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कविता संग्रह >> मून पर हनीमून

मून पर हनीमून

जैमिनी हरियाणवी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5100
आईएसबीएन :81-288-1386-2

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जैमिनी हरियाणवी का विशेष कविता संग्रह...

Moon Par Hanimoon

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

ज़िंदगी भर हँसे, हँसाते रहे
हँसते-हँसते ही तोड़ देंगे दम !

जैमिनी हरियाणवी

परिचय

वास्तविक नाम, देवकी नन्दन जैमिनी। जिला झज्जर, हरियाणा के बादली गाँव में 5 सितम्बर, 1931 ई. को जन्माष्टमी की रात आकाश में चंदोदय हुआ तभी धरती पर जन्म हुआ मेरा। पिता स्व. पं. हरकिशोर जैमिनी। दादा स्व. पं. रिजकराम (उर्दू शायर)। इसी शुभ तिथि को देशवासी ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाते हैं।

शिक्षा

-एम.ए. (इतिहास एवं राजनीति शास्त्र) बी.टी.।
-1950 ई. में हा. सै. रामजस नं. 5 से 1953 ई. बी.ए. हिन्दू कालेज से,
-1955 ई. में एम.ए. (इतिहास) कैम्प कॉलेज से, 1956 ई. में बी.टी. वैश्य कालेज, रोहतक, हरियाणा से,
-1965 ई. में एम.ए. (रा.शा.) अलीगढ़ मु.यू. से। (दिल्ली के राजकीय विद्यालयों में अध्ययन उपप्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृति)

लेखन कार्य एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ

1.    देश की छोटी-बड़ी पत्रिकाओं में लगभग तीन सौ रचनाएँ प्रकाशित ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ तथा ‘धर्मयुग’ में विशेषकर प्रथम व्यंग्य ग़ज़ल 1951 ई. में ‘हरियाणा तिलक’ में छपी।
2.    ‘दैनिक भास्कर’ (जयपुर) में नियमित रूप से ‘राग दरबारी’ कालम लिखा।
3.    देश-विदेश के हजारों कवि सम्मेलनों में कविता पाठ।
4.    आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से सैकड़ों रचनाएँ प्रसारित।
5.    अनेक हिन्दी तथा हरियाणवी फिल्मों में गीत लेखन।
6.    देश-विदेश में हरियाणवी बोली को लोकप्रिय बनाया।

पुरस्कार एवं उपाधियाँ

1.    ‘ठिठोली’ पुरस्कार, दिल्ली
2.    दिल्ली महामूर्ख-सम्मेलन द्वारा मुझे तथा अभिनेता राजेन्द्र नाथ को ‘हास्य प्रिंस’ की उपाधि
3.    काका हाथरसी पुरस्कार : राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा द्वारा हास्य रत्न’ की उपाधि दिल्ली (राष्ट्रपति भवन)।
4.    उपराष्ट्रपति कृष्ण कान्त अग्रसेन सरस्वती सम्मान दिल्ली।
5.    उज्जैन में ‘टेपा साहित्य संस्कृति सम्मान’
6.    दिल्ली सरकार द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत
7.    हरियाणा सरकार द्वारा ‘हरियाणा गौरव सम्मान’
8.    भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद द्वारा मारीशस में सम्मानित
9.    देश में अनेक सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाओं, रोट्री एवं लायंस क्लबों द्वारा सम्मानित।

प्रकाशित पुस्तकें

1.    ‘हम नन्हे-मुन्ने सरदार’ (बाल गीत-1966)
2.    इंकलाब (कहानी-1966)
3.    राष्ट्रीय छात्र सेना वायु (1966)
4.    (देवकी नन्दन जैमिनी के नाम से)
5.    गीत फैशनी गावो’ (हरियाणवी हास्य व्यंग्य-1972)
6.    वंस मोर’ (हास्य व्यंग्य कविताएँ-1995)
7.    कसम है आजादी की (गीत ग़ज़ल-1995)
8.    नीम का पेड़ (हास्य व्यंग्य लेख-1995)
9.    हँसाए जा प्यारे (हास्य व्यंग्य कविताएँ-2005)
(जैमिनी हरियाणवी के नाम से)

पताः
ए-57, सरस्वती लिहार
दिल्ली-110034


प्यार भरी बोली


होली के दिन ये क्या ठिठोली है
छुट्टी अपनी तो आज हो ली है
देह बन्दूक सी दिखे तेरी
और चितवन ज्यूँ लगे गोली है।
एक बिल्ली-सी आँख खोली है
एक बकरी-सी बोले बोली है
मर्खनी भैंस सी अदा तेरी
छुट्टी अपनी तो आज हो ली है
...
बीच सड़कों पे मस्त टोली है
सबकी बस प्यार भरी बोली है
चूम बुढ़िया को बूढ़ा यूँ बोला-
‘आज होली है, आज होली है’।


गोरी म्हारे गाम की



गोरी म्हारे गाम की चाली छम-छम।
गलियारा भी कांप गया मर गए हम।।

आगरे का घाघरा गोड्या नै भेड़ै
चण्डीगढ़ की चूनरी गालां नै छेड़ै
जयपुर की जूतियां का पैरां पै जुलम
गलियारा भी....................।

बोरला बाजूबन्द हार सज रह्या
हथनी-सी चाल पै नाड़ा बज रह्या
बोल रहे बिछुए, दम मारो दम
गलियारा भी...................।

घुँघटे नै जो थोड़ा-थोड़ा सरकावै
सब तिथियाँ का चन्द्रमा नजर आवै
सारा घूँघट खोल दे तो साधु मांगै रम
गलियारा............................।

प्रीत के नशे में चाली डट-डटकै
चालती परी की पोरी पोरी मटकै
एटम भरे जोबन का फोड़ गई बम
गलियारा भी.......................।

टाबर सगले गाम के पीछै पड़ गे
देखते ही युवका के होश उड़ गे
बूढ़े-बूढ़े बैठ गए भर कै चिलम
गलियारा भी.....................।

कूदण लाग्या मन मेरा, बिंध गया तन
लिक्खण बैठ्या खूबसूरती का वरणन
कोरा कागज उड़ गया, टूट गी कलम
गलियारा भी कांप गया, मर गए हम।


घूँघट का के करूँ



गोरी के चारों ओड़ां, जमघट का के करूँ ?
तणे हुए इस तम्बू-से घूंघट का के करूँ ?

तायस, फूफस, जेठाणी सासू नै घेर ली
जिसणै चाह्या बहू अपणे चरणाँ में गेर ली।
चौंटकी भर छेड़े नणदी नटखट का के करूँ ?
गोरी के चारों ओड़ा जमघट का के करूँ ?

छोटे नै कोली भर ली, मेरे हिरदै लागी टीस
काका सिर पै हाथ फिरा के देण लग्या आशीष।
बाबू तो निभज्या काका लम्पट का के करूँ ?
गोरी के चारों ओड़ां जमघट का के करूँ ?

रात हुई तो महिलायें सब गावण लाग गी
बहू नै पास बिठा कै रात जगावण लाग गी।
मैं पोली तै भार पड्या चौखट का के करूँ ?
गोरी के चारों ओड़ां जमघट का के करूँ ?
तणे हुए तम्बू से इस घूँघट का के करूँ ?


आँख्या तै पिला दे


घुंघटा उठा ले मैं हो रह्या बेताब
आँख्या तै पिला दे थोड़ी-सी शराब।
 
जिन्दगी के पेड़ पै आ गया निखार
आ कै मेरे बिस्तरे पै बैठ गी बहार
गाल सैं अनार तै, होंठ सैं गुलाब
आँख्या तै..........................।

सैकडों थे लव लैटर मनै डाले
शायद फाड़ बैठे साली और साले
ले ल्यूँगा आज सारे खतां का जवाब
आँख्या तै....................।

बाह्याँ के घेरे तै तू सकै न निकल
मेरी ही आग तै तू रहे शीतल
तू चन्द्रमा सै तो मैं आफताब
आँख्या तै........................।

दोनों मिल रोज रोज लिखांगे दुगाना
अपणा ही मैटीरियल, अपणा छापाखाना
साल डेढ़, साल में निकल ज्या किताब
आँख्या तै....................।

हो री सै उदास, क्यूँ सोच में पड़ी।
व्यर्थ मत जाण दे यो प्यार की घड़ी
बाद में लगा लियो प्यार का हिसाब
आँख्या तै पिला दे थोड़ी-सी शराब


ओ मेरी महबूबा



ओ मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा
तू मन्नै ले डूबी, मैं तन्नै ले डूब्या।

मैं समझ गया तनै हिरणी,
फिर पीछा कर लिया तेरा, हाय करड़ाई का फेरा।
तू निकली मगर शेरणी, तनै खून पी लिया मेरा।
ओ मेरी महबूबा महबूबा
तू कर री ही-हू-हा, मैं कर बै-बू-बा।

कदे खेत में, कदे पणघट पै,
तनै खूब दिखाये जलवे, गामां में हो गे बलवे।
मेरे व्यर्थ में गोडे टूटे, जूतां के घिस गे तलवे।
ओर मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा
तू मेरे तै ऊबी, मैं तेरे तै ऊब्या।

कोय हो जो तनै पकड़ कै,
ब्याह मेरे तै करवा दे, म्हारी जोड़ी तुरत मिला दे।
मेरी गुस्सा भरी जवानी, तनै पूरा मजा चखा दे।
ओ मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा
फिर लुटै तेरी नगरी और लुटै मेरा सूबा।
ओ मेरी महबूबा.........................


फागण रुत मस्तानी


यो फागण रितु मस्तानी, इब परदेसां मत जाइयो रै
कहै आँख, देख, म्हारे कानी, इब परेदसां मत जाइयो रै।
लगै बरखा, सरदी प्यारी
पण फागण की छवि न्यारी
हर साल नया आवैगा
आवैंगी रितुएँ सारी
पण आवै नहीं जवानी इब...............।

तनै काट्या मेरा पत्ता
मैं सूख हो गई गत्ता
मैं अड़ै गाम मैं तड़पी
तू पड्या रह्या कलकक्ता
तनै एक न मेरी मानी, इब............।

तड़का मेरी हँसी उड़ावै,
संध्या मेरा खून जलावै
मनै सोती देख अकेली
जले रात खाण नै आवै
बिन पिया किसी जिन्दगानी, इब.............।

चन्दा मेरा चेहरा चाटै
तकिया बस दर्द नै बाटै
उस वक्त याद तू आवै
जद माछर गाल नै काटे
टुक देख मेरी कुर्बानी इब...............।

सेवा सै घर-आली की
रोटी अपणी थाली की
तू घर का छोड़ परांठा
उत घास चरै नाली की
डूबे कई ज्ञानी-ध्यानी, इब परदेसां मत जाइयो रै
कहै आँख देख मेरे कानी, इब परेदसां मत जाइयो रै।


बोल मेरी फुलझड़ी



भोंरा तो रस पी के उड़ग्या फूल हुआ बदनाम
बोल मेरी फुलझड़ी तू राम राम राम !

बरस मनाया, दिवस मनाया, आ तेरी रात मनाऊँ
तू लेटी हो सेजां पै, तेरे चरण दबाऊँ
पान की बेगम तू मेरी, मैं हुक्म का गुलाम
बोल मेरी छम्मकछल्लो राम राम राम !

हरिद्वार का इक सन्यासी बीच बम्बई आया
फिल्म देख कै ‘सन्यासी’ की उसका सिर चकराया
गंगा जल नै छोड़ पी गया दो व्हिस्की के जाम
बोल मेरी हेमा मालिनी राम राम राम !

जब तू अपणी एड्डी ठा कै लेण लगी अंगड़ाई
हम कवियां की बिना दोष की बण गी एक रुबाई
कब्र फाड़ कै खड्या हो गया तुरत उमर खैयाम
बोल मेरी मोमबत्ती राम राम राम !

अड़ै खड़ी हो, उड़ै बैठज्या, जी चाहे उत लेट
सब कुछ करवा देगा प्यारी, तेरा पापी पेट
खाणे वाले खाण लाग रे, पिस्ते और बादाम
बोल मेरी सूखी रोटी राम राम राम !

क्यूकर होगा इस दुनिया में मेरा-तेरा मेल
मैं छकड़ा सूँ एक गाँव का, तू शहरां की रेल
तू सै चढ़ती सुबह सुहाणी, मैं सूँ ढलती शाम
बोल मेरी सुरमेदानी राम राम राम !

नेता डूबे अफसर डूबे डूब गये व्यापारी
राजनीति की बाढ़ में डूबे सब नर-नारी
तू ऐसी फैशन में डूबी, डूब गया मेरा गाम
बोल मेरी ‘मिस इण्डिया’ राम राम राम !


पाणी बरसै



उत पाणी बरसै, इत लाग रही आग री
यो आग प्यार की, इस आग तै मत भाग री !

अम्बर का चन्दा बेचारा जल नै तरस रह्या सै
आँगण में म्हारे चन्दा पै पाणी बरस रह्या सै
भीज गया ओढ़णा थारा, भीज गई घाघरी
पाणी बरसै............।

गीली गीली और नशीली कर गी बरखा राणी
ज्यूँ दारू की बोतल के मांह राम मिलायो पाणी
थारे तन में समाया पूरा अंगूरा का बाग री
पाणी बरसै...................।

मैं थारी चन्दा सूँ तो पिया तुम मेरे सूरज सो
ल्यो मैं थारे पास आ गई होले जो होणा हो
सूख ज्यागा ओढ़णा म्हारा, सूख ज्यागी घाघरी
उत पाणी बरसै, इत लाग रही आग री।
यो आग प्यार की, इस आग तै मत भाग री !


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