अतिरिक्त >> दीवार दीवारधरम सिंह
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साम्प्रदायिक सद्भाव को उजागर करती कहानी ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पुस्तक बताती है....
हमारे आपके बीच नफरत की, घृणा की, द्वेष की, ईर्ष्या व जलन की, भेदभाव की, भाषा की, मजहब की दीवार खड़ी है। इसे गिराकर आपस में मिलाना है। एक होना है। आदमी होना है। इंसानियत का ही धर्म निभाना है। यही प्रेम है, पूजा है।
इस पुस्तक में साम्प्रदायिक सद्भाव को ही उजागर किया गया है। पढ़कर देखिए......
हमारे आपके बीच नफरत की, घृणा की, द्वेष की, ईर्ष्या व जलन की, भेदभाव की, भाषा की, मजहब की दीवार खड़ी है। इसे गिराकर आपस में मिलाना है। एक होना है। आदमी होना है। इंसानियत का ही धर्म निभाना है। यही प्रेम है, पूजा है।
इस पुस्तक में साम्प्रदायिक सद्भाव को ही उजागर किया गया है। पढ़कर देखिए......
-डॉ. धरम सिंह
दीवार
यह रसूलपुर गांव की कहानी है। रसूलपुर दूसरे गांवों के लिए एक मिसाल है।
लगभग पांच, सौ देहरी होंगी इस गांव में। हिन्दु-मुसलमान लगभग बराबर-बराबर
ही होंगे। परन्तु आपस में कभी कोई मतभेद नहीं। कभी कोई आपसी लड़ाई-झगड़े
नहीं हुए। गांव के पूरब की ओर शिवजी का बहुत बड़ा मन्दिर है। पश्चिम की ओर
तालाब किनारे एक बड़ी मस्जिद है। सुबह चार बजे सभी लोग अजान
सुनते
हैं
और थोड़ी देर बाद मन्दिर में शंख-घन्टे की आवाज सुनाई पड़ती है। इसी तरह शाम को भी। ईद हो या दशहरा, होली हो या दीवाली, पूरा गांव मिलजुल कर सारे त्योहार मनाता है। यह फर्क कर पाना मुश्किल हो जाता है कि यह त्योहार किसका है-हिन्दुओं का या मुसलमानों का। पूरे गांव में हर्ष और उल्लास का माहौल रहता है। सभी एक दूसरे के गले मिलते हैं। साथ-साथ खाना खाते हैं। खुसियाँ मनाते हैं।
कहते हैं आज तक इस गांव का एक भी मुकदमा कोर्ट-कचहरी नहीं गया। कभी कोई छोटा-मोटा आपसी मन मुटाव हुआ भी तो गांव में ही पंचों द्वारा फैसला कर दिया जाता है।
गांव के प्रधान छेदा सिंह बड़े भले और ईमानदार इंसान है। गांव के विकास के बारे में रात दिन सोचते रहते है। कभी कहीं उन्हें कोई अड़चन आई तो सीधे रज्जब मियां के पास आते हैं। उनकी सलाह मशविरा से प्रधान जी के काम आसान हो जाते हैं।
रज्जब मियां पेशे से हकीम हैं। हकीमी का पेशा उनके पुरखों के जमाने से चला आ रहा है। यह उनका पुस्तैनी पेशा है। सुना है, रज्जब मियां के वालिद साहब को हकीमी में बड़ी महारत हासिल थी।
अपने वालिद से ही रज्जब मियां ने हकीमी सीखी है। नब्ज देखते ही रोग का पता लगा लेते हैं। बस, तीन-चार खुराक में ही मरीज को आराम मिल जाता है। किसी को शहर में डॉक्टरों के पास नहीं जाना पड़ता। इसके अलावा गांव के सबसे बुजुर्ग होने के नाते रज्जब मियां का सभी आदर करते हैं। वह पंच तो नहीं हैं, परन्तु ज्यादातर झगड़ों का निपटारा वही कर देते हैं।
और थोड़ी देर बाद मन्दिर में शंख-घन्टे की आवाज सुनाई पड़ती है। इसी तरह शाम को भी। ईद हो या दशहरा, होली हो या दीवाली, पूरा गांव मिलजुल कर सारे त्योहार मनाता है। यह फर्क कर पाना मुश्किल हो जाता है कि यह त्योहार किसका है-हिन्दुओं का या मुसलमानों का। पूरे गांव में हर्ष और उल्लास का माहौल रहता है। सभी एक दूसरे के गले मिलते हैं। साथ-साथ खाना खाते हैं। खुसियाँ मनाते हैं।
कहते हैं आज तक इस गांव का एक भी मुकदमा कोर्ट-कचहरी नहीं गया। कभी कोई छोटा-मोटा आपसी मन मुटाव हुआ भी तो गांव में ही पंचों द्वारा फैसला कर दिया जाता है।
गांव के प्रधान छेदा सिंह बड़े भले और ईमानदार इंसान है। गांव के विकास के बारे में रात दिन सोचते रहते है। कभी कहीं उन्हें कोई अड़चन आई तो सीधे रज्जब मियां के पास आते हैं। उनकी सलाह मशविरा से प्रधान जी के काम आसान हो जाते हैं।
रज्जब मियां पेशे से हकीम हैं। हकीमी का पेशा उनके पुरखों के जमाने से चला आ रहा है। यह उनका पुस्तैनी पेशा है। सुना है, रज्जब मियां के वालिद साहब को हकीमी में बड़ी महारत हासिल थी।
अपने वालिद से ही रज्जब मियां ने हकीमी सीखी है। नब्ज देखते ही रोग का पता लगा लेते हैं। बस, तीन-चार खुराक में ही मरीज को आराम मिल जाता है। किसी को शहर में डॉक्टरों के पास नहीं जाना पड़ता। इसके अलावा गांव के सबसे बुजुर्ग होने के नाते रज्जब मियां का सभी आदर करते हैं। वह पंच तो नहीं हैं, परन्तु ज्यादातर झगड़ों का निपटारा वही कर देते हैं।
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