भाव रखने वाले व्यक्ति और धार्मिक एवं स्वास्थ्य संगठन इस पद्धति को सृष्टि की भेंट मानकर इसके प्रचार, प्रसार व शिक्षा में सहयोगी बन सकते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के लिए स्वयं इस पद्धति का उपयोग कर सकता है। इसके लिए विशेष प्रकार के स्थानों की जरूरत नहीं होती।
मैं उन अज्ञात ऋषि-मुनियों का ऋणी और आभारी हूँ जिन्होंने शताब्दियों इस विज्ञान को सुरक्षित रखा है और उनका भी जो इस विज्ञान का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। मेरी इतनी प्रार्थना है कि हम विज्ञान के पीछे आंखें मूंद कर भागते हुए प्राकृतिक उपचार ‘सूर्य किरण और रंग चिकित्सा) को न भूलें।
मैंने इस पुस्तक में इलाज करने का ऐसा तरीका बताया है कि जिसमें कोई खर्च नहीं है। प्रकृति द्वारा मानव को दी हुई यह एक अमूल्य देन है, आसानी से समझ में आने वाली, स्वस्थ रखने वाली, बुढ़ापा रोके रखने वाली, अनूठी पद्धति को सरल और स्पष्ट बना दिया है। इस पद्धति के मूलभूत सिद्धान्तों का सामान्य ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद मैंने यह किताब लिखी है।
सेवा भाव रखने वाले व्यक्ति और धार्मिक एवं स्वास्थ्य संगठन इस पद्धति को सृष्टि की भेंट मानकर इसके प्रचार, प्रसार व शिक्षा में सहयोगी बन सकते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के लिए स्वयं इस पद्धति का उपयोग कर सकता है। इसके लिए विशेष प्रकार के स्थानों की जरूरत नहीं होती।
मैं उन अज्ञात ऋषि-मुनियों का ऋणी और आभारी हूँ जिन्होंने शताब्दियों इस विज्ञान को सुरक्षित रखा है और उनका भी जो इस विज्ञान का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। मेरी इतनी प्रार्थना है कि हम विज्ञान के पीछे आंखें मूंद कर भागते हुए प्राकृतिक उपचार ‘सूर्य किरण और रंग चिकित्सा) को न भूलें।
तारणहार
तारे न तब तक, जब तक मिले न तार।
तार मिले तो तार तार से, निकल आए करतार।।
तार मिले तो तार तार से, निकल आए करतार।।
‘सूर्य किरण और रंग चिकित्सा’ के माध्यम से हजारों
रोगियों पर
आजमा कर इसे सफलता पूर्वक घरेलू इलाज के रूप में इसके प्रयोग के विषय में
लिख रहा हूँ।
दिव्य सूर्य किरण चिकित्सा एवं इसका महत्व
महर्षि चरक जी आयुर्वेद के मर्मज्ञ ज्ञानी थे। इसके अलावा वह सभी
शास्त्रों के ज्ञाता थे। उन्होंने सूर्य किरण तथा रंग चिकित्सा का बड़ी ही
विस्तार से वर्णन किया है। उन्हीं के आशीर्वाद से उनका दर्शन, विचार,
सांख्य दर्शन ही हमारा प्रतिनिधित्व करता है।
बहुत से रोगों का इलाज खान-पान से जैसे अंकुरित चना, ताजे फल, हरी सब्जियां लेने से ही हो जाता है। चिकने और मसालेदार वस्तुओं को अपने भोजन में से हटा देने से, विश्राम, व्यायाम (टहलना), विशेष व्यायाम जैसे व्यायाम आदि करने से तथा वायु परिवर्तन आदि से हो जाता है। मेरा तो एक ही फर्ज है कि रोगी को पीड़ा से मुक्ति मिले। रोग दूर हों व हर मनुष्य सुखी जीवन जी सकें।
इस किताब को लिखने का उद्देश्य केवल रोगियों को निरोगी बनाने का ही है तथा समाज के कल्याण के लिए सूर्य किरण और रंग चिकित्सा के बारे में जाग्रत करना है।
बहुत से रोगों का इलाज खान-पान से जैसे अंकुरित चना, ताजे फल, हरी सब्जियां लेने से ही हो जाता है। चिकने और मसालेदार वस्तुओं को अपने भोजन में से हटा देने से, विश्राम, व्यायाम (टहलना), विशेष व्यायाम जैसे व्यायाम आदि करने से तथा वायु परिवर्तन आदि से हो जाता है। मेरा तो एक ही फर्ज है कि रोगी को पीड़ा से मुक्ति मिले। रोग दूर हों व हर मनुष्य सुखी जीवन जी सकें।
इस किताब को लिखने का उद्देश्य केवल रोगियों को निरोगी बनाने का ही है तथा समाज के कल्याण के लिए सूर्य किरण और रंग चिकित्सा के बारे में जाग्रत करना है।
हरि ओम गुप्ता
जिस संगति में सभी औषधियां एक संग रहती हैं
वह ‘‘सूर्य किरण और रंग चिकित्सा’’ ही है।
वह ‘‘सूर्य किरण और रंग चिकित्सा’’ ही है।
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सूर्य किरण और रंग
चिकित्सा
क्रोमोपैथी क्या है ?
सूर्य किरण और रंग चिकित्सा एक पुरानी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है।
जिसके अन्तर्गत आयुर्वेद पद्धति के मूल सिद्धान्त वात, पित्त तथा कफ की
तरह ही शरीर में रंगों के घटने-बढ़ने से रोगों की उत्पत्ति मानी गई है।
रोग ज्ञात होने पर जिस रंग की शरीर में कमी हो उस रंग के पूर्ण हो जाने पर
रोगों से छुटकारा पाया जाता है। इन रंगों की उत्पत्ति के मूल स्रोत भगवान
सूर्य स्वयं हैं। सूर्य की तेजस्विनी किरणें भिन्न-भिन्न रंगों को लिये हुए
होती हैं। जिनको उसी रंग की पारदर्शी बोतलों में जल के द्वारा अवशोषित
किया जाता है।
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अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
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