मनोरंजक कथाएँ >> संथाल-विद्रोह संथाल-विद्रोहमधुकर सिंह
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प्रथम स्वाधीनता संग्राम की कहानी.....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रथम स्वाधीनता संग्राम-संथाल-विद्रोह
प्रथम स्वाधीनता आन्दोलन की शुरूआत 30 जून, 1855 को ही संथाल-विद्रोह से
शुरूआत होती है। बिहार राज्य में संथाल परगना के राजमहल जनपद का एक गाँव
है- भगनाडीह। इस भगनाडीह गाँव में 30 जून, 1855 को महान संथाल नेता सिदो
के नेतृत्व में दस हजार संथाली जनता ने प्रस्ताव द्वारा उद्घोषणा की,
‘‘अंग्रेज हमारी भूमि छोड़
दें।’’ एक स्वर में इस
प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद उसी क्षण सिदो ने भागलपुर के कमिश्नर के पास
इस प्रस्ताव की प्रति कीर्ता, भादो और पुता माझिओं के माध्यम से भेजवायी;
जिसमें कहा गया था, ‘‘15 दिनों के अन्दर अंग्रेज
संथालों की
भूमि से हट जाएँ और शान्तिपूर्ण तरीके से संथालों को जमीन पर शासन करने
दें।’’
महाजनी सभ्यता के जुल्म से ऊबे हजारों लाखों संथाल-विद्रोहियों के 30 जून, 1855 के इस अग्नि-विस्फोट को अंग्रेज इतिहासकार ‘संथाल हुल’ या ‘संथाल-विद्रोह’ शोषण और जुल्म के खिलाफ उसी कोख से जन्मा था। कार्ल मार्क्स भी अपनी पुस्तक ‘नोट्स ऑफ इण्डियन हिस्ट्री’ में इस ‘संथाल-विद्रोह’ को जनक्रान्ति की संज्ञा देते हैं।
अपनी पुस्तक ‘दि मेकिंग ऑफ इण्डिया’ में रेमजे क्योर लिखते हैं, ‘‘बंगाल-बिहार का सूबा उन दिनों (1756) संसार के सबसे उपजाऊ सूबों में समझा जाता था। इसकी भूमि मिस्र देश से भी ज्यादा मानी जाती थी।’’
महाजनी सभ्यता के जुल्म से ऊबे हजारों लाखों संथाल-विद्रोहियों के 30 जून, 1855 के इस अग्नि-विस्फोट को अंग्रेज इतिहासकार ‘संथाल हुल’ या ‘संथाल-विद्रोह’ शोषण और जुल्म के खिलाफ उसी कोख से जन्मा था। कार्ल मार्क्स भी अपनी पुस्तक ‘नोट्स ऑफ इण्डियन हिस्ट्री’ में इस ‘संथाल-विद्रोह’ को जनक्रान्ति की संज्ञा देते हैं।
अपनी पुस्तक ‘दि मेकिंग ऑफ इण्डिया’ में रेमजे क्योर लिखते हैं, ‘‘बंगाल-बिहार का सूबा उन दिनों (1756) संसार के सबसे उपजाऊ सूबों में समझा जाता था। इसकी भूमि मिस्र देश से भी ज्यादा मानी जाती थी।’’
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