नाटक एवं कविताएं >> महापुरुषों के गीत महापुरुषों के गीतसेवक
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महापुरुषों के जीवन पर आधारित कविता-संग्रह।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दो शब्द
प्रत्येक बच्चे के मन में यह भावना होती है कि वह बड़ों की तरह आचरण करे।
वह अपने परिचित लोगों में से किसी एक को चुनकर अपना आदर्श बना लेता है और
उसी के अनुसार बनने की चेष्टा करने लगता है। समय और परिस्थितियों के
अनुसार ये आदर्श बदलते भी रहते हैं। फिर भी महापुरुषों के जीवन बच्चों के
लिए आदर्श का काम करते हैं।
मैंने ये गीत बच्चों की इसी भावना को प्रकट करने के लिए लिखे हैं। बच्चे इन्हें पढ़कर अपने लिए अपना आदर्श चुन सकते हैं; और अगर वे प्रत्येक वैसे ही बन भी सकें तो मुझे क्या, सबको ही बहुत प्रसन्नता होगी।
निरंकारदेव ‘सेवक’
मैंने ये गीत बच्चों की इसी भावना को प्रकट करने के लिए लिखे हैं। बच्चे इन्हें पढ़कर अपने लिए अपना आदर्श चुन सकते हैं; और अगर वे प्रत्येक वैसे ही बन भी सकें तो मुझे क्या, सबको ही बहुत प्रसन्नता होगी।
निरंकारदेव ‘सेवक’
महात्मा गाँधी
माँ, मैं गाँधी बाबा बनकर सत्य-अहिंसा का व्रत पालूं।।
मैं बचपन में राजकोट के दूर विलायत पढ़ने जाऊँ।
पर अपनी माँ के कहने से पिऊँ न मदिरा, मांस न खाऊँ।
ऊँचे आदर्शों के साँचे में अपने जीवन को ढालूँ।
माँ, मैं गाँधी बाबा बनकर सत्य-अहिंसा का व्रत पालूँ।
अफ़रीका में अंग्रेजों के जुल्मों से पहली टक्कर लूँ
फिर भारत में आकर सारे भारत को बाँहों में भर लूँ।
सेवाग्राम अनोखा अपना एक नया संसार बसा लूँ।
माँ, मैं गाँधी बाबा बनकर सत्य-अहिंसा का व्रत पालूँ।
प्यार करें मुझको दुनिया के बस हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई।
प्यार करूँ सबको मैं कहकर सब आपस में भाई-भाई।
मैं भारत की आज़ादी की एक निराली राह निकालूँ।
माँ, मैं गाँधी बाबा बनकर सत्य-अहिंसा का व्रत पालूँ।।
मैं बचपन में राजकोट के दूर विलायत पढ़ने जाऊँ।
पर अपनी माँ के कहने से पिऊँ न मदिरा, मांस न खाऊँ।
ऊँचे आदर्शों के साँचे में अपने जीवन को ढालूँ।
माँ, मैं गाँधी बाबा बनकर सत्य-अहिंसा का व्रत पालूँ।
अफ़रीका में अंग्रेजों के जुल्मों से पहली टक्कर लूँ
फिर भारत में आकर सारे भारत को बाँहों में भर लूँ।
सेवाग्राम अनोखा अपना एक नया संसार बसा लूँ।
माँ, मैं गाँधी बाबा बनकर सत्य-अहिंसा का व्रत पालूँ।
प्यार करें मुझको दुनिया के बस हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई।
प्यार करूँ सबको मैं कहकर सब आपस में भाई-भाई।
मैं भारत की आज़ादी की एक निराली राह निकालूँ।
माँ, मैं गाँधी बाबा बनकर सत्य-अहिंसा का व्रत पालूँ।।
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