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दर्द की कतरन

शशिकांत

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5098
आईएसबीएन :81-288-1540-7

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एक विशेष शायरी संग्रह

Dard Ki Katran

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

दर्द कुछ ऐसे भी हैं जो ग़ज़ल में तबदील नहीं हो पाए, जो गीत बनने से पहले ही मुरझा गए। न पूरी तरह कलम से फूट पाए न आँखों से बरस पाए। जिन्हें न होंठों ने मौका दिया ना ही कोई दूसरा सुनने को राजी हुआ, जिन्हें न बयां करने का इल्म था न छुपाने का हुनर, बस बिना सलीके और काएदे की स्याही से लिपटकर शब्द पन्नों पर छिटक गए। जो शब्द बिछ सकते थे बिछ गए और कुछ लापता हो गए। जो बिछ गए वो आज भी मौजूद हैं कतरन बनकर, जो काग़जों में, लकीरों के नीचे कुछ शब्दों के आकार में कतरन बनकर टंके हुए हैं।
टुकड़ों-टुकड़ों में जीने वाले ये कतरनें देखने में जितनी तिरस्कृत, उपेक्षित और नज़रंदाज लगती हैं, होती नहीं हैं। यह बचा हुआ, रद्द-हिस्सा, यह आधा-अधूरा भाग किसी दूसरे अधूरे को उसकी पूर्णता दे सकता है। किसी की कमी को भर सकता है। इसी उम्मीद में न जाने मैंने कितनी कतरनों को जमा कर लिया है, जिसे लोग कूड़ा-करकट या रद्दी समझते हैं, मैं उन्हें संजोकर रखता रहा हूं। बस मेरी कतरनें कुछ और हैं और इनके मायने कुछ और।
मेरा दर्द ही मेरी कतरने हैं। भले इन कतरनों से किसी के नए कपड़े न सिल सकें, किसी का तन ना ढकता हो परंतु किसी के घाव ढंकने के, मरहम-पट्टी के तो काम आ ही सकती हैं। इसी उम्मीद एवं विश्वास में, कुछ मुक्तकों में, कुछ अश्-आर में, कुछ ग़ज़ल में, कुछ क़तआल में। प्रस्तुत है छंद-बेछंद में, मेरे दर्द की कुछ तुकी-बेतुकी कतरनें।?

-शशिकांत


दर्द भी कोई किसी का, लय में कभी उठता है क्या
मात्राएं गिनकर कोई गीत कभी लिखता है क्या

दर्द पहले आया यहां या पहले व्याकरण आई
ज़ख्म जिसने न गिने हों, वो शब्दों को गिनता है क्या

जो लिखते हैं सलीके से, उनको भी मिलता है क्या
तारीफ और कुछ तालियों से, दुख कभी मिटता है क्या

छोड़िये क्या बात करनी कायदे और कानून की
काग़ज़ों के फूल पर भंवरा कोई मिलता है क्या

दिल की बात सीधी ही दिल तक पहुंचनी चाहिए
इनाम और ये नाम कभी, जग में कहीं टिकता है क्या

गीत-ग़ज़ल के पारखी कुछ कह कर दम लेंगे
प्यासे के दिल से पूछिए, उसे पानी में दिखता है क्या
*****************

लोग कहते हैं हमें लिखना नहीं आता
ग़ज़ल उठाने का, सलीका नहीं आता
दर्द तो बस दर्द है, हमें इसे सजाना नहीं आता

माना कि दर्द कहना भी होती है एक कला
हूं नहीं कलाकार मैं, मुझे अभिनय नहीं आता

कहीं रदीफ गड़बड़ है, तो कहीं काफिया गुम है
छांट कर खुद को लुगत में लिखना नहीं आता

