बहु भागीय सेट >> मामा भानजा - 2 भागों में मामा भानजा - 2 भागों मेंभगवतीशरण मिश्र
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बाल कहानी संग्रह मामा-भानजा की कहानियाँ....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मामा भानजा
नारद मुनि अपनी लम्बी चुटिया और समय-असमय मुख से निकलते नारायण, नारायण
!’ के लिए प्रसिद्ध हैं पर यह बहुत कम लोगों को पता है कि उनके
एक
भानजा भी है।
नारद जी के इस भानजे का स्वरूप अत्यन्त विशाल है। पर्वताकार। इसी कारण उसका नाम पड़ा पर्वत-मुनि।
एक बार मामा-भानजा पृथ्वी पर आए और राजा सृंजय के दरबार में पहुँचे। राजा सृंजय अत्यन्त प्रतापी और पूरी पृथ्वी पर उनका सम्मान था।
‘‘नारायण, नारायण !’’ सृंजय को पैरों पर पड़ते देख नारद जी बोले और आगे कहा, ‘‘वत्स ! मैंने यह तय कर लिया है कि अपने भानजे पर्वत-मुनि के साथ अब मैं कुछ दिनों के लिए तुम्हारे यहाँ ही वास करूँगा। इससे तुम्हारा कल्याण ही होगा।’’
‘‘मेरा आहोभाग्य !’’ राजा सृंजय ने प्रसन्नता व्यक्त की, ‘‘मैं आप दोनों के रहने का उचित प्रबन्ध कर देता हूँ।
नारद मुनि अपने भानजे पर्वत-मुनि के साथ राजा सृंजय के राजमहल में विराजने लगे।
सृंजय ने मामा-भानजे की बहुत श्रद्धापूर्वक सेवा-शुश्रुषा की। वे दोनों राजा की सेवा से बहुत प्रसन्न हो गये।
कुछ दिनों के पश्चात् जब दोनों के चलने का समय आया तो पर्वत-मुनि ने नारद जी से कहा, ‘‘मामा इस राजा ने अत्यन्त भक्ति-भाव से हमारी सेवा की है, हमें इसे कुछ बरदान देना चाहिए।’’
नारद मुनि ठहरे सदा के मन-मौजी। बोले, ‘‘भानजे, यह छोटा-सा काम तुम्हीं कर दो। इसमें मुनि-श्रेष्ठ इस मामा को घसीटने से क्या लाभ ?’’
‘‘जैसी आज्ञा,’’ पर्वत-मुनि ने कहा, और राजा सृंजय से बोले, ‘‘राजन् ! हम तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हैं। तुम मुझसे कोई वरदान माँग लो।’’
अन्धा क्या चाहे दो आँखें। राजा की कोई सन्तान नहीं थी। अतः उन्होंने पर्वत-मुनि से कहा, ‘‘महामुनि, अगर आप दोनों सचमुच मुझसे प्रसन्न हैं, तो मुझे एक अत्यन्त पराक्रमी पुत्र दीजिए जो देवताओं के राजा इन्द्र को भी पराजित कर सके।’...
नारद जी के इस भानजे का स्वरूप अत्यन्त विशाल है। पर्वताकार। इसी कारण उसका नाम पड़ा पर्वत-मुनि।
एक बार मामा-भानजा पृथ्वी पर आए और राजा सृंजय के दरबार में पहुँचे। राजा सृंजय अत्यन्त प्रतापी और पूरी पृथ्वी पर उनका सम्मान था।
‘‘नारायण, नारायण !’’ सृंजय को पैरों पर पड़ते देख नारद जी बोले और आगे कहा, ‘‘वत्स ! मैंने यह तय कर लिया है कि अपने भानजे पर्वत-मुनि के साथ अब मैं कुछ दिनों के लिए तुम्हारे यहाँ ही वास करूँगा। इससे तुम्हारा कल्याण ही होगा।’’
‘‘मेरा आहोभाग्य !’’ राजा सृंजय ने प्रसन्नता व्यक्त की, ‘‘मैं आप दोनों के रहने का उचित प्रबन्ध कर देता हूँ।
नारद मुनि अपने भानजे पर्वत-मुनि के साथ राजा सृंजय के राजमहल में विराजने लगे।
सृंजय ने मामा-भानजे की बहुत श्रद्धापूर्वक सेवा-शुश्रुषा की। वे दोनों राजा की सेवा से बहुत प्रसन्न हो गये।
कुछ दिनों के पश्चात् जब दोनों के चलने का समय आया तो पर्वत-मुनि ने नारद जी से कहा, ‘‘मामा इस राजा ने अत्यन्त भक्ति-भाव से हमारी सेवा की है, हमें इसे कुछ बरदान देना चाहिए।’’
नारद मुनि ठहरे सदा के मन-मौजी। बोले, ‘‘भानजे, यह छोटा-सा काम तुम्हीं कर दो। इसमें मुनि-श्रेष्ठ इस मामा को घसीटने से क्या लाभ ?’’
‘‘जैसी आज्ञा,’’ पर्वत-मुनि ने कहा, और राजा सृंजय से बोले, ‘‘राजन् ! हम तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हैं। तुम मुझसे कोई वरदान माँग लो।’’
अन्धा क्या चाहे दो आँखें। राजा की कोई सन्तान नहीं थी। अतः उन्होंने पर्वत-मुनि से कहा, ‘‘महामुनि, अगर आप दोनों सचमुच मुझसे प्रसन्न हैं, तो मुझे एक अत्यन्त पराक्रमी पुत्र दीजिए जो देवताओं के राजा इन्द्र को भी पराजित कर सके।’...
गारिमा का कमाल
एक लड़की थी छोटी-सी, प्यारी-सी। नाम था गारिमा। अपने घर और घर के बाहर वह
अपनी बुद्धिमानी के लिए प्रसिद्ध थी। जो बात बड़ों-बड़ों की समझ में
नहीं आती वह भी उसकी समझ में ऐसे आती थी जैसे उसका दिमाग, दिमाग
न
होकर जादू का पिटारा हो। मम्मी, डैडी जब किसी बात को लेकर खाने के टेबल पर
बहस करते औऱ बात बनती नजर नहीं आती तो गारिमा एक ऐसी बात सुझा देती कि सब
आश्चर्य से दाँतों तले उँगली दबा देते वह एक अंग्रेजी स्कूल में पढ़ती थी,
वहाँ भी सब उसकी बुद्धि के चमत्कार से दंग थे। क्लास में मिस कोई सवाल
पूछती, सब लड़के-लड़कियाँ बगलें झाँकने लगते लेकिन गारिमा झट से सही उत्तर
दे देती। कभी-कभी मिस पूछती तुम्हारे दिमाग में कम्प्यूटर है क्या ?
वह बोलती, ‘नहीं मिस, कम्प्यूटर नहीं है मेरे दिमाग में।’’
‘‘तब ?’’ मिस पूछती।
‘‘बात यह है कि और लोग अपना काम दिमाग से चलाते नहीं, मैं अपना दिमाग चलाती हूँ। उसका प्रयोग करती हूँ जिस चीज का प्रयोग नहीं करो वह बेकार हो जाती है।’’ छोटी सी गारिमा इतनी बड़ी-बड़ी बातें कह गई तो मिस ने भी उसी तरह दाँतों तले अँगुली दबाई जैसे उसके माता-पिता खाने की टेबल पर दबाया करते थे। क्लास के और लड़के-लड़कियों ने भी आश्चर्य से आँखें फाड़ दीं।
‘‘तो तुम सदा अपने दिमाग का प्रयोग करती हो ?’’ मिस ने थोड़ी देर बाद पूछा।
‘‘जिस समय कोई समस्या आती है उस समय अवश्य प्रयोग करती हूँ। उस समय मेरा दिमाग केवल उसी समस्या पर केन्द्रित हो जाता है। और कोई बात उस, समय मेरे दिमाग में आती ही नहीं।’’
‘‘जैसे चिड़िया की आँख भेदते समय अर्जुन की आँखें केवल उस चिड़िया की आंख के सिवाय और कुछ नहीं देख रही थीं—न पेड़ न डाली, न चिडिया के पर, न उसका सिर। नहीं ?’
हा ! हा ! हा ! एक शरारती लड़की ने जोर का ठहाका लगाया और सभी उसी के साथ हा ! हा ! कर जोर से हँस पड़े। मिस ने भी उन्हीं का साथ दिया।...
वह बोलती, ‘नहीं मिस, कम्प्यूटर नहीं है मेरे दिमाग में।’’
‘‘तब ?’’ मिस पूछती।
‘‘बात यह है कि और लोग अपना काम दिमाग से चलाते नहीं, मैं अपना दिमाग चलाती हूँ। उसका प्रयोग करती हूँ जिस चीज का प्रयोग नहीं करो वह बेकार हो जाती है।’’ छोटी सी गारिमा इतनी बड़ी-बड़ी बातें कह गई तो मिस ने भी उसी तरह दाँतों तले अँगुली दबाई जैसे उसके माता-पिता खाने की टेबल पर दबाया करते थे। क्लास के और लड़के-लड़कियों ने भी आश्चर्य से आँखें फाड़ दीं।
‘‘तो तुम सदा अपने दिमाग का प्रयोग करती हो ?’’ मिस ने थोड़ी देर बाद पूछा।
‘‘जिस समय कोई समस्या आती है उस समय अवश्य प्रयोग करती हूँ। उस समय मेरा दिमाग केवल उसी समस्या पर केन्द्रित हो जाता है। और कोई बात उस, समय मेरे दिमाग में आती ही नहीं।’’
‘‘जैसे चिड़िया की आँख भेदते समय अर्जुन की आँखें केवल उस चिड़िया की आंख के सिवाय और कुछ नहीं देख रही थीं—न पेड़ न डाली, न चिडिया के पर, न उसका सिर। नहीं ?’
हा ! हा ! हा ! एक शरारती लड़की ने जोर का ठहाका लगाया और सभी उसी के साथ हा ! हा ! कर जोर से हँस पड़े। मिस ने भी उन्हीं का साथ दिया।...
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