बाल एवं युवा साहित्य >> ब्रह्माण्ड ब्रह्माण्डरामस्वरूप वशिष्ठ
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ब्रह्माण्ड की सारी जानकारियों का वर्णन।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आकाश में दीपमाला
रात के समय आकाश पर नजर डालिये। लाखों-करोड़ों दीपक जगमगाते दिखायी देंगे।
हरेक आदमी के मन में यह जानने की इच्छा होती है कि यह सुन्दर दीपमाला
रातभर कैसे जलती है।
बहुत पुराने जमाने से ही लोगों के मन में सूर्य, चन्द्रमा और नक्षत्रों के बारे में जानने समझने की चाह होती आयी है। बहुत से लोगों ने इस बारे में जानकारी इकट्ठी की। मिस्र, अरब, भारत और चीन आदि देशों के विद्वान इस तपस्या में लगे रहे। उनकी लगन से जो जानकारी इकट्ठी हुई उसे खगोल विद्या कहते हैं। खगोल विद्या की जानकारी में लगे विद्वानों को खगोलज्ञ कहते हैं।
बहुत पुराने जमाने से ही लोगों के मन में सूर्य, चन्द्रमा और नक्षत्रों के बारे में जानने समझने की चाह होती आयी है। बहुत से लोगों ने इस बारे में जानकारी इकट्ठी की। मिस्र, अरब, भारत और चीन आदि देशों के विद्वान इस तपस्या में लगे रहे। उनकी लगन से जो जानकारी इकट्ठी हुई उसे खगोल विद्या कहते हैं। खगोल विद्या की जानकारी में लगे विद्वानों को खगोलज्ञ कहते हैं।
खगोल संबंधी पुरानी धारणा
पुराने लोगों के पास दूरबीनें, फोटोग्राफी और अन्य सहायक यंत्र नहीं थे।
तरह-तरह के कोण बनाकर साधारण आँखों से आकाश को देखते थे। पत्थर के बने ये
कोण ही उनके सहायक थे। आकाशी पिंडों को पहचानना, उनकी चाल की गणना करना और
उनके स्थान को समझ लेना काफी कठिन तपस्या थी।
लोगों ने चन्द्रमा और सूर्य को पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूमते देखा। अन्य नक्षत्र भी घूमते हुए दिखायी पड़े। अत: उन्होंने अनुमान लगाया कि पृथ्वी ही इस विश्व का केन्द्र है। नक्षत्रों की लम्बी धारा आकाश में देखी तो यूनानियों ने उसका नाम दूधपथ (दूध का मार्ग) और भारतीयों ने आकाशगंगा रख दिया।
प्राचीन लोगों ने चन्द्रमा और सूर्य के घूमने के मार्गों को गहराई से देखने-समझने की कोशिशें की। घूमने के मार्गों को कक्षा कहते हैं। सूर्य की कक्षा को बारह भागों में बाँटा। उन भागों के नक्षत्रों को पहचाना। सौरमंडल के कई ग्रहों को जान लिया। इस प्रकार सौरमण्डल और आकाशगंगा ही उस जमाने के विश्व थे। साधारण आंख से इतनी जानकारी महत्त्वपूर्ण थी।
लोगों ने चन्द्रमा और सूर्य को पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूमते देखा। अन्य नक्षत्र भी घूमते हुए दिखायी पड़े। अत: उन्होंने अनुमान लगाया कि पृथ्वी ही इस विश्व का केन्द्र है। नक्षत्रों की लम्बी धारा आकाश में देखी तो यूनानियों ने उसका नाम दूधपथ (दूध का मार्ग) और भारतीयों ने आकाशगंगा रख दिया।
प्राचीन लोगों ने चन्द्रमा और सूर्य के घूमने के मार्गों को गहराई से देखने-समझने की कोशिशें की। घूमने के मार्गों को कक्षा कहते हैं। सूर्य की कक्षा को बारह भागों में बाँटा। उन भागों के नक्षत्रों को पहचाना। सौरमंडल के कई ग्रहों को जान लिया। इस प्रकार सौरमण्डल और आकाशगंगा ही उस जमाने के विश्व थे। साधारण आंख से इतनी जानकारी महत्त्वपूर्ण थी।
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