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मनोरंजक कथाएँ >> राबिन्सन क्रूसो

राबिन्सन क्रूसो

श्रीकान्त व्यास

प्रकाशक : शिक्षा भारती प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5023
आईएसबीएन :9788174830364

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डेनियल डिफो का प्रसिद्ध उपन्यास राबिन्सन क्रूसो का सरल हिन्दी रूपान्तर...

Robinson Cruso A Hindi Book by Shrikant Vyas

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

राबिन्सन क्रूसो

बहुत-बहुत दिन पहले की बात है, यार्क शहर में एक लड़का रहता था। उसका नाम था राबिन्सन क्रूसो। उसे जहाजी बनने और पाल और डांडो से चलने वाले जहाज से दूर-दूर देशों की यात्रा पर जाने का शौक था, हालांकि काफी बड़ी उम्र तक उसने कभी समुद्र देखा तक नहीं था। अक्सर वह सोचता था,‘‘मैं बड़ा होकर किसी जहाज में काम करूँगा; खुद जहाज चलाऊंगा और संसार के सभी देशों को देखूँगा।’

लेकिन उसके पिता को उसका यह शौक पसन्द नहीं था। वह उसे वकील बनाना चाहते था। जब भी कभी राबिन्सन समुद्र के बारे में बात करता और समुद्र यात्रा पर जाने की अपनी इच्छा प्रकट करता तो उसका पिता उसे बहकाने लगता, ‘‘पागल न बनो ! जहाजी संसार का सबसे अधिक अभागा आदमी होता है।

उसे हमेशा घर से दूर रहना पड़ता है और मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। दुनियाँ में सबसे ज्यादा सुखी वे ही होते है जो अपने घर पर रहते हैं।’’वह अक्सर राबिन्सन को कहा करता था कि किस तरह तुम्हारा भाई घर छोड़कर परदेश चला गया और लड़ाई में अपनी जान गवाँ बैठा।

जब उसका पिता उसे इस तरह समझाता था तो अन्त में हारकर राबिन्सन उसकी बात मान लेता था और जहाजी बनने का विचार त्याग देता था लेकिन कुछ दिनों बाद फिर उसे वही सनक सवार होने लगती थी। वह दूर देशों की यात्रा पर जाने के लिए तड़पने लगता था।

वह अपनी मां के पास जा बैठता और उससे कहता, ‘‘माँ तुम किसी तरह बाबूजी को समझा दो और मुझे एक बार, बस एक बार जहाज पर सफर करने की इजाजत दिला दो।’’ लेकिन उसकी माँ भी नाराज होकर उसे डाँटने लगती थी और उसका पिता खीजकर कहता कि अगर वह परदेश जहाज पर जाएगा तो अपना बड़ा नुकसान करेगा। बाद में उसे पछताना पड़ेगा। मैं उसे इसकी इजाजत नहीं दे सकता।

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