बाल एवं युवा साहित्य >> लोक चित्रकलाःमधुबनी लोक चित्रकलाःमधुबनीरवीन्द्र लाल दास
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लोक चित्रकला का वर्णन बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
लोक चित्रकलाः मधुबनी
साथियों, मधुबनी पेंटिंग के नाम से प्रसिद्ध मिथिला लोक
चित्रकला की
बात करने से पहले आइये थोड़ी सी बात मिथिला की करते हैं। आपने रामायण की
कहानियाँ अवश्य पढ़ी या सुनी होगी जिसमें मिथिला राज्य की खूब चर्चा हुई
है। वहां की राजधानी का नाम था जनकपुर और वहां के राजा जनक की पुत्री का
नाम था सीता। उसी सीता से भगवान राम का विवाह हुआ था। आज का मिथिला
क्षेत्र भारत के बिहार राज्य में गंगा नदी के उत्तरी भाग में नेपाल की
तराई क्षेत्र तक फैला हुआ है।
मिथिला में जितने त्योहार या उत्सव होते हैं उन सबमें आँगन में और दीवारों पर चित्रकारी करने की बहुत पुरानी प्रथा है। आंगन में जो चित्रकारी की जाती है। उसे ‘अरिपन’ (अल्पना) कहा जाता है।
जब आप पूछेंगे अरिपन बनती कैसे है ? तो सुनिये। पहले चावल को काफी देर तक पानी में भिगोने के बाद उसे सिल पर अच्छी तरह पीस लिया जाता है। फिर उसमें थोड़ा पानी मिलाकर एक गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है जिसे ‘पिठार’ कहा जाता है। इसी पिठार से गाय के गोबर या चिकनी मिट्टी से लीपी गई भूमि पर महिलाएँ अपनी उँगलियों से चित्र यानी अरिपन बनाती हैं। प्रत्येक उत्सव या त्योहार के लिए अलग-अलग तरह के अरिपन बनाये जाते हैं।
मिथिला में जितने त्योहार या उत्सव होते हैं उन सबमें आँगन में और दीवारों पर चित्रकारी करने की बहुत पुरानी प्रथा है। आंगन में जो चित्रकारी की जाती है। उसे ‘अरिपन’ (अल्पना) कहा जाता है।
जब आप पूछेंगे अरिपन बनती कैसे है ? तो सुनिये। पहले चावल को काफी देर तक पानी में भिगोने के बाद उसे सिल पर अच्छी तरह पीस लिया जाता है। फिर उसमें थोड़ा पानी मिलाकर एक गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है जिसे ‘पिठार’ कहा जाता है। इसी पिठार से गाय के गोबर या चिकनी मिट्टी से लीपी गई भूमि पर महिलाएँ अपनी उँगलियों से चित्र यानी अरिपन बनाती हैं। प्रत्येक उत्सव या त्योहार के लिए अलग-अलग तरह के अरिपन बनाये जाते हैं।
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