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मनोरंजक कथाएँ >> वीर सिपाही

वीर सिपाही

श्रीकान्त व्यास

प्रकाशक : शिक्षा भारती प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5025
आईएसबीएन :9788174830036

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सर वाल्टर स्काट के प्रसिद्ध उपन्यास इवानहो का सरल हिन्दी रूपान्तर....

Vir Sipahi

प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश

1

यह पुराने जमाने के इंग्लैंड की कहानी है। डोन नदी के किनारे काफी बड़ा जंगल था। यह जंगल शेफील्ड और डोनकास्टर शहरों के बीच के बड़े भारी भाग में फैला हुआ था।
जंगलों का जो हिस्सा बस्ती से कुछ ही दूर पड़ता था वहाँ लोगों की ज़मीदारियाँ थीं, खेत-खलिहान और बड़े-बड़े चारागाह थे। ये अमीर और ज़मीदार अपने को किसी बादशाह से कम नहीं समझते थे। वह आन और शान पर मर मिटने का ज़माना था। ज़रा-ज़रा सी बात पर तलवारें खिंच जाती थीं लोग मरने-मारने पर उतारू हो जाते थे।
जब की यह कहानी है, पूरे यूरोप में अव्यवस्था थी। उधर जेरूसलम में यहूदियों के खिलाफ ईसाइयों ने धर्मयुद्ध छेड़ रखा था। इंग्लैंड और यूरोप के राजाओं ने अपने बहादुर सैनिकों को यहूदियों के खिलाफ लड़ने के लिए भेज रखा था।
यहूदियों के बुरे दिन थे। ईसाइयों के अत्याचार से उनका जीना दूभर था। मौका पाकर रातों-रात वे घरबार छोड़कर निकलते और ऐसे ही जंगलों में शरण लेते थे। करीब हज़ार साल पहले इंग्लैंड की यही हालत थी। वहाँ नारमन और सैक्सन जातियों में बड़े-बड़े युद्ध हो चुके थे। अब शासन नारमन लोगों के हाथ में था। लेकिन सैक्सन जाति के लोग अब भी अपने को छोटा मानने के लिए तैयार नहीं थे।

एक झरने के पास दो आदमी बैठे हुए बातें कर रहे थे। उनकी भेड़ें पास चर रही थीं। उन दोनों आदमियों में से एक उन भेड़ों का चरवाहा मालूम पड़ता था। उसकी उम्र कुछ ज्यादा थी। उसने अंगरखे पर चमड़े की बंडी पहन रखी थी। उसका चुस्त पायजामा भी चमड़े का ही मालूम होता था। पैरों में उसने अजीब तरह के जूते पहन रखे थे। इन जूतों के तल्ले लकड़ी के बने थे और ऊपर चमड़े की पट्टियाँ बंधी थीं, जिन्हें उसने अपने टखने और पिंडली तक लपेट रखा था। कमर में उसने पेटी बाँध रखी थी, जिसमें कृपाण जैसी एक छोटी तलवार बंधी थी। दूसरी ओर सिंगा लटका रखा था, जिसे बजाकर वह भेड़ों को बुलाता था। उस ज़माने में युद्ध के समय भी सिंगा बजाए जाते थे। इस आदमी के गले में एक लोहे की ज़ंजीर पड़ी हुई थी। ज़ंजीर इतनी तंग थी कि बिना काटे गले से निकल नहीं सकती थी। इस ज़ंजीर के बीच में पीतल का एक बिल्ला लटका हुआ था, जिस पर लिखा था-‘गर्थ, बिवल्फ का लड़का और रोदरवुड के अमीर सरदार सेड्रिक का गुलाम।’
गर्थ के पास जो दूसरा आदमी बैठा था। वह कुछ कम उम्र का और जवान मालूम पड़ता था। उसने बड़ी अजीब-सी पोशाक पहन रखी थी। उसे देखकर हंसी आती थी। उसने गंदले रंग का अंगरखा पहना था और उसके ऊपर गहरे लाल रंग की एक बंडी चढ़ा रखी थी। गर्थ की तरह ही उसके गले में भी एक ज़ंजीर पड़ी थी, लेकिन वह चांदी की मालूम होती थी। उसमें जो बिल्ला लटक रहा था, उस पर लिखा था-‘‘वाम्बा, बिटलेस नामक एक बेवकूफ का लड़का और रोदरवुड के अमीर सरदार सेड्रिक का नौकर।’’

थोड़ी देर बाद गर्थ ने कुछ चिंतित होकर चारों ओर देखा और कहा, ‘‘अरे, शाम हो गई ! अंधेरा होने वाला है। अब जल्दी से जल्दी घर लौट चलना चाहिए। वरना, इस जंगल में किसी का क्या ठिकाना ! कहीं डाकू या भगोड़े सिपाही आ निकले तो मेरी सारी भेडों को हांक ले जाएंगे। मालिक मेरी जान ले लेगा। वाम्बा, ज़रा तुम उठकर मेरी इन भेड़ों को और इधर कुछ सुअर चर रहे हैं, उनको भी इकट्ठे तो कर दो।’’
लेकिन वाम्बा अपनी जगह ही बैठा रहा। अपने पैरों की ओर देखकर उसने कहा, ‘‘हाँ तुम ठीक कहते हो। चाचा, मैंने अभी अपने दोनों पैरों को उठने का हुक्म दिया। लेकिन इन्होंने साफ इन्कार कर दिया कि इस कीचड़-कादों में वे मेरे शरीर को नहीं ले जाएंगे। अब तुम्हीं कहो, क्या किया जाए ?’’
‘‘अरे, ज़रा भेड़ों को हांक लाओ न ! बहाना क्यों बना रहे हो ?’’ गर्थ बोला। लेकिन तभी दूर कुछ घोड़ों की टाप सुनाई दी। ऐसा लगा जैसे बहुत-से घुड़सवार दौड़े आ रहे हैं।
गर्थ एकदम घबरा उठा और बोला, ‘‘लो, आई मुसीबत ! कोई इधर ही आ रहा है।’’ यह कहकर वह अपने जानवरों को इकट्ठा करने लगा। आसमान में अब बादल भी घने होते जा रहे थे। गर्थ चाहता था कि पानी आने से पहले ही घर लौट जाए।
वाम्बा ने हंसकर कहा, ‘‘इस तरह घबराते क्यों हो, चाचा ? हाँ, कुछ घुड़सवार इधर ही आ रहे हैं। लेकिन क्या पता कि ये कौन लोग हैं। हो सकता है देवदूत हों।

गर्थ बोला, ‘‘मज़ाक रहने दो, न मालूम ये लोग कौन हैं और फिर पानी भी आने वाला है। देखते नहीं हो, बादल घने होते जा रहे हैं ? मैं तो अब चलता हूँ।’’ यह कहकर गर्थ अपने जानवरों को हांकता हुआ चल पड़ा।
गर्थ को इस तरह घर लौटने को उतारू देखकर वाम्बा को भी उठना पड़ा। लेकिन वे लोग थोड़ी दूर गए होंगे कि अचानक घुड़सवार उनके पास पहुँचे। उन्होंने चरवाहे को रोक दिया। आगे आगे दो घुड़सवार थे। उनमें से एक तो पादरी जैसा मालूम पड़ता था। उनके पीछे कुछ घुड़सवार थे, जो शायद उनके सिपाही थे।
गर्थ और वाम्बा इन दोनों घुड़सवारों को आश्चर्य से देख रहे थे। वाम्बा शायद इस पादरी को पहचानता था। गर्थ भी पहचानता था, लेकिन उसने अपना चेहरा ऐसा बना लिया, जैसे वह किसी अजनबी से बात कर रहा हो। यह पादरी ईसाइयों के जोरोबक्स नामक मठ का सबसे बड़ा महंत था। उसे आसपास के सभी लोग जानते थे।
पादरी ने वाम्बा की ओर देखते हुए पूछा, ‘‘क्यों भाई, क्या तुम लोग आसपास किसी ऐसे भले आदमी का मकान बता सकते हो, जो ईश्वर और धर्म के नाम पर हम लोगों को रात काटने की जगह दे सके ?’’
वाम्बा बोला, ‘‘अगर आप लोग कुछ आगे बढ़ जाएं तो ब्रिक्सवर्थ के मठ तक पहुँच जाएँगे। वहाँ के महंत आप लोगों का स्वागत करेंगे। आपको वहाँ कोई तकलीफ नहीं होगी।’’

लेकिन पादरी ने अपना सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘नहीं भाई, एक मठ के पादरी को दूसरे मठ में आसानी से जगह नहीं मिलती। इसकी बजाय तो हम किसी मामूली धर्मात्मा आदमी के यहाँ रहना ज़्यादा पसन्द करेंगे। इस तरह उसे कम से कम हमारे जैसे ईश्वर के सेवकों और भक्तों की सेवा करने का मौका तो मिलेगा।’’
इस पर वाम्बा को मज़ाक सूझा। वह बोला, ‘‘ईश्वर ने मुझे बुद्धि तो बहुत थोड़ी दी है, लेकिन फिर भी मेरा ख्याल है, किसी दूसरे को अपनी सेवा करने का मौका देने के बजाय ईश्वर के भक्त खुद अपनी सेवा करने लगें तो कितना अच्छा हो।’’
इस पर पादरी के साथ वाले सरदार को गुस्सा आ गया। वह अपना चाबुक घुमाकर उस पर वार करने वाला ही था कि अचानक रुककर बोला, ‘‘चुप रहो ! क्यों जान गंवाना चाहते हो ? बताओ, यहाँ आसपास सैक्सन जाति का कोई जमींदार रहता है ?’’ फिर उसने पादरी से पूछा,‘‘क्या नाम बताया आपने ?’’
‘‘उसका नाम है सरदार सेड्रिक।’’ पादरी ने उत्तर दिया। फिर उसने गर्थ से पूछा, ‘‘क्यों भाई, तुम्हें मालूम हो तो तुम्हीं बताओ, अमीर सेड्रिक का मकान किधर पड़ेगा ?’’

पादरी ने वाम्बा के हाथ में एक सिक्का दिया। इस पर वाम्बा खुश हो उठा और बोला, ‘‘पिता, असल में आपके साथी का गुस्से से भरा चेहरा देखकर मैं रास्ता भूल गया था।’’ फिर उसने अपना हाथ फैलाकर कहा, ‘‘मैं तो आपका गुलाम हूँ। अमीर का मकान आपको इसी रास्ते पर मिलेगा। काफी आगे जाने पर एक चौराहा पड़ेगा, जहाँ से रास्ता चार दिशाओं को जाता है। वहाँ से आप बायीं ओर मुड़ जाइएगा। मेरा ख्याल है पानी आने से पहले तक आप लोग वहाँ पहुँच जाएँगे।’’
पादरी ने बार-बार वाम्बा को आशीर्वाद दिया। फिर वह अपने साथियों के साथ आगे बढ़ गया।
जब वे लोग काफी आगे बढ़ गए तो गर्थ खिलखिलाकर हँस पड़ा और बोला, ‘‘तुम भी खूब हो, अच्छा रास्ता बताया उन्हें ! इस तरह तो वे सारी रात जंगल में भटकते रहेंगे और फिर भी मालिक के मकान का पता नहीं पा सकेंगे।’’
इधर पादरी अपने दल के लोगों के साथ आगे बढ़ा जा रहा था। आसमान में घिरते हुए बादलों को देखकर सभी चिन्तित थे। पानी आने से पहले तक सभी मुकाम पर पहुँच जाना चाहते थे।
पादरी बोला, ‘‘तुमने उस आदमी को पीटा नहीं, यह अच्छा ही किया। क्योंकि मुझे पहले ही शक हो गया था कि वह सेड्रिक का नौकर है। सेड्रिक बड़ा घमण्डी आदमी है। इसके अलावा वह सैक्सन जाति का होने के कारण नारमन लोगों से नफरत भी करता है। इसलिए वह अपने नाम के साथ सैक्सन लगाता है और दूसरे अमीर और ज़मींदार तो अपने को सैक्सन कहने से शर्माते हैं, लेकिन उसे इस बात का गर्व है। अगर तुमने उसके नौकर को मार दिया होता, तो बड़ी गड़बड़ी होती।’’
‘‘खैर, मुझे इसकी परवाह नहीं। लेकिन मैंने उसकी लड़की रोवेना के बारे में सुना है कि वह बहुत खूबसूरत है।’’ उसका साथी बोला।
पादरी ने कहा, ‘‘हाँ, वैसी सुन्दर लड़की शायद ही कहीं मिले। लेकिन वह उसकी अपनी लड़की नहीं है। उसने उसे पाला-पोसा है और अपनी लड़की से भी बढ़कर उसे प्यार करता है। वह किसी लड़ाई में मारे गए किसी राजा की लड़की मालूम होती है।’’

कुछ दूर चलने पर वे उस जगह पहुँचे जहाँ चार रास्ते मिल गए थे। अब उन दोनों में यह बहस होने लगी कि उस मूर्ख ने बायीं ओर जाने को कहा था या दायीं ओर। उनकी समझ में नहीं आता था कि क्या करें। अचानक उन्होंने देखा कि एक पेड़ के नीचे कोई आदमी लेटा है। उन्होंने उसके पास जाकर सेड्रिक के मकान का रास्ता पूछा।
वह आदमी चौंककर खड़ा हुआ और जम्हाई लेता हुआ बोला, ‘‘मुझे भी तो वहीं जाना है। अरे, मैं कितनी देर तक सोता रहा यह तो शाम हो गई ! आप लोग चलिए मेरे साथ।’’
पादरी ने उसको एक खाली घोड़ा दे दिया जिस पर सवार होकर वह आगे-आगे उन्हें रास्ता बताता हुआ चलने लगा। वह उन्हें दूसरे रास्ते से ले गया। काफी दूर जाने पर वे लोग एक बड़े-से मकान के सामने पहुँचे। ऐसा लगता था जैसे वह किसी राजा का महल हो। पादरी के साथ वाले सैनिक ने अपने आने की सूचना देने के लिए सिंगा बजाया।
पादरी ने अपने साथ आने वाले अजनबी से पूछा, ‘‘लेकिन भाई, तुमने यह नहीं बताया कि तुम कौन हो और कहाँ से आ रहे हो ?’’
अजनबी ने जवाब दिया, ‘‘मैं मुसाफिर हूँ और जेरूसलम से लौट रहा हूँ।’’
यह सुनकर पादरी के साथ वाला सैनिक बोला, ‘‘तुम अगर यहाँ भटकने के बजाय जेरूसलम के धर्मयुद्ध में भाग लेते तो ज़्यादा अच्छा होता।’’
‘‘अजनबी बोला, ‘‘आपका कहना तो ठीक है। लेकिन जब मैं आपके जैसे वीर योद्धा को यहाँ भटकते देख रहा हूँ तो फिर मेरे जैसे एक मामूली किसान की तो कोई गिनती ही नहीं !
असल में आपको इस धर्मयुद्ध में होना चाहिए था।’’
यह सुनकर उस सैनिक का चेहरा मारे गुस्से के तमतमा उठा। वह उसे कोई जवाब देने वाला ही था कि इतने में सेड्रिक के महल का दरवाजा खुला और उन लोगों को अन्दर आने का निमंत्रण मिला। सब लोग महल में चले गए।

2

 


उस वक्त अमीर सेड्रिक भोजन की तैयारी कर रहा था। एक बड़े भारी कमरे में, जो शाही ढंग से सजा हुआ था, एक लम्बी-चौड़ी मेज़ पर सेड्रिक और उसके परिवार के लोगों के लिए खाना सजाया जा रहा था। इस कमरे में हर कोने में एक अंगीठी बनी हुई थी, जिसमें कोयले धधक रहे थे। कमरा काफी गरम था। कमरे में सजावट का तरह-तरह का कीमती सामान रखा था दीवारों पर कई प्रकार के हथियार लटक रहे थे। आने-जाने के लिए इसमें चार-पांच दरवाजे थे।
भोजन की बड़ी मेज़ कमरे के बीचों-बीच लगी थी। उसके अलावा कोने में एक छोटी मेज़ और लगी हुई थी, जिस पर अमीर के खास नौकर-चाकर खाना खाते थे। बड़ी मेज़ के सामने एक शानदार कुर्सी पर अमीर सेड्रिक बैठा था। वह था तो एक साधारण जमींदार ही लेकिन ठाठ-बाट किसी राजा से कम नहीं था। उसकी उम्र लगभग साठ साल थी, लेकिन अब भी उसके चेहरे पर एक तरह की शान रहती थी। वह सैनिकों की तरह अकड़कर चलता था और स्वभाव का भी बड़ा तेज़ था।
इस समय वह कुछ गुस्से में मालूम होता था। शायद खाना लगने में देर हुए थी इसलिए वह नाराज था। खाने में ज़रा भी देर हो जाती थी तो वह आपे से बाहर हो जाता था। उसकी बेटी रोवेना भी अभी खाने के लिए तैयार होकर नहीं आई थी। इससे वह और भी चिढ़ रहा था। उसके अलावा उसे यह भी चिन्ता थी कि अब तक उसका चरवाहा गर्थ जंगल से क्यों नहीं लौटा।

‘‘वे दोनों हरामखोर, गर्थ और वाम्बा, अभी तक क्यों नहीं लौटे ? क्या बात है, कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है ? कहीं नारमन लुटेरों ने उन लोगों को मार तो नहीं डाला और मेरी भेंड़े तो नहीं छीन लीं ? पता नहीं इस देश में कब शान्ति और सुव्यवस्था कायम होगी !’’ सेड्रिक बड़बड़ा रहा था।
एक और कारण से भी सेड्रिक का स्वभाव इधर कुछ ज़्यादा चिड़चिड़ा हो गया था। बात यह थी कि उसने अपने इकलौते बेटे को घर से निकाल दिया था। उसका नाम विलफ्रेड आइवन्हो था उसका अपराध बड़ा भारी था। सेड्रिक रोवेना नाम की लड़की को अपने घर में बचपन से पाल रहा था। वह युद्ध में मारे गए सैक्सन राजा की अनाथ लड़की थी। सेड्रिक उसे बहुत प्यार करता था और अपने बेटी की तरह मानता था। उसका लड़का विलफ्रेड़ इस लड़की को प्यार करने लगा। अचानक एक दिन उसने इससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। सेड्रिक को जब यह मालूम हुआ तो वह मारे गुस्से के पागल हो गया। उसने फौरन अपने लड़के को घर से बाहर निकाल दिया। यही नहीं, उसने उसे अपने उत्तराधिकार से भी वंचित कर दिया।
विलफ्रेड घर छोड़कर चला गया। सेड्रिक ने उसे घर से बाहर निकाल तो दिया था, लेकिन उसकी कमी उसे खलने लगी। वह उसका इकलौता बेटा था। इस बुढ़ौती में वही उसका एकमात्र सहारा था। इसलिए बुड्ढा बहुत दुखी रहता था।
इतने में अचानक महल के बड़े दरवाज़े की ओर से तुरही की आवाज़ आई और कुत्ते भौंकने लगे। थोड़ी देर बाद एक नौकर कमरे में आया और अदब से बोला, ‘‘सरकार, जोरोबक्स मठ के महंत और एक धर्मसेवक अमीर अपने साथियों के साथ आज की रात काटने के लिए यहाँ शरण चाहते हैं। कल एस्बी में जो दंगल होने वाला है, उसमें भाग लेने के लिए वे लोग जा रहे हैं। जंगल में रात हो गई, इसलिए यहाँ ठहरना चाहते हैं।’’


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