बात तर्क की नहीं, खुद से वफ़ा की है
महफिल में अपने दर्द को गाना नहीं आता

न उतरती हो खरी, ये कायदे की नज़र में
काग़ज़ों में सिमटने का हमें हुनर नहीं आता

दर्द तो बस दर्द है, हमें इसे सजाना नहीं आता
*****************

दर्द को दफनाने की मोहलत नहीं मिली
चैन से मरने की भी फुर्सत नहीं मिली

आंखों में मेरे इस कदर छाए रहे आंसू
कि आईने में अपनी ही सूरत नहीं मिली

हर मोड़ पर ली जिंदगी ने इतनी तलाशी
कि इम्तहान देने की फुर्सत नहीं मिली

अपनों के लगते रहे मुझ पर इल्जाम इतने
कि खुद को जिंदा रखने की वजह नहीं मिली

सुकून से लेते रहे सांसें मेरे आंसू
मेरे ही जिस्म से मुझे राहत नहीं मिली
*****************

तुझे अपना न मैं कहूं तो और क्या कहूं
एक साथ इतने गम कोई गैर नहीं देता

तुझसे न मैं पूछूं, तो फिर किससे मैं पूछूं
तू ही तो है जो बातों के उत्तर नहीं देता

हो सके तो भूलकर न आना तू सामने
देखकर फेरूं नजर, मुझे शोभा नहीं देता

कितना भला तू वास्ता दे अपनी शराफत का
पीछे का मेरा वक्त आगे बढ़ने नहीं देता
*****************

आएगी जब भी बात कभी इंसाफ की देखना
कर ना पाओगे अलग, सही गलत को देखना

बातें जो करनी पड़े कभी अपने आप से
ये एक शब्द भी न निकलेगा होंठों से देखना

सच-झूठ को गिनोगे जिस दिन हाथों से अपने
अफसोस हाथ आएगा उंगलियों को देखना

किसका था कसूर और, था कौन जिम्मेदार
सब समझ आ जाएगा, किसी का होकर देखना

आसान सी बातें सभी, बन जाएंगी मुश्किल
मेरी जगह खुद को कभी तुम रखकर देखना
*****************

कौन है जो साथ उसके रहता है सदा
फिरता है अकेला पर लगता नहीं तन्हा

खोया है किसकी याद में, इतनी बुरी तरह
गर बैठ जाए एक बार तो उठना नहीं जरा

किसकी फिक्र में हुई है उसकी ये हालत
कि जल रहा है याद में, बुझता नहीं जरा

आ रहा है क्या मजा उसे ऐसे जीने में
सीने में उसके सांस है पर लेता नहीं जरा
*****************

किसी को तन्हा रहने का दुख है
हमको साथ सहने का दुख है

सोचा था साथ में बंट जाएंगे दुख
पर हमको खुद के बंटने का दुख है

होती हैं यूं तो बातें, रोज बीच में हमारे
पर बातें ही बची हैं, इस बात का दुख है

ऐसा नहीं वो पूछते हों, मुझसे मेरा हाल
ये हाल है उनकी वजह से, इस बात का दुख है

है पता, उसको मुझे क्या चाहिए उससे
करता है पर अपने मन की, इस बात का दुख है
****************

लौटकर आती रहीं तारीखें बारी-बारी
पर आज तक वापस कभी, वो वक्त नहीं आया

दबे पांव आती रहीं यादे सब तुम्हारी
एक बार भी यादों के संग, तू नहीं आया

उगता रहा हर रोज सूरज अपने ठिकाने से
एक बार भी पर रोशनी लेकर नहीं आया

कई बार सरकी है नमी, दिल की दरारों से
पर आज तक इन आंखों में, पानी नहीं आया

वक्त ने भी करके देखी मेहरबानी हम पे
पर तुमको ही मुझ पर कभी तरस नहीं आया

प्यार में होता है सबका हाल एक सा
क्यों हाल उसको मेरे दिल का समझ नहीं आया
*****************

