नेहरू बाल पुस्तकालय >> हमारी नदियों की कहानी भाग 1 हमारी नदियों की कहानी भाग 1लीला मजुमदार
|
5 पाठकों को प्रिय 151 पाठक हैं |
‘‘गंगा तो विशेषकर भारत की नदी है, जनता की प्रिय है, जिससे लिपटी हुई हैं भारत की जातीय स्मृतियाँ उसकी आशाएँ उसके भय, उसके विजय-गान उसकी विजय और पराजय। गंगा तो भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रतीक रही है,
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘गंगा तो विशेषकर भारत की नदी है, जनता की प्रिय है,
जिससे लिपटी हुई हैं भारत की जातीय स्मृतियाँ उसकी आशाएँ उसके भय, उसके
विजय-गान उसकी विजय और पराजय। गंगा तो भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रतीक
रही है, निशान रही है सदा बदलती, सदा बहती, फिर भी वही गंगा की गंगा ।....
यही गंगा मेरे लिए निशानी है भारत की प्राचीनता की, यादगार की, जो बहती
हुई आई है वर्तमान तक और बहती चली जा रही भविष्य के महासागर की
ओर।
-जवाहरलाल नेहरू
ग़ंगावतरण
गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर कैसे आयी, इस सम्बन्ध में एक बहुत ही रोचक कहानी
कही जाती है।
प्राचीन समय में सगर नाम का एक राजा था-बड़ा ही प्रतापी। उसके धन दौलत की तो सीमा ही नहीं थी। वह चक्रवर्ती राजा बनना चाहता था। उसके लिए उसने बड़ी धूमधाम से अश्वमेध यज्ञ किया। जैसी कि रीति थी, यज्ञ के बाद यज्ञ का घोड़ा छोड़ दिया गया। जो कोई उस घोड़े को पकड़ता उसे राजा से युद्ध करना पड़ता। यदि कोई न पकड़ता तो राजा चक्रवर्ती घोषित कर दिए जाता। यह था यज्ञ का उदेश्य।
राजा सगर के यज्ञ से इन्द्र घबरा गये कि कहीं उनका सिंहासन भी न छिन जाय। यज्ञ को रोकने के विचार से उन्होंने यज्ञ के घोड़े को समुद्र के तट पर कपिल मुनि के आश्रम के पीछे बांध दिया।
इस बीच सगर के साठ हज़ार पुत्र घोड़े को खोजते हुए उधर आ निकले। उन्होंने देखा कि घोडा़ तो कपिल मुनि के आश्रम के पीछे बंधा हुआ है। उन्होंने यही समझा कि मुनि ने घोड़े को बांध रखा है। क्रोध में आकर वे गालियाँ बकने लगे मुनि तपस्या में लीन थे लेकिन राजकुमारों के चीखने चिल्लाने से उनका ध्यान भंग हो गया।
प्राचीन समय में सगर नाम का एक राजा था-बड़ा ही प्रतापी। उसके धन दौलत की तो सीमा ही नहीं थी। वह चक्रवर्ती राजा बनना चाहता था। उसके लिए उसने बड़ी धूमधाम से अश्वमेध यज्ञ किया। जैसी कि रीति थी, यज्ञ के बाद यज्ञ का घोड़ा छोड़ दिया गया। जो कोई उस घोड़े को पकड़ता उसे राजा से युद्ध करना पड़ता। यदि कोई न पकड़ता तो राजा चक्रवर्ती घोषित कर दिए जाता। यह था यज्ञ का उदेश्य।
राजा सगर के यज्ञ से इन्द्र घबरा गये कि कहीं उनका सिंहासन भी न छिन जाय। यज्ञ को रोकने के विचार से उन्होंने यज्ञ के घोड़े को समुद्र के तट पर कपिल मुनि के आश्रम के पीछे बांध दिया।
इस बीच सगर के साठ हज़ार पुत्र घोड़े को खोजते हुए उधर आ निकले। उन्होंने देखा कि घोडा़ तो कपिल मुनि के आश्रम के पीछे बंधा हुआ है। उन्होंने यही समझा कि मुनि ने घोड़े को बांध रखा है। क्रोध में आकर वे गालियाँ बकने लगे मुनि तपस्या में लीन थे लेकिन राजकुमारों के चीखने चिल्लाने से उनका ध्यान भंग हो गया।
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book