मनोरंजक कथाएँ >> स्वप्न देश की राजकन्या स्वप्न देश की राजकन्यादिनेश चमोला
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स्वप्न देश की राजकुमारी की कथा।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
स्वप्न देश की राजकन्या
तारा स्वप्न देश की राजकन्या थी। वह परियों-सी सुन्दर थी। देवलोक की
परियों की सुन्दरता भी उसके रूप के सामने फीकी पड़ जाती थी। तारा पर
बड़े-बड़े राजकुमारों की नज़र रहती थी।
जब कभी वह खेलने के लिए उद्यान में जाती तो रंग-बिरंगे फूल आदर से नत हो जाते। स्वप्न देश की जड़-चेतन प्रकृति तारा के सौन्दर्य पर गौरव का अनुभव करती। उसे भगवान् भक्ति में अटूट श्रद्धा थी। वह रोज रंग-बिरंगे फूलों को राज मंदिर में चढ़ाने जाया करती।
स्वप्नदेश की राजकन्या के रूप की चर्चा दूर-दूर के प्रदेशों में होती थी। कई-कई राजकुमार राजकुमारी तारा को पाने के लिए बराबर स्वप्न देखते रहते। तारा को घुड़ सवारी करने का बहुत शौक था। इसलिए वह राज सिपाहियों के साथ माह में दो बार घुड़सवारी के लिए जंगल जाती। वह घोड़े पर सवार हो देव कन्या-सी लगती।
उसकी सुन्दरता पर रीझ वन प्रदेश के फल-फूल के पेड़ उसके पूरे मार्ग को फूलों से भर देते। वन परियाँ आकाशमार्ग से तारा का सौन्दर्य देख मुग्ध होती रहतीं। तारा को रंग-बिरंगे फूलों का संग बहुत अच्छा लगता। इसलिए वह पूर्णिमा की रात-रात-भर अपने उद्यान में फूलों से बतियाती रहती व मस्त हो खेलती रहती। एक दिन तारा वसन्त के फूलों से खेल रही थी कि अमलतास के पेड़ों से किसी ने आवाज दी-
‘‘तारा ! मैं देवलोक का राजकुमार हूँ.....मैं तुमसे अत्यन्त प्रेम करता हूँ....मैं हर रोज तुम्हें खेलते देखता हूँ......मुझे देवताओं से भेष बदलने तथा अन्य कई प्रकार के वरदान प्राप्त हैं.....मेरे पास यह देवताओं द्वारा दी गई अँगूठी है.......मैं एक माह के लिए देवयज्ञ में भाग लेने के लिए इन्द्रलोक जा रहा हूँ......कभी भी कोई संकट हो तो इस अँगूठी के माध्यम से मुझे याद करना....यह लो अँगूठी’’ कहते ही राजकुमार सुन्दर घोड़े पर सवार हो बहुत सुन्दर दिखाई देने लगा।
राजकुमार ने तारा को अँगूठी दी व अदृश्य हो गया। यह देख राजकुमारी तारा बहुत प्रसन्न हुई। अब वह रोज देवलोक के राजकुमार को ही स्वप्न में देखती रहती। वह हर रोज उद्यान में जाकर अमलतास के पेड़ पर राजकुमार की प्रतीक्षा करती रहती।
जब कभी वह खेलने के लिए उद्यान में जाती तो रंग-बिरंगे फूल आदर से नत हो जाते। स्वप्न देश की जड़-चेतन प्रकृति तारा के सौन्दर्य पर गौरव का अनुभव करती। उसे भगवान् भक्ति में अटूट श्रद्धा थी। वह रोज रंग-बिरंगे फूलों को राज मंदिर में चढ़ाने जाया करती।
स्वप्नदेश की राजकन्या के रूप की चर्चा दूर-दूर के प्रदेशों में होती थी। कई-कई राजकुमार राजकुमारी तारा को पाने के लिए बराबर स्वप्न देखते रहते। तारा को घुड़ सवारी करने का बहुत शौक था। इसलिए वह राज सिपाहियों के साथ माह में दो बार घुड़सवारी के लिए जंगल जाती। वह घोड़े पर सवार हो देव कन्या-सी लगती।
उसकी सुन्दरता पर रीझ वन प्रदेश के फल-फूल के पेड़ उसके पूरे मार्ग को फूलों से भर देते। वन परियाँ आकाशमार्ग से तारा का सौन्दर्य देख मुग्ध होती रहतीं। तारा को रंग-बिरंगे फूलों का संग बहुत अच्छा लगता। इसलिए वह पूर्णिमा की रात-रात-भर अपने उद्यान में फूलों से बतियाती रहती व मस्त हो खेलती रहती। एक दिन तारा वसन्त के फूलों से खेल रही थी कि अमलतास के पेड़ों से किसी ने आवाज दी-
‘‘तारा ! मैं देवलोक का राजकुमार हूँ.....मैं तुमसे अत्यन्त प्रेम करता हूँ....मैं हर रोज तुम्हें खेलते देखता हूँ......मुझे देवताओं से भेष बदलने तथा अन्य कई प्रकार के वरदान प्राप्त हैं.....मेरे पास यह देवताओं द्वारा दी गई अँगूठी है.......मैं एक माह के लिए देवयज्ञ में भाग लेने के लिए इन्द्रलोक जा रहा हूँ......कभी भी कोई संकट हो तो इस अँगूठी के माध्यम से मुझे याद करना....यह लो अँगूठी’’ कहते ही राजकुमार सुन्दर घोड़े पर सवार हो बहुत सुन्दर दिखाई देने लगा।
राजकुमार ने तारा को अँगूठी दी व अदृश्य हो गया। यह देख राजकुमारी तारा बहुत प्रसन्न हुई। अब वह रोज देवलोक के राजकुमार को ही स्वप्न में देखती रहती। वह हर रोज उद्यान में जाकर अमलतास के पेड़ पर राजकुमार की प्रतीक्षा करती रहती।
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