दुनिया समझती है इसे दुख नहीं होता
रोने का एक सपना है वो सच नहीं होता

बस एक ही मलाल है, इस उम्र से हमें
क्यों आंखों का खुलकर कभी बहना नहीं होता

पूछते हैं अपने दिल से, हम भी यही सवाल
क्यों दिल की बात करके दिल हलका नहीं होता

आंखों की एक जिद है जो पूरी नहीं होती
वक्त पर रोएंगे, रोज का रोना नहीं होता

करती है खर्च जिंदगी, मुझ पर कई सांसें
इन सांसों का मुझ पर कोई असर नहीं होता

यह सोचकर सपनों को, नहीं होने दी खबर
कि देखा हुआ सपना हमेशा, सच नहीं होता
*****************

गीत गाती पंक्तियों का हर शब्द गूंगा हो गया
भेजा हुआ हर खत तुम्हारा, आज काग़ज हो गया

संभालने थे कागज तो, रद्दी ही क्या बुरी थी
बेवजह कोने में दिल के, तू भी जमा हो गया

किताबों में छुपाकर, रखा था जिसे उम्र भर
वक्त की तह में वो खुद, पु्र्जा-पुर्जा हो गया

अब कतरनों को जोड़ कर, तुम्हें इसमें क्या खोजूं
सामने है सब नतीजा, जो होना था हो गया

गिन के तेरे खतों को अब एहसास होता है
कैसे तेरे काग़ज़ों पर एतबार मुझे हो गया

हो गई क्यों आंखें गीली, इन सूखे शब्दों से
कैसे कहूं एक जख्म था, पढ़कर हरा हो गया

खाते में तो खत ही आए, हमको तो उसके
लिखने वाला इन खतों को कब का अक्षर हो गया
*****************

मैं देखने की चीज हूं मेरी आरजू न कर
बदनाम हूं बहुत मैं बरबाद यूं न कर

किसकी नहीं टिकी है इन आंखों पर निगाहें
आंखों को आंख रहने दे इन्हें झील यूं न कर

जी भर के देख मुझको और तन्हा छोड़ दे
होगा क्या उसके बाद इसकी फिक्र तू न कर

मत पूछ तू मर्जी मेरी न सुकून के ठिकाने
जो आज तक नहीं उठा वो सवाल तू न कर

तू भी तो रुक जाएगा साथ दो कदम चल के
दुनिया के इस रिवाज पे एतराज तू न कर

दे कोई इल्जाम मुझको, बन जाने दे तमाशा
बना के अपनी आबरू, नीलाम यूं न कर

तू नहीं तो और कोई, मुझे तोड़ ही देगा
मांग कर दुआ में अपनी, मेरा कत्ल यूं न कर

कतरन ही रहने दे मुझे, बंटा-बंटा ही रहने दे
जोड़कर इन कतरनों को, अखबार यूं न कर

मुझको तो अपना इल्म है, जग का भी है पता
फिर बेवजह झूठी मेरी तारीफ यूं न कर

जीने नहीं देगी तुझे दुनिया ‘शशि’ के संग
खुद को अगर-मगर में, जाया तो यूं न कर
*****************

वो मिल गया है फिर भी क्यों राहत नहीं मिलती
क्या चाहिए इस दिल को तसल्ली नहीं मिलती

कहने को जितना पास है, वो है करीब उतना
मौजूदगी में उसके वो हकीकत नहीं मिलती

कहता है लौटकर आया हूं, मैं छोड़कर सबको
उसके ही चेहरे से उसी की शक्ल नहीं मिलती

अजीब सी एक जिद है जो परखती है उसी को
धूप में जिसकी उसे छाया नहीं मिलती

होते ही जिसका जिक्र महक उठती थी सांसें
आज उसके नाम से ही खुशी नहीं मिलती

किस्सा ही कुछ ऐसा है दोनों के बीच का
साथ रहकर भी कोई कहानी नहीं मिलती
*****************

मेरा दर्द मेरा सिर्फ खुदा जानता है
फिर तुझे कैसे कह दूं, तू खुदा तो नहीं
माना तू बंदा है मेरे खुदा का
तू हिस्सा है उसका, पर उस सा नहीं
*****************

