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लेख-निबंध >> सुनामी त्रासदी

सुनामी त्रासदी

पवित्र कुमार शर्मा

प्रकाशक : ओरिएंट क्राफ्ट पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5109
आईएसबीएन :81-89378-10-4

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26 दिसम्बर 2004 को समुद्र में आयी सुनामी लहरों का वर्णन....

Sunami Trasadi A Hindi Book by D.Pavitra Kumar Sharma

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मौत का साया

26 दिसम्बर सन् 2004 की सुबह अनेक सुन्दर जिन्दगियों के लिए खौफनाक मौत का पैगाम लेकर आई। वर्ष के अन्तिम दिनों में समुद्र की सुनामी लहरों ने मौत का एक ऐसा विकट जाल बिछाया, जिसमें हजारों लोगों के घर तबाह हो गए, हजारों जीवन बर्बाद हो गए।
इस समय भूकम्प के कारण धरती की धुरी बुरी तरह से काँपने लगी थी। दुनिया के नक्शे से कुछ द्वीप गायब होने लगे थे तथा कुछ अपनी जगह से खिसकने भी लगे थे।

सुनामी लहरों के कारण समुद्र तट पर बसे तमिलनाडु राज्य के तीन नगर—कुडलूर, नागपट्टिनम और वेलांगनी लगभग नष्ट से ही हो चुके थे, साठ से ज्यादा ऐसे गाँव थे जिनका पृथ्वी पर कोई नामोनिशान बाकी नहीं रहा था। उन गाँवों को कच्ची-पक्की इमारतें कहाँ गईं—कुछ पता न चल सका। सबको समुद्र की सुनामी लहरें खा गईं। अनेक घर समुद्र की ऊँची-ऊँची लहरों की चपेट में आकर ध्वस्त हो गए। लोग-बाग अपनी जान बचाने के लिए समुद्र की लहरों से डरकर भागे परन्तु वे भागते कहाँ तक ? काल उनके सिर पर मँडराता हुआ, घहराता हुआ आया।

मनुष्य और जानवरों की दैहिक शक्ति की एक सीमा है लेकिन प्रकृति की शक्ति की कोई सीमा नहीं। मानव या पशु-पक्षी की तरह उनका छोटा-सा सीमित आकार नहीं होता। समुद्र चारों तरफ सैकड़ों-हजारों किलोमीटर तक फैला हुआ है कि उसमें सारी दुनिया की जनसंख्या के बराबर अनेक जिन्दगियाँ समा सकती हैं।
कहते हैं कि जब मानव का विनाशकाल आता है तो मौत कहीं भी उसकी पीछा नहीं छोड़ती। वह पृथ्वी पर हो या वृक्ष पर हो, जल में हो या आकाश में—मृत्यु के हाथ उसके शरीर को जकड़ ही लेते हैं।

जब सुनामी लहरों ने मौत का तांडव किया तो समुद्र तट पर रहने वाले मछुआरे आदि लोग अपनी जान बचाने के लिए दूर-दूर भागे, लेकिन शेषनाग-सी फुफकारती लहरों ने उनसे भी तेज दौड़कर उनको अपने मुँह में भर लिया।
कुछ देर बाद समुद्री तट पर रहने वाले अनेक लोगों की लाशें बिछी हुई दिखाई दे रही थीं। इनमें कुछ ही पल पहले जीवन की साँस थी। धड़कते हुए, हृदय का स्पंदन था। इन स्त्री-पुरुषों के अन्दर भी एक जीती-जागती आत्मा थी, जो सब कुछ देखती, सुनती और समझती थी। ये गरीब लोग भोजन की आश लिए समुद्र पर आए थे। मछली पालन ही इनका व्यवसाय था और मत्स्य-सेवन इनका प्रमुख आहार था। परन्तु समुद्री मछलियों का आहार करने वाले इन मासूम स्त्री-पुरुषों और बालक-बालिकाओं का समुद्र कब आहार कर लेगा—कुछ कहा नहीं जा सकता था।

समुद्री तट पर बिछी तमाम लाशें वस्त्र विहीन थीं। इनके वस्त्र कहाँ गए, क्या उनको चील-कौए खा गए या प्रचण्ड लहरों ने उन्हें जर्जर करके फेंक दिया—कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसा लगा मानो मरे हुए ये प्राणी आज एक ही समुदाय के सदस्य हो गए हैं। इनमें कौन हिन्दू है, कौन मुस्लिम, कौन ईसाई—यह बताना मुश्किल है। समुद्र की लहरों ने इनके सारे धार्मिक तथा साम्प्रदायिक चिह्न मिटा डाले। इन मृत शरीरों को देखकर लगा मानो इनमें कितनी एकता है ! कुछ समय पहले ये सब आपस में लड़ते-झगड़ते थे। धर्म, जाति, स्त्री और पुरुष के भाव से भरे रहते थे। मृत्यु ने इन्हें बता दिया कि मानव का अहंकार मिथ्या है और साँस के रुक जाने के बाद वह कुछ भी नहीं है।

आदमी जीवित शरीर को कितना प्यार करता है, कितना साज-सजाकर, श्रृंगार करके रखता है। आज का प्रेम देह की बनावट तथा सुन्दरता पर आधारित है, दिखावा है। सुनामी लहरों की चपेट में आए इन मुर्दों से अब कौन प्यार करेगा ? चार दिन बाद दिखाई देने वाले इन शरीरों का आस्तित्व भी मिट्टी में मिल जाएगा और फिर यही सिद्ध होगा कि मानव का शरीर आखिर क्या है ?—केवल मिट्टी !

सुनामी कहर


समुद्री तूफान के कारण कुछ द्वीप समुद्र के अन्दर समाने लगे हैं और जन विहीन भी होने लगे हैं।
सुनामी लहरों के कहर के कारण 13 जिलों के 500 गाँवों की बड़ी बुरी दशा है। केरल के अलघुझा और कोल्लम जिलों में सुनामी ने कहर ढाया। इसी प्रकार आन्ध्र प्रदेश के कालीनाड़ा और नैल्लो जिले के 300 गाँवों को इन लहरों ने तबाह कर दिया।
इसी प्रकार पांडिचेरी के लगभग 100 कि.मी. लम्बे समुद्री तट पर सुनामी लहरों ने अपनी विनाशलीला खेली और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भी काफी नुकसान पहुँचाया।
कुछ मिनटों में ही अपना घर, गाँव, पड़ोसी, पत्नी और दो बच्चों को गँवा चुके बी. पनीर सेल्वम के पास अपनी पत्नी व बच्चों की एक तस्वीर बची थी, जिसे देख-देखकर रोते हुए उसने दो दिन बिता दिए। घर के नाम पर और अपने सगे सम्बन्धियों के नाम पर उसका अब कोई भी इस दुनिया में नहीं बचा। वह पांडिचेरी का रहने वाला व्यक्ति है।

बी. पनीर सेल्वम समुद्री तट पर रहने वाला एक साधारण मछुआरा है। उसके पास एक छोटी-सी नाव थी जिस पर बैठकर वह और उसकी पत्नी मछलियाँ पकड़ने जाते थे। मछली पकड़ने का एक जाल भी था। लेकिन समुद्री लहरों के थपेड़ों के कारण अब सेल्वम की नाव टूट चुकी है। उसका जाल भी फट गया है। पत्नी और बच्चों की मृत्यु को याद करते हुए जब उसने भूख-प्यास में दो दिन बिता दिए तब उसे अपनी अवस्था का चेत हुआ। वह सोचने लगा कि इस तरह रोकर जीवन कैसे कटेगा ? नाव टूट गई है, जाल फट गया है—अब उसकी आजीविका कैसे चलेगी ? शरीर की धमनी में दौड़ रहे रक्त के लिए खुराक का प्रबन्ध कैसे होगा ? जब जीना है तो कुछ और काम करना होगा—या फिर अपनी टूटी नाव को जोड़ना होगा, जाल को सिलना होगा। समुद्री लहरों ने घर तहस-नहस कर डाला। अब नया घर बनाने में वक्त लगेगा।

समुद्री तट पर रहने वाले मछुआरों के जीवन का जो नुकसान सुनामी लहरों की विनाशलीला से हुआ है उसकी भरपाई कई वर्षों तक नहीं की जा सकती। सरकार राहत शिविर लगाकर उनको रहने के लिए जगह दे सकती है, पेट के लिए भोजन दे सकती है, लेकिन जो लोग मौत का शिकार होकर सदा के लिए उनसे दूर चले गए हैं—उनको अब कौन लौटा कर ला सकता है ? क्या मरे हुए लोग भी जिन्दा हो सकते हैं ? क्या मुर्दों में जान लाई जा सकती है ? पीड़ित लोगों के चेहरों से खोई मुस्कान वापस लाई जा सकती है ? अनेक व्यक्तियों ने अपनी पत्नी व बच्चों को गँवा दिया और अनेक मछुआरिन औरतें विधवा तथा अनाथ हो गईं।

अनेक स्थानों पर स्त्रियों को बुरी तरह रोते-बिलखते, चीखते-चिल्लाते हुए आज भी देखा जा सकता है। ये औरतें तिमलनाडु के समुद्री तट के करीब रहने वाली हैं तथा सुनामी लहरों के कहर के कारण अपना पति, बच्चे, माँ-बाप, भाई-बहन, घर इत्यादि सब कुछ गँवा बैठी हैं। ये किसी को अपनी सहायता के लिए नहीं पुकार रहीं क्योंकि इन्हें पता है कि इनकी जिन्दगी तथा घर की क्षति की भरपाई करने वाला दुनिया में कोई नहीं है, भगवान भी नहीं। न जाने किन जन्मों के पापों का भगवान ने बदला लिया है।
अपना सर्वस्व लुटा चुकी इन महिलाओं के पास रोने के सिवाय और चारा ही क्या है ? गरीब लोगों की सारी जिन्दगी की जमा पूँजी भला होती ही कितनी है। वह सारी पूँजी भी समुद्र के पानी में बह गई। मेहनत और खून-पसीने की कमाई, अपने खून के रिश्ते भी पराए हो गए—मृत्यु के हाथों छले गए।


लहरों के नाम गजलें



देश में जब कोई त्रासद-दुर्घटना घटती है तो कवियों और शायरों की कलम खामोश नहीं रहती। धौलपुर शहर के मशहूर शायर मुकेश सिकरवार ‘दादा’ ने सुनामी लहरों की त्रासदी पर एक नहीं बल्कि चार-पाँच गजलें लिख डालीं, जो इस प्रकार हैं-

गजल सं. 1


साँसों की गुनहगार हो गई लहरें,
क्यूँ इतनी बेकरार हो गई लहरें,
हँसती-चहकती जिन्दगी कर दी तबाह,
ऐसी नफरत सनी कटार हो गई लहरें।
समझते रहे अब तक महकता हुआ गुल,
मगर चुभती हुई खार हो गई लहरें।
आशियाँ मुहब्बत के उजड़ गए पलभर में,
जाने क्यूँ दुश्मने प्यार हो गई लहरें।
बाँधकर रखना तो मुनासिब नहीं,
मगर ज्यादा धारदार हो गई लहरें।
बेजुबाँ हो गए ‘दादा’ धड़कते दिल,
इस कद्र जिस्म के आर-पार हो गई लहरें।

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