मुझको भी हंसना पड़ता है
साथ लोगों के चलना पड़ता है
मुश्किल और तब बढ़ जाती है
जब ‘खुश हूं मैं’ कहना पड़ता है।
***

छोटा समझ के किसी को यूं नकारा नहीं करते
बीज को आकार से उसके नापा नहीं करते
हो हकीकत कितनी भी किताब में किसी की
आंख से पढ़ने को ही पढ़ना नहीं कहते
***

लगा के इल्ज़ाम कोई वो मुझको छोड़ जाता
तन्हाई काटने का कोई इंतजाम कर जाता
चुभते ही रहते भले, मुझे अल्फाज ही उसके
पर मुझसे थी उम्मीद उसको, ये अंदाजा लग जाता
***

उलझें रहेंगे आप सदा, एक सवाल में
छिड़ेगी जब भी बात कभी मेरे बारे में
दिल भी बहुत दुखेगा, आंखें भी रोएंगी
जब भी करोगे फैसला, तुम अपने बारे में
***

साथ देने को मन करता है, उसको तन्हा देखकर
रुलाने को जी करता है, उसकी आंखें देखकर
बह जाए गर खुलके तो, इस जी को तसल्ली हो
कैसे खुले में घूमता है, वो खुद को समेटकर

शाख में कांटे कितने भी हों
पर छांव कभी चुभती नहीं है
कोशिश जारी कितनी भी हो
आरी से पानी कटता नहीं है
***

मुश्किल नहीं है जवाब देना, बातों का उसकी
पर होंठों पर उसके कोई सवाल भी तो हो
तोड़ दूं रिवाज में उसकी तन्हाई का
कम्बख्त को मुझसे कोई शिकायत भी तो हो
***

कुछ इस कदर वो मुझे निहारता रहा
बोले बिना एक शब्द के पुकारता रहा
देता रहा दावत मुझे वो आंखों से अपनी
थी खता उसकी सजा मैं भोगता रहा
***

पीठ करके बैठा रहा, मुझे निहारने वाला
उखड़ा हुआ बैठा रहा, मुझे जोड़ने वाला
खंगालता रहा मैं अपनी, यादों के पुलिंदे
फारिग वो बैठा रहा, मसरूफ करने वाला
***

तारीफ कर रहे हैं सब, मेरी इस जहान में
क्या जानते नहीं हैं वो, अभी मैं नहीं मरा
निभा रहे हैं सब रिवाज जीते जी मेरे
जिंदा दफन करके क्या उनका, दिल नहीं भरा
***
तिनके को बहाना बनाया है
कभी आँखों में पानी मारकर
कभी रोने का शोर छुपाया है
नहाते में नलका खोलकर
***

आज लौटा है तो, वो मांगने सामान अपना
हाल पूछा भी तो, सुना के फैसला अपना
बात भी क्या हुई सिर्फ सवाल हुए
सफाई देने में किस्सा तमाम हुआ अपना
***

कतरन ही रहने दो मुझे, बंटा-बंटा ही रहने दो
ऐसा न हो जुड़ने से मैं, कहीं पढ़ने में आ जाऊं
मत बिछाओ पलकों को तुम इंतजार में मेरी
ऐसा न हो मैं आंसू बनकर, आंखों में आ जाऊं
***

ज्यादा लिखा मैंने अगर, तो बनकर किताब रह जाऊंगा
आया नहीं हूं हाथ अब तक, फिर एक बार में आ जाऊंगा
रख देगा फिर गुलाब कोई सूखने को मुझमें
या बनके मैं संग्रह किसी का, अलमारी में रह जाऊंगा
***
अपने बारे में कहूंगा तो कईयों का जिक्र हो जाएगा
मानते हो जिनको भला वो भी बुरा हो जाएगा
छोड़िये क्या छेड़नी बातें मेरे जहन की
मेरे बयां से मेरा कोई अपना खफा हो जाएगा

